|| MERI MAANSIK HALCHAL ||
|| मेरी (ज्ञानदत्त पाण्डेय की) मानसिक हलचल ||
|| मन में बहुत कुछ चलता है ||
|| मन है तो मैं हूं ||
|| मेरे होने का दस्तावेजी प्रमाण बन रहा है यह ब्लॉग ||
Sunday, March 16, 2008
शिवकुमार मिश्र का ब्लॉग
भाई गुड़ रहा, छोटा भाई शक्कर हो गया। वह भी जमाना था कि शिवकुमार मिश्र को ब्लॉगरी की दुनियां में ठेलियाने के लिये मैने बहुत जतन किया। पहले पहल वे मेरे ब्लॉग पर रोमनागरी में टिप्पणी किया करते थे। फिर मैने उन्हे लिखने को प्रेरित करने के लिये एक ज्वाइण्ट ब्लॉग बनाया - शिवकुमार मिश्र और ज्ञानदत्त पाण्डेय का ब्लॉग। शिव बहुत बढ़िया लिखते हैं। पर शुरुआती दौर में उनसे लिखवाना कठिन काम था। गूगल के ट्रान्सलिटरेशन टूल के माध्यम से उन्होंने प्रारम्भिक पोस्टें लिखीं। मैने उनपर इधर उधर के चित्र लगाये। साथ ही लगभग उन्ही विषयों से मिलती जुलती पोस्टें मैने भी उस ब्लॉग पर लिखीं। मेरा विचार था कि हम The Becker-Posner Blog जैसा प्रयोग हिन्दी भाषा में करें। पर मुझे अन्दाज नहीं था कि शिव कुमार इतनी विविधता से लिखेंगे कि उनके साथ कदम मिलाना बहुत मुश्किल हो जायेगा। मेरे इस "बेकर-पोस्नर" प्रयोग की योजना कभी टेक-ऑफ ही न कर पायी और विविध विषयों पर पोस्टों का शिव ने सैंकड़ा भी पार कर लिया।
उनके कम्प्यूटर पर ऑफलाइन हिन्दी टाइपिंग टूल इन्स्टाल होने की देर थी कि उनका लेखन नये आयाम पकड़ गया। कई बार मैने देखा है कि किसी विषय पर हम हल्के से बात भर करते हैं और घण्टे भर में अत्यन्त स्तरीय पोस्ट उस विषय पर वे ब्लॉग पर उतार भी देते हैं। शिव की याददाश्त भी गजब की है। दशकों पहले पढ़े पैराग्राफ दर पैराग्राफ ज्यों का त्यों उतार देना उनकी खासियत है।
आज मैं चिठ्ठाजगत पर उनकी रैंकिंग देख रहा था। उनका ब्लॉग मेरे अनाधिकृत ब्लॉग के रूप में भी लिस्ट किया हुआ है। उनके ब्लॉग की रैंकिंग ४५-५० के मध्य चल रही है। मेरी सक्रियता में कमी के कारण मुझे लगता है कि वे मुझसे जल्दी ही आगे बढ़ जायेंगे।
शिवकुमार मिश्र से हमारी चर्चा का एक विषय यह बहुधा होता है, कि पेशे से हम दोनो लेखक नहीं हैं। लिखना हमारा बहुत बड़ा पैशन भी नहीं रहा है। फिर भी ब्लॉगिंग का माध्यम हाथ लगने पर हमने पूरा रस लेते हुये बहुआयामी तरीके से अपने को अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है। यही हमारी ब्लॉगिंग की सार्थकता है। और शिव ने क्या क्या नहीं लिखा - बंगाल, निन्दक महासभा, नौटन्की, रामलीला, उदयप्रतापजी, नन्दीग्राम, ब्लॉगिंग का इतिहास, दुर्योधन की डायरी....। कोई भी समर्पित लेखक इस विविधता से ईर्ष्या कर सकता है।
मैने शिव के ब्लॉग से अपना नाम गायब करने का एक बार प्रयास किया पर शिव ने उसे विफल कर दिया। दो तीन दिन पहले मैने फिर अपनी उपस्थिति कम करने की थोड़ी हेराफेरी ब्लॉग हेडर के डिस्क्रिप्शन में कर चुका हूं। पर वह हेराफेरी बहुत हल्की है। मैने अपना नाम मात्र ब्रेकेट में कर दिया है।
आखिर बड़ा भाई गुड़ और छोटा शक्कर हो गया है। और उसमें बड़ा भाई अपने को अतिशय गर्व का पात्र मानता है।
और अभी अभी शिव ने एसएमएस किया है - उनके लेख दैनिक जागरण में छपे है। बधाई।
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शिवबाबू के चार लेख छपे हैं-
ReplyDeleteपहला प्यार कितनी बार
भारत रत्न का इतिहास
पोस्टर का पोस्टमार्टम
ठाकरे के राज
इसके साथ आलोक पुराणिक का लेख नेता ले लो नेता भी छपा है।
बधाई!
