बाबा तुलसीदास की भलमनसाहत. महानतम कवि और ऐसी विनय पूर्ण उक्ति. बाबा ने कितनी सहजता से मानस और अन्य रचनायें लिखी होंगी. ठोस और प्रचुर मात्रा में. मुझे तो हनुमानचालिसा की पैरोडी भी लिखनी हो तो मुंह से फेचकुर निकल आये. इसलिये मैं यत्र-तत्र लिखता रहता हूं कि मुझे कविता की समझ नहीं है. कविता उतनी ही की है जितनी एक किशोर बचकानी उम्र में बचकानी सी लड़की पर बचकाने तरीके से इम्प्रेशन झाड़ने को कुछ पंक्तियां घसीट देता है और फिर जिन्दगी भर यह मलाल रखता है कि वह उस लड़की को सुना/पढ़ा क्यों नहीं पाया.
पर मित्रों, हिन्दी में मकई के भुट्टे की तरह फुट्ट-फुट्ट कवि बनते हैं. बेचारे पंकज सुबीर जी लोगों की कविता की थ्योरी की क्लास ले रहे हैं. एक बार तो निराश हो गये थे कि कोई विद्यार्थी आता ही नही. फ़िर शायद शर्मा-शर्मी आने लगे. उसके बाद उनके प्रवचन दिख जाते हैं; जिनकी फीड मैं अवलोकन कर लेता हूं. उनका प्रवचन तो मेरे लिये आउट-ऑफ-कोर्स है. पर लगता नहीं कि लोगों को क्लास की ज्यादा जरूरत है. तुकान्त-अतुकान्त कवितायें दनादन लिखी जा रही है. कविता की पोस्टें बनाना शायद आसान होता हो. पर उनमें ही कट-पेस्ट और हड़पने की शिकायतें ज्यादा होती हैं.
कुछ लिख्खाड़ कविता वाले हैं – प्रियंकर जी के अनहद नाद पर आप लिबर्टी नहीं ले सकते. बासुती जी भी जो लिखती हैं; उसे पढ़ कर सोचना पड़ता है. कई बार यह सोचना इतना ज्यादा हो जाता है कि कमेण्टियाने के धर्म का पालन नहीं होता. हरिहर झा जी को भी मैं सीरियसली लेता हूं. बसंत आर्य यदा-कदा ठहाका लगा लेते हैं. पर्यावरण पर दर्द हिन्दुस्तानी सार्थक कविता करते हैं.
कई बार यह लगता है कि हम जो समझ कर टिप्पणी करने की सोच रहे हैं, लिखने वाले का आशय वही है या कुछ और? गद्य में तो ऐसा कन्फूजन केवल इक्का-दुक्का लोगों – लेड बाई अज़दक – के साथ होता है. पर कविता में ऐसे बहुत हैं.
लेकिन यह जो सवेरे सवेरे रोज लिखने/पोस्ट करने का नियम बना लिया है; जिसमें देर होने पर पुराणिक ई-मेल कर स्वास्थ्य का हाल पूछने लगते हैं, अभय शराफत से हलचल एक्स्प्रेस की समयपालनता पर उंगली उठते हैं, फ़ुरसतिया दफ़्तर जा कर फोन कर राउण्ड-अबाउट तरीके से टटोलते हैं कि ब्लॉगिंग में बना हुआ हूं या खोमचा उखाड़ लिया है और पंगेबाज अखबार देर से आने पर अखबार बदलने की धमकी देते हैं; उसके कारण मुझे लगता है कि जल्दी ही मुझे भी कविता लिखना और उसे ब्लॉग-पोस्ट पर झोंकना सीखना होगा. आखिर कितने दिन २००-४०० शब्द का गद्य लिखा जा सकेगा. फेटीग (fatigue) हो रहा है. मित्रों अगर टिप्पणियों में आपने मुझे पर्याप्त हतोत्साहित नहीं किया कविता झोंकने से; तो मैं पेट-दर्द करने वाली कवितायें रचने और झोंकने का मन बना रहा हूं. तैयार हो जायें!1
कबि न होहुं नहिं चतुर कहाऊं; मति अनुरूप काव्य झिलवाऊं.
1. इसे मात्र हथकण्डा माना जाये. इससे अधिक मानना आपके अपने रिस्क पर है!
भाई साहब कवि तो आप है ही. अलग बात की कविता गद्य मे करते है. और कईयो से बेहतर ही करते है
ReplyDeleteठीक है हम इसे हथकंडा मानते हैं आपके कहने पर. मगर इस पूरी पोस्ट में कविता की बात होने के बावजूद हमारी बात नहीं है इसलिये हथकंडे के उपर एक बूँद नहीं मानेंगे और न ही कुछ कहेंगे.
ReplyDeleteहम अपने आपको उसी जमात में महसूस कर रहे हैं जिसमें आप घूसने की धमकी दे रहे हैं. :( (ऐन्टी स्माईली)
आन योर मार्क...
ReplyDeleteसेट...
गो.......................
ज्ञानदत्तजी, लीजिये हम तैयार हैं आपकी कविता सुनने के लिये :-)
वैसे आपकी चौपाईयाँ पढकर तो लगता है कि आपमें कविता लिखने का काफ़ी पोटेन्शियल है ।
इन्तजार रहेगा,
मेरा तो विनम्र निवेदन यही है कि और कुछ भी कर लीजिए, कविताएं मत झोंकिए।
ReplyDeleteरोज़ सुबह उठ कर जो बात दिमाग में हो उस पर लिख दीजिये.. अब जब आपने इस चिंता को पोस्ट बना दिया.. और लोग का जुड़ाव बना हुआ है.. तो डर काहे का..
ReplyDeleteलोगों को आप की विचार प्रक्रिया की सुगमता में रुचि है.. विषय तो बदलता ही रहता है.. उसकी आप चिंता न करें..
कुछ कविताएं सुनिये
ReplyDeleteतुम रेलगाड़ी, छुक छुक
रुकी चली लुक लुक
चिड़िया पहाड़
नदी झाड़
बीबी की लताड़
चीर फाड़, तु्म्हे देखकर ऐसा लगता है कि मैं जैसे हवा में उड़ता कबूतर हूं
फूं फूं फूं क्यूं क्यूं क्यूं
कविता दो
तरतरतजहजह ै90हडा
रतचकरचत हड08हा ॉो
करतर9803तकरटचो
चतरचतरृ0ा कसम.टो
डदहजा टो ृा
नोट-यह कविता स्वाहिली भाषा में है
कविता तीन
सड़क ना भड़क
चाय कड़क
सुड़क सुड़क
-------------
्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र
होऊ होऊ होू
नोट-कल की पोस्ट में इन कविताओं की व्याख्या करें, व्याख्या ठीक रही, तो आपको बतौर इनाम पांच और ऐसी कविताएं दी जायेंगी।
आपने बाबा तुलसीदास जी की बात करके कविता की बात कही. मैं तो कहता हूँ की आप कविता लिखिए.
ReplyDeleteआगे यही कहना है की महत्वपूर्ण मुद्दों पर आप माईक्रो पोस्ट न लिखा करें. २५० शब्दों में ब्लॉग पोस्ट लिखने की अपनी बात पर अड़े रहते हैं. वैसे ये बात मुझ जैसे टिप्पणीकार को टिप्पणी के नाम पर पोस्ट ठेलने में मदद करती है....इसलिए ये कविता छोड़ रहा हूँ. मुझे कवि का नाम याद नहीं. याद है तो सिर्फ़ इतना की ये कविता मैंने १९८८ में टीवी पर एक कवि सम्मेलन में सूनी थी....
तुलसी अगर आज तुम होते
देख हमारी काव्य-साधना
बाबा तुम सिर धुनकर रोते
तुलसी अगर आज तुम होते
तुमने छंदों के चक्कर में
बहुत समय बेकार कर दिया
हमने सबसे पहले
छंदों का ही बेड़ा पार कर दिया
हम तो प्रगतिशील कवि हैं
हम क्यों रहें छंदों को ढोते
तुलसी अगर आज तुम होते.....
बाबा तुमपर मैटर कम था
जपी सिर्फ़ राम की माला
हमने तो गोबडौले से ले
एटम बम तक पर लिख डाला
हमें नहीं है कमी विषयों की
जो मिलता उसपर लिख देते
तुलसी अगर आज तुम होते......
तुम थे राजतंत्र के पोषक
हम पक्के समाजवादी हैं
तुम्हें भांग तक के लाले थे
हम तो बोतल के आदी हैं
तुम थे सरस्वती के सेवक
हम हैं सरस्वती के पोते
तुलसी अगर आज तुम होते......
तुमने इतना वर्क किया पर;
बोले जितना मनी कमाया
अपनी प्रियरत्ना का किसी;
बैंक में खाता भी खुलवाया
हमने कवि-सम्मेलन से
खोटी बनवा ली क्या कहने हैं
और हमारी रत्नावली भी
सोने के तगडी पहने है
हम तो मोती बीन रहे
सागर में लगा-लगा कर गोते
तुलसी अगर आज तुम होते......
लेकिन एक बात में बाबा
निकल गए तुम हमसे ज्यादा
आज चार सौ साल बाद भी
तुम हिन्दी के शाश्वत थागा
आज चार सौर साल बाद भी
गूँज रहा है नाम तुम्हारा
और हमारे बाद चार दिन भी
न चलेगा नाम हमारा
हम तो वही फसल काटेंगे
जो रहे सदा जीवन भर बोते
तुलसी अगर आज तुम होते
देख हमारी काव्य-साधना
बाबा तुम सिर धुनकर रोते
तुलसी अगर आज तुम होते.....
भगवान से बस यही प्रार्थना है कि वह आपको इस फ़ितूर से बचाए। :)
ReplyDeleteपहले ये बताये की किस पोस्ट पर टिपियाना है..तुलसी कविता पर या ज्ञान जी की कविता लिखने की अभिलाषा पर या आलोक जी की कविता पर,..? बात साफ़ करे तभी टिपियाना हो सकेगा..ये गलत बात है की आप तीन तीन लोग एक ही ब्लोग मे एक पोस्ट मे तीन पोस्ट ठेल रहे है...:)
ReplyDeleteगुरुवर, शहर में कर्फ्यू लगना था, लगा. यूनिवर्सिटी में बलवा होना था, हुआ. कौन हमारे रोकने से रुक गया. आप कविता का भी सृजन इत्यादि करें. हिंदुस्तानी आदमी की सहन शक्ति पर भरोसा रखें.
ReplyDeleteवीर रस के कवि आजकल हल्के के सिपाही की शान में कसीदे पढ़ रहे हैं. हास्य रस के कवि गम में हैं की stand up कॉमेडियन क्यों न बन गए. आप भी किसी रस में specialise कर डालिये. कविता वगैरा तो बाई दा वे होती ही रहेगी. कविता पकड़ने से पहले मुद्दा पकरिये. आजकल मुद्दा कविता से ज्यादा जरूरी है.
आशा है आप मर्म को समझेंगे और कविता भी लिखेंगे. आलोचक तो तैयार ही हैं.
ह्म्म, तो आप कविताएं लिख कर आलोच्य होने का सुख भी लेना चाहते हैं, सही है सही है।
ReplyDeleteवैसे आप लि्खो तो सही, देखें कि कइसन काव्य लिखते हो आप!!
आप कुछ भी लिखेंगे हिट रहेगा। क्योंकि देवि सरस्वती आप पर मेहरबान हैं। कविता छापें और कवियों का दिल जलाएँ।
ReplyDeleteआप कहां तक मन पर अंकुश रखेंगे? शुरू करिये जो होगा देखा जायेगा।
ReplyDeleteभई ज्ञान जी हम तो ये कहते हैं चाहें तो कविताएं ही झोंक डालिए
ReplyDeleteमगर गानों की दुनिया में आ जाईये
मज़ा आ जायेगा ।
आप कहते हैं कि गानों से आपका ज्यादा जुड़ाव नहीं रहा है ।
एक बार घुस जाईये इस दुनिया में फिर चिंता नहीं ।
रोज़ एक नया गाना । रोज़ एक नई बात ।
कैसा रहेगा ।
मैं अरूण जी की बात से सहमत हूँ । किस किस पर टिप्पणी करें ? एक लेख की आशा में क्लिक किया था और तीन तीन रचनाएँ झेलनी पड़ी ।
ReplyDeleteये अच्छी बात नहीं है ।
हमारा नाम लिखने के लिए बहुत धन्यवाद । आजकल हम भी गधा, नहीं नहीं गद्य लिख रहे हैं । फिर आप कविता क्यों नहीं कर सकते ?
घुघूती बासूती
युनुस जी से सहमत हूँ। ऐसी कविता लिखे जिसे गुनगुनाया जा सके सस्वर।
ReplyDeleteएक और सुझाव। ब्लाग का नाम मानसिक हलचल की बजाय ज्ञान जी की चौपाल कर दे। रोज यहाँ इतने लोगो से मिलना जो हो जाता है।
ज्ञान जी आप चाहे गध लिखें या पध, अपना फ़्लेवर मत छोड़िगा। कविता की दुनिया में आप का स्वागत है।
ReplyDeleteदत्त जी
ReplyDeleteतुलसी ने लिखा और लाखों उस पर टीका व्याख्या करते आ रहे हैं । आप जो लिख रहे है उस पर हर रोज़ टिप्पणी बरस रही हैं। कविता पर श्रोता की तलियां सुनने की ख्वाहिश .... ब्लोग पर कैसे पूरी होगी... कविता पर तो दाद ताली से ही होगी ...टिप्पणी ... कविता पर . मज़ा नही देगी। आपका पाठकों को गुदगुदाना हर ढंग मे जारी रहे बस..
महेंद्र