कल उत्तर-मध्य रेलवे की राजभाषा कार्यान्वयन समिति की त्रैमासिक बैठक महाप्रबंधक श्री विवेक सहाय जी की अध्यक्षता में हुई। इस तरह की बैठक में सामान्यत: राजभाषा विषयक आंकड़े प्रस्तुत किये जाते हैं। उनपर सन्तोष/असन्तोष व्यक्त किया जाता है। पिछले तीन महीने में राजभाषा अधिकारी की जो विभाग नहीं सुनता, उसपर आंकड़ों और प्रगति में कुछ विपरीत टिप्पणी हो जाती है। हिन्दी में क-ख-ग क्षेत्र हो कितने पत्र लिखे जाने थे, कितने लिखे गये; कितनी टिप्पणियां हिन्दी में हुईं; कितनी बैठकों के कार्यवृत्त हिन्दी में जारी हुये या कितनों में हिन्दी पर चर्चा हुई; कितने नक्शे-आरेख हिन्दी में बने .... इस तरह की बातों पर चर्चा होती है। फिर बैठक का समापन होता है। बैठक में सामान्यत: कुछ विशेष रोचक नहीं होता जिसे ब्लॉग पर लिखा जा सके। यह अवश्य हुआ कि श्री सहाय ने अपने क्लिष्ट लिखे भाषण को पढ़ने की बजाय अपने मुक्त सम्बोधन में इलाहाबाद की हिन्दी में श्रेष्ठता पर बहुत कुछ बोला और यह स्पष्ट कर दिया कि वे विशुद्ध हिन्दी वाले इलाहाबादी हैं - अंग्रेजीदां अफसर नहीं।
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पर, कल हुई बैठक में दो बातें मुझे ब्लॉग पर पेश करने लायक मिलीं। पहली बात हिन्दी अनुवाद की दुरुहता को लेकर है। बात "वर्तनी" की अशुद्धि पर चल रही थी। एक विभागध्यक्ष (श्री उपेन्द्र कुमार सिंह, मुख्य वाणिज्य प्रबंधक) उसे बर्तन की अशुद्धि (बर्तन का गन्दा होना) पर मोड़ ले गये। वहां से बात इस पर चल पड़ी कि हिन्दी अनुवाद कितना अटपटा होता है। एक अन्य विभागाध्यक्ष (श्री हरानन्द, रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स के चीफ सिक्यूरिटी कमिश्नर) ने किस्सा बताया कि गांधी जी के एक पत्र/लेख का अनुवाद करना था। उसमें बापू ने स्टेशनों पर वेटिंग रूम में शौचालय के विषय में कहा था कि - "facility should be provided for fair sex"। अर्थात वेटिंग रूम में स्त्रियों के लिये भी शौचालय की व्यवस्था होनी चाहिये।
इस अंग्रेजी वाक्यांश का अनुवाद हिन्दी सहायक ने किया - "(प्रतीक्षा कक्ष में) मुक्त यौनाचार की सुविधा होनी चाहिये!"
अधिकारी महोदय ने बताया कि मौके पर उन्होंने वह अनुवाद की गलती पकड़ ली। अन्यथा मक्षिका स्थाने मक्षिका वाले अनुवादक बापू को मुक्त-यौनाचार का प्रवर्तक बना कर छोड़ते; वह भी स्टेशन के वेटिंग रूम में सुविधा देते हुये!
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कल की बैठक में दूसरी रोचक बात मैने देखी कि हमारे उत्तर-मध्य रेलवे के चीफ मैडिकल डायरेक्टर डा. एन के कल्ला एक अच्छे रेखा चित्रकार हैं। एक डाक्टर में यह प्रतिभा पाना बहुत अच्छा लगा। डाक्टर साहब ने भारतीय रेलवे राजभाषा की सलाहकार परिषद के सदस्य श्री विभूति मिश्रजी, जो बैठक में शामिल थे, का एक रेखा चित्र बनाया था। आप उनका बनाया रेखा चित्र देखें। मिश्र जी का चित्र बिल्कुल सही बना है।»»
बाद में बातचीत में डा. कल्ला ने मुझे बताया कि वे मुझे तनाव के प्रबन्धन पर अपने कुछ लेख मुझे आगे लिख कर देने का यत्न करेंगे। एक वरिष्ठ डक्टर द्वारा लिखा लेख ब्लॉग पर प्रस्तुत करने में मुझे बहुत प्रसन्नता होगी।
««डा. कल्ला का चित्र भी मैने बैठक स्थल पर मोबाइल में उतार लिया था। मुझे अपेक्षा है कि उनके मैडिकल ज्ञान का कुछ अंश मैं अपने ब्लॉग पर आगामी सप्ताहों में प्रस्तुत कर सकूंगा।
समृद्ध भाषाओं से हिन्दी में अनुवाद आसान काम नहीं है। उस का कारण है हम बोलचाल में प्रचलित शब्दों का भी अनुवाद करने बैठ जाते हैं और समझे जाने वाले शब्दों के स्थान पर अनजाने शब्दों को बैठा देते हैं। अब पाठक ढूंढता रहे शब्दकोष। वहाँ भी वह शब्द नहीं मिलता अक्सर। हमें हिन्दीभाषियों के बीच बोलचाल और लेखन में प्रचलित विभिन्न भाषाओं के शब्दों को हिन्दी शब्दकोष का भाग बना देना चाहिए।
ReplyDeleteहिन्दी के राजभाषा रूप[कुरूप] पर 'बिनही कहे भल दीन दयाला '......
ReplyDeleteश्री विभूति मिश्रा का भी मोबोपिक होता तो रेखाचित्र से तुलना आसान होती .
अनुवाद करने को लेकर भारत दभोलकर ने इन्टरव्यू में एक घटना का जिक्र किया था. महाराष्ट्र के किसी ब्लाक में वहाँ के बीडीओ ने अपने ब्लाक में एक नारे का अनुवाद कुछ यूँ कर डाला था...
ReplyDeleteदूसरा बच्चा कब?
पहला स्कूल जाए तब
बीडीओ साहब ने अति उत्साह में इस नारे का अंग्रेजी अनुवाद कर डाला था;
Second child when?
first go to school then..
बढ़िया है जी।
ReplyDeleteअनुवादक को दोनो भाषाओं का ज्ञान व कहे के मर्म की समझ होनी चाहिए...वरना अर्थ का अनर्थ तो होगा ही.
ReplyDeleteबैठक का परिणाम क्या रहा, हिन्दी में कामकाज बड़ रहा है या नहीं? :)
@ संजय बेंगाणी > बैठक का परिणाम क्या रहा, हिन्दी में कामकाज बढ़ रहा है या नहीं? :)
ReplyDeleteअसल में यहां पूर्वांचल में समस्या दूसरे प्रकार की है। यहां अंग्रेजी में काम कराने के लिये बहुत मेहनत करनी पड़ती है! :-)
फैयर सैक्स वाला अनुवाद मजेदार है. ;-)
ReplyDeleteआपकी पोस्ट से अहसास हो रहा है कि होली आ रही है। देखिये ना कितने सारे रंग है। हिन्दी अनुवाद का रंग, फिर डाक्टर साहब, फिर वो चित्र बनाने वाले----। आपको होली की अग्रिम शुभकामनाए।
ReplyDeleteभला हुआ जो अधिकारी ने गलती पकड़ ली वरना तो वाकई बहुत बड़ा अनर्थ हो जाता।
ReplyDeleteचलिए सावधानी से अनुवाद सम्बंधी बखेडा होते-होते बचा।
ReplyDeleteहाँ, डा. कल्ला के तनाव प्रबन्धन सम्बंधी लेख का इन्तजार रहेगा।
होली की शुभकामनाएँ।
स्केच अच्छा बना है!!
ReplyDeleteडॉ कल्ला जी के लेखों का इंतजार रहेगा!
सरकारी विभागों में बगैर समझे-बूझे अनुवाद करने वालों से कैसी-कैसी हास्यास्पद चूकें होती रहती हैं, इसके सैकड़ों उदाहरण हम अक्सर प्रत्यक्ष देखते हैं। यदि उनका संकलन किया जाए और उन्हें चुटकुले के तौर पर पेश किया जाए तो राजू श्रीवास्तव के चुटकुलों से ज्यादा लोकप्रिय होगा।
ReplyDeleteडॉक्टर साहब के लेखों का इंतजार रहेगा....
भईया
ReplyDeleteआज के युग में, तनाव और जीवन का चोली दामन का साथ है...ऐसे में कल्ला जी के लेख, संजीवनी का काम करेंगे...उनका स्वागत है.
नीरज
"Facility should be provided for fair sex" Yah Bapu ka kathan unke Bharat ke languaage se poori taur par nahin judhe hone ka dyotak hai. Mere Khyal mein, Hindi Sahayak ka Anuvad Bharteeya bhasa ke paripakshya mein bilkul uchit hai. Kyonki paschmi deshon ka "sex", Bharat mein mein "gender" kaha jata hai. Agar aap Bharat mein koi prarthna-patra bhar rahe hain, to usmein "gender" bharana hoga. Agar vahi form aap paschmi deshon mein bhar rahe hain, to vahan par "sex" column hoga aur aapko "male" ya "female" bharana hoga. Yahan par Adhikari mahoday ko Anuvadak ko dosh nahin dena chahiye. Kyonki usne Anuvaad to theek hi kiya tha, aur bapu ka mantabya jan sakane ki kshamata to uske paas hogi nahin.
ReplyDeleteMujhe Bapu ke Hindi-Gyan (Pandeyjee Vala Nahin) ke bare mein to utni jankari nahin hai, lekin unhen Gujrati to avashya aati rahi hogi, agar Hindi nahin aati thee. Bapu jee South Africa Gujrati-English Anuvadak ke taur par gaye the, actual Vakil to koi Englishman tha unke Gujrati (muslim) client ka. Khair, main kahana yah chahta tha ki Bapu ji ko updesh dete huye English (vo bhi paschimi) ke bajay Gujrati ya Hindi ka prayog karana chahiye tha.
ReplyDeleteMain Shrminda hun ki main is Post ki leak se hat gaya hun, phir bhi socha ki jo main soch raha hun, use bant dun Gyanjee ke madhyam se.
डॉक्टर साहब के लेखों का इंतजार रहेगा....भईया
ReplyDeleteआपको होली की अग्रिम शुभकामनाए।
waiting for medical info
ReplyDelete..सूरदास तब विहँसि यशोदा, लै उर कंठ लगायो
ReplyDeleteतब सूरदास जी ने हँसते हुये यशोदा को गले लगाया व उड़ा ले गये
अनुवाद, मुश्किल कार्य है। यह भावार्थ होना चाहिये न कि शब्दार्थ।
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