शांती मेरे घर में बरतन-पोंछा करने आती है. जाति से पासी. नेतृत्व के गुण तलाशने हों तो किसी कॉरपोरेट के सीईओ को झांकने की जरूरत नहीं, शांती में बहुत मिलेंगे. एक पूरी तरह अभावग्रस्त परिवार को अपने समाज में हैसियत वाला बना दिया है. हाड़तोड़ मेहनत करने वाली. कभी-कभी सवेरे 4-5 बजे आ जाती है. मेरी मां से कहती है – "जब्बै मुरगा बोला, उठि गये. का करी, सोचा कामै पर चली." करीब 12-15 घरों में काम करती है. कुल 2500-3000 तक कमाती है. पैसा बचाना, बच्चों को पढ़ाना, सरकार की किस स्कीम से क्या लाभ मिल सकता है – यह जानकारी रखना, नगरपालिका और सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा काम करा लेना, जरूरत पड़े तो 25-50 रुपये दक्षिणा देकर काम करा लेना – यह सब शांती को आता है. बाकी बिरादरी के लोग मड़ई में रहते हों, पर शांती ने तीन कमरे का पक्का मकान बना लिया है.
पढ़ी-लिखी नहीं है शांती. सो शब्द उसके अपने गढ़े हैं. अनुसूचित जाति को कहती है – सुस्ती जाति. सुस्ती जाति के वैधानिक लाभ और राजनैतिक दाव-पेंच समझती है. अपने वोट की कीमत भी जानती है वह. उसकी बड़ी लड़की बी.ए. तक पढ़-लिख कर शिक्षामित्र बन गयी है. शांती शिक्षामित्र नहीं कह पाती. कहती है – छिच्छामित्र. छिच्छामित्र बन जाने से बिरादरी में शांती का दबदबा बढ़ गया है.
शांती का पति लल्लू है. नाम है रंगी. रंगीलाल पन्नी का शौकीन है. पर शांती उसे धेला नहीं देती पीने को. अपना जो कमाता है, उसी में कपट कर पीता है. अन्यथा शांती उससे सारी कमाई ले लेती है. गंगा के कछार में अवैध शराब बनती है. एक दिन रंगी वहीं पी रहा था कि पुलीस की रेड पड़ी. रंगी दो दिन तक भागता फिरा. पुलीस उसे ढ़ूंढ़ नहीं रही थी, फिर भी, केवल डर के मारे भागता रहा. बड़ी मुश्किल से शांती ढ़ूंढ़ कर वापस ला पायी. कभी-कभी रंगी पिनक में रहता है और 3-4 दिन काम पर नहीं जाता. तब शांती भोजन बनाना बन्द कर देती है. रंगी को लाई-चना पर उतार देती है तो झख मार कर काम पर जाता है. मेरे पिता जी बिलानागा रंगी का हाल पूछते हैं – "रंगी पन्नी पर है कि काम पर?" शांती हंस कर जवाब देती है – "नाहीं बाबू, काम पर ग हयें."
आज मेरी मां से शांती अपने से बताने लगी - "अम्मा मोनू कालि नेवस्टी ग रहा."
यह नेवस्टी क्या है? मुझे कुछ देर बाद समझ आया. उसका लड़का स्कूली पढ़ाई पूरी कर कल यूनिवर्सिटी में भरती होने गया था आगे की पढ़ाई के लिये.
एक ही पीढ़ी का अंतर – मां अनपढ़, बाप पियक्कड़. लड़की छिच्छामित्र. लड़का नेवस्टी जा रहा है.
मित्रों, भारत की तस्वीर बदलती दिख रही है न! मुझे भविष्य पर भरोसा हो रहा है.
जी बिलकुल फुल भरोसा हो रहा हैल भविष्य पर जी। हालांकि कई यकीन नहीं करेंगे।
ReplyDeleteदिल्ली में एक परिवार को मैं जानता हूं जिसमें चपरासी परिवार की पुत्री सीए बनी, लड़का लफंटूश निकला। सीए बालिका ने ही पूरे परिवार को सैट किया, लड़के को एक ढंग की कंपनी में ठीक-ठाक सा जाब अरैंज किया।
अगली पीढ़ी बहूत बहूत बहूत बहूत समझदार है। शांति की बिटिया के बारे में जब आप अबसे दस साल बाद लिखेंगे, तो वह पोस्ट इस यकीन को सच ठहरायेगी।
कल तो हमारा है ही;
ReplyDeleteसुबह जरूर आयेगी
बहुत अच्छा लिखा है।आप ब्लागिंग का सही मायने में उपयोग कर रहे हैं। आगे बदलाव होंगे। शांती जैसे लोग दुनिया में जरूर अपने परिवार को आगे ले जायेंगे। :)
ReplyDeleteलगता है हर घर की शांति की ये ही कहानी है
ReplyDeleteपाण्डेय जी पढ कर अच्छा लगा आपका विषय चयन अनोखा रहता है । आम से लगने वाले विषय में भी इतनी गहरी सोंच हो सकती है यह कोई आपसे सीखे । धन्यवाद
ReplyDeleteमैं भी एक परिवार को जानता हूं जो जिसकी शांति एक मंत्री के घर में काम करती थी और उस मंत्री नें रातनैतिक दांवपेच के कारण उसकी पढी लिखी बेटी को नगरपालिका का महौपौर बनवा दिया था, कल तक निकृष्ट उस परिवार का आज सम्माननीय वर्तमान है ।
शांति को नमन करता हूँ. भविष्य सुरक्षित है. लेख बहुत पसंद आया, ज्ञानजी. आप भी बहुत गजब पहलू छूते हैं हर रोज. आपको साधुवाद.
ReplyDeleteजब भी अवसर मिले तो हमेशा स्त्रियां पुरुषों से बेहतर प्रबंधक सिद्ध होती है, हमेशा.
ReplyDeleteशांति की कथा प्रेरणा देती है की रोने-पीटने व भाग्य भरोसे कुछ नहीं होता. कड़ी मेहनत व योजनाबध काम करने से सफलता मिलती है.
ReplyDeleteशांति को सलाम.
सही मुद्दा उठाया है जी आपने,हमारा आज चुपचाप बिना किसी सहारे नये कल के आगाज मे लगा है. और इस बदलते वक्त की नायिकाये है वो बालिकाये जिन्हे हम हमेशा दबा कर रखने की कोशिश करते रहे है.जिन का जन्मना ही अभिशाप समझा जाता रहा है.जिन के लिये हम "मेरा नाम करेगा रोशन टाईप गीत गाते थे" वो रोशनी से कही दूर दिये का तेल बेचने की फिराक मे लगे पाये जाते है..
ReplyDeleteदादा आप तो ये से़सर वाल पंगा हटा ही दो..
ReplyDeleteअरुण>...दादा आप तो ये से़सर वाल पंगा हटा ही दो..
ReplyDeleteहटा दिया. डन!
अच्छा लगा पढ़कर । इसे मैंने प्रेमचंद के पात्रों से जोड़ लिया ।
ReplyDeleteशांति को नमन जिसने हारना नहीं सीखा, काश हर स्त्री शांति बन सकती!
ReplyDeleteसही मायनों में चिठ्ठाकारी यही है, रोज सुबह इस तरह का प्रेरणास्पद लेख पढ़ने को मिल जाये तो वाह! क्या कहने।
सलाम शांति को जो खुद अनपढ़ होते हुए भी पढ़ाई लिखाई का महत्व जानती है!
ReplyDeleteशुक्रिया आपका!