Friday, August 14, 2009

एक वृद्ध का ब्लॉग?


सुन्दरलाल बहुगुणा कहते हैं कि उनकी जिन्दगी के दौरान ही गंगा में पानी आधा हो गया। अखबार में उनकी फोटो में सन जैसे सफेद दाढ़ी मूछों वाला आदमी है। मैं बहुगुणा को चीन्हता हूं। पर वे अब बहुत बूढ़े लगते हैं चित्र में। वे चिपको अन्दोलन के चक्कर में अखबार में आते थे। और मैं उन्हे एक जबरी विचार ठेलक (thought pusher) समझता था। कालान्तर में उनके प्रति इज्जत बढ़ गयी – वैसे ही जैसे अपने को मैं कुछ काम का समझने लगा!  

Newspapers मैं अखबार देखता हूं। उडते सूअरों का आतंक और सौन्दर्य का दमकता रूप - यही दीखता है। मैं शाम को फोर्ट एरिया में जाता हूं, फुटपाथ पर किताबें छानने। मुंह पर मास्क लगाये युवक-युवतियों को देखता हूं। मैं सोचता हूं कि समय जिनके साथ है वे भय में क्यों हैं? उसके बाद फोर्ट एरिया, नरीमन प्वॉइण्ट और चचगेट में मास्क लगाये बूढ़े खोजता हूं - मुझे मिलते नहीं।Swine Flu1
अचानक मैं देखता हूं कि मैं भी ठेलने लगा हूं गंगा माई को लेकर। और मुझे नहीं लगता कि यह विषय छोड़ आजकल की फिल्मी हीरोइनों या आइटम गर्लों पर लिखने लगूंगा। अगर गंगा माई पर कहना पुरनियापन की निशानी है, तो क्या मैं पर्याप्त वृद्धत्व ओढ़ चुका हूं? बेबाकी से कहूं तो एक स्तर के बुढ़ापे में अपना व्यक्तित्व “केमॉफ्लाज” (अवगुण्ठित) करना मुझे मजा देने लगा है।

जैसी टिप्पणियां मिल रही हैं, उनपर ध्यान दें -  अरविन्द मिश्र जी मुझे वैराज्ञ की ओर मुड़ा बताते हैं – वे इशारा करती हैं कि पण्डित ज्ञानदत्त पांड़े, थोड़ा हिन्दी अंग्रेजी जोड़ तोड़ कर लिख भले रहे हो तुम; पर मूलत: गये हो सठिया।

इसके अलावा ये जवान लोग चच्चा, कक्का बताये चले जा रहे हैं। शुक्र है किसी महिला ने अभी तक ऐसा नहीं कहा वर्ना जिम ज्वाइन कर वजन कम करना और फेशियल मसाज का अतिरिक्त खर्चा वहन करना बजट में शामिल हो जाये। और उस बजट को मेरी पत्नी कदापि सेंक्शन नहीं देंगी, वैसे ही जैसे एक कोडल लाइफ के बाद किसी वैगन के ओवरहॉल पर पैसा खर्च नहीं किया जाता! 

महाकवि केशव की स्थिति समझ में आती है जिन्हे छोरियां बाबा कह कह चली जा रही थीं। मुझे आशा है कि गिरिजेश राव और कृष्ण मोहन मिश्र जैसे जवान यह इशारा नहीं कर रहे कि बहुत हो गया अंकल जी, अब दुकान बन्द करो!

इस समय लम्बी बैठकों और भारतीय रेल के माल यातायात में बढ़ोतरी की स्ट्रेटेजी की सोच से संतृप्त हो चुका है शरीर-मन। दो दिन की बड़ी बैठक के लिये यात्रा खलने लगी है। बड़ा अच्छा हो जब ये सब बैठकें टेली-कॉंफ्रेसिंग से होने लगें।

जब सवेरे यह पोस्ट खुलेगी तो वापसी की मेरी गाड़ी ताप्ती-नर्मदा के आसपास होगी। मेरी स्मृति में जळगांव की कपास मण्डी में कपास का ढेर आ रहा है जो मैने नौ साल पहले देखा था!

