ज्ञानदत्त जीश्री अभिषेक के इस लिंक पर जाने पर उनकी एक पोस्ट है जो मोबाइल फोन के माध्यम में रेल टिकट उपलब्ध कराने की बात करती है।
आप रेलवे के सबसे बड़े अफसर हैं जिनको मैं किसी भी तरह से जानता हूँ (भले ही सिर्फ ब्लॉग के ज़रिये!). रेलवे के लिए एक सुझाव है, यदि लागू हो जाए तो बहुत अच्छा रहेगा.
कृपया ये पोस्ट पढ़िए और यदि आप सहमत हों तो अपने विभाग में आगे बढाइये.
http://removing.blogspot.com/2010/02/use-mobile-to-save-paper-really.html
अब जो मुझे जानते हैं, उन्हे ज्ञात है कि मैं मालगाड़ी का परिचालन देखता हूं। रेलवे की टिकट प्रणाली की दशा दिशा को अपडेट करने का समय भी नहीं निकल पाता। लिहाजा मैने श्री प्रवीण पाण्डेय, जो बैंगळूरु मण्डल के वरिष्ठ मण्डल वाणिज्य प्रबन्धक हैं, से इस बारे में प्रकाश डालने को कहा।
प्रवीण उस तरह के मनई हैं, जो टॉर्चलाइट डालने के अनुरोध पर सर्च लाइट डाल देते हैं। उन्होने बताया कि वे स्वयं मोबाइल फोन के माध्यम से प्लेटफार्म टिकट और अनारक्षित टिकट उपलब्ध कराने के काम में लगे हैं। इसके माध्यम से बहुत कागज बचेगा। उनका एक पावरप्वाइण्ट प्रेजेण्टेशन मैं नीचे उपलब्ध करा दे रहा हूं। उसमें है कि वे अभी भी बहुत कागज बचाने की दशा में ले आये हैं अपने रेल मण्डल को! इस पावरप्वॉइण्ट प्रेजेण्टेशन के अन्त में उन्होने उद्धृत किया है -
एक्टिव मीडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर अरिय प्रियशान्त का कहना है कि मोबाइल (टिकट) भेजना और उसे प्राप्त करना पेपर टिकट से अस्सी प्रतिशत सस्ता पड़ेगा। इसके फ्रॉड भी कम होंगे चूंकि टिकट डिलीवरी में मिडिलमैन की भूमिका नहीं रहेगी। यह होगा या नहीं, वह तो बात ही नहीं है। यह इतना सस्ता, सीक्योर और तकनीकी दृष्टि से प्रमाणित है कि यह जल्दी ही होगा।
इसके अतिरिक्त मेरे मित्र - हमारे चीफ कम्यूनिकेशन इंजीनियर श्री हिमांशु मोहन मुझे बता रहे हैं कि दिल्ली में एक सेमिनार में (जिसमें मुझे भी जाना था, पर जा नहीं सका था) यह बताया गया था कि मोबाइल टिकटिंग पर काम चल रहा है, जिसमें यात्री को एसएमएस/कॉल के आधार पर टिकट एएमएस के माध्यम से मिलेगा और कोई पेपर एक्स्चेंज नहीं होगा। इस प्रॉजेक्ट पर स्पाइस डिजिटल के साथ कुछ काम हो रहा है। बेहतर तो हिमांशु बता सकेंगे - अगर वे यह पोस्ट पढ़ कर