श्री अरविन्द आश्रम की रतलाम शाखा के सन्त थे श्री स्वयमप्रकाश उपाध्याय (<<<)। उनके साथ मुझे बहुत करीब से रहने और उनका आशीर्वाद प्रचुर मात्रा में मिलने का संयोग मिला। उनका मेरे सत्व के (जितना कुछ भी उभर सका है) उद्दीपन में बहुत योगदान है। श्री उपाध्याय मुझे एक बार श्री माधव पण्डित (जो पॉण्डिच्चेरी के श्री अरविन्द आश्रम में सन्त थे) के विषय में बता रहे थे। माधव पण्डित को तिक्त नमकीन प्रिय था। भोजन के बाद उन्हे इसकी इच्छा होती थी। श्री उपाध्याय जब रतलाम से पॉण्डिच्चेरी जाते तो उनके लिये रतलामी सेव के पैकेट ले कर जाते थे। माधव पण्डित भोजन के उपरान्त एक हथेली में रतलामी सेव ले कर सेवन करते थे। उनसे मुलाकात में उपाध्याय जी ने उन्हें थोड़ा और नमकीन लेने का आग्रह किया। पण्डित जी ने मना कर दिया। वे रस लेने के लिये नाप तौल कर ही नमकीन लेने के पक्ष में थे। रस लेने का यह तरीका संयम का है।
साने गुरूजी की पुस्तक है – भारतीय संस्कृति। उसमें वे लिखते है:
"न्यायमूर्ति रनाडे की एक बात बताई जा रही है। उन्हें कलमी आम पसन्द थे। एक बार आमों की टोकरी आयी। रमाबाई ने आम काट कर तश्तरी में न्यायमूर्ति के सामने रखे। न्यायमूर्ति ने उसमें से एक दो फांकें खाईं। कुछ देर बाद रमाबाई ने आ कर देखा कि उस तश्तरी में आमकी फांकें रखी हुई थीं। उन्हें अच्छा नहीं लगा। बोलीं – “आपको आम पसन्द हैं। इसी लिये काट कर लाई। फिर खाते क्यों नहीं?” न्यायमूर्ति ने कहा – “आम पसन्द हैं इसका अर्थ यह हुआ कि आम ही खाता रहूं! एक फांक खा ली। जीवन में दूसरे भी आनन्द हैं।“
संसार में सभी महापुरुष संयमी थे। पैगम्बर साहब सादा खाते थे। वे सादी रोटी खा कर पानी पी लेते थे। गांधी जी के बारे में तो सादगी की अनेक कथायें हैं। संयम बहुत सीमा तक मितव्ययता के सिद्धान्त से भी जुड़ा है।
संयम का सिद्धान्त केवल भोजन के विषय में नहीं है। वाणी में, निद्रा में, श्रम में, चलने में, व्यायाम में, आमोद प्रमोद में, अध्ययन में – सब में अनुशासन का महत्व है।
कछुआ संयम का प्रतीक है। भग्वद्गीता के दूसरे अध्याय में कहा है –
यदा संहरते चायम् कूर्मोंगानीव सर्वश:।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता॥ (२.५८)
“जिस प्रकार कछुआ सब ओर से जैसे अपने अंगों को जैसे समेट लेता है; वैसे ही जब यह पुरुष इन्द्रियों के विषयों से अपने को सब प्रकार से हटा लेता है, तब उसकी बुद्धि को स्थिर मानना चाहिये।“
कछुआ अपनी मर्जी से अपने अंगों को बाहर निकालता है और जब उसे खतरे की तनिक भी सम्भवना लगती है, वह अपनी सभी इन्द्रियों को समेट लेता है। यही कारण है कि कछुआ भारतीय सन्स्कृति का गुरु माना गया है।
मैं संयम के बारे में क्यों लिख रहा हूं? असल में मुझे कुछ दिन पहले एक ब्लॉग दिखा – मेरा सामान। इसमें एक उत्साही फाइनल ईयर के रुड़की के छात्र श्री गौरव सोलन्की ने आई.आई.टी. के छात्रों की खासियत बताते हुये यह लिखा कि वे लम्बे समय तक काम कर सकते हैं, दो दिन तक लगातार सो सकते हैं, लगातार फिल्में देख सकते हैं, इत्यादि। अर्थात हर काम वे अति की सीमा तक कर सकते हैं। गौरव जी को यह गुण लगा। एक सीमा में यह लगता भी है। हमने भी यह अति कर रखी है, बहुत बार, बहुत विषयों में। पर अन्तत: देखा है कि संयम ही काम आता है।
आशा है उत्साही जन अन्यथा न लेंगे!
जब बहुत सा काम करना हो, और करने की इच्छा शक्ति में कमी हो तो सबसे अधिक काम आता है - सॉलिटायर (Solitaire)। विण्डोज़ एक्सपी में यह टाइम किलर साथ में आता था। विस्टा में यह देखने को नहीं मिलता। इण्टरनेट से डाउनलोड करने में भांति-भांति के सॉलिटायर दीखते हैं। फ्री में उपलब्ध हैं। पर वह सॉलिटायर जो विण्डोज 98 के जमाने से प्रयोग करते रहे हैं; नहीं दीखता।
आपको कोई जुगाड़ मालुम है जिससे विस्टा पर इसे डाउनलोड किया जा सके?
एक जगह मैने पढ़ा कि अगर आपको एकाकी/सुस्त/बिना शादी के जिन्दगी काटनी हो तो सॉलिटायर सबसे उपयुक्त टाइम किलर है। आपका क्या ख्याल है? आपने कितना समय इस (या इस प्रकार के) गेम के हवाले किया है?!
सत्य वचन महाराज
ReplyDeleteसंयम के बगैर बड़े तो दूर, छोटे काम भी संभव नहीं है। ये मन बहूत बदमाश टाइप का आइटम है। जाने कहां कहां डुबोने के इंतजाम कर लेता है। मन के संयम के बगैर सब चौपट है। मैं देखता हूं एक से एक जीनियर, पड़े हुए हैं। पर कुछ भी नहीं कर रहे हैं, संयमविहीनता ने जीवन का सत्यानाश कर रखा है। जमाये रहिय़े।
बस ब्लागिंग में संयम ना रखें।
अरविंदआश्रम जाना पड़ेगाजी।
सालिटेयर या ताश पत्ती के मैं एकैदम खिलाफ हूं।
ReplyDeleteअनिल अंबानी ने एक जगह लिखा है कि धीरु भाई अंबानी ने एक बार उन्हे बहुत जोर से इसलिए डांटा था कि उन्होने अनिल के हाथ में ताश देख लिये थे। धीरु भाई ने कहा कि तुम ताश खेलने से बेहतर है कि सो जाओ। सोना ज्यादा उत्पादक काम है ताश पत्ती खेलने के बजाय।
टाइम पास करने के ज्यादा रोचक तरीके निम्नलिखित हैं-
1-ब्लागों पर चल रही कांय कांय खांय खांय में शरीक हों
2-संजीत त्रिपाठी से राखी सावंत की लेटेस्ट अपडेट लें
3-वारेन बूफे के लैटर पढ़ें, जो उन्हे अपने शेयरधारियों को लिखे हैं
4-भूत नाग कामेडी चैनल, संक्षेप में न्यूज चैनल देखें
5-आलोक पुराणिक की अगड़म बगड़म को दोबारा अथवा चौबारा पढ़ें और सबको इसे पढ़ने के लिए प्रेरित करें।
ज्ञान जी। आप सफाई भी कायदे से देते हैं। इतने दिनों की गैर हाजरी के बाद संयम की लाठी मार दी। वैसे कम से कम रतलामी सेव वाली बात पसंद आयी। आज से अपना भी संयम शुरू। हम तो जब तक सामने वाले समाप्त न हो जाएं चैन नहीं लेते थे और वजन बढ़ा बैठते थे।
ReplyDeleteसंयम की सीख के साथ आपका प्रत्यावर्तन अच्छा लगा -मुझे सच तो नही पता कि क्यों आपने ब्लाजगत से अल्पावाकाश ले लिया था किंतु इस दुनिया मे अब आपका हर वक़्त बने रहना अपरिहार्य सा हो गया है क्योंकि इस नरक स्वर्ग के लिए आप पर ठीक यही बात लागू होती है -
ReplyDeleteजो न जनम जग होत भारत को ,धरम धुरी धरि धरनि धरत को .....
इन दिनों आपके ब्लॉग जगत मे न रहने से मैंने तो केवल यहाँ के नारकीय दंश को झेला है ,कही कोई राहत नही लग रही थी ,
अब एक ताजा हवा का झोका आया है .
संयम वाली बात तो सही कही पर कृपया ब्लॉगिंग में संयम न करें पुराणिक जी की सलाह मानकर राखी सावंत का लेटेस्ट अपडेट आपको देने का वादा करता हूं ;)
ReplyDeleteएकाकी/सुस्त/बिना शादी के लाईफ़ काट रहे हैं फिर भी ताशपत्ती को न प्रेक्टिकली हाथ लगाया कभी न वर्चुअल में!!! मन ही नही हुआ कभी।
आलोक जी की लिस्ट मे पंगेबाज की पुरानी पोस्टे भी जोड ले ,उन्हे पढे और पंगेबाजी मे शामिल हो जाये..:)
ReplyDeleteसॉलिटायर एक बार खेलने के बाद तो नशे जैसा हो जाता है। बार-बार खेलने की इच्छा होती है।ऐसे टाइम किलर की भला क्या जरुरत है।
ReplyDeleteTry this ( To restore games on Vista)
ReplyDeleteGo to control panel - programs and features
click "turn windows features on or off" on the left pane
uncheck all the games, click ok, wait for it to do its thing
reverse the process, i.e. check the games checkbox, click OK, wait
they should appear again!
संयम स्व-विवेक के बल पर हो तो निश्चित ही उपयोगी है। यदि इसे थोपा जाये तो लम्बे समय तक इसे रख पाना मुश्किल है।
ReplyDeleteआज मैं टिप्पणी देने में संयम बरत रही हूँ ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
Solitire क्या, Freecell हम तो के भी शौकीन हैं.. जब मेरा मन दिमाग खपाने का नहीं होता है तब समय काटने का यही तरीका मुझे सबसे अच्छा लगता है.. मैं तो अभी तक हजारों घंटे इस पर खर्च कर चुका हूं..
ReplyDeleteआपके प्रश्नों का उत्तर जीतु जी ने दे दिया है, अब उसे दोहराने का कोई फायदा नहीं है.. :)
आज सुबह भी मैं वही कर रहा था आफिस आने से पहले..
ReplyDeleteबहुत दिनों बाद ज्ञान गंगा में नहाना सुखद रहा.
ReplyDeleteआप ताश की तलाश में हैं..आपके पास इतना समय है ?? ..काश हमारे पास भी यह समय होता...वैसे मैं भी ताश खेलने की बजाय सोना ज्यादा पसंद करता हूँ.
हां बिल्कुल सही फरमाया ज्ञानजी आपने.
ReplyDeleteवैसे ये स्वामी बुधानंद की पुस्तकें क्या बाजार में मिल सकती हैं या कहीं और से मंगानी पड़ती हैं। वो क्या है कि मेरे जैसे महाआलसियों की कुछ आदतें तो सुधरें.
वैसे स्पायडर सॉलिटेयर बहुत खराब गेम है. एक बार चस्का लग जाए तो छूटता नहीं दारू के माफिक.
संजीत भैया से हमें भी लेटेस्ट अपडेट दिलाई जाएं.
sab log bahut kuch kah gaye ....mai late huun......hameshaa ki tarah aapki insipirational post padhkar guun rahi huun.
ReplyDeleteसॉलिटायर एक वायरस है..जिसका एंटीडोट नहीं..बिल्कुल हिन्दी ब्लॉगिंग जैसा...एक ही काफी है. :)
ReplyDeleteसंयम और कछुआ दोनो बहुत धीमे चलते हैं। इनके मंजिल तक पहुंचने के समय में पत्ते फ़ेंट लेने में आलोक पुराणिक को एतराज क्यों हो रहा है। समझ में नही आता। न हमारे न आलोक पुराणिक के।
ReplyDeleteकृपया इस solitair game को try करें
ReplyDeletehttp://www.mediafire.com/?ykjd3jhyjyd
सच्ची में ज्ञान के भंडार हैं आप
ReplyDeleteज्ञान भी बहुत धैर्य से देते हैं
धीमे धीमे हौले हौले
वैसे भी एक साथ सारा
सिर के उपर से बह जायेगा
प्यास भी नहीं बुझा पायेगा
रही बात सॉलिटायर की तो
टायर सिर्फ वाहनों के ही
चलाये हैं हमने
ताश के पत्तों से
कभी लौ नहीं लगाई
न तब जब फिजिबल होते थे
न अब जब कम्प्यूटरीक्रत होते हैं
हैं अविनाश पर
नहीं खेलेते हैं ताश
सिर्फ रचते हैं रचना
और छापते हैं ब्लॉग
इसमें भी अब संयम
बरतना होगा, आम
की एक फांक की तरह
धैर्य रखना होगा
आनंद और भी तो
उठाने हैं या उठवाने हैं
जैसे आप उठा उठवा रहे हैं.
सच्ची में ज्ञान के भंडार हैं आप
ReplyDeleteज्ञान भी बहुत धैर्य से देते हैं
धीमे धीमे हौले हौले
वैसे भी एक साथ सारा
सिर के उपर से बह जायेगा
प्यास भी नहीं बुझा पायेगा
रही बात सॉलिटायर की तो
टायर सिर्फ वाहनों के ही
चलाये हैं हमने
ताश के पत्तों से
कभी लौ नहीं लगाई
न तब जब फिजिबल होते थे
न अब जब कम्प्यूटरीक्रत होते हैं
हैं अविनाश पर
नहीं खेलेते हैं ताश
सिर्फ रचते हैं रचना
और छापते हैं ब्लॉग
इसमें भी अब संयम
बरतना होगा, आम
की एक फांक की तरह
धैर्य रखना होगा
आनंद और भी तो
उठाने हैं या उठवाने हैं
जैसे आप उठा उठवा रहे हैं.
हां बिल्कुल सही फरमाया ज्ञानजी आपने.
ReplyDeleteवैसे ये स्वामी बुधानंद की पुस्तकें क्या बाजार में मिल सकती हैं या कहीं और से मंगानी पड़ती हैं। वो क्या है कि मेरे जैसे महाआलसियों की कुछ आदतें तो सुधरें.
वैसे स्पायडर सॉलिटेयर बहुत खराब गेम है. एक बार चस्का लग जाए तो छूटता नहीं दारू के माफिक.
संजीत भैया से हमें भी लेटेस्ट अपडेट दिलाई जाएं.
संयम वाली बात तो सही कही पर कृपया ब्लॉगिंग में संयम न करें पुराणिक जी की सलाह मानकर राखी सावंत का लेटेस्ट अपडेट आपको देने का वादा करता हूं ;)
ReplyDeleteएकाकी/सुस्त/बिना शादी के लाईफ़ काट रहे हैं फिर भी ताशपत्ती को न प्रेक्टिकली हाथ लगाया कभी न वर्चुअल में!!! मन ही नही हुआ कभी।
संयम की सीख के साथ आपका प्रत्यावर्तन अच्छा लगा -मुझे सच तो नही पता कि क्यों आपने ब्लाजगत से अल्पावाकाश ले लिया था किंतु इस दुनिया मे अब आपका हर वक़्त बने रहना अपरिहार्य सा हो गया है क्योंकि इस नरक स्वर्ग के लिए आप पर ठीक यही बात लागू होती है -
ReplyDeleteजो न जनम जग होत भारत को ,धरम धुरी धरि धरनि धरत को .....
इन दिनों आपके ब्लॉग जगत मे न रहने से मैंने तो केवल यहाँ के नारकीय दंश को झेला है ,कही कोई राहत नही लग रही थी ,
अब एक ताजा हवा का झोका आया है .
सालिटेयर या ताश पत्ती के मैं एकैदम खिलाफ हूं।
ReplyDeleteअनिल अंबानी ने एक जगह लिखा है कि धीरु भाई अंबानी ने एक बार उन्हे बहुत जोर से इसलिए डांटा था कि उन्होने अनिल के हाथ में ताश देख लिये थे। धीरु भाई ने कहा कि तुम ताश खेलने से बेहतर है कि सो जाओ। सोना ज्यादा उत्पादक काम है ताश पत्ती खेलने के बजाय।
टाइम पास करने के ज्यादा रोचक तरीके निम्नलिखित हैं-
1-ब्लागों पर चल रही कांय कांय खांय खांय में शरीक हों
2-संजीत त्रिपाठी से राखी सावंत की लेटेस्ट अपडेट लें
3-वारेन बूफे के लैटर पढ़ें, जो उन्हे अपने शेयरधारियों को लिखे हैं
4-भूत नाग कामेडी चैनल, संक्षेप में न्यूज चैनल देखें
5-आलोक पुराणिक की अगड़म बगड़म को दोबारा अथवा चौबारा पढ़ें और सबको इसे पढ़ने के लिए प्रेरित करें।