Monday, August 10, 2009

मंगल और तिलंगी


Mangal Tilangi मैने उसका नाम नहीं पूछा। “हटु रे” वाली पोस्ट पर लोग लजा रहे थे टिपेरते, पर कृष्ण मोहन ने उस पात्र को सही चीन्हा – रागदरबारी का मंगलदास उर्फ सनीचरा। नया दिया नाम – सतीश पंचम  जी का; “जियालाल” भी उत्तमोत्तम है!

मंगल महत्वपूर्ण चरित्र है रागदरबारी का। आप उस पुस्तक की सनिचरा के बगैर कल्पना नहीं कर सकते। और मेरी “हटु रे” वाली पोस्ट के इस पात्र को मेरे व्यक्तित्व के कृष्ण पक्ष का फसाड मानने वाले मानते रहें – उसकी क्या केयर करूं! केयर करते रहते तो बने रहते घुन्ना!

Mangal Tilangi2 खैर, “मंगलदास” पुन: मिल गया। इस बार अपने स्थान पर बैठे नहीं; कछार में सम्भवत: निपटान के बाद लौट रहा था। एक काले रंग का कुता दौड़ कर उसके पास गया। मंगल दास वहीं बैठ गया। कुत्ता उसके पास लेट उससे खेलने लगा। मंगल ने कुत्ते का नाम बताया – तिलंगी!

बड़े इत्मीनान से मंगल ने वहीं बैठे बैठे बीड़ी सुलगाई। तिलंगी खेलता रहा उससे तो वह बोला – एक दाईं एकरे नकिया में छुआइ देहे रहे बीड़ी (एक बार तिलंगी की नाक में छुआ दी थी मैने बीड़ी)!

मंगल से लोग ज्यादा बातचीत नहीं करते। घाट पर लोग तख्ते पर बैठते हैं या सीढ़ियों पर। वह अलग थलग जमीन पर बैठा मिलता है। मैने पाया है कि लोग बहुधा उसके कहे का जवाब नहीं देते। वह खंखारता, दतुअन करता या बीड़ी पीता पाया जाता है। पर तिलंगी और उसकी प्रकार के अन्य कुत्ते और बकरियां बहुत हिले मिले हैं उससे। सम्भवत सभी के नाम रखे हों उसने।

मैने उससे बात की तो वह बड़ा असहज लग रहा था – बार बार पूछ रहा था कि फोटो क्यों खींच रहे हैं? (फोटो काहे घईंचत हयें; लई जाई क ओथा में देब्यअ का – फोटो क्यों खींच रहे हैं, ले जा कर उसमें – अखबार में – देंगे क्या?) शायद इससे भी असहज था कि मैं उससे बात कर रहा हूं।

फिर कभी “मंगल” का नाम भी पूछूंगा। अभी आप छोटा सा वीडियो देखें। इसमें मंगल की नैसर्गिक भाषा का नमूना भी है!


अगले रोज का अपडेट:

Javahir Lal पण्डाजी ने “मंगल” के बारे में बताया। नाम है जवहिर लाल। यहां घर दुआर, परिजन नहीं हैं। छोटा मोटा काम कर गुजारा करता है। यहीं रहता है। मूलत: मछलीशहर (जौनपुर के पास) का रहने वाला है।

जवाहिर लाल उस समय पास में बैठा मुखारी कर रहा था। उससे पूछा तिलंगी कहां है। बताया – “खेलत होये सार (खेलता होगा साला)”। और भी कुत्तों के नाम रखे हैं – किसी का नेकुर किसी का कजरी। बकरी का नाम नहीं रखा।


अगले चार पांच दिन यात्रा पर रहूंगा। लिहाजा गंगा जी और उनके परिवेश से मुक्ति मिली रहेगी आपको! और मुझे खेद है कि मेरे टिप्पणी मॉडरेशन मेँ भी देरी सम्भव है।

21 comments:

  1. मंगल से मुलाकात मजेदार है ...आपकी यात्रा शुभ हो ..!!

    ReplyDelete
  2. यात्रा शुभ हो ,,,,,चरित्र चित्रण के इस नए कौशल पर मन मन्त्र मुग्ध हुआ जाता है ! आप मनुष्य को उसकी मौलिकता में देख रहे हैं उसके जीवंत परिवेश के साथ !

