आज मेरे यहां ब्रॉडबैण्ड कनेक्शन नहीं आ रहा है. मेरे पास दो लैण्ड लाइन फ़ोन हैं और दोनो पर इण्टरनेट सुविधा है. इसके अतिरिक्त बीएसएनएल की मोबाइल सुविधा पर जीपीआरएस के जरीये भी इण्टरनेट मिल जाता है. आजभोर वेला से ये तीनों नहीं काम कर रहे. अभी शाम के समय यह इण्टरनेट धीरे-धीरे प्रारम्भ हुआ है. लिहाजा दर्ज करने को आज और कल (रविवार) के नाम से यह पोस्ट प्रस्तुत कर देता हूं - अरुण और आलोक जी कृपया इसे मान लें. अब मैं पब्लिश बटन दबाता हूं; इससे पहले कि इण्टरनेट पुन: दगा दे जाये!
स्वतंत्रता के बाद नेहरूजी1 प्रधान मंत्री बने और फलाने जी उनकी काबीना में मंत्री थे. उनको ले कर एक चुटकला रेल के सम्बन्ध में सुनने में आता है. नेहरूजी रेलवे के सैलून में यात्रा कर रहे थे. फलाने जी उनके साथ थे. नेहरू जी ने पूछा – “कौन सा स्टेशन जा रहा है?” फलाने जी ने पर्दा उठा कर देखा और कहा – कोई कापासिटी है. कुछ दूर और चलने के बाद नेहरू जी ने फिर वही सवाल किया. फलाने जी ने फिर बाहर झांका और कहा – “जी, यह भी कापासिटी है!”
झल्लाये नेहरू जी ने खुद देखा तो मुस्कुराये बिना नहीं रह सके – फलाने जी बार-बार पानी की टंकी पर पढ़ते थे, जो हर स्टेशन पर होती है और जिसपर लिखा होता है –
Capacity
***** liters
यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि फलाने जी नेहरू जी की काबीना में ज्यादा समय नहीं चल पाये!
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ऐसा ही चुटकला मुझे रीडर्स डाइजेस्ट में फिलर के रूप में पढ़ने को मिला (और इसी ने मुझे ऊपर वाला चुटकला लिखने को प्रेरित किया) –
दो अंग्रेज जर्मनी में कोलन शहर में खो गये. उन्होने अपनी किराये की कार Einbahnstrasse नामक गली में पार्क की थी. पर जब वे कार पर पंहुचने के लिये जाने लगे तो देखा कि हर गली Einbahnstrasse गली थी. न्यू यार्क पोस्ट के अनुसार उन्होने पुलीस वाले को रोक कर सहायता मांगी. और तब उन्हें जर्मन भाषा में एक सबक मिला – पुलीस वाले ने बताया कि Einbahnstrasse का मतलब होता है “वन-वे स्ट्रीट”. हर गली वन-वे स्ट्रीट थी! रीडर्स डाइजेस्ट में यह नहीं बताया गया कि उन दो वीरों को उनकी कार कैसे मिली! :-)
1. पण्डित नेहरू मेरे आदर्श नहीं हैं. पर उनकी "भारत एक खोज" मुझे बहुत अच्छी पुस्तक लगती है. मन होता है कि यह हिन्दी में नेट पर उपलब्ध हो. यह अलग बात है कि मन तो बहुत सी चीजों का होता है!
चलिये जी शाम कॊ ही सही दुकान तो खुली,आप भी वर्डप्रेस पर आ जाईये ..छोडिये इन विज्ञापनो का मोह..फ़िर चाहे कभी लिखिये पोस्ट सुबह चार बजे अपन आप ब्लोग पर होगी..:)शिकायते खत्म..
ReplyDeleteभई भौंत गंत बात है जे तो।
ReplyDeleteहम तो समझै रहै थे कि आपके आने के आप की एफीशियेंसी च पंक्चुअलटी का लेवल भारतीय रेलव पे जायेगा, पर यो तो उंटा सा होण लाग रा है। आप तो खुदै ही रेलवे के शैड्यूल पे जा रै हो।
गंत बात है।
देखिए जिनका आपको डर था वो दोनों तो मानो कलम तैयार कर के बैठे थे, इधर शाम को लेख आया उधर कमेंट भी आ गये। वैसे भारत एक खोज नेट पर डालने का काम आप खुद कर लें और भी अच्छा, मदद चाहें तो मदद हाजिर है।
ReplyDeleteइससे कुछ मिलता जुलता किस्सा, अनुराग जी द्वारा
ReplyDeletehttp://pagdandi1.blogspot.com/2006/11/el-ningun-fumar.html
मज़ेदार है!