मुम्बई जाते हुये पश्चिमी घाट पर दमदार बारिश देखी थी। इगतपुरी-कसारा के आसपास तो मन मयूर था वर्षा देख कर। वही हाल वापसी में जळगांव-भुसावल-हरदा-इटारसी-नरसिंहपुर-जबलपुर के इलाके में फसल की लहलहाती अवस्था देख हो रहा है। अर्थात जो मायूसी है, वह गांगेय क्षेत्र में है। मेरे यूपोरियन इलाके में मानसून (monsoon) मानलेट (monlate) हो गया है।
जब मैं छात्र था तब मानसून पर भारत की कृषि की निर्भरता का विषय आंकड़े सहित याद रखता था। अब भी शायद निर्भरता वाली हालत बहुत बदली नहीं है। या यह है कि “मानलेट की हवा” का शेयर/कमॉडिटी बाजार में एक सेण्टीमेण्टल घटक के रूप में प्रयोग बढ़ गया है। इन्फ्लेशन में कमी के बावजूद खाद्य पदार्थों के दामों में बढोतरी, डिमाण्ड-सप्लाई की बजाय मानलेट की हवा का भी कमाल हो सकता है।मानलेट की हवा के चलते मेरी मां को अरहर की दाल और सब्जी के भावों पर सतत बात चीत करने और “आगि लगि गई बा (आग लग गयी है)” कहने का औचित्य मिल गया है। उन्हें आयात-निर्यात से लेना देना नहीं होता, पर वे भी कह रहीं हैं कि दाल बाहर से मंगायेगी क्या सरकार? इस साल अरहर की पैदावार कैसी होगी, हम अटकल लगा रहे हैं। गन्ना तो लगता है कम ही हो रहा है उत्तरप्रदेश में।
[मानलेट के चित्रण के लिये खबरी चैनल वाले अपनी प्लास्टिक की पानी की बोतलों से लैस पलामू या गाज़ीपुर के गांव में जा कर गरीब किसान की दुर्दशा की बाइट्स ला कर अपने चैनल का समय भरेंगे – या भर रहे होंगे। पर मरियल किसान और उसकी पत्नी के मुंह में माइक घुसेड़ कर कुछ अधिक ही स्वस्थ टीवी पत्रकार जब खेती के हाल पूछता है, तब त्रासदी के ऊपर कॉमेडी हावी दीखती है। मैने सुना है कि फिल्म में जान डालने के लिये अभिनेता अपना वजन कम करते हैं। टीवी पत्रकार भी वैसा करते हैं क्या?]
खैर यह तो मानसिक हलचल का ज्यादा ही विषय से इतर उद्वेलन हो गया। मेरा कहना यह है कि मेरी यात्रा ने मानसून की कमी जो देखी, वह गांगेय प्रदेश में देखी। दुर्भाग्य से कृषि पर निर्भरता भी यहीं ज्यादा है और जीविका के विकल्पों की विपन्नता भी यहीं अधिक है। पूरा देश समग्र रूपसे ठीकठाक निकाल जायेगा यह वर्ष। मरन केवल उत्तरप्रदेश-बिहार-झारखण्ड में है।
जळगांव के पास ताप्ती (बांये) और नरसिंहपुर-जबलपुर के बीच नर्मदामाई के दर्शन हुये। दोनो पश्चिमगामी। अरब सागर में मिलने वालीं। इतना आकर्षित क्यों कर रही हैं नदियां?
(मुम्बई से इलाहाबाद वापसी पर एक दिन हाथ-पैर सीधा करने के बाद पोस्ट की गई। लिखा जरूर वापसी की यात्रा के दौरान 14 अगस्त की शाम को था। इस बीच कुछ पानी बरस गया है गांगेय प्रदेश में। कृषि के लिये उसकी कितनी सिग्नीफिकेंस होगी, वह वैज्ञानिक बतायेंगे या किसान। )
इस बार मुम्बई सहीत पुरे महाराष्ट्र मे वर्षा ७५% कम हुई, यही हाल पुरे भारत के प्रदेशो का है।
ReplyDeleteआपका यह वाक्य वर्तमान सन्दर्भ मे फिटम-फिट बैठ रहा है-"“आगि लगि गई बा (आग लग गयी है)”
आभार
हे प्रभू यह तेरापन्थ
मुम्बई टाईगर
"अति विचित्र कहि जात सो नाहिं".. प्रत्येक प्रविष्टि पर एकदम चउचक फिट ।
ReplyDeleteपानी बरसा है इन दिनों - कल मैं भी देख आया गाँव के अपने खेत - रोपनी की तैयारी हो रही थी । बहुतों के तो रोप भी दिये गये थे ।
पन्द्रह अगस्त को यहाँ इलाहाबाद में भी झमाझम बारिश हुई थी। झण्डा फहराना मुश्किल हो गया था। भाषण में इसे सकारात्मक नजरिए से देखते हुए कहा गया कि आज स्वतंत्रता दिवस पर प्रकृति भी प्रसन्न हो गयी है। आज हमें सूखे से आजादी भी मिल गयी। शाम होते-होते बादल फिर से दाँव दे गये। गरीब-मजदूर-किसानों के लिए दुर्लभ पक्की आजादी की ही तरह ये बादल भी आँख मिचौली खेल रहे हैं।
ReplyDeleteराजस्थान का उल्लेख नहीं है शायद वह गांगेय नहीं है, इसलिए? हालांकि यहाँ चम्बल में गया पानी गंगा के जरीए ही समंदर में पहुँचता है। हरियाणा, पंजाब, दिल्ली भी इस साल मानसून की कमी झेल रहे हैं। बहुत कूवत है इस देश में। सौ की दाल और चालीस की चीनी तक तो उफ! भी नही है। विपक्ष घर में ही कुर्सी दौड़ का अभ्यास कर रहा है।
ReplyDeleteअब जो है सो है !
ReplyDeleteयह पोस्ट तो रोचक है ही। यात्रा के दौरान हुए अनुभवों की अगली कडी का इंतजार है। इतना जरूर जानता हूँ कि चूँकि फोर्ट इलाके में हो आये हैं आप तो उस पर एकाध पोस्ट ठिलने वाली है आपसे......फिरंगीयन क इलाका जौन रहा :)
ReplyDeleteस्पेश्यली फोर्ट इलाके की रास्ते में पडने वाली एक के बाद एक पैदल Zone की दुकानें।
Walk when you Talk को चरितार्थ करती दुकानें :)
आज ही केन्द्रीय सूखा आकलन दल पहुँच रहा है -घटना के बाद पुलिस के पहुचने की तर्ज पर !
ReplyDeleteबारिश तो हमारे प्रदेश में भी हो गयी है ...सूखे पर इसका क्या असर होगा ..आकलन कुछ समय बाद ही हो पायेगा ...अभी तो किसानों के चेहरे पर रौनक है ...बनी रहे..!!
ReplyDeleteसही कहा है आपने...मानसून को नज़र क्या लगी, क्माडिटी बाज़ार की बल्ले-बल्ले हो गई है. ये खूब उंचा जा रहा इस उम्मीद से कि खाने पीने की चीज़ों के भाव तो अब और बढ़ने ही वाले हैं...
ReplyDeleteगरीब री गाय मरी श्वान भया भोज.
2008 मार्च में, इसी ज़खीरेबाजी के चलते सरकार ने 52 क्माडिटी दलालों पर छापे मारे थे तब कहीं जाकर क़ीमते कम होनी शुरू हुई थीं.
पिछले ४ वर्षों के सूखे के बाद गत वर्ष बुन्देलखन्ड में झमाझम पानी बरसा था । शायद पिछले वर्ष की खुशी का बुरा मान गये इन्द्रदेव । इस बार जब कई दिनो की प्रार्थना (विविध प्रकार से) के बाद जब जन्माष्टमी व स्वतन्त्रता दिवस पर पानी बरसा तो कदाचित कान्हा को भी अपने जन्म के समय की परिस्थितियों का स्मरण हुआ होगा ।
ReplyDelete१५ अगस्त को तिरंगा ऊँचा था पर नम था । अपनी ऊँचाई से उसे दूर दूर तक खेत और काम करते हुये किसान दिखायी पड़ रहे थे । हमारे कार्यक्रम का जलवा तो अवश्य कम हुआ पर हर किसान का खून उस बारिश से बढ़ गया होगा । क्योंकि स्वन्त्रता का सम्बन्ध तो मानसून से भी है ।
हालत तो खराब है. जल स्तर नीचे है वो अलग !
ReplyDeleteयूपोरियन तो मानलेट से भी खुश है , देर आयद दुरुस्त आयद . अगर माननोट हो जाता तो हम किसान कहीं के नहीं रहते .
ReplyDeleteखाद्यान बाहर से मँगवा सकते है मगर पीने का पानी?
ReplyDeleteअगला साल संकटों भरा रहेगा, ऐसा लग रहा है. हालाकि अभी भी वर्षा की उम्मीद है.
दिल्ली में तो तीन दिनों से रिमझिम बारिश हो रही है.. लगता है मानसुन अब आया है.. मानलेट हो कर..
ReplyDeleteमुम्बई यात्रा संस्मरण खूब रहे . जबलपुर में मनालेट आया देर से पर अभी अच्छी बारिश हो रही है .
ReplyDeleteनर्मदे हर
"मरियल किसान और उसकी पत्नी के मुंह में माइक घुसेड़ कर कुछ अधिक ही स्वस्थ टीवी पत्रकार जब खेती के हाल पूछता है, ..."
ReplyDeleteतो स्वाइन फ़्लू का खतरा रहता है:) मूनलाईट में की गई मानलाइट की चर्चा के चित्र देखकर शायद स्वपनलोक को घास खोदने की याद आई:)
मुम्बई में रहने वाले कई लोगों से पिछले एक माह में यह कई बार सुना कि तेज़ बरसात हो रही है, कुछ ने तो आशंका जताई कि पुनः बाढ़ न आ जाए। उस ओर बरसात हो गई है और इधर उत्तर में मामला गर्म ही था। इधर दिल्ली में भी एक दिन बरसात हो जाती तो अगले दिन धूप निकल आती, पहले गर्मी में मरते जीव (मनुष्य सहित) गर्मी बढ़ जाने से और त्रस्त हो जाते।
ReplyDeleteकदाचित् दालों, सब्ज़ियों आदि का भाव भी इसी कारण आसमान छू रहा है, स्पेक्यूलेटिव प्राइसिंग और होर्डिंग हो रही लगती है, कि बरसात न हुई तो फसल पर असर पड़ेगा। वर्ना दो-तीन माह में भाव दोगुणा हो जाने का कोई अन्य कारण दिखाई नहीं देता - अरहड़ की दाल ही 45-50 से 90-95 हो गई है! :(
इधर पिछले दो दिन में बरसात हुई है, अभी रात को भी होने के आसार नज़र आ रहे हैं, कदाचित् मानसून आ गया है। :)
maan-sik hulchul main likhi,
ReplyDeletemaan-soon late hone ki ya,
maan-late hone ki yadi baat,
maan-lete hai to,
maan-late ko,
maan-mannoval kar ke zaldi jaane mat dijiyega.abhi to
maan-mayura acche se nacha bhi nahi.
waise,
maan-gaye aapki post ko hamesha ki tarah.....
मरियल किसान और उसकी पत्नी के मुंह में माइक घुसेड़ कर कुछ अधिक ही स्वस्थ टीवी पत्रकार जब खेती के हाल पूछता है, तब त्रासदी के ऊपर कॉमेडी हावी दीखती है। मैने सुना है कि फिल्म में जान डालने के लिये अभिनेता अपना वजन कम करते हैं। टीवी पत्रकार भी वैसा करते हैं क्या?] .....
ReplyDeleteकितना सही कहा आपने....
जबतक खेती को यूँ निम्न्दर्जा मिला रहेगा,खाद्य पदार्थों के सस्ते होने की अभिलाषा रखना कोरी मूरखता होगी....
मुझे तो यह लगता है ,जिस रास्ते हम चल रहे हैं,कुछ दशक बाद भारतीय खलिश मजदूर (निम्न से उच्च पदस्थ तक) बन रह जायेंगे और खाद्य वस्तुतों से लेकर उपयोग उपभोग के अन्यान्य सभी वस्तुओं के लिए भारत सबसे उन्नत बाज़ार रूप में विश्व को उपलब्ध होगा......
मानलेट शब्द घणा धांसू है जी।
ReplyDeleteमानलेट ही आ जाए तो भी गनीमत है.
ReplyDeleteaap bombay aaye the..khabar ki hoti..aapse milne ki tamanna bhi poori ho jaatii :)
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