पानी कम हो रहा है। कम गंगा में। उभर रहे हैं द्वीप। तट पर कटान करने वाली गंगा अब उथली होती जा रही हैं। माने पोखरा की माफिक!
जैसे पोखरा में भैंसे हिलकर बैठती और मड़ियाती हैं, वही दृष्य था। सेम टु सेम। अन्तर इतना भर कि उनके आस पास का जल रुका नहीं, मन्थर गति से बह रहा था। भैंसें सांस छोड़ रही थीं तो आवाज आ रही थी। दूर फाफामऊ के पुल पर पसीजर गाड़ी के जाने और सीटी की आवाज भी थी।
अब बन्धुओं, हाईली इण्टेलेक्चुअल गद्य-पद्य लेखन के बीच यह भैंस-पुराण क्या शोभा देता है?! पर क्या करें अपने पास यही मसाला है।
बचपन में जब कविता ट्राई करी थी, तब भी ऐसा ही कुछ लिखा था – बीच तैरता भैंसों का दल, गंगा के नयनों में काजल। तब गंगा स्वच्छ थीं। धवल। उसमें भैंसें काजल सी सजी लगती थीं। अब तो पीले-ललछरहों पानी में ऐसा लगता है मानो कुपोषित नारी ने जबरी काजल ढेपार लिया हो।
खैर एक उच्छवास के साथ यह वीडियो प्रस्तुत कर रहा हूं – गंगा में हिलती-बैठी-मड़ियाती भैंसों के।
भेंस नयनो का काजल! सही है सुन्दरता देखने वाले की आँखों में होती है. :)
ReplyDeleteमैली गंगा की तुलना कुपोषित नारी से करना कमाल लगा.
अब तो पीले-ललछरहों पानी में ऐसा लगता है मानो कुपोषित नारी ने जबरी काजल ढेपार लिया हो...
ReplyDeleteवाह,इस लेखनी पर बलि जाऊ क्या लिखतें है,
अरे भैस पुराण भी आज कौन लिख पा रहा है.
पोस्ट संजीदा है और गंगा दुर्दशा पर आगाह कर रही है,
एक उच्छवास के साथ मैं भी कह रहा हूँ ,काश पढ़ें -सुने -देखे गंगा संघर्ष समिति वाले तो श्रम सार्थक बने.
बहुत बढ़िया पोस्ट..बढ़िया वीडियो...सच है गंगा माई का पानी देख मन दुखी होता है..पर कहते हैं ना ...उम्मीद पर दुनिया कायम है...शायद कुछ अच्छा हो जाए...
ReplyDeleteओह गंगा माई
ReplyDeleteभैस भी श्रंगार की उपमा हो सकती है जानकर सुखद अनुभव हुआ . आज से अपनी भैस भी मुझे सुन्दर लगनी लगी .
ReplyDeleteआपके बचपन से अब तक भैसों और भैंसनुमा मड़ियाते हुये मानुषों ने गंगा की यह स्थिति कर डाली । गंगा अब न धवल रही और न प्रबल ।
ReplyDeleteसब ठौर यही हालत है। गंगा अभी बह तो रही है चाहे मंथर ही सही। बहुत नदियाँ तो सूख गई हैं। बस बीच बीच में पोखर ही बचे हैं।
ReplyDeleteभैस जी भी गंगा स्नान कर आई ओर अपने अगले जन्म को सु्धार लिया, तभी तो लम्बी सांसे ले रही है
ReplyDeleteवाकई भैंस पानी में जा रही
ReplyDeleteदेखिये कैसे गंगा में पगुरा रही
दुसरे वाले विडियो में तो फिर भी फ्लो दिखा. पोस्ट टाइटल देखकर मुझे इस फ्लो की उम्मीद नहीं बची थी...
ReplyDeleteदूसरे विडियो का इस्तेमाल च्युंगम कंपनी वाले विज्ञापन के लिये बखूबी कर सकते हैं-
ReplyDeleteभैंस चबाये च्युंगम
मिटाए अपने सारे गम
टिंग टोंग :)
कम से कम भैंसे तो नहा हीं पाती है गंगा में ।
ReplyDelete.
ReplyDelete.
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भैंसें सांस छोड़ रही थीं तो आवाज आ रही थी। दूर फाफामऊ के पुल पर पसीजर गाड़ी के जाने और सीटी की आवाज भी थी।
बीच तैरता भैंसों का दल,
गंगा के नयनों में काजल।
अब बन्धुओं, हाईली इण्टेलेक्चुअल गद्य-पद्य लेखन के बीच यह भैंस-पुराण क्या शोभा देता है?!
पर क्या करें अपने पास यही मसाला है।
और हमें यह मसाला पसंद है !
होली मुबारक,
आभार!
शुक्र है मनुष्य की करतूतों के बावजूद भी अभी तक गंगा बह रही है वरना मनुष्य ने तो इसके अस्तित्व को मिटाने का पूरा प्रबंध कर ही दिया है |
ReplyDeleteकुछ साल पहले बड़े उल्लास के साथ हरिद्वार गये थे जिन्दगी में पहली बार गंगा को देखने। उसके पहले तो सिर्फ़ फ़िल्मों में देखा था। वहां भी गंगा का यही हाल था जो आप दिखा रहे हैं बल्कि वहां तो पानी इससे भी कम था। उदास मन से लौट आये थे।
ReplyDeleteBoss, aapki tab ki kavita ko aaj ke yatharth me dekhein to ekdam sahi hai.....
ReplyDeleteganga naam jab bhi sunta ya padhta hu to mujhe, bhupen hajarika jee ka gaya hua yah geet yaad aa jata hai,
" Vistar hai apar praja dono par kare hahakar nishabdha sada
O Ganga tum O Ganga baheti ho kyun?
Vistar hai apar praja dono par kare hahakar nishabdha sada
O Ganga tum Ganga baheti ho kyun?
Naitikta nashta hui manavta bhrashta hui nirlajja bhav se baheti ho kyun?
Itihas ki pukar kare hunkar O Ganga ki dhar nirbal jan ko sabal sangrami samagro gami banati nahi ho kyun?
Vistar hai apar praja dono par kare hahakar nishabdha sada
O Ganga tum O Ganga baheti ho kyun?
Anpad jan aksharhin anagin jan khadyavihin netravihin dekh maun ho kyun?
Itihas ki pukar kare hunkar O Ganga ki dhar nirbal jan ko sabal sangrami samagro gami banati nahi ho kyun?
Vistar hai apar praja dono par kare hahakar nishabdha sada
O Ganga tum Ganga baheti ho kyun?
Vyakti rahe vyakti kendrit sakal samaj vyaktitva rahit nishpran samaj ko chodti na kyun?
Itihas ki pukar kare hunkar O Ganga ki dhar nirbal jan ko sabal sangrami samagro gami banati nahi ho kyun?
Vistar hai apar praja dono par kare hahakar nishabdha sada
O Ganga tum Ganga baheti ho kyun?
Prutasvini kyun na rahi? Tum nischai chitna nahi prano mein prerna preeti na kyun?
Unmat avani Kurukshetra bani Gange janani nava Bharat mein Bhishma rupi suta samarajayi janati nahi ho kyun?
Vistar hai apar praja dono par kare hahakar nishabdha sada
O Ganga tum Ganga baheti ho kyun?
Vistar hai apar praja dono par kare hahakar nishabdha sada
O Ganga tum Ganga baheti ho kyun?
Vistar hai apar praja dono par kare hahakar nishabdha sada
O Ganga tum Ganga tum Ganga tum O Ganga tum O Ganga tum Ganga baheti
ho kyun?
Ganga baheti ho kyun?
mujhe pataa nahi kabhi aapne bhupen hajarika ki awaz me kabhi is geet/gaane ko suna hai ya nahi
par agar na suna to pls suniyega jarur
आप महान कवि हैं, आपको नमन..क्या बिम्ब हैंचा है...भैसों को नयनों का काजल.
ReplyDeleteअब काहे कविता लिखना बंद कर दिये हैं??
गंगा की स्थितियाँ चिन्तनीय हैं.
आपका भैंस पुराण भी कम इण्टेलेक्चुअल नहीं है...
ReplyDeleteहोली की बहुत शुभकामनायें ...!!
गंगातीरी गायों से इन महिषियों तक?... ये कहाँSSS आ गए हम?
ReplyDeleteहोली की हार्दिक शुभकामनाएं!
देव !
ReplyDeleteविशुद्ध काव्य-मय प्रस्तुति है यह !
सहज ही मिल गया --- काजल ढेपार !
इतना भरोसा आ जाता है आपकी वैविध्यमय पोस्टों को देखकर कि
जिसदिन आपका रुख गाँव की ओर हो गया उस दिन ग्राम्य - जीवन
की सशक्त उपस्थिति ब्लॉग-जगत पर हो जायेगी !
यहाँ वह पाता हूँ जो कहीं नहीं मिलता ! आभार !
.
होली की ढेर सारी शुभकामनाएं !!!!!!!!
सर जी,
ReplyDeleteअभी-अभी हरिद्वार में गंगा स्नान करके आया हूँ। बहुद पवित्र है। आप भी कुंभ स्नान कर ही लो। बहुत पवित्र हो जाएगा मन।
होली की शुभकामनाएँ।
गंगा नदी की स्थिति पर चिंता जनक पोस्ट आप ने ही सब से अधिक लिखी हैं.
ReplyDeleteइस तरह जल स्तर कम होता रहेगा तो बेचारी भेंसे गरमियों में कहाँ जाएँगी?
फिलहाल तो आप को सपरिवार होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं देने आई हूँ.पिछले साल आप ने अम्मा जी के हाथों की बनी गुझिया खिलाyee थी सब को! इस बार?
आभार.
रंगोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाये ....
ReplyDeleteहोली की बहुत-बहुत शुभकामनायें.
ReplyDeleteहोली पर सादर शुभकामनायें !
ReplyDeleteवाकई भैंस पानी में जा रही
ReplyDeleteदेखिये कैसे गंगा में पगुरा रही
आभार, सुबह सुबह गंगा माई के दर्शन करवाने के लिये और फ़िर से अपनी ही शैली मे एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाने के लिये..
ReplyDeleteलखनऊ मे गोमती के हालात बदतर थे..आजकल कुछ पहल देख रहा हू..सुना है world bank ने कुछ अरब रुपये भेजे है गोमती की सफ़ाई के लिये...काफ़ी साफ़ हो गयी है अब और पैसे भी साफ़ हुए ही होगे...शायद गंगा सफ़ाई इन लोगो के लिये एक ऐसा ही बहुत बडा प्रोजेक्ट हो...इसलिये इन्तजार कर रहे हो उसके गन्दे होने का..
वैसे आपकी पिछ्ली पोस्ट मे मैने भी sanjeet साहब की तरह ’ओ गंगा बहती हो क्यू’ का लिन्क दिया था...भूपेन हज़ारिका का एक अच्छा गाना है... :)
गंगाजी का श्रंगार वर्णन धांसू है।
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