(महानगरी एक्स्प्रेस के रेक प्लेसमेण्ट की प्रतीक्षा में १३ अगस्त की रात में मुम्बई वीटी स्टेशन के रेस्ट हाउस से ठेली गई पोस्ट।)


@@@@@@@


यात्रा में टिप्पणी निर्वहन धर्म

(यह पोस्ट मैने १२ अगस्त की सवेरे पब्लिश करने को लिखी थी। पर पब्लिश नहीं किया क्यों कि इसके फॉलो-अप/माडरेशन के लिये समय न निकलता। अब इसे डिलीट करने की बजाय साथ में नत्थी कर दे रहा हूं।)


 Day Start
जब मैं उठा तो दिन शुरू हो गया था। एक स्टेशन के पास पानी भर रहे थे लोग।
मैने यात्रा में चलताऊ मोबाइल कनेक्शन से अपनी पोस्ट बनाने और पब्लिश करने का काम सफलता से कर लिया। कुछ टिप्पणियां भी देख-पब्लिश कर लीं। अन्य लोगों के ब्लॉग पढ़ना और टिप्पणी करना कुछ कठिन काम है। पन्ने खुलते ही नहीं और उन्हें खोल-पढ़ कर टिप्पणी करना असंभव है यात्रा में आते-जाते इण्टरनेट कनेक्शन से।

कैसे किया जा सकता है? मेरे विचार से एक बड़े जंक्शन स्टेशन पर जब आपकी गाड़ी  रुकी हो; गूगल गीयर्स के माध्यम से अपना गूगल रीडर्स ऑफ लाइन इस्तेमाल के लिये डाउनलोड कर लेना चाहिये। उसमें चित्र नहीं आ पाते और अगर लोग अपनी पूरी फीड नहीं देते तो पढ़ने में पूरा नहीं आ पाता। पर फिर भी पर्याप्त अन्दाज लग जाता है कि लोग क्या कह रहे हैं।

और तब इत्मीनान से गूगल रीडर में ऑफलाइन पोस्ट पढ़ कर एक पोस्ट अनूप शुक्ल की चिठ्ठा-चर्चा के फॉर्मेट में लिख-पब्लिश कर टिप्पणी-निर्वहन-धर्म का पालन कर सकते हैं। पोस्टों को लिंक देने में कुछ झंझट हो सकता है – जब वे फीड्बर्नर के माध्यम से मिलती हों। पर फिर भी ठीकठाक काम हो सकता है।

देखा जाये।

(वैसे कल (१२ अगस्त) मेरे लिये बहुत व्यस्त दिन है। लिहाजा इसे पोस्ट न करना ही उपयुक्त होगा।)


मां बाप एक ऐसा घना पेड होता है जिस की छाव नसीब वालो को मिलती है, राज भाटिया जी से असहमत होने का प्रश्न नहीं। पूत कुपूत होता है, माता कुमाता नहीं होती। उनको हुये मातृशोक पर संवेदना।

रंजन जी ने स्काई और मेट्रो की तुलना की है। अंत में वोट देने को नहीं कहा। अन्यथा मैं मेट्रो को देता। मेट्रो के ई. श्रीधरन किसी जमाने में मेरे महाप्रबन्धक रह चुके हैं – पश्चिम रेलवे में। और मैं उनसे बहुत प्रभावित हूं।

संजीत त्रिपाठी राजनीति में जुड़े लोगों के समृद्ध होने की बात कहते हैं। मुझे भी लगता है राजनीति ट्राई करनी चाहिये थी। यह अवश्य है कि मेरा ई.क्यू. (इमोशनल कोशेंट) उस काम के स्तर का नहीं है।

पर्यावरण पर कलम में जताई चिंता बहुत जायज है। और मेरा मत है कि इस विषय पर हिन्दी में बहुत कम लिखा जा रहा है।    

अरविन्द मिश्र जी आभासी दुनियां के विषय में विचार व्यक्त करते हैं कि मानवीयता का क्षरण होगा इससे। मेरा अपना उदाहरण है कि इस वर्चुअल दुनियां के चलते मैं बहु आयामी देख-पढ़-अभिव्यक्त कर रहा हूं। यह तो औजार है – प्रयोग आसुरी भी सम्भव है और दैवीय भी।

संगीता पुरी जी मौसम और गत्यात्मक ज्योतिष की बात करती हैं। हमें अभी दोनो ही पहेली लगते हैं!

ताऊ की साप्ताहिक पत्रिका में उनका फोटो नहीं समीर लाल जी का जरूर दिखता है!

सीबीआई के पास पिल्ले ही नहीं बहुत कुछ होता है। एच.एम.वी. का रिकार्ड बजाते हैं पिल्ले! – काजल कुमार के कार्टून पर रिस्पॉंस!

रेणु शैलेंद्र और पवई लेक – कभी पवई लेक गया नहीं। काश आईआईटी मुम्बई में पढ़ा होता! सतीश पंचम बहुत कीमती ब्लॉगर हैं!

विवेक रस्तोगी जी से पूर्ण सहमति माता-पिता के विषय में जो उन्होने कहा।

गिरिजेश राव को पढ़ते समय फणीश्वर नाथ रेणु की याद आती है। कितनी सशक्त है लेखनी। बस यह है कि पोस्ट के आकार में सिमटती नहीं।

मेहनत के लिये हो गर तैयार, तो चलो ।
एक ठान ली है जब, तो उसी राह पर बढो ---  
जब आशा जोगलेकर जी यह कहती हैं तो बहुत युवा प्रतीत होती हैं। उम्र का अंदाज करें।

सुनामी वह अध्याय है जिसकी सोच मुझे अपनी निष्क्रियता पर खेद होता है। मुझे पूरी सहानुभूति थी, पर किया कुछ नहीं। तनख्वाह से कुछ कट गया था, बस। दिनेश राय द्विवेदी जी की पोस्ट पर कविता पढ़ कर वही याद हो आया।

संजय व्यास एक प्यारी कलम के मालिक हैं। पार्क पर लिखते वे जो गहराई दिखाते हैं पोस्ट में , वह अत्यन्त प्रशंसनीय है।    

मैं जारी रख सकता हूं, पर चलती ट्रेन के झटकों में लिखने की अपनी सीमा है! उम्र से जोड़ सकते हैं इस सीमा को आप।

आशा है शिव कुमार मिश्र का बैक पेन कम होगा। लिखा नहीं उन्होने कुछ। और दो जवान लोगों की कलम से स्नेह होता है – ये बहुत नई उम्र का लिखते हैं – कुश और अनिल कान्त 


33 comments:

  1. चच्चा, धो दिए सबको ! अरे बुढ़पन को इत्ता सीरियसली ले लिए। एक साथ ब्लॉग जगत की कई विधाओं पर हाथ मार कर जैसे जवानी का प्रमाण पटक बैठे !

    मन बाग बाग हो गया। इतना ललित लेखन ! साहित्य का नाम लूँगा तो बौराय जाओगे सो खारिज. .

    मेरे गाँव में मुझसे डेढ़े उमर के 'बच्चे' भी मुझे 'बाबा' मतलब मॉडर्न समय की शब्दावली का दादाजी कहते हैं। रिश्ते का पद ही ऐसा है। दशहरे में पैर छूते हैं तो बड़ा अजीब लगता है। क्या करूँ ? आप की तरह सेंटी होकर खर्र्रा लिखने बैठ जाऊँ। वैसे यह अच्छा ही हुआ, नहीं तो इतनी अच्छी पोस्ट कहाँ देखने को मिलती !

    पोस्ट ही बता रही है कि 'बुढ़ऊ ' बहुत जवान हैं । उस गाने पर एक पोस्ट दीजिए ना ,"अभी तो मैं जवान हूँ..." ;)

    ReplyDelete
  2. "मुंह पर मास्क लगाये युवक-युवतियों को देखता हूं। मैं सोचता हूं कि समय जिनके साथ है वे भय में क्यों हैं? उसके बाद फोर्ट एरिया, नरीमन प्वॉइण्ट और चचगेट में मास्क लगाये बूढ़े खोजता हूं - मुझे मिलते नहीं।"

    बहुत गहरी बात। मुझे भी लगता है कि कहीं कुछ गड़बड़ अवश्य है। या शायद हम गहरे देख नहीं पा रहे हैं ?