    ReplyDelete
  3. अच्छा लगता है इन अनजान लोगों से मिलकर केवल गंगाजी के घाट पर नहीं ये सब जगह विराजमान हैं बस हरेक जगह ज्ञानजी नहीं होते जो इनकी सुध लें, कृपया जारी रखें मन को प्रफ़ुल्लित करता है यह सब, और आपसे प्रेरणा लेने को प्रेरित होते हैं।

    ReplyDelete
  4. अरे का गजब होई गवा। जवाहिर लाल और जियालाल दोनउ क नामराशि एकही निकल आया। मैंने तो तुक्का मारा था :)


    लेकिन एक पेंच है।

    एक और जवाहिर लाल थे, प्रधानमंत्री थे और रूसी मेंम से बतियाते थे। एक महराज ये जवाहिर लाल हैं, बालों से रूसी झड रही है। कुकुर, बिलार, बकरी सब से मेलजोल रखते हैं।

    पंचशील के जीते जागते उदाहरण।

    ReplyDelete
  5. मंगल और तिलंगी... दोनों में विशेष अंतर नहीं...दोनों ही के नाम सुविधानुसार रख लेने की छूट रहती है हमें...

    ReplyDelete
  6. बहुत ही मौलिक चित्रण किया आपने. यात्रा के लिये शुभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  7. मनुष्य को तो सभी का मित्र होना चाहिए।

    ReplyDelete
  8. मंगल और तिलंगी तो अपनी जगह हैं. वस्तुतः आप बड़े विशाल ह्रदय के स्वामी हैं, मानवीय संवेदनाओं से भरपूर.पोस्ट अछि लगी. आभार

    ReplyDelete
  9. लो जी आप सहित्य भी बांच लेते है .हमें लगा आपको तो जरा भी पसंद नहीं

    ReplyDelete
  10. अंततः हम सब है तो जानवर ही. दोस्ती काहे नहीं होगी. मनुष्यता के अंहकार का त्याग होते ही, सबसे दोस्ती सम्भव है.

    ReplyDelete
  11. मानवीय संवेदनाओं से ओत-प्रोत आपकी कलम ने जीवन के ऍसे पहलुओ को छुआ की व्यक्ती इमोशन की धाराओ मे बहना लाजमी है।

    आपका ऐसे विषयो पर लिखने का एकाधिकार प्राप्त है, जिसे मै आपके लिए माता सरस्वतिजी का वर्द-हस्त अनुकम्पा वाली बात महसुस करता हू। आपकी यात्रा मगलमये हो- सादर प्रणाम!

    ReplyDelete
  12. जमाये रहियेजी।

    ReplyDelete
  13. गंगातीरी जनजीवन का यह सिरीज़ अभी जारी रखें सर. जो नई दृष्टि इससे मिल रही है, वह वाकई बेजोड़ है. हर कड़ी एक नया अध्याय खोल रही है. ऐसा लग रहा है गोया हम भी वहीं कहीं सबह की सैर पर निकल पड़े हों.

    ReplyDelete
  14. बहुत हीं अच्छा लगता है यहाँ आकर. सुन्दर पोस्ट. आभार.

    ReplyDelete
  15. कितना सहज है मंगल..

    ReplyDelete
  16. बहुत बढिया पोस्‍ट .. सफल यात्रा के लिए शुभकामनाएं !!

    ReplyDelete
  17. मंगल से मिले है और अब यात्रा पर जा रहे हैं....तो आपकी यात्रा मंगल-मय हो:)

    ReplyDelete
  18. गज़ब कर डाल रहे हो प्रभु आप!!

    जवहिर लाल का चरित तो पूरा नावेल लिखवा देगा आपसे..नाम धरियेगा ..एक और रागदरबारी.. :)

    ReplyDelete
  19. देखिये मंगल तिलंगी में जन्म जन्मान्तर का आपसी प्रेम फोटो देखकर जान पड़ रहा है काश लोगो में इन्ही की तरह आपसी प्रेम और सदभावना जाग्रत हो . आपकी पोस्ट अच्छी लगी साब

    ReplyDelete
  20. जो महाभारत में है वो सब जगह है जो महाभारत में नहीं है वह कहीं नहीं है । उसी तरह से ये पूरा देश ही एक विशाल शिवपालगंज है । गौर से देखें तो हमें हर जगह गंजहे मिल जायेंगे । हमारे अंदर भी कोई रूप्पन, रंगनाथ, बद्री पहलवान, बैद महाराज, लंगड़ या सनीचनर छिपा होगा ।

    मंगल और तिलंगी का विडियो देख कर मन मुदित हुआ ।
    काका, इस अनोखी पोस्ट को देख कर तो डिस्कवरी वाले भी उंगलियां चबा रहे होंगे ।

    ReplyDelete
  21. यद्यपि लोग जवहिर जी की बात का उत्तर देना उचित नहीं समझते हैं परन्तु जवहिर जी का संवाद ज्ञान की पराकष्ठा में डूबा है । जो अपने में जीना सीख गया हो और जानवर भी जिसके भाव समझते हों उसके लिये ध्यान देने न देने का क्या मतलब । भले शब्द गूढ़ न हों पर बातें गूढ़ कहेंगे जवहिर जी ।

    ReplyDelete

आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद|

हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणियों का स्वागत है|
--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय