Thursday, August 6, 2009

हटु रे, नाहीं त तोरे…


Sanichara बांई तरफ है पण्डा का तख्त और छतरी। बीच में जमीन पर बैठे हैं इस पोस्ट के नायक! दांई ओर वृद्धगण।
शिवकुटी मन्दिर से गंगा तट पर उतरती सीढ़ियां हैं। उसके बाद बैठते है पण्डा जो स्नान कर आने लोगों को संकल्प – दान कराते हैं। उन पण्डा जी से अभी मेरी दुआ-सलाम (सॉरी, नमस्कार-बातचीत) नहीं हुई है। पर सवेरे सवेरे वहां बैठे लोग एक नियमित दृष्य बनते हैं।

पण्डा अपने पुराने से तख्त पर आसीन होते हैं। बारिश की सम्भावना होने पर पुरानी सी छतरी लगाये रहते हैं। कुछ वृद्ध थोड़ा हट कर यूंही बैठे रहते हैं।
पिछली पोस्ट पर श्री सतीश पंचम जी ने टिप्पणी की थी:
जिस हिसाब से आपने (अपने निवास की जगह का) वर्णन किया है वह कुल मिलाकर 'काशी की अस्सी' और 'बारहमासी' के बीच की जगह लग रही है।
बहुत सही था! सिर्फ ’रागदरबारी’ जोड़ना रह गया था!
इसी कैनवास में बीच में होते हैं एक सांवले रंग के नंगे बदन, चारखाने की लुंगी पहने दुबले से आदमी – जो मुखारी कर रहे होते हैं या बीड़ी मुंह में दबाये होते हैं। क्या नाम दें उन्हें? रागदरबारी के पात्र नजर आते हैं - बैद जी के अनुचर।

जानवर उनसे बहुत हिले मिले रहते हैं। जानवर माने बकरी या कुत्ता। यहां फोटो में एक कुत्ते के साथ उनका संवाद होता दीख रहा है।

पर शिवपालगंजी संवाद तो उस दिन हुआ था जब ये सज्जन बीड़ी फूंक रहे थे और बकरी उनसे सटी मटरगश्ती कर रही थी। वह बार बार उसे हटा रहे थे पर फिर वह उनके पास आ सट जा रही थी। उनके “हटु रे” कहने का असर नहीं हो रहा था।

Sanichara Dog Dialogueगंगा तट पर कुकुर से संवाद रत!
अन्त में खीझ कर ये सज्जन एक हाथ में बीड़ी लिये और दूसरे हाथ से बकरी धकियाते बोले – हटु रे, नांही त तोरे गं*या में बीड़ी जलाइ देब (हट रे, नहीं तो तेरे विशिष्ट स्थान में बीड़ी जला दूंगा)!

जिगर की आग से पिया को बीड़ी जलाने का आमंत्रण करती है बिपासा! और यहां ये कहां जा कर बीड़ी जला रहे हैं? इसको शूट कर अगर फिल्म बनायें तो क्या होगा वह? समान्तर सिनेमा?

और अगर आप पुराने जमाने के हैं तो यह कहूंगा – ये सज्जन शिवकुटीय समान्तर वेद के होता-अध्वर्यु-उद्गाता है!

[आप पूछेंगे कि “शिवकुटीय समान्तर वेद” क्या है?  “होता-अध्वर्यु-उद्गाता” क्या होते हैं? अब सब सवाल के जवाब हमें ही देने हैं क्या? हम तो मात्र पोस्ट ठेलक हैं! रेण्डमाइज्ड विचार जब तक गायब हों, उससे पहले पोस्ट में लिख मारने वाले। हम क्या खा कर बतायेंगे! आप तो कुछ इस्लाम के विषय में ज्ञानदान करने वाले ब्लॉगरगणों से पूछें, वे हिन्दू दर्शन पर जबरदस्त शोधकार्य कर रहे हैं!]

आज सवेरे का अपडेट - श्रावण मास समाप्त होने पर आज गंगा तट पर भीड़ गायब थी। पण्डा जी भी अपनी गद्दी पर नहीं थे। पर हमारी पोस्ट के नायक महोदय दतुअन चबाते अपनी नियत जगह पर बैठे थे। एक फोटो उनका फिर खींच लिया है। पर कितने फोटो ठेलें ब्लॉग पर!

इन्हें पढ़ें:
काशी नाथ सिंह जी की भाषा
"काशी का अस्सी" के रास्ते हिन्दी सीखें
भविष्यद्रष्टा

30 comments:

  1. आप तो कुछ इस्लाम के विषय में ज्ञानदान करने वाले ब्लॉगरगणों से पूछें, वे हिन्दू दर्शन पर जबरदस्त शोधकार्य कर रहे हैं!

    -चले तो जायें वहाँ समझने मगर इतने से छूटने न पायेंगे और भी बहुत कुछ समझना पड़ेगा. बिना जाने ही जैसे अब तक का जीवन कटा है, वैसे ही थोड़ा बचा भी कट ही जायेगा. बहुत शिकायत नहीं है अभी तक की कटिंग से.

    -मस्त रहा यह विचार ठेलन भी.

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  2. पंडा जी से दुआ सलाम नहीं हुई ...आपको कैसे बख्श देते हैं ये ..?

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  3. यह तो अपने प्रिय पाठको से अन्याय है -होता ,अध्वर्यु और उद्गाता का भाष्य भी कर ही दिए होते -काहें उन लोगों पर छोड़ दिए जो पहले से ही हिन्दू और इस्लाम के एकीकरण के पुनीत काम में लगे हैं !

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  4. 'साहित्यिक टच' लिये हुए निवास स्थान पर रहने के कारण एक और कालजयी रचना लिखी जा सकती है जिसका शीर्षक हो सकता है - 'इलाहाबादावली'

    और हां, दतुअन चबाते इस कैरेक्टर पर एकाध अध्याय बीडी जलावली, बकरी छुआवली और दतुअन चबावली जैसे अध्याय लिखे जा सकते हैं :)

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  5. वाह ! शिवकुटीय समान्तर वेद ! न जाने कितने समान्तर वेदोपनिषद रोज रचे-गाये जाते होंगे ।

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  6. ये रहा 'इलाहाबादावली' का रफ ड्राफ्ट

    जीयालाल उघडे बदन गंगा के तट पर उकडूं बैठे दतुअन चबा रहे हैं, बगल में ही कहीं गुलजार का गीत रेडियो पर बज रहा है -

    न चक्कुओं की धार
    न दरांती न कटार
    ऐसा काटे की दांत का निशान छोड दे

    और जीयालाल के दतुअन चबाने में अचानक ही विलक्षण तेजी आ जाती है।

    तभी कहीं से 'बिल्लो बकरी' चरती हुई उधर ही आ जाती है।

    शेष अगले अध्याय में.......


    :)

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  7. आप तो कुछ इस्लाम के विषय में ज्ञानदान करने वाले ब्लॉगरगणों से पूछें, वे हिन्दू दर्शन पर जबरदस्त शोधकार्य कर रहे हैं!

    बहुत सही पकडा आपने.

    रामराम.

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  8. 'बिल्लो बकरी' - नमवा तो कटरवा से कटिला बा हो!! ई सतीश कहाँ से पा गईलें.

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  9. सुंदर विवरण! अपना घर छोड़ औरों का बुहारने वाले बहुत हैं। रात तो अपने घर में ही बितानी पड़ती है।

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  10. पिछली दो पोस्टों में वर्णित परिवेश को देखने के बाद आपसे कोई यह आशा करे कि आपके विचार विशुद्ध प्रबुद्ध हों और पोस्टों पर सुन्दर और सुशील विषय और भाषा उठायी जाये तो वह कदाचित स्वप्नशीलता की पराकाष्ठा होगी । जब आप भी शिव की बारात के नियमित सदस्य हों तो पोस्टों में शिवकुटीय ’टिंज’ आना स्वाभाविक है । यह सब देखने के बाद ’गंगा बहती हो क्यों’ अवश्य सुना करें मन को शान्ति मिलेगी । सदियों से तो हम सारी ’रिसपोन्सिबिलिटी’ गंगा पर ही डालते आ रहे हैं ।

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  11. हटु रे, नाहीं त तोरे…: पोस्ट पे कमेंट ठेल देंगे

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  12. आप तो पतरकार हुए जा रहे है.... :)

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  13. "(हट रे, नहीं तो तेरे विशिष्ट स्थान में बीड़ी जला दूंगा)!"

    कुछ किलियर नहीं हुआ . शरीर में सभी स्थान अपनी अपनी जगह विशिष्ट हैं ,

    ऐसा तो नहीं लगता कि केवल एक ही अंग विशिष्ट हो बाकी सब महत्वहीन !

    ( लगता है स्लॉग ओवरों वाली बैटिंग होने वाली है अब )

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  14. हल्का फुल्का मजेदार..

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  15. मजा सा आ लिया, क्या सीन खेंचा है। सरजी रिटायरमेंट के बाद आप तो इसी सबको लिखने में लग लेना, कसम से बड़ों बड़ों की छुट्टी हो लेगी।

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  16. बढिया है जी फिल्मी गीतों का प्रभाव भी दर्शा दिया.....और आजकल के शोधकर्ताओ की ओर इशारा भी कर दिया.......बहुत बढिया!

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  17. "अगर फिल्म बनायें तो क्या होगा वह? समान्तर सिनेमा? " नहीं जी, गे फिल्ल्लम:)

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  18. हटरी बकरी नाही तो तोहरे विशिष्ट स्थान पे बीडी लगाऊ देव . हा हा हा सर जी पढ़कर आनंद आ गया . आभार

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  19. "अभी मेरी मम्मी बोली कि कल सुबह सुबह मटन लेते आना.. और साथ में चिंता भी जताई कि कल तो बहुत भीड़ होगी, क्योंकि सावन ख़त्म होने के बाद मंगल को भी कोई नहीं खाया होगा.. फिर बुध को कोई पूर्णिमा था.. फिर गुरूवार.. अब कल ही उन्हें खाने का मौका मिलेगा सो सभी पहुँच जायेंगे.." यह सुन कर मैं और मेरे पापा, दोनों के मुंह से एक साथ एक ही वाक्य निकला.. "ढोंगियों कि भीड़.."

    आज सवेरे का अपडेट पर..

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  20. बकरिया हटाने के बजाये दुधवा दुहवा देते त मुनाफा ज्यादा होता बाबा को....बड़ी टेप लिखे हैं महाराज..कमेंटवा भेज रहे हैं...गौर फरमा दीजियेगा...तनी रोडी..अबीर लगा लीजिये..स्मार्ट लगेंगे..पंडी जी की तरह

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  21. Some times I wonder, how Life treats these Folks who pass every day so nonchalantly ........
    &
    then i think of those
    "scholars " who
    are so hell bent on finding the lost causes of ancient Hindu Faith ;-)
    Good post , as usual, makes the neighbrhood ,
    come alive in Eastman colors --
    warm rgds,
    - Lavanya

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  22. इस्लाम के विषय में ज्ञानदान करने वाले ब्लॉगरगणों का पता जानना चाहता हूँ। कुछ विशिष्ट ज्ञान झटक लेने की तीव्र उत्कंठा व्याप्त हो गयी है। कृपया मेरी मदद करें।

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  23. एक नयी तरह की मानसिक हलचल . हमारे यहाँ तो शरीर के विशिष्ट भागो के उच्चारण के बिना काम ही नहीं चलता .

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  24. काका, रागदरबारी में सनीचर उर्फ मंगलदास को सिर्फ पढ़ा था । आज आपने दर्शन भी करवा दिये ।

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  25. काका, रागदरबारी में सनीचर उर्फ मंगलदास को सिर्फ पढ़ा था । आज आपने दर्शन भी करवा दिये ।

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  26. gyaan dutt ji bahut acchi , halki fulki post , man ko aannd praapt hua ...aap kaise hai .


    regards

    vijay
    please read my new poem " झील" on www.poemsofvijay.blogspot.com

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  27. सभी हिन्दी ब्लोगर भाइयों/बहनों से अनुरोध है की यहाँ मैं एक प्रस्ताव रख रहा हूँ कृपया इस पर अपनी सहमति देने की कृपा करें। ब्लोगर भाइयों के आपसी प्यार को देखते हुए मेरी हार्दिक इच्छा है की एक हिन्दी ब्लोगर संघ की स्थापना की जाए और (वैसे तो सभी इन्टरनेट पर मिलते ही हैं) साल में एक बार कहीं मीटिंग आयोजित की जाए. इंटरनेट पर ही अध्यक्ष, सचिव, इत्यादि के चुनाव हो जायें। मेरे इस सुझाव पर गौर करें। हिन्दी ब्लोगर संघ को मजबूती प्रदान करें। ज्ञानदत्त पाण्डेय जी से मेरी प्रार्थना है की इस कम में रूचि दिखाते हुए.सहयोग दें. ब्लोगर संघ के उद्देश्य, नियम, चुनाव प्रक्रिया के बारे में आगली पोस्ट में बताऊंगा.स्तरीय ब्लॉग लेखकों को सक्रियता के आधार पर चयनित किया जाये.

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  28. हा हा ! पोस्ट पर देर से आने का अपना फायदा है.
    टिपण्णी भी रोचक पढने को मिलती है. एक लाइना भी मिल गया.

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  29. बहुत सुंदर \ बकरी के गया में बीडी ??

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय