पंकज अवधिया जी ने बिल्कुल समय पर अपना आलेख भेज दिया। और मुझे लगा कि यह मुझे ध्यान में रख कर लिखा है उन्होंने। तनाव से मुक्ति कौन नहीं चाहता? और मैं तो इस समय कार्य-परिवर्तन के तनाव से गुजर ही रहा हूं। मैं अपने दफ्तर से १४ किलोमीटर दूर रहता हूं। अगर दफ्तर के पास रेलवे की अपनी संचार सुविधाओं से लैस होता तो शायद तनाव कुछ कम होता। पर बहुत सी चीजें हैं, जिन पर आपका अपना बस नहीं होता।
खैर मेरी छोड़ें, पंकज जी की पोस्ट पढ़ें। वे दो महत्वपूर्ण वनस्पतियों की बात कर रहे हैं जो तनाव और किड़नी में होने वाली पथरी की दशा में लाभप्रद हैं। आप उनकी पहले की पोस्टें पंकज अवधिया पर लेबल सर्च कर देख सकते हैं।
यह कहना गलत नही होगा कि हममे से ज्यादातर लोग तनाव में जी रहे हैं। क्या सचमुच तनाव इतने बढ गये हैं? या हमारी सहन शक्ति कम हो गयी है? क्या नींद का कम होना तनाव का कारण है या तनाव का अधिक होना कम नींद का? कारण जो भी हो पर अब ऐसी वनस्पतियो को अपनी दिनचर्या मे शामिल करना आवश्यक हो गया है जो कि हमारी क्षमता को इतना बढ़ा दें कि हर तरह की तकलीफ हम सहन कर लें।
पिछले दिनो मै पारम्परिक चिकित्सको से इसी विषय पर चर्चा कर रहा था (चित्र इण्टरनेट से फ्री डोमेन सर्च से लिया गया »»»)। वे ब्राम्ही नामक जानी-पहचानी वनस्पति के प्रयोग के पक्षधर दिखे। इसे न तो दवा के रूप मे सुखाकर खाने की जरुरत है, न ही अन्य वनौषधियों के साथ मिलाकर। वे कहते हैं कि इसे आप अपने बागीचे मे स्थान दें। वह स्थान जहाँ पानी भरा रहता है या दलदली है ब्राम्ही के पौधे लगा दें। इसे गमले मे भी लगा सकते हैं। अधिक पानी देने से यह तुलसी और गुलाब के पौधो की तरह नाराज नही होगा। फिर खाने से पहले इसकी पत्तियो से चटनी बनाये और स्वादानुसार नमक वगैरह डालकर खाने के साथ खायें। चाहें तो इसे रोज खायी जाने वाली चटनी के साथ भी मिलाया जा सकता है। मुझे याद आता है कि कुछ वर्षों पहले मै कोलकाता मे अल्मोडा की एक महिला फिल्मकार से मिला था। उन्हे नर्वस सिस्टम से सम्बन्धित बीमारी थी। सब दवा कर जब हार गयीं तो पारम्परिक चिकित्सको की सलाह पर उन्होने इस चटनी को अपनाया। पहले एक गमले मे इसे लगाया और फिर तो दूसरे पौधो के लिये गमले नही बचे। दिन के खाने मे हमे भी इसकी स्वादिष्ट चटनी परोसी गयी। मैने महसूस किया है कि अच्छी नींद और दिमाग को राहत देने के लिये यह बडी कारगर है। बाकी तो इसके बहुत सारे लाभ है।
***
क्या आप यह महसूस करते है कि आजकल पथरी के मरीज कुछ ज्यादा ही बढ़ गये हैं। किडनी से सम्बन्धित बीमारियाँ अब आम हो रही हैं। इनमे से कई बीमारियो का तो कोई इलाज उपलब्ध नही है और मरीजों को यूँ ही मरने छोड दिया जाता है। क्राँनिक रीनल फेल्योर ऐसी ही बीमारी है। मै ऐसे दसों मरीजो को जानता हूँ जो डायलीसिस के सहारे जिन्दा हैं। पारम्परिक चिकित्सकों की माने तो वे शरीर के अन्य अंगो की तरह शुरु से किडनी की भी देखभाल की बात करते हैं। बहुत सी वनस्पतियाँ हैं हमारे आस-पास जो किडनी को सुचारु ढंग़ से काम करने मे मदद करती हैं। इन्हे भोजन मे शामिल करने की जरुरत है। इनमे से एक है पानफूटी जिसे हम ब्रायोफिलम या पत्थरचटा के नाम से भी जानते हैं। इसे उद्यानों मे लगाया जाता है। आप इसकी माँसल पत्तियो से इसे आसानी से पहचान सकते हैं। पत्तियों ही से नये पौधे तैयार हो जाते हैं। माँसल पत्तियों को चटनी के रुप मे खाना है। चिकित्सा साहित्यों मे पथरी के उपचार मे इसके प्रयोग की बात कही गयी है, पर पारम्परिक चिकित्सक इस जानकारी को अधूरी मानते हैं। वे किडनी के लिये इसे सम्पूर्ण वनस्पति मानते हैं। वे साल के किसी भी तीन महिने में इसके प्रयोग की सलाह देते हैं।
मुझसे पाठक अक्सर प्रश्न करते हैं कि आपके लेखो मे वर्णित वनस्पतियाँ कहाँ मिलेंगी? इसका आसान सा जवाब है आपके आस-पास। आप शहर से निकलकर गाँवो मे जायें और लोगो से पूछें तो वे आपको इसकी जानकारी देंगे। यदि आप अपने क्षेत्र का नाम बतायेंगे तो मै वहाँ वनस्पतियो को स्थानीय भाषा मे क्या बोला जाता है, यह बता दूंगा। ये स्थानीय नाम हर कोस में बदल जाते हैं। और अधिक जानकारी के लिये आप मुझे इसकी फोटो भेज सकते हैं। अब तो सब कुछ आसान हो गया है। आप अपने क्षेत्र के वनस्पति विशेषज्ञों से भी मिल सकते है। यह बात सभी क्षेत्रो के लिये लागू होती है। यहाँ तक कि मुम्बई की बोरीवली पहाड़ियों और करज़त के इलाको से मैने वनस्पतियाँ एकत्र की हैं। पिछले वर्ष मुझे सुबह के भ्रमण के दौरान आरे मिल्क कालोनी में कई दुर्लभ वनस्पतियाँ दिखीं। मुम्बई के इतने सन्दर्भ इसलिये दे रहा हूं, क्योकि ज्यादातर सन्देश ऐसे ही महानगरों से आते हैं।
इस लेख मे मै 15 प्रकार की चटनियों के विषय मे लिखना चाहता था पर यह लम्बा होता जा रहा है। मै आगे इस पर लिखता रहूंगा।
मेरे इस विषय से सम्बन्धित कुछ लिंक:
चटनी पर शोध आलेख
पंकज अवधिया
© इस लेख का सर्वाधिकार श्री पंकज अवधिया का है।
(अपडेट सवेरे सात बजे)
आज सवेरे की सैर के दौरान पाया कि नारायणी आश्रम के खेतों में गेहूं की फसल में बालियां लग गयी हैं। फसल अच्छी है और उसके बीच बीच में एक दो सरसों के पौधे भी हैं जिनमें पीले फूल लगे हैं। सवेरे सवेरे यह देखना बहुत मन भाया। आप मोबाइल से लिया खेत का चित्र देखें। मार्च का महीना होने पर भी हल्का कोहरा है!
पंकज जी, जानकारी बहुत उपयोगी है। पत्थरचटा का चित्र देते तो ठीक रहता। क्या यह वही पौधा है जिस की पत्तियों से अजवायन जैसी गंध आती है?
ReplyDeleteब्राह्मी बहुत उपयोगी है। पर इस को घर पर उगाने का और इस की चटनी का विचार पहले कभी मुझे भी नहीं आया। आप का यह विचार उत्तम है।
बहुत उपयोगी जानकारी लगी. सरल और सहज इलाज. जारी रखें.
ReplyDeleteक्या ज्ञान जी आप इतने में ही कहते हैं तनाव है.
ReplyDeleteजरा हमरी सुनें...
ऑफिस 40 किमी दूर है. बीच में दिल्ली का जाम है यानि कुल मिला कर डेढ़ से 2 घंटा एक साइड से. ऑफिस में 12 घंटे का काम. सुबह 7.30 - 8 बजे निकलता हूँ शाम को 9-9.30 तक घर पहुंचता हूँ.फिर आपकी संगत में डेली पोस्ट भी ठेलता हूँ.दिन में मीटिंग से फुरसत मिले तो टिपियाता हूँ.और आप सिर्फ 14 किमी में तनाव में हैं.
वैसे पोस्ट बड़ी काम की लग रही है.
पंकज जी उपयोगी जानकारी देने के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteउपयोगी जानकारी, शुक्रिया!!
ReplyDeleteब्राह्मी के बारे जानकर अच्छा लगा,जल्द से जल्द इसका पौधा लगाऊंगी…॥
ReplyDeleteधन्यवाद, जान्कारी देने के लिये, देखता हु वेसे हमारे पास भी ऎसा ही एक पोधा था,क्या आप इस पोधे के बारे थोडी ओर जान कारी देगे,यानि इस के पत्ते कितने ्बडे होते हे, खशबु आती हे या नही विकिपिडिया मे कोई लिन्क हो तो जरुर दे,
ReplyDeleteअच्छी जानकारी भरी पोस्ट पर दादा दोनो के फ़ोटो और कहा मिलेगी..? काहे हमारा अभी इलाहाबाद आने का कोई प्रोग्राम नही है ,नही तो आपके घर से उखाड लाते ,दिल्ली आये तो जरूर लेते आये,हम राह तकेगे.रेलवे लाईन के किनारे..:)
ReplyDeleteपंकज जी को शुक्रिया और आपको भी। ज्ञानवर्धक पोस्ट पढ़ाने के लिए।
ReplyDeleteकाकेशजी की दिनचर्या जान कर सुकून मिला। हमारी तरह मरने वालों की कोई कमी नहीं दुनिया में। आप तो सुखी हैं ज्ञानदा।
पंकज जी , ब्राह्मी को पहचानूंगा कैसे ? खैर, किसी नर्सरी में जाता हूं , वही बता देंगे। उम्मीद तो है।
अत्यन्त उपयोगी जानकारी देने के लिए आभार !
ReplyDelete