Tuesday, September 11, 2007

आदमी


दफ्तरों में समय मारते आदमी
चाय उदर में सतत डालते आदमी

अच्छे और बुरे को झेलते आदमी
बेवजह जिन्दगी खेलते आदमी

गांव में आदमी शहर में आदमी
इधर भी आदमी, उधर भी आदमी

निरीह, भावुक, मगन जा रहे आदमी
मन में आशा लगन ला रहे आदमी

खीझ, गुस्सा, कुढ़न हर कदम आदमी
अड़ रहे आदमी, बढ़ रहे आदमी

हों रती या यती, हैं मगर आदमी
यूंही करते गुजर और बसर आदमी

आप मानो न मानो उन्हें आदमी
वे तो जैसे हैं, तैसे बने आदमी

सवेरे तीन बजे से जगा रखा है मथुरा के पास, मथुरा-आगरा खण्ड पर, एक मालग़ाड़ी के दो वैगन पटरी से खिसक जाने ने. पहले थी नींद-झल्लाहट और फिर निकली इन्स्टैण्ट कॉफी की तरह उक्त इंस्टैण्ट कविता. जब हम दर्जनों गाड़ियों का कतार में अटकना झेल रहे हैं, आप कविता झेलें. वैसे, जब आप कविता झेलेंगे, तब तक रेल यातायात सामान्य हो चुका होना चाहिये.

पुन: बेनाम टिप्पणी में सम्भवत: चित्र पर आपत्ति थी. मैने स्वयम बना कर चित्र बदल दिया है.

13 comments:

  1. चलिए भारतीय रेल का शुक्रिया कि आपने वाकई कविता करने लगे.

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  2. ज्ञान जी अच्छी2 रचना है । आदमी परेशानियों के बीच भी रच लेता है यही तो अनोखी बात है ।
    बहरहाल आप इस लिंक को सुनें आनंद आयेगा । इस प्ले लिस्टे में जो छठा गीत है उसे जगजीत और लता जी ने गाया है । जल्दीं ही इसे हम अपने ब्लॉाग पर चढ़ायेंगे । फिलहाल यहीं सुनिए
    http://72.14.235.104/search?q=cache:ZNtgT6vAU-AJ:music.pz10.com/album/3152/Sajda-Jagjit%2520Singh.html+har+taraf+har+jagah+beshumar+aadmi&hl=en&ct=clnk&cd=20

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  3. मालगाडी के पंगे झेल गया जो आदमी
    अब सोने के जुगाड मे पडा जो आदमी
    झिला गया सबको अपनी तमन्ना आदमी
    अब मोडरेट करे कौन,सो रहा वो आदमी..:)

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  4. कवि बनते आदमी, कुछ रवि बनते आदमी
    राग वाले आदमी, कुछ झाग वाले आदमी

    ब्लॉग लिखते आदमी, कमेन्ट करते आदमी
    लोगों से समबंधों को 'सीमेंट' करते आदमी

    आदमी से आदमी की बातें करते आदमी
    आदमी के पीठ पीछे घातें करते आदमी

    आदमी की फितरतों को झेल जाते आदमी
    आदमी की भावना से खेल जाते आदमी

    भैया,

    मुबारक हो, आप कवि बन गए.:)

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  5. @ बसंत आर्य - जी, बहुत धन्यवाद. यह तो मजबूरी में लिखी कविता है. गीता की भाषा में कहें तो घोर कर्म!

    @ यूनुस - शाम को सुन पाऊंगा. अभी दफ्तर चलूं.

    @ पंगेबाज अरुण - कर तो दिया फटाक से मॉडरेट! काहे हल्ला मचाया?
    @ शिव - कमेण्ट जब ओरीजनल कविता से बेहतर हो तो समझ जाना चाहिये कि कविता करना बेकार है. मैं यह समझ गया! :)

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  6. रसधारा कविता की बह निकलती है.
    जब आधी नींद से जगे आदमी.
    सारे जमाने को आजमा लिया.
    अब मिलता कहाँ है कोई आदमी.
    जानवरों के बीच यह फैसला हुआ.
    हमको बनना नहीं कभी आदमी.

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  7. ये आपने बढ़िया किया जो कवितागिरी भी करने लगे। लोगों को पता चलना चाहिये कि किसी से किसी बात में कम नहीं हैं।

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  8. भई बधाई एक साथ चित्रकार और कवि होने के लिए
    -कवित्त हमारे भी सुनिये
    पोस्ट पे पोस्ट पेलते आदमी
    पोस्ट पे पोस्ट झेलते आदमी
    जगह नहीं कहीं जरा सी भी
    एक दूसरे को ठेलते आदमी

    पटरी से गाड़ी उतारते आदमी
    पटरी पे गाड़ी चढ़ाते आदमी
    रात में उल्लुओं की भांति
    जागते, काफी मारते आदमी

    किचर किचर किचियाते आदमी
    टिपर टिपर टिपियाते आदमी
    मरना है एक दिन सबको

    फिर भी रिश्वत खाते आदमी
    वाह वाह क्या कविता है
    जी तारीफ के मामले में दूसरों का भरोसा नहीं करना चाहिए, हर मामले की तरह इसमें भी आत्मनिर्भर होना चाहिए। सो मैं तो हो लिया।

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  9. अच्छी कविता बन गई है। बधाई।

    जिस तर्ज पर पाठक इसे आगे बढा रहे है उससे लगता है कि ये दुनिया की सबसे लम्बी कविता बन जायेगी वो भी इतने लोगो के सन्युक्त प्रयासो से।

