कुछ समय पहले (15 फरवरी को)“ब्लॉगर इन ड्राफ्ट” ने सुविधा दी थी कि आप वर्ड प्रेस की तरह अपनी पोस्टें शिड्यूल कर ड्राफ्ट में डाल सकते हैं और वे नियत समय पर पब्लिश हो जायेंगी। उस समाचार को हम सब ने बहुत हर्ष के साथ लिया था। पर जल्दी ही पाया कि पोस्ट नियत समय पर पब्लिश हो तो जा रही थीं, पर उनका “permalink” नहीं बन रहा था। लिहाजा पोस्ट आपके ब्लॉग यूआरएल के लिंक से पब्लिश हो रही थीं। फीड एग्रेगेटर उसे पकड़ नहीं रहे थे और हिन्दी जगत में वह पब्लिश होना ही क्या जो पोस्ट फीड एग्रेगेटर पर न चढ़ पाये। और तो और, फीडबर्नर या गूगल रीडर भी उस पोस्ट को “पब्लिश हुआ पहचान” नहीं रहे थे। लिहाजा, हम लोगों ने उस शिड्यूलिंग की सुविधा का प्रयोग बन्द कर दिया। इस पर अनिल रघुराज जी ने अपनी एक पोस्ट में सुविधा के लोचे के बारे में लिखा भी था।
रविवार के दिन मैं यूं ही “ब्लॉगर इन ड्राफ्ट का ब्लॉग” देख रहा था। मुझे सुखद आश्चर्य हुआ कि permalink की समस्या उनकी टीम ने तीन मार्च को हल कर ली थी। हमने तो उसका उपयोग किया ही नहीं!
अत: मैने कल छपी अपनी “हैरीपॉटरीय ब्लॉग की चाहत” नामक पोस्ट सवेरे 4:30 बजे शिड्यूल कर “ब्लॉगर इन ड्राफ्ट” में डाल दी। सवेरे साढ़े छ बजे पाया कि न केवल वह पोस्ट अपने यूनीक permalink के साथ पब्लिश हो गयी थी, वरन उसे फीडबर्नर, फीड एग्रेगेटरों (चिठ्ठाजगत, ब्लॉगवाणी, नारद) और गूगल रीडर ने भी चिन्हित कर लिया था। आप नीचे देखें, वह पोस्ट 4:35 पर ब्लॉगवाणी पर और 4:30 पर नारद पर आ गयी थी:
एक दिन की ट्रायल के बाद मुझे लगता है कि ब्लॉगस्पॉट में पोस्ट शिड्यूल कर पब्लिश करने का काम सुचारू हो गया है। हो सकता है कि आप सब को यह ज्ञात हो। पर जिन्हे न ज्ञात हो, उनकी सूचनार्थ मैं यह पोस्ट लिख रहा हूं। आप इस सुविधा का लाभ ले सकते हैं।
कतई नहीं ज्ञात था जी...आप न बताते, तो हम तो इसे इस्तेमाल करना छोड़ चुके थे. बहुत आभार और होली की बधाईयाँ.
ReplyDeleteकाश रिसर्च में भी ऐसे ही ३-४ शोध पत्र लिखकर पहले से तैयार कर पाते और हर ६ महीने के अंतर पर वो अपने आप छप जाते :-)
ReplyDeleteमेरे मन में एक और विचार है, काश ऐसा संभव हो तो । दिमाग पर एक इलेक्ट्रोड लगा हो जो दौडते समय आने वाले विचारों को (मुझे अच्छे विचार दौडते समय ही आते हैं) रेकार्ड करके, उन्हे यूनिकोड से हिन्दी में लिखकर या एक पाडकास्ट बनाकर वायरलेस इंटरनेट के माध्यम से ब्लागर.काम को भेज कर मन चाही दिनांक को छाप दे ।
थोडी हरी पुत्तर लोक की कथा जैसी लग रही है लेकिन मेरा विचार है कि कुछ वर्षों में ये भी संभव हो जायेगा ।
सही है। नीरज रोहल्ला के विचार फ़लीभूत हों शायद कभी आगे।
ReplyDeleteहम ने पहले कोशिश की थी, पर वही हाल रहा जो आप का था। अब फिर कोशिश करते हैं।
ReplyDeleteनीरज रोहल्ला के विचार, हरी पुत्तर लोक की कथा जैसी लग रहे हैं। शायद एक दिन ऐसा कल की दुनिया में दिख जाये!
ReplyDeleteआजमा कर देखता हूँ। धन्यवाद।
ReplyDeleteनीरज की कल्पना शायद दस वर्षो मे पूरी हो जाये। हो सकता है कि खोपडी बचाने का जुगाड भी लगाना पडे ताकि कोई हमारी सामग्री सीधे दिमाग से न चुरा ले। और अपने ब्लाग मे पब्लिश कर दे। :)
तो अब पूरी तरह से बिना किसी मुसीबत के पोस्ट को शिड्यूल कर सकते है।
ReplyDeleteधन्यवाद।
aji, hame to nahi pata tha..
ReplyDeletemaine bhi samir ji ki tarah ise use karna chhor diya tha..
soochanaa ke liye dhanyavaad
हमारे काम का तो नहीं है फिर भी पढ़ लिया.नीरज के विचारों से सहमत हूँ. ऐसा कुछ हो तो बताइयेगा तब हमारे काम का भी होगा यह.
ReplyDeleteशुक्रिया इस जानकारी के लिए!!
ReplyDeleteधन्यवाद. काम की जानकारी है.
ReplyDeleteज्ञान जी , इस जानकारी को दुबारा बता कर बहुत अच्छा किया. शुक्रिया
ReplyDelete@नीरज जी, अभी तक कुछ लकवे के रोगी कम्प्यूटर से काम करके शोध में मदद कर रहे हैं. बड़ा बेटा रोबोटिक्स में ऐसा ही कुछ करना चाहता है सो कभी कभी अपने प्रयोग दिखाता रहता है.
तकनीकी जानकारियों के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteटिप्पणी में विलंब के लिए माफी।
इधर दिल्ली से बाहर हूं।
सो टिप्पणी में विलंब हो रहा है।
जानकारी का शुक्रिया ज्ञानदद्दा पर मैं कभी इसका लाभ नहीं ले पाऊंगा। ये सब बातें मेरी भोंट बद्धि में नहीं आ पातीं।
ReplyDeleteजानकारी के लिए धन्यवाद्। नीरज की कल्पना की दाद देनी पड़ेगी
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