|| MERI MAANSIK HALCHAL ||
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Sunday, March 30, 2008
आलू और कोल्डस्टोरेज
तेलियरगंज, इलाहाबाद में एक कोल्ड स्टोरेज है। उसके बाहर लम्बी कतारें लग रही हैं आलू से लदे ट्रकों-ट्रैक्टरों की। धूप मे जाने कितनी देर वे इन्तजार करते होंगे। कभी कभी मुझे लगता है कि घण्टो नहीं, दिनों तक प्रतीक्षा करते हैं। आलू की क्वालिटी तो प्रतीक्षा करते करते ही स्टोरेज से पहले डाउन हो जाती होगी।
पढ़ने में आ रहा है कि बम्पर फसल हुई है आलू की। उत्तरप्रदेश के पश्चिमी हिस्सों - आगरा, मथुरा, फिरोज़ाबाद, हाथरस आदि में तो ट्रकों-ट्रैक्टरों के कारण ट्रैफिक जाम लग गया है। मारपीट के मामले हो रहे हैं। आस पास के राज्यों के कोल्डस्टोरेज प्लॉण्ट्स को साउण्ड किया जा रहा है।
भारत में ५००० से अधिक कोल्डस्टोरेज हैं और उत्तरप्रदेश में १३०० हैं जो ९० लाख टन स्टोर कर सकते हैं। मालगाड़ी की भाषा में कहें तो करीब ३६०० मालगाड़ियां! लगता है कि कोल्डस्टोरेज आवश्यकता से बहुत कम हैं। उनकी गुणवत्ता भी स्तरीय है, यह भी ज्ञात नहीं। स्तरीय गुणवत्ता में तो आलू ८-९ महीने आसानी से रखा जा सकता है। पर हमें सर्दियों में नया आलू मिलने के पहले जो आलू मिलता है उसमें कई बार तो २५-३०% हिस्सा काला-काला सड़ा हुआ होता है।
उत्तर-मध्य रेलवे में हमने इस महीने आलू का लदान कर तीन ट्रेनें न्यू-गौहाटी और हासन के लिये रवाना की है। मुझे नहीं मालुम कि कोल्डस्टोरेज और ट्रेन से बाहर भेजने का क्या अर्थशास्त्र है। पर एक कैरियर के रूप में तो मैं चाहूंगा कि आगरा-अलीगढ़ बेल्ट से ३-४ और रेक रवाना हों! और अभी तो मालगाड़ी के रेक तो मांगते ही मिलने की अवस्था है - कोई वेटिंग टाइम नहीं!
घर पर आलू विषयक अपना काम मेरी अम्मा ने पूरा कर लिया है। आलू के चिप्स-पापड़ पर्याप्त बना लिये हैं। आपके यहां कैसी तैयारी रही?
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मेरे यहाँ भी चिप्स-पापड़ का स्टाक पूरा है !शुक्रिया !
ReplyDeleteहमें पता था, शीघ्र ही मानसिक हलचल के माध्यम से मालगाड़ियां और उन पर लदने वाला माल हाजिर होने वाला है। तो हाजिर हो ही गया। आलू के चिप्स बने हैं। दो-प्राणियों का परिवार है। मैं वजन बढ़ने के चक्कर में यदा-कदा ही उपयोग करता हूँ। आप आए तो सेवा में चिप्स जरुर हाजिर होंगे। वैसे भी आलू तो रसोई का बारहमासी आइटम है। सदैव उपलब्ध रहता है। बाहर कोई न कोई मौसमी सब्जी के साथ आलू की हाँक लगाता ही रहता है।
ReplyDeleteऔर अभी तो मालगाड़ी के रेक तो मांगते ही मिलने की अवस्था है - कोई वेटिंग टाइम नहीं!
ReplyDeleteमतलब ज्ञानजी के आते ही हालत में सुधार।
घर पर आलू विषयक अपना काम मेरी अम्मा ने पूरा कर लिया है।
तत्संबंधित प्रमाण प्रस्तुत किये जायें। फोटो-सोटो सहित।
जहाँ तक आलू के शीत भंडारण की बात है, उत्तर प्रदेश मे ये काफी मात्रा मे है, लेकिन परेशानी ये होती है कि फसल के स्थान और भंडारण मे काफी दूरिया है, फिर सरकार के पास भी कोई ठोस आंकड़े नही होते कि किस शीतालय मे कितनी मात्रा मे भंडारण योग्य स्थान बाकी है। कुल मिलाकर स्थिति अस्तव्यस्त है। एक और बात, शीतालय वाले आलू उत्पादकों किसानों को लोन देते है और इनसे औने पौने दामों मे आलू खरीदकर इनका शोषण भी करते है। यहाँ पर जरुरत है एक एजेन्सी की जो किसानो के हित मे काम करे और उन्हे उनके उत्पाद का उचित मूल्य दिलाए।
ReplyDeleteमुझे इतनी जानकारी इसलिए है कि मैने कानपुर मे ढेर सारे कोल्ड स्टोरेज वालो का साफ़्टवेयर डिजाइन किया था, इसलिए इस डोमेन की मेरे को बहुत अच्छी जानकारी है।
ज्ञानजी, किसी बौद्धिक प्रलाप के बजाय ऐसी ठोस व व्यावहारिक जानकारियां भी बड़ी काम की होती हैं। कृषि में असल में मार्केटिंग और रखरखाव तंत्र बहुत ज़रूरी हैं। इनके अभाव में हर साल हमारे देश में 50,000 करोड़ रुपए के फल और सब्जियां बरबाद हो जाती हैं। सरकार अगर किसानों को उसकी फसल का वाजिब दाम सही समय पर देना सुनिश्चित कर दे तो शायद कर्जमाफी जैसे कदमों की जरूरत नहीं रह जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं होता। अब देखिएगा, इस साल अगर आलू की बंपर फसल हुई तो किसान रोनेवाले हैं क्योंकि सप्लाई ज्यादा होने से उन्हें आलू के औने-पौने दाम ही मिलेंगे।
ReplyDeleteवैसे, आपकी पोस्ट से मुझे पता चल गया है कि एक मालगाड़ी की औसत क्षमता 2500 टन होती है। यह जानकारी मुझे लालू पर लेख लिखते वक्त चाहिए थी, मगर मिल नहीं पाई थी।
इन दिनो हमारे राज्य मे खराब आलू आ रहे है। आलू के पराठो का स्वाद खराब लग रहा है। यहाँ तक कि सब्जियो का बुरा स्वाद भी आलू के कारण हो रहा है। लगता है कही फसल फंगस के कारण खराब हुयी है। और खराब आलू की आपूर्ति अच्छे आलू के साथ हो रही है।
ReplyDeleteजैसे गर्मियो मे प्याज जेब मे रखने से लू नही लगती वैसे ही कहा जाता है कि एक छोटा आलू जेब मे रखने से गठिया दूर रहता है। पेंट की जेब मे। अब आपके पास तो पूरा वैगन है। ज्यादा फायदा होगा।
क्या हर बार वैगन को डिसइंफेक्ट करते है? कि वैगन भी रोग फैलाने मे मदद करते है?
पंकज अवधिया > क्या हर बार वैगन को डिसइंफेक्ट करते है?
ReplyDeleteयह तो लदान करने वाले की श्रद्धा पर है कि वह डिसैंफेक्ट करता है या यूं ही लदान करता है। हां वह वैगन को भौतिक क्षति नहीं पंहुचा सकता। लदान करने वाले को मूलभूत पैकिंग कण्डीशन संतुष्ट करनी होती हैं, जो टैरीफ में लिखी हैं।
ज्ञान दत्त जी काफी जानकारी मिल गई आलू और उसके भंडारण के बारे में । य़ह बी पता चला कि इस साल आलू की उपज काफी बढिया रही । लगे हाथ आपके पिछले दो पोस्ट भी पढ लिये । आपके किसानों की आत्म हत्याओं के लिये सुझाव कुछ जमा नही । कर्जा ले रखा है उन्होनें जिसे साहूकार और बैंक दोनो ही जबरन वसूल रहे हैं । परिवार हैं
ReplyDeleteकहाँ जायें वे आत्महत्त्या हल नही है समस्या का लेकिन बागने का रास्ता है । आप मरे जग डूबा ।
ज्ञानवर्धक रही यह पोस्ट!!
ReplyDeleteआलू विषयक कार्य निपट चुके!
मालूम तो चल ही गया है. चिप्स पापड़ की सप्लाई कहाँ से लेना है तो चिंता फ्री से हो गये हैं. :)
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