By Anonymous on 6:12 AM
बाबा समीरानन्द ji ne Anup ji ki to baja baja diya aur aab agla number apka hi hai.
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हिन्दी भाषियों के लिये अनुवाद -
बेनामी जी की टिप्पणी मसिजीवी के ब्लॉग पर -
बाबा समीरानन्द जी ने अनूप जी का बाजा बजा दिया और अब अगला नम्बर आपका ही है।
आप तो हमको "यन" या यण का अर्थ बता दें. क्या इसका अर्थ कथा होता है? जैसे रामायण, राम-कथा.
ReplyDeleteशुक्र है बाजा बजा, मुकदमा नहीं हुआ.
ये क्या हो रहा है ??????
ReplyDelete@ संजय बेंगाणी - हम तो मात्र शब्द ठेलक हैं। अर्थ बताने वाले तो दूसरे हैं - जिन्हें हिन्दी का विद्वान कहा जाता है।
ReplyDeleteमेरे विचार से यण या यन प्रत्यय है जो मूल शब्द को एक Dimension या विमा या मार्ग देता है। कहीं कहीं यह संतति के अर्थ में भी आता है!
आपको समझ आया? नहीं? खैर मुझे भी नहीं आया! :-)
पोस्ट का उद्देश्य ही नहीं समझ आया.
ReplyDeleteएक शेर याद आया संजीव सलिल जी का:
शिकवा न दुश्मनों से मुझको रहा 'सलिल'
हैरत है दोस्तों ने ही प्यार से मारा.
:)
@ उड़न तश्तरी> पोस्ट का उद्देश्य ही नहीं समझ आया.
ReplyDelete------------
ओह, यह बताना था कि कितने भंगुर तरीके से टिप्पणियों में अनवाइण्ड हो रहे हैं लोग। और शायद यह शेर से समझाने की बात नहीं है। इस प्रकार के कथ्य (पोस्ट में बेनामी जी वाला) से अपनी असंपृक्तता स्पष्ट शब्दों में व्यक्त करने का समय है।
आप साधुवादी टिप्पणी के प्रवर्तक रहे हैं। पर यह साधुवादिता किसी का मन बढ़ाये, वह भी सही नहीं है।
मित्र ही यह कह सकता है।
देखें, आपके दूसरे मित्र अनूप क्या कहते हैं!
siyapati raamchandr kee jay
ReplyDeleteआदरणीय ज्ञानदत्त जी,
ReplyDeleteप्रणाम,
आप के इस पोस्ट को समझने में मैं सर्वथा असमर्थ हूँ...
क्योंकि उस पोस्ट में तो ज्यादातर टिपण्णी बेनामियों ने ही दी हैं....
यह कमेन्ट हो सकता है इस बेनामी ने लिखा हो....देखिये ..
1.
By Anonymous on 1:10 AM
इस पर तो दिलमिलगये लिखा है... यह भी पाबला है क्या? लेकिन आगे क्या करना है... अगर मैं आपको पैसे दूं तो क्या आप करवा देंगी? मैं चिट्ठाचर्छा.नेट लेना चाहता हूं...
या फिर बाकि के १० बेनामी कोम्मन्ट्स जिसने लिखा है उनमें से कोई हो....
और फिर यह किसके लिए कहा गया है ??
आपके लिए, मसिजीवी जी के लिए, पाबला जी के लिए, या फिर किसी और के लिए...
खैर आपलोग बड़े हैं ...ज्यादा समझदार भी ....लेकिन यहाँ हैरान हूँ देख कर कि किसी सिरफिरे की बात को कितनी अहमियत मिलती है....की पोस्ट निकल गयी....जब कि उसका नाम पता तक का ठीकाना नहीं...
शायद यह हिंदी और हिंदी ब्लॉग जगत के विकास के लिए आवश्य है...:)
क्षमा चाहूँगी लेकिन..जब आप जैसे प्रबुद्ध, प्रज्ञं और विद्वान् जो प्रातस्मरणीय हैं ...अगर ऐसा करेंगे तो हम क्या सीख पायेंगे आप से...??
मैं जानती हूँ....अब सब मेरे विरुद्ध हो जायेंगे लेकिन....मैं बिना कहे नहीं रह सकती...कि ये आप गलत कर रहे हैं.....एक बेनामी की बात पर आपसी सम्बन्ध दरक रहे हैं.....हैरान हूँ... सच !!!!