    ;) हम त पहले से ही कह रहे हैं ई सुअरा ससुरा बेबात का बवाल फैलाया गया लगता है।

    ReplyDelete
  3. सर जी सब बातो का एक ही उत्तर है ओल्ड ईज गोल्ड,
    अरे वाह! आपतो हमारे मुम्बई मे है . काश दर्शन होते है. हो सके तो मेल करे , आपके दर्शनलाभ हो जाऎ.
    आभार मुम्बई टाईगर

    ReplyDelete
  4. वृद्ध का ब्लॉग!?
    हुँह, जाने भी दो यारो

    ReplyDelete
  5. बहुत बढ़िया।
    श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

    ReplyDelete
  6. नौजवान इसलिये मास्क लगाये थे क्योंकि उनके पास समय है, अभी से टैं बोल जाएंगे तो राखी सावंतमय वाणी, मल्लिका शेरावत से वस्त्र और शकीरा के ठुमके कैसे देख पाएंगे ?

    और वृद्ध इसलिये मास्क नहीं लगाते क्योंकि वो ये सब देखने की बजाय इस दुनिया से विदाई को ठीक समझते हैं।


    हेरा फेरी फिल्म के बाबू भैया ( परेश रावल) की तरह सोचते हैं, उठा ले रे बाबा उठा ले.....मेरे को नहीं रे..... इन लोगों को उठा ले :)

    इसे आप 'जनरेशन गैप' की बजाय 'बुढौती गैप' ज्यादा मान सकते हैं :)


    जहां तक मास्क की बात है, मैं भी पहले मास्क लगाने में झिझक महसूस कर रहा था, लेकिन जब बस के अंदर घुसा तो देखा आधे लोग मास्क पहने हैं तो चुपचाप ऑफिस की ओर से मिला N95 मास्क (मोबाईल नहीं) तुरंत लगा लिया।

    एक तो ये मास्क का नाम भी बडा कन्फ्यूजिंग है - N95 सुनने से लगता है नोकिया के किसी N सिरीज के मोबाईल की बात हो रही हो। लेकिन एक बात है - नाक और नोकिया दोनों ही एक शब्द परिवार N से आते हैं।

    अब उठा ले रे बाबा, उठा ले......अरे मेरे को नहीं रे....मेरी टिप्पणी को उठा ले :)

    ReplyDelete
  7. बढती उम्र को पूरी मर्यादा के साथ स्वीकार कर लिया है आपने ..!!

    ReplyDelete
  8. जब हमारी सभ्यता और संस्कृति गंगा से प्रेरणा पाती हो तो उस पर न लिखना एक बड़े भाग को खो देने जैसा होगा । गंगा का प्रवाह अपने अन्दर इतिहास और वर्तमान के अनगिनत अध्याय समेटे हुये है ।
    अपने घरों पर बिताये हुये क्षण जितने प्राकृतिक व नैसर्गिक हों, जीवन की सुन्दरता उतनी ही बढ़ती है । लीपनोत्मक यौवन का नशा सुबह का शीशा देखने पर उतर जाता है । रेलवे के वैगन भी प्रतिदिन पेन्ट नहीं किये जाते हैं ।
    मोबाइल के माध्यम से टिप्पणी ठेलन का कार्य करें । विन्डो मोबाइल में हिन्दी टंकणन का कार्य सुगमता से होता । जीपीआरएस हर जगह मिल जाता है । यदि ब्लाग का मोबाइल वर्ज़न हो तो टिप्पणी कुछ ही मिनटों में भेजी जा सकती है ।

    ReplyDelete
  9. उसके बाद फोर्ट एरिया, नरीमन प्वॉइण्ट और चचगेट में मास्क लगाये बूढ़े खोजता हूं - मुझे मिलते नहीं
    जिन बूढों को आप ढूंढ रहे हैं वे या तो कैलास यात्रा के लिए निकल पड़े हैं या फिर टूटी हड्डी लेकर अस्पताल में पड़े हैं. वैसे भी नरीमन पॉइंट पर क्या करेंगे, जुहू के इस्कोन मंदिर में भले ही मिल जाएँ.

    ReplyDelete
  10. यौवन नवीन भाव, नवीन विचार ग्रहण करने की तत्परता का नाम है; यौवन साहस, उत्साह, निर्भयता और खतरे-भरी जिन्दगी का नाम हैं,; यौवन लीक से बच निकलने की इच्छा का नाम है। और सबसे ऊपर, बेहिचक बेवकूफ़ी करने का नाम यौवन है। परसाईजी ने ये लक्षण बताये हैं जवानी के। इनके चलते तो टनाटन जवान हैं। रोज नयी-नयी बातें ठेल रहे हैं(बेवकूफ़ी नहीं कह रहे हैं जी हम)|! वैसे इसमें मुझे आपकी साजिश भी लगती है कि आप कहें- हम बुढ़ा गये तो हम कहें -अरे अभी कहां अभी तो आप जवान हैं!

    ReplyDelete
  11. कौन वृद्ध नहीं है?
    मैं आप्टे का शब्दकोष टटोलता हूँ। वहाँ मुझे मिलते है। बढ़ा हुआ, वृद्धि को प्राप्त, पूर्ण विकसित, बड़ी उम्र का......
    वैसे बचपना कभी खोना नहीं चाहिए, कुछ-कुछ संभाल कर रखना चाहिए।
    टिप्पणी धर्म का निर्वहन अच्छा लगा।

    ReplyDelete
  12. पोस्ट में पोस्ट को नत्थी करने और चिट्ठों की चर्चा भी पोस्ट में करने का नायाब प्रयोग किया है. यह तो नौजवानों वाले उत्साह की बात हो गई. :)

    ReplyDelete
  13. बाकी सब तो ठीक है पर जे आपने ठीक नईं किया । हमारे शहर में इत्‍ते चुपके से आए और एकदम्‍मै चुपके से सटक भी लिए । बहुतै नाईंसाफी है जी ।

    ReplyDelete
  14. 'बड़ा अच्छा हो जब ये सब बैठकें टेली-कॉंफ्रेसिंग से होने लगें'...क्या ज़ुल्म करते हैं आप भी ऐसी-ऐसी सलाहें देकर, अभी तो ग़नीमत है कि नेता लोग आपका ब्लाग नहीं पढ़ रहे ...वर्ना हम बाबू लोगों के विदेशभ्रमण के सरकारी बहाने भी जाते रहेंगे :-)

    ReplyDelete
  15. पूरी श्रंखला में अलग अलग रंग हैं...कुछ पेशोपेश में हूँ की किसे चयनित कर टिपण्णी करूँ...

    जो बात दिल से लगी उसपर ही कहती हूँ....गंगा मैया की दुर्दशा यदि ध्यान खींचती है और इसे बुढापा मान लिया जाय......तो हंसने ही वाली बात है.....

    बालक युवा और वृद्धावास्ता की सहज यात्रा तो शरीर करता है....मन बुद्धि चिंतन तो शरीर की इस अवस्था से बंधा नहीं होता....आप यह जानते हैं,फिर ऐसी बातों को नोटिस ही न किया करें...यह मेरा अनुरोध है आपसे...

    सफ़र में नेट से जुड़ पाना, यह तो सचमुच बहुत बड़ी उपलब्धि है...

    ReplyDelete
  16. गुरुदेव आपकी लेखनी में अपरम्पार ऊर्जा है, विषयों में अप्रतिम नवीनता है, और कठिनाई से लद़्अकर उसपर विजय पाने का अदम्य उत्साह है, तो फिर आप किस एंगल से वृद्ध कहलाए? ब्लॉगर प्रोफाइल पर यदि इलेश पेरुजानवाला का फोटू चिपका देते तो आपको कौन बुजुर्ग समझता?

    आपकी यह पोस्ट इस बात की गवाह है कि चिठ्ठाजगत वाले आपको चोटी पर क्यों रखते हैं।

    ReplyDelete
  17. वि‍वि‍धता से भरी पोस्‍ट। अच्‍छी लगी।

    ReplyDelete
  18. बाप रे. मैं तो आप जैसी गति को अभिच्च से प्राप्त हो रहा हूँ.
    पूजा पाठ करता नहीं, टीवी अखबार देखता नहीं. फिल्में देखना छूट गया, म्यूजिक सुनना भी छूट गया
    दोस्त-यार सारे छूट गए, बुरी आदतें सारी छोड़ दीं. बिलकुल बेकार का आदमी बन गया.
    दो-तीन साल के बच्चों की शादी के बारे में सोचता रहता हूँ, बीबी कहती है अभी से सठिया गए हो.
    खुराक पहले ही कम थी, अब और सात्विक हो गई है.
    और मास्क तो मैं कदापि न लगाऊं, ये कहकर "इस उम्र में कितनी हिफाज़त करें अपनी!".
    पत्नी कहती है कि इन्टरनेट कनेक्शन अनलिमिटेड वाला ले लूँ, डरती है कहीं इन्टरनेट से भी ऊब न जाऊं.
    खांटी डोकरापन सर पर सवार हो गया है.
    आपकी पोस्ट ने भी देखो क्या-क्या उगलवा डाला.

    ReplyDelete
  19. बुढिया चर्चा....मेरा मतलब बढि़या चर्चा:) पुरुष तो अंकल कहने पर मुस्करा के टाल देते है पर महिला को आंटी कहें तो बवाल मच जाता है:) तभी तो महिला की उम्र नहीं पूछी जाती और वह सदा यही कहती है--


    मेरी भी उम्र तुम्हें लग जाय:)

    ReplyDelete
  20. अरे बुढ़ाने की बात को सीरियसली काहे लेते हैं? व्यक्ति उतना ही जवान/बूढ़ा होता है जितना वह अपने को समझता है, किसी और के कहने से क्या होता है? :)

    बाकी मोबाइल इंटरनेट के सहारे ब्लॉगिंग जम रही है, लगे रहिए! :)

    ReplyDelete
  21. कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ। टिपणि चर्चा का अभिनव प्रयोग सुंदर लगा.

    रामराम.

    ReplyDelete
  22. वि‍वि‍धता से भरी अच्‍छी पोस्‍ट... कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामना और ढेरो बधाई

    ReplyDelete
  23. यात्रा के दौरान इतना लेखन कमाल है . कौन कहता है बुजुर्ग थक जाता है . मैं तो बुजुर्गो को अपना ज्योति पुंज मानता हूँ

    ReplyDelete
  24. पहली पोस्ट पर तो कहूँगा जो आप सोच रहे हैं झूठ है. उम्र का फैसला आदमी खुद नहीं कर सकता और ब्लोगिंग में आपकी विविधता देखकर कोई भी कह सकता है कि इतनी विविधता जीवन के विविध रंगों को महसूस करने की ऊर्जा रखने वाले किसी उत्साही युवा में ही हो सकती है. और यूँ बुढाने का अहसास ४० को नियराते किसी आदमी को भी हो सकता है. ( मुझे भी हो रहा है.)
    दूसरी पोस्ट के सन्दर्भ में------
    एक लम्बी और व्यस्त यात्रा में भी हमारे लिखे को तवज्जो देने का आभार.

    ReplyDelete
  25. बेबाकी से कहूं तो एक स्तर के बुढ़ापे में अपना व्यक्तित्व “केमॉफ्लाज” (अवगुण्ठित) करना मुझे मजा देने लगा है।


    यी आपस क बात है -बताउब कौनो जरूरी नाई रहा -अब आगे जिकरौ मत करिहैं !