कुछ लोग ऐसे भी हैं कि जिन्हें आज भी गुड के आगे शक्कर फीकी लगती है ,ज्ञान जी !यह खाकसार उन्ही मी से एक है -रही शिवकुमार जी की बात तो आपकी यह सिफारिश सर माथे !शिवकुमार जी से परिचय अछा लगा .
ReplyDeleteअपनो के साथ ऐसा ही है। प्यार की बौछार करते रहते है। आरम्भ के संजीव तिवारी को देखिये। इतनी ज्यादा मेहनत कर आरम्भ को स्थापित किया है और जब मैने साप्ताहिक स्तम्भ लिखना आरम्भ किया तो इस ब्लाग को हम दोनो का ब्लाग घोषित कर दिया। मेरा योगदान उनके सामने नाम-मात्र का है पर फिर भी उनका बडप्पन देखते ही बनता है। मै भी आपके जैसे कोष्ट्क के अन्दर जाने के प्रयास मे हूँ।
ReplyDeleteशिव जी को बधाई।
शिवकुमार मिश्र ने कायदे से लेखन शुरू किया है। पर आप की ऊँचाई वह शायद बहुत दूर है। जब तक वे वहाँ पहुँचेंगे तब तक आप और आगे बढ़ चुके होंगे। आप अगर उन्हें बड़ा कहेंगे लेखक ही सही तो भी वे कहेंगे कि बड़े तो आप हैं। सही भी यही है।
ReplyDeleteरहा सवाल बड़प्पन का तो बड़े हैं तो होगा ही, वह तमगा नहीं स्वाभाविक गुण है। नहीं होगा तो आलोचना का पात्र भी बनना पड़ेगा।
आप और शिव जी की जुगलबंदी ब्लॉगजगत में बनी रहे ये हम सबकी आशा है और ये आप नंबरों के चक्कर में फ़िर से आ गये.
ReplyDeleteबेकार में अपना समय व्यर्थ किया और एक ब्लॉग भी, आज आपकी सजा ये है कि कल भी एक पोस्ट दुबारा ठेलनी पड़ेगी.
आप बनें रहें और शिव जी तो चीनी हैं हीं आप लोगों की मिठास से यहाँ का वातावरण भी मीठा-मीठा हो चला है
आप दोनों ही बधाई के पात्र हैं
ReplyDeleteजागरण में प्रकाशित लेखों के लिंक भिजवायें
ReplyDeleteजिससे श्री शिवप्रकाश मिश्र जी के प्रकाशित लेख हम भी अपने मानस में प्रकाशित कर पायें, मन में और विचारों में उजाला भर पायें.
- अविनाश वाचस्पति
सिर्फ़ एक लाईन में बात खत्म करूंगा अपनी।
ReplyDeleteमैं शिव जी के व्यंग्य ही नही बल्कि संपूर्ण लेखन का कायल हूं, ये अलग बात है कि वह व्यंग्य में बहुत शानदार है।
दिन दुगुनी रात चौगुनी लोकप्रियता को छूएं, बस यही कामना है उनके लिए!
शिव जी के लेखन के हम भी कायल है, उनको और आलोक जी को बधाई
ReplyDeleteभइया, आपसे प्रेरित होकर ही लिखना शुरू किया. छप जाने से कोई 'शक्कर' नहीं हो जाता. आपकी तरह लगातार बढ़िया लिखना मेरे बस की बात नहीं है.
ReplyDeleteरही गुड़ और शक्कर की बात तो ये तो आपका बड़प्पन है.
ज्ञान जी! हमें तो दोनों ही पसंद हैं. नंबरों के चक्कर में हम नहीं पड़ते.
ReplyDelete- अजय यादव
http://merekavimitra.blogspot.com/
http://ajayyadavace.blogspot.com/
http://intermittent-thoughts.blogspot.com/
शिव जी को ढेरों शुभकामनायें। पर ज्ञान जी बधाई के पात्र आप भी हैं -जिन्होने शिव जी को प्रेरित किया।
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