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  10. हमने खुक खुक करती लड़की पहले पढ़ी और इस आदमी पर बाद में आये। इसे पढ कर ज्यादा अच्छा लगा, जादुइ कविता है, सबको कवि बना गयी । कविता सिखाने की क्लास होती हो तो आप की कविता कोर्स में जरुर डाल देनी चाहिए। अब हम कैसे पीछे रह सकते हैं, आप की कविता हमें अपनी एक पुरानी कविता की याद दिला गयी, सुना देते हैं, हो सके तो झेल लिजिएगा
    बातें
    बातें बातें बातें,
    इधर उधर की बातें,
    घर में बातें,नुक्‍कड़ पर बातें,
    गहरी बातें, कोरी बातें,
    चुभती बातें,हंसाती बातें,
    उलहानी बातें, ठठाती बातें,
    बोली अनबोली बातें,
    भूली बिसरी बातें,
    अकेले में मुस्‍कान जगाती बातें,
    रेडीयो टीवी की इक तरफ़ा बातें,
    उफ़न पड़ने को मन में धुमड़ती हजारों बातें,
    बस में बातें, ट्रेन में बातें,
    पाखानो में भी मोबाइल पर बातें,
    तकियों के नीचे दुबके मोबाइल
    खामोश कंपन से,
    मिसड कॉल की बातें,
    चलते लेक्‍चर में स म स से बातें,
    दोनों कानों पर चिपके एक नहीं दो दो मोबाइल,
    मुहँ भी दो होते काश की बातें,
    खामोश मोबाइल और स‍फ़ेद स्‍याह कंपुटर,
    टकटकी लगाये प्‍यासी आखें,
    मौत सा सन्‍नाटा है,
    बजती घंटी,चमकती हरी बत्‍ती,
    खनकती हंसी,
    हर सासँ की तार हैं बातें,
    कितना कुछ़ है कह जाने को
    k‍या तुम सुनोगे मेरी बातें

    बातें
    बातें बातें बातें,
    इधर उधर की बातें,
    घर में बातें,नुक्‍कड़ पर बातें,
    गहरी बातें, कोरी बातें,
    चुभती बातें,हंसाती बातें,
    उलहानी बातें, ठठाती बातें,
    बोली अनबोली बातें,
    भूली बिसरी बातें,
    अकेले में मुस्‍कान जगाती बातें,
    रेडीयो टीवी की इक तरफ़ा बातें,
    उफ़न पड़ने को मन में धुमड़ती हजारों बातें,
    बस में बातें, ट्रेन में बातें,
    पाखानो में भी मोबाइल पर बातें,
    तकियों के नीचे दुबके मोबाइल
    खामोश कंपन से,
    मिसड कॉल की बातें,
    चलते लेक्‍चर में स म स से बातें,
    दोनों कानों पर चिपके एक नहीं दो दो मोबाइल,
    मुहँ भी दो होते काश की बातें,
    खामोश मोबाइल और स‍फ़ेद स्‍याह कंपुटर,
    टकटकी लगाये प्‍यासी आखें,
    मौत सा सन्‍नाटा है,
    बजती घंटी,चमकती हरी बत्‍ती,
    खनकती हंसी,
    हर सासँ की तार हैं बातें,
    कितना कुछ़ है कह जाने को
    k‍या तुम सुनोगे मेरी बातें

    बातें
    बातें बातें बातें,
    इधर उधर की बातें,
    घर में बातें,नुक्‍कड़ पर बातें,
    गहरी बातें, कोरी बातें,
    चुभती बातें,हंसाती बातें,
    उलहानी बातें, ठठाती बातें,
    बोली अनबोली बातें,
    भूली बिसरी बातें,
    अकेले में मुस्‍कान जगाती बातें,
    रेडीयो टीवी की इक तरफ़ा बातें,
    उफ़न पड़ने को मन में धुमड़ती हजारों बातें,
    बस में बातें, ट्रेन में बातें,
    पाखानो में भी मोबाइल पर बातें,
    तकियों के नीचे दुबके मोबाइल
    खामोश कंपन से,
    मिसड कॉल की बातें,
    चलते लेक्‍चर में स म स से बातें,
    दोनों कानों पर चिपके एक नहीं दो दो मोबाइल,
    मुहँ भी दो होते काश की बातें,
    खामोश मोबाइल और स‍फ़ेद स्‍याह कंपुटर,
    टकटकी लगाये प्‍यासी आखें,
    मौत सा सन्‍नाटा है,
    बजती घंटी,चमकती हरी बत्‍ती,
    खनकती हंसी,
    हर सासँ की तार हैं बातें,
    कितना कुछ़ है कह जाने को
    k‍या तुम सुनोगे मेरी बातें

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  11. मजबूरी में फंस चुका है, जीता मरता आदमी.
    संबंधों की लाज रखने, टिप्पणी करता आदमी.

    --अच्छा है जब हम नहीं सो पा रहे तो किसी को क्यूँ चैन से सोने दें वाली फिलास्फी भी ठीक ही है, भाई साहब!!

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  12. मै भी था आदमी
    तुम भी थे आदमी
    वो भी था आदमी
    यह भी था आदमी
    हम भी थे आदमी
    आदमी से आदमी
    आदमी को आदमी
    आदमी आदमी आदमी
    आदमी आदमी आदमी

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  13. कवि बनते आदमी, कुछ रवि बनते आदमी
    राग वाले आदमी, कुछ झाग वाले आदमी

    ब्लॉग लिखते आदमी, कमेन्ट करते आदमी
    लोगों से समबंधों को 'सीमेंट' करते आदमी

    आदमी से आदमी की बातें करते आदमी
    आदमी के पीठ पीछे घातें करते आदमी

    आदमी की फितरतों को झेल जाते आदमी
    आदमी की भावना से खेल जाते आदमी

    भैया,

    मुबारक हो, आप कवि बन गए.:)

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय