हिमालय पिघलेगा या नहीं, पचौरी जी १.६ किमी के लिये वाहन का प्रयोग कर रहे हैं, भैया आप पोस्ट-पेड़ हो या प्रि-पेड़ हो, सी एफ एल लगाइये, बिजली और पानी बहुमूल्य है, आई एम डूइंग माइ बिट व्हॉट अबाउट यू, कार्बन क्रेडिट इत्यादि।
मुझ अज्ञानी को दो तथ्य तो समझ में आ गये। पहला, बिजली बचाओ और दूसरा, पेड़ बचाओ।
असमंजस की स्थिति में सभी हैं। कितना त्याग करें कि पृथ्वी क्रोध करना बन्द कर दे। जब इतनी दाँय मची है तो कुछ न कुछ तो करना पड़ेगा। मुझ अज्ञानी को दो तथ्य तो समझ में आ गये। पहला, बिजली बचाओ और दूसरा, पेड़ बचाओ। निश्चय किया कि एक पूरा दिन इन दो तथ्यों को जिया जाये। २४ घंटे में जहाँ तक सम्भव हो इन दोनों को बचाना है बिना जीवनचर्या को बदले हुये।
मुझे फाइलों के ढेर कटे हुये पेड़ों की तरह लग रहे थे। पर्यावरण की आत्मा इन फाइलों में कैद है। एक पत्र की पाँच प्रतिलिपियाँ देख कर जब क्रोध किया तो क्लर्क महोदय ने उपदेशात्मक उत्तर दिया कि ’सर इमर्जेन्सी में जब आवश्कता पड़ती है तो इसी से निकाल कर दे देते हैं’।
यह पोस्ट श्री प्रवीण पाण्डेय की बुधवासरीय अतिथि पोस्ट है। प्रवीण बेंगळुरू रेल मण्डल के वरिष्ठ मण्डल वाणिज्य प्रबन्धक हैं।
फ्रिज में संरक्षित भोजन को माइक्रोवेव में गरम करने की जगह अल्पाहार ताजा बनवाया और लकड़ी की डाइनिंग टेबल की जगह भूमि पर बैठकर ग्रहण किया। यद्यपि कार्यालय १ किमी की दूरी पर है पर पैदल या साइकिल पर पहुँचने से वर्षों से संचित अधिकारीतत्व घुल जाने का खतरा था अतः एक सहयोगी अधिकारी के साथ वाहन में जाकर पचौरी जी जैसी आत्मग्लानि को कम करने का प्रयास किया। कार्यालय में चार-चार किलो की फाइलों को देखकर सुबह से अर्जित उत्साह का पलीता निकल गया। मुझे फाइलों के ढेर कटे हुये पेड़ों की तरह लग रहे थे। पर्यावरण की आत्मा इन फाइलों में कैद है। एक पत्र की पाँच प्रतिलिपियाँ देख कर जब क्रोध किया तो क्लर्क महोदय ने उपदेशात्मक उत्तर दिया कि ’सर इमर्जेन्सी में जब आवश्कता पड़ती है तो इसी से निकाल कर दे देते हैं’। इसी दूरदर्शिता ने पर्यावरण का बैण्ड बजा दिया है। चार ड्राफ्टों के बाद फाइनल किये हुये उत्तर पर अंग्रेजी अपने आप को गौरवान्वित अनुभव कर रही होगी। पत्रों की फैक्स प्रतिलिपि, एडवान्स कॉपी, मूल कॉपी व वरिष्ठ अधिकारियों के द्वारा मार्क्ड कॉपी देखकर विषय भी महत्वपूर्ण लगने लगा।
मन खट्टा था पर एक बैठक में सारे प्वाइंट मोबाइल पर ही लिखकर लगभग दो पेज बचाये और मन के खट्टेपन को कम करने का प्रयास किया।
सायं प्रकाश रहते कार्यालय छोड़ दिया। सोने के पहले घर पर शेष तीन घंटे यथासम्भव बिजली बचाने का प्रयास किया और बच्चों को इस बारे में ज्ञान भी दिया।
चलिये अब सोने चलता हूँ। कल कार्बन क्रेडिट की माँग करूँगा।
दफ्तर से वापस लौटते समय सोचा कि कल प्रवीण की पोस्ट पब्लिश करनी है। वाहन में अकेले लौट रहा हूं घर। लगन का मौसम है। कई जगहों पर बिजली की जगमगाहट की गई है। एक जगह वीडियो उतारा जा रहा था दूल्हे का। औरतें परछन कर रही थीं। कितना ज्यादा प्रयोग होता है बिजली का!
