कल सवेरे नेट पर यह खबर देख कि कुलपति का घर ए.एम.यू. छात्रों ने जला दिया है; लगा कि अलीगढ़ अशान्त रहेगा. और हर अशान्ति में रेलवे के प्रति वक्रदृष्टि होना आशंकित होता है - सो मुझे कुछ अन्देशा था. अन्तत: दोपहर ढा़ई तीन बजे दोपहर तक स्पष्ट हो गया कि विश्वविद्यालय अनिश्चित काल के लिये बन्द कर दिया गया है और छात्र-छात्राओं से हॉस्टल खाली करने को कहा गया है. हमें इन्तजाम करना है कि जब छात्रों की भीड़ रेलवे स्टेशन पर अपने-अपने घरों को जाने के लिये आये तो हमारे पास उनके लिये ट्रेनों में जगह हो. उत्तर-मध्य रेलवे के हमारे महा प्रबंधक ने सभी विभागों को तुरंत आदेश दिये कि सारे जरूरी इन्तजाम किये जायें और अलीगढ़ स्टेशन पर कुछ अप्रिय न घटे.
पहला प्रश्न था कि कहां के हैं ये अधिकतर विद्यार्थी? स्थानीय प्रशासन ने बताया कि अधिकांश मध्य और पूर्वी उत्तरप्रदेश के हैं. आवश्यकता बताई गयी कि एक विशेष रेल गाड़ी अलीगढ़ से बरास्ते कानपुर-लखनऊ-शाहगंज वाराणसी के लिये चाहिये. रेलगाड़ी का इन्तजाम आधे घण्टे में तय कर लिया गया. हमने रेल डिब्बे दिल्ली और आगरा से चलाने का बन्दोबस्त कर लिया. आगरा से डिब्बे शाम सवा पांच बजे और नयी दिल्ली से शाम सात बजे रवाना हुये. रात नौ बजे हमारे नियन्त्रण कक्ष ने बताया कि छात्रों की भीड़ स्टेशन पर आ चुकी है/आ रही है. गाड़ी रात साढे़ दस - इग्यारह बजे चलनी है. सब व्यवस्थित है. इलाहाबाद के मण्डल रेल प्रबंधक ने अतिरिक्त अधिकारी/कर्मचारी अलीगढ़ में तैनात कर दिये हैं. अगर किसी अन्य स्थान के लिये भी जाने वाले छात्र अधिक हुये और चल रही सामान्य गाड़ियों में जगह कम पड़ी तो डिब्बों और शण्टिंग के लिये इंजन की व्यवस्था कर ली गयी है. यद्यपि इस मौसम में गाडि़यों में भीड़ कम है; और यातायात सामान्यत: उपलब्ध जगह में पूरा समा जाना चाहिये, पर हम छात्रों को किसी भी प्रकार से आक्रोशित होने का मौका नहीं देना चाहते.
पूरी तैयारी का जायजा ले मैं सोने जाता हूं - नियन्त्रण कक्ष को यह हिदायत के साथ कि थोडी़ सी भी जरूरत हो तो जगा दिया जाये.
आज सवेरे यह सूचना मिलती है कि वाराणसी के लिये एक स्पेशल ट्रेन रात बारह बजे के बाद रवाना हो सकी. अभी कानपुर निकल रही है. रेलवे और अलीगढ़ प्रशासन के अधिकारी देर रात तक इस स्पेशल ट्रेन की सकुशल रवानगी की व्यवस्था करते रहे. इस स्पेशल ट्रेन के अतिरिक्त सामान्य गाड़ियों में और अलीगढ़ में न रुकने वाली ३ गाड़ियों को रोक कर छात्रों को एडजस्ट किया गया. कुल मिला कर सभी व्यवस्था शान्ति पूर्ण रही. स्थानीय प्रशासन ने कम दूरी के छात्रों के लिये तो बसों का इन्तजाम किया था, पर लम्बी दूरी के लिये तो रेलवे पर ही भरोसा था. आज भी अगर कहीं के लिये विशेष ट्रैफ़िक जनरेट हुआ तो एक रेक अलीगढ़ मैं और इन्तजाम कर रख लिया गया है.
मैं यह ब्लॉग पर अनौपचारिक रूप से इसलिये लिख रहा हूं कि आप को यह ज्ञात हो सके कि रेलवे इस प्रकार के मुद्दों से कितनी सेन्सिटिव हो कर निपटने का प्रयास करती है.
दोपहर दो बजे, सितम्बर 18'07 : और अब दोपहार तीन बजे एक और स्पेशल गाड़ी छात्रों को अलीगढ़ से ले कर गया तक जायेगी.
ज्ञान में वृद्धि हुई ज्ञान भाई
ReplyDeleteऎसी स्थिति बनी क्यों? विश्वविद्यालय ने बनाई, या छात्रों ने? दिनकर जी १९६२ में एक कविता लिखी थी, 'एनार्की'. कविता के एक भाग में लिखा है;
ReplyDeleteऔर छात्र भी बड़े पुरजोर हैं.
कालिजों में सीखने को आए तोड़-फोड़ हैं
कहते हैं, पाप है समाज में,
धिक् हम पे! जो कभी पढ़ें इस राज में,
अभी पढ़ाने का क्या सवाल है?
अभी तो हमारा धर्म हड़ताल है.
१९६२ से लेकर अब तक कौन नहीं बदला, छात्र या फिर भारत?
सो तो आपने अच्छा ही आयोजन किया पर यह तो सोचिये की पढने वाला साधारण छात्र जाए कहाँ. आपकी विशेष गाड़ी उसे अलीगढ़ से तो निकाल ले जायेगी पर पहुँचायेगी कहाँ.
ReplyDeleteअब जरूरत तो ऎसी रेल गाड़ियों की है जो सामान्य विद्यार्थियों को उनकी मंज़िल तक पंहुचा सके. रूट समाज तय करे और गंतव्य भी. जैसे आपने उनकी यह छोटी सी यात्रा सुगम बना दी वैसे ही कोई तो उनकी मुख्य यात्रा को तो परिभाषित करे.
सच में धन्यवाद यह सब बताने के लिए, वरना मैं तो सोचता रहा हूं कि रेलवे में टीटीई और ट्रेन चलाने वालों के अलावा और लोग करते क्या हैं।
ReplyDeleteधन्यवाद इस जानकारी के लिए!
ReplyDeleteइसके लिए बधाई भी देनी चाहिए कि इंतज़ाम ऐसे रखे गए कि कोई रेलवे स्टेशन मे कोई घटना ना घटी!
सब तो ठीक है मैं तो इस बात पर खुश हूँ कि न पूरी गाड़ी सही एक दो बर्थ का इंतजाम तो बन ही जाएगा अगर कभी अपने इलाहाबाद में गाड़ी फंसी तो।
ReplyDeleteक्यों ज्ञान भाई मैं सही सोच रहा हूँ न।
यह बहुत अच्छा किया, छात्रों को बिना असुविधा के वापस जाने का शंट रूट दे दिया, या फिर यूँ कहें कि हीट सिंक की व्यवस्था कर दी।
ReplyDelete@ संजय कुमार - उनकी मुख्य यात्रा तो ईश्वर ने ही परिभाषित नहीं की शायद. :)
ReplyDelete@ आलोक - आपके अनुसार तो टीटीई ही काम करते हैं. बाकी घास खोदते हैं! :)
@ बोधिसत्व - आप सोचते रहें. :) सोचने में हर्जा नहीं. आलोक पुराणिक भी ऐसा काफी सोचते रहे हैं! :)
@ राजीव - जी हां. यह पूरी कवायद ही हीट सिंक की है. दिक्कत यह है कि हीट सोर्स को कोई रेग्यूलेट नहीं करता!
अच्छा लिखा है,धन्यवाद इस ज्ञान के लिए!
ReplyDeleteये हुआ न 'रेल काका' का असली चिठ्ठा। ऐसे ही लिखते रहे। स्थानीय मीडीया तो कभी भारतीय रेल के इन पक्षो के विषय मे कभी नही बतायेगा।
ReplyDeleteरेल्वे इतनी गहराई में जाकर सोचता है और इतनी सजग कार्य प्रणाली है, यह आज आपके माध्यम से पहली बार जाना. हमने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि रेल्वे की फंक्शनिंग ऐसी है. बहुत आभार अवगत कराने के लिये.
ReplyDeleteआपका साधुवाद. यही सही अर्थों में ब्लॉगिंग है.