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ReplyDeleteसाधो ई सब अकथ कहानी ...
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'' सिर धुनि गिरा लागि पछिताना ... ''
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'' हियाँ न केउ कै केउ सुनवैया
अपनेन मा है ता ता थैया ! ''
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आभार ,,,
पोस्ट बाउंस हो गई है।
ReplyDeleteकम से कम मेरी जो सौ दो सौ ग्राम की बुद्धी है, वह अपने तईं तो यही समझ रही है :)
हलो चार्ली...1....2...3....फ्रीक्वेंसी प्लीज.....हलो चार्ली......
:)
नो कमेण्ट...। मैं असमर्थ हूँ।
ReplyDeleteचचा पर भी फागुन का असर हो गया है का?
ReplyDeleteहा हा हा।
एक ठो बंदिश टेल ही दीजिए। इस समय आप कर सकते हैं।
गुस्सा आए तो पहली भूल समझ माफ कर दीजिएगा।
खाली तख्ती, अरे वही जिसे लिए बे-शकल आदमी खड़ा है, उस पर 'बुरा न मानो फागुन है' लिख दीजिए।
ReplyDeleteबाबा समीरानन्द जी ने अनूप जी का बाजा बजा दिया और अब अगला नम्बर आपका ही है।
ReplyDeleteकवि यहां जो कहना चाहता है वह आपने अनुवाद करके बता दिया है। बाबा समीरानन्द बाजा बजाने का काम करते हैं। वे अपनी सेवायें अनूप जी को प्रदान कर चुके हैं और अब आगे मसिजीवी को अपनी सेवायें देने के लिये कमर कस चुके हैं।
इस पोस्ट का मंतव्य मुझे अच्छी तरह से समझ में आ रहा है। व्याख्याकार ज्ञानजी इशारे-इशारे में इस बात/ पृवत्ति की निन्दा कर रहे हैं कि लोग इस तरह बाजा बजाने की बात करते हैं।
ज्ञानजी समझदार हैं! अन्य साधुवादियों के तरह वे अच्छे-बुरे (सूचना और धमकी) के प्रति समान नजर रखते हैं। समदर्शी नजरिया है इसलिये मसिजीवी की पोस्ट पर भी very nice लिखते हैं और मसिजीवी को अदालती धमकी देने वाली पोस्ट पर भी very nice!
इस पोस्ट से इस बात की पुष्टि होती है कि ज्ञान जी के अंदर एक खिलंदड़ा बालक भी मौजूद है जो बेवकूफ़ी की बातों की खिल्ली उडा़ना जानता है। लेकिन बालक को यह एहसास नहीं है कि उसकी टिप्पणियों को जो दूसरे देखेंगे वे यह नहीं समझ पायेंगे कि ज्ञानजी की बात का असल मतलब क्या है। आपका very nice का मतलब वहां डिक्शनरी वाला ही निकाला जायेगा। (---बहुत अच्छा किया जी आपने मसिजीवी का इलाज तो करना ही चाहिये)
मैं तो बहुत अच्छी तरह समझता हूं कि आपके मंतव्य ऐसे कतई नहीं हैं। आप इस सब प्रवृत्तियों के खिलाफ़ हैं लेकिन आम जनता आपकी टिप्पणियों से यही समझेगी। आपके हाथ में ऐसी कोई ताकत नहीं है कि आप अपने दोनों very nice को हायपर लिंक से अपने मन तक पहुंचा दें और लोग आपके कहे का असल मतलब समझ लें।
मेरी अपनी समझ है कि अगर हम किसी बात को सही और गलत को समझ सकने में सक्षम हैं तो सही के साथ स्पष्ट रूप से खड़े होने का प्रयास करें। अगर सही के साथ खड़े होने की हिम्मत न जुटा सकें तो कम से कम ऐसे तो न खड़े हों कि गलत भी अपने समर्थकों में हमको शामिल कर ले।
सही को सही न कह सकें तो कम से कम ऐसा तो कुछ न कहें कि जिससे यह लगे कि गलत को आप सही ठहरा हैं।
यह बात इसलिये कही क्योंकि आपने पूछा था। आपकी पोस्ट समझने में मुझे कोई दिक्कत नहीं हुई। सुन्दर, सामयिक पोस्ट! :)
अनूप जी की टिप्पणी पहले आना चाहिये था, वरना पोस्ट बाउंस कहने की हिमाकत न होती :)
ReplyDeleteअसली फसाद की जड़ बेनामी है. सबको इनका बहिष्कार नहीं करना चाहिए?
ReplyDeleteजिन्हें कुछ समझने मं असमर्थता हो रही है, वे केवल एक बात समझ लें कि
ReplyDeleteकुछ विशेष व्यक्तियों के ब्लॉग या पोस्ट पर ही बेनामी/ अनामी/ बेप्रोफाईल टिप्पणियाँ क्यों आती हैं?
यदि इतनी सी बात वे समझ लें तो सब कुछ समझ में आ जाएगा
बी एस पाबला
ReplyDeleteयह पोस्ट चिंगारी में हवन करने ख़ालिस उपक्रम है ।
अनूप जी की टिप्पणी को मौज़िया मँत्रोचार माना जा सकता है ।
इस पोस्ट का साध्य बस इतना ही है कि इस बहाने कुछेक लॉयल्टियाँ चिन्हित हो जायेंगी ।
बकिया पाबला जी ने मेरी व्यथा स्पष्ट कर दी है, अगस्त 2007 से आजतक मैं एक बेनामी टिप्पणी को तरसता रहा ।
मैंनें तो भड़काऊ-हड़काऊ लेखन से कभी भी परहेज नहीं किया, फिर भी...
यानि कि बेनामी तक मुझे इस लायक नहीं समझता ! :)
जिन्हें कुछ समझने मं असमर्थता हो रही है, वे केवल एक बात समझ लें कि
ReplyDeleteकुछ विशेष व्यक्तियों के ब्लॉग या पोस्ट पर बेनामी/ अनामी/ बेप्रोफाईल टिप्पणियाँ क्यों नहीं आती हैं?
या फिर कुछ विशेष व्यक्तियों के ब्लॉग पर नहीं जाने वालो के ब्लॉग या पोस्ट पर बेनामी/ अनामी/ बेप्रोफाईल टिप्पणियाँ क्यों आती हैं?
यदि इतनी सी बात वे समझ लें तो सब कुछ समझ में आ जाएगा
ओह पाबला जी और अमर जी के कमेन्ट पढने के बाद स्थिति स्पस्ट हुई,, मै तो चुप ही रहूँगा
ReplyDeleteसादर
प्रवीण पथिक
9971969084
हजारों खावाहिशें ऐसी की हर खवाहिश पे दम निकले......
ReplyDeleteइससे ज्यादा क्या कहे की ........
देख कर दुःख होता है जब कोई ये राग अलापता रहे की देखो ये मेरे हाँथ में कीचड है लोगो को इसे नहीं छूना चाहिए ..हो सके तो किसी बर्तन में ले कर दूसरे के मुह पर फेको
हमें बेनामी ने कभी निराश नहीं किया हमारे और परिवार के लोगों के पास ढेरों बेनामी थेक से आते रहे दरअसल बेनामी टिप्पणी हर उस शख्स के पास सदैव आती रही हैं जो अपना पक्ष रखने में गुरेज नहीं करते फिर भी हम तो दोहराएंगे कि बेनामी का बहिष्कार नहीं किया जा सकता/ नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि बेनामी व्यक्ति नहीं प्रवृत्ति है। सिद्धांतत: तमाम उकसावों के बावजूद आज तक एक भी बेनामी टिप्पणी नहीं की क्योंकि जो कहने का मन हो उसे कहने और उसके परिणाम भुगतने का साहस है। पर जो इतना खाली/ दुस्साहसी न हो तथा मुकदमों के पचड़ों में पड़ने के स्थान पर बच्चे पालने और कामकाज देखने को अहमियत देता हो (संदर्भ पंगेबाज) वह क्या करे।
ReplyDeleteकोई नहीं कहता कि बेनामी वीरता है ये केवल कमजोर/ बेचारे का अस्त्र है जिसे कभी कभी घृणित बेचारगी के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है पर यदि इन बेचारों/ कमजोरों/ घृणित लोगों को ब्लॉगिंग से बाहर करने का यत्न करेंगे तो ये जगह कितनी भी साफ क्यों न हो जाए ब्लॉगिंग न रह जाएगी। यूँ भी जो घृणास्पद होने पर केवल बेनामी की ही मोनोपोली थोड़े है :)
यानी अब तक बेनामी ने हमें भी किसी लायक ना समझा !
ReplyDeleteज्ञान जी बधाई !
आपका नंबर जो आ ही गया !