वैदिक काल में शायद दिन में होता रहा होगा पाणिग्रहण संस्कार। अब भी वैसा प्रारम्भ होना चाहिये। दाम्पत्य का प्रारम्भ कुछ कार्बन क्रेडिट से तो हो!
बेहतरीन, साधुवाद!!
ReplyDeleteआप अपना हिस्सा करते रहे. प्रयास रहे कि दिन ब दिन आपका योगदान बढ़ता चले, शुभकामनाएँ.
इसी तरह हम सभी थोड़ी थोड़ी बिजली बचाए और इसका दुरूपयोग नहीं करे तो पर्यावरण के साथ साथ उस बची बिजली का इस्तेमाल कृषि कार्यों या उद्योगों में कर सकते है |
ReplyDeleteदाम्पत्य का प्रारंभ कार्बन क्रेडिट से ... खूब कहा आपने ।
ReplyDeleteअनुकरणीय पोस्ट ! हम तो निबाहेंगे ! अब सारे उत्सव दिन के !
इतनी तरह की बातें रोज सुनता हूं कि लगता है भई मैं तो शायद ज़िंदा रहकर ही अपराध कर रहा हूं...
ReplyDeleteपढ़कर मज़ा आ गया और सद्बुद्धि भी! साधुवाद!
ReplyDeleteऔह! अब चीजें देख कर खीजने की आदत हो गई है। दिन में जलती हुई रोड लाइटस् को देख कर और क्या किया जा सकता है। वह भी तब जब हम खुद बिजली कटौती भुगत रहे हों। कल नगर निगम का एक टैंकर पानी का नल खोल कर सड़क पर बहाता जा रहा था। लालबत्ती पर रुका तो उसे पूछा तो ड्राइवर ने बताया कि पानी का नल उसी ने खोला हुआ है। अब खीजने के सिवा क्या किया जा सकता था।
ReplyDeleteपर्यावरण सुरक्षा और बिजली की बचत से सम्बंधित कई महत्वपूर्ण जानकारिय प्राप्त हुई ....
ReplyDeleteआभार ...!!
मुझे फाइलों के ढेर कटे हुये पेड़ों की तरह लग रहे थे। गजब की नजर है।
ReplyDeleteपर्यावरण परिरक्षण की मुहिम में एक संग्रहनीय पोस्ट
ReplyDeleteकई साल अय्याशी की.. अब भी कर रहे है..
ReplyDeleteऔर जब मेरे हाथ मौक़ा लगा तो बोले कार्बन क्रेडिट...
करे कोई भरे कोई...
हम भी यही कोशिश कर रहे हैं, पर क्या अकेला चना भाड़ फ़ोड़ सकता है, अगर किसी को बोलने की कोशिश भी करो तो उसी क्लर्क जैसा कोई उत्तर मिल जाता है।
ReplyDeleteयह भी हो सकता है कि लोगों को समझाना एक कला है और वह कला हमें पता ही न हो :)
दिनभर में ४-५ बार तो इस तथ्य से सामना हो जाता है कि कहीं न कहीं बहुत गड़बड़ है, नहीं तो टीवी चैनल पर सभी लोग ज्ञानवाचन में काहे लगे हुये हैं। चटपटे समाचार छोड़कर ’पृथ्वी को किससे खतरा है !’...
ReplyDeleteयह केवल निजी चैनलों की देन है कि प्रलय आने वाली है,बाकी हमारे प्रिय दूरदर्शन पर तो सदैव खमोशी ही है..
आपने तो फिर भी मोबाइल पर अपनी समस्या का समाधान कर लिया.. मगर लोग अक्सर पेपरलेस ऑफिस की बात करते हैं और मुझे उसमे पर्यावरण की अधिक क्षति दिखती है.. एक तो उर्जा अधिक नष्ट होता है और दूसरा जिस मशीन पर हम अपना काम करते हैं उसमे किस किस तरह के पार्ट्स लगते हैं यह कौन नहीं जानता है??
ReplyDeleteदेखा बार बार कहने से असर तो होता है. लोग नाहक कहते है धरती को बचाने के विज्ञापन ढकोसला है.
ReplyDeleteकल मेरे दोस्त ने कहा 'जिंदगी भर जिस बात को लेकर गाली देते रहो और एक दिन खुद वही करो... इससे बुरा क्या हो सकता है !' ये बात पाणिग्रहण संस्कार से ही सम्बंधित थी. अब ऐसे लोगों से दोस्ती और ऐसे ब्लॉग के पाठक ! तो फिर बुराई से बचना तो पड़ेगा ही.
ReplyDeleteबड़ी उपयोगी पोस्ट | संकल्प तो यही होना चाहिए |
ReplyDeleteजन-जन सुधरे तभी श्रेष्ठ संकल्प पूर्ण होते है | आभार !
hamari convenience hi hamari band baja rahi hai...aur hame khabar hi nahi hai
ReplyDeleteअपने भर इतना भी हर आदमी यदि कर ले अपने दिनचर्या में तो कम नहीं होगा...
ReplyDeleteबूँद बूँद से घड़ा भरता है,यह केवल कहावत नहीं...
साधुवाद,इस सोच को व्यापकता देने के लिए...
ऑफिस में यूज एन्ड थ्रो वाले थर्माकोल के कप पानी या चाय पीने के लिये रखे रहते हैं। कभी कभी एकाध लीक कर जाता है। सो भाई लोग दो दो खाली कप एक के अंदर एक ठूंसकर बैठाते हैं और तब उसमें चाय लेते हैं, इस आशंका में कि एक कप लीक हो तो दूसरा तो है ही उसे थामने के लिये। इस आशंका के चलते ही नाहक एक कप वेस्ट हो जाता है।
ReplyDelete'आशंका' बहन,अब तुम क्यो पर्यावरण को नुकसान पहुंचवा रही हो। आपका भाई 'यथार्थ' तो पहले ही पर्यावरण की वाट लगा चुका है :)
विषय को गहराई में जाकर देखा गया है और इसकी गंभीरता और चिंता को आगे बढ़या गया है। यह रचना --- --- समस्या के विभिन्न पक्षों पर गंभीरती से विचार करते हुए कहीं न कहीं यह आभास भी कराती है कि अब सब कुछ बदल रहा है। लेखक ने शुरुआत कर दी है, समर्थक भी करेंगे।
ReplyDeleteमैं कुछ अलग भी करता हूँ। घर की खिड़कियों - दरवाज़ों पर पर्दा ही नहीं लगाता इससे दिन भर रोशनी का अभाव नहीं रहता। अब आप कुटिल मुस्कान न दें, मेरा घर टॉप फ्लोर (10वें)पर है। मच्छर को भी लिफ्ट से आना पड़ता है। दफ़्तर के भी पर्दे खुले रहते हैं। बत्तियाँ ऑफ।
बांक़ी कंप्यूटर और मोबाइल वाला प्रयोग न कर पाऊँगा। हां टिप्पणियाँ देना कम कर देने वाला सुझाव माना जा सकता है (ये मैं पंक्तियों के मध्य पढ़ रहा हूँ)।
कुछ पंच लाइन संक्रामक/इनफेक्शस हैं
1. स्विचबोर्ड पर हाथ लगाते समय ऐसा अनुभव हो रहा था जैसे कि कोई जघन्य अपराध करने जा रहा हूँ।
2. बिजली बचाने का अर्थ है कि दिन के समय का भरपूर उपयोग और रात्रि के समय को आराम।
3. डाइनिंग टेबल की जगह भूमि पर बैठकर ग्रहण किया।
4. मुझे फाइलों के ढेर कटे हुये पेड़ों की तरह लग रहे थे। पर्यावरण की आत्मा इन फाइलों में कैद है।
5. श्रीमतीजी के आग्नेय नेत्र याद आ गये (ग्लोबल वार्मिंग तो झेली जा सकती है पर लोकल वार्मिंग कष्टकारी है)।
6. दाम्पत्य का प्रारम्भ कुछ कार्बन क्रेडिट से तो हो!
हमने तो शादी दिन में ही की थी। पिताजी का आदेश था कि फालतू रोशनी में पैसा नहीं जाया किया जाएगा तो आज अपने को पुण्य लग रहा है। कोशिश करेंगे कि ब्लागिंग कुछ कम कर दें जिससे कम्प्यूटर कुछ कम चले।
ReplyDeleteश्रीमतीजी के आग्नेय नेत्र याद आ गये (ग्लोबल वार्मिंग तो झेली जा सकती है पर लोकल वार्मिंग कष्टकारी है)| यह समस्या तो घर-घर की है। कोई बताता है कोई नहीं... आपने बताया तो हमें सान्त्वना मिली। :)
ReplyDeleteआप की बात का असर हम पर भी हो चुका है...हमने भी बिजली की बचत यथा संभव शुरू कर दी है.....अब जिस कमरे मे बेमतलब बत्ती जलती देखते हैं तुरन्त बुझा देते हैं..आप की पोस्ट बहुत प्रेरक लगी..धन्यवाद।
ReplyDeleteआप ही की तरह मैं भी इसी कोसिस में रहती हऊं कि जिस कमरे में लोग हैं सिर्फ उसी का लाइट जले । सब्जी धोनेवाला पानी गमलों में डालें. कपडे धुला पानी बालकनी धोने के काम आये या बातरूम धोने के । कोशिश से क्या नही हो सकता . आपका अनेक धन्यवाद इस मुद्दे पर चर्चा और आदर्श स्थापित करने के लिये ।
ReplyDeleteहां बिजली की बचत पर भाष्ण तो हम भी सबको देते रहते हैं, भरसक अमल भी करते हैं, लेकिन जब दिन में जलती स्ट्रीट लाइट दिखाई देती है तो कोफ़्त होती है, बिजली की बचत पर.
ReplyDeleteआप ही की तरह मैं भी इसी कोसिस में रहती हऊं कि जिस कमरे में लोग हैं सिर्फ उसी का लाइट जले । सब्जी धोनेवाला पानी गमलों में डालें. कपडे धुला पानी बालकनी धोने के काम आये या बातरूम धोने के । कोशिश से क्या नही हो सकता . आपका अनेक धन्यवाद इस मुद्दे पर चर्चा और आदर्श स्थापित करने के लिये ।
ReplyDeleteऑफिस में यूज एन्ड थ्रो वाले थर्माकोल के कप पानी या चाय पीने के लिये रखे रहते हैं। कभी कभी एकाध लीक कर जाता है। सो भाई लोग दो दो खाली कप एक के अंदर एक ठूंसकर बैठाते हैं और तब उसमें चाय लेते हैं, इस आशंका में कि एक कप लीक हो तो दूसरा तो है ही उसे थामने के लिये। इस आशंका के चलते ही नाहक एक कप वेस्ट हो जाता है।
ReplyDelete'आशंका' बहन,अब तुम क्यो पर्यावरण को नुकसान पहुंचवा रही हो। आपका भाई 'यथार्थ' तो पहले ही पर्यावरण की वाट लगा चुका है :)
hamari convenience hi hamari band baja rahi hai...aur hame khabar hi nahi hai
ReplyDeleteआपने तो फिर भी मोबाइल पर अपनी समस्या का समाधान कर लिया.. मगर लोग अक्सर पेपरलेस ऑफिस की बात करते हैं और मुझे उसमे पर्यावरण की अधिक क्षति दिखती है.. एक तो उर्जा अधिक नष्ट होता है और दूसरा जिस मशीन पर हम अपना काम करते हैं उसमे किस किस तरह के पार्ट्स लगते हैं यह कौन नहीं जानता है??
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