    ReplyDelete
  26. अंकल जी नमस्कार
    होता है होता है बुढ़ापे में यादाश्त और ताकत दोनों का हास हो जाता है इस लिए इलाहाबाद से निकलते समय टेलिफ़ोन डायरी उठाना भूल गये……।
    अब ये मत सोचिएगा कि ऐसा हम क्युं कह रहे हैं

    ReplyDelete
  27. " यदा यदा ही धर्मस्य,
    ग्लानिर्भवति भारत..
    अभ्युत्थानम अधर्मस्य
    तदात्मानम सृजाम्यहम
    परित्राणायाय साधुनाम,
    विनाशायच दुष्कृताम
    धर्म सँस्थापनार्थाय,
    सँभावामि, युगे, युगे ! "
    ***************************
    श्री राधा मोहन,
    श्याम शोभन,
    अँग कटि पीताँबरम
    जयति जय जय,
    जयति जय जय ,
    जयति श्री राधा वरम्
    आरती आनँदघन,
    घनश्याम की अब कीजिये,
    कीजिये विनीती ,
    हमेँ, शुभ ~ लाभ,
    श्री यश दीजिये
    दीजिये निज भक्ति का वरदान
    श्रीधर गिरिवरम् ..
    जयति जय जय,
    जयति जय जय ,
    जयति श्री राधा वरम्
    *********************************
    रचनाकार [स्व. पँ. नरेन्द्र शर्मा ]

    ReplyDelete
  28. काने से काना कहें तो काना जाएगा रूठ,

    हौले हौले पूछिये तेरी कैसे गयी है फूट :)

    ReplyDelete
  29. जब तक आप ब्लॉग लिख रहे हैं तब तक जवान हैं. और अभी तो रेल विभाग और शासन भी आपको वृद्ध (सेवा निवृति के योग्य) नहीं मानता.

    ReplyDelete
  30. मुझे आशा है कि गिरिजेश राव और कृष्ण मोहन मिश्र जैसे जवान यह इशारा नहीं कर रहे कि बहुत हो गया अंकल जी, अब दुकान बन्द करो!

    ए काका, मेरे जवान होने से अगर तुम बुड्ढे हो
    रहे हो तो मैं बच्चा ही सही. आप से हमे oorja मिलती है.
    ये बताओ कौन बुजुर्ग आज हमें ब्लॉग पर
    gunga की कहानिया सुना रहा है. कौन हमें हमारी jadon के बारे
    में बता रहा है. अब dher risiyaoge तो काका से baba पर
    utar aaounga. pailagy. Jai gunga maiya ki.

    ReplyDelete
  31. "कालान्तर में उनके प्रति इज्जत बढ़ गयी – वैसे ही जैसे अपने को मैं कुछ काम का समझने लगा! "
    चलिए देर आये दुरुस्त आये.
    आपने पोस्ट ऐसी लिखी कि टिपण्णी में क्या लिखूं, समझ नहीं पा रहा हूँ. अगर कुछ लिखता हूँ तो खुद पर भी लागू होता है, न तो मैं अपनी बुराई करने कि स्थिति में हूँ न बड़ाई करने कि. सो कन्नी कट कर निकल रहा हूँ, पतली गली से..................

    अनंत गहराइयों को समेटे आपकी यह पोस्ट कईयों को तो बिचलित भी कर गई होगी और कई ये भी कह रहे होंगे मन ही मन, चलो सठियाये ने सठियाना स्वीकार तो किया, किन्तु लोग अलग-अलग, विचार जुदा-जुदा. अनुभव की गंगा तो अनुभव मिलने के बाद ही प्रवाहित होगी, यही समय का तकाज़ा है, यही समय का स्वर है, समय न कभी बूढा हुआ, न कभी थका, निरंतर इतिहास ही समेटता रहा, आने वाली पीढियों के लिए...............

    हार्दिक बधाई , खासकर इस पोस्ट के लिए...............

    ReplyDelete
  32. Kya baat karte ho tauji ? aapko kisne vridh kaha?

    :)

    waise "sundarlal bahuguna ko maine kai saalon tak follow kiya hai...
    ...beshak drawing room main rakhe tv ya nainital aur dehradun se prakshit hone wale danik (dainik jagran, amar ujala) ke paanchve aur chate panne main.

    beshakaap ise meri tab ki bal janya samvedanhinta keh sakte hain.

    ReplyDelete

आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद|

हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणियों का स्वागत है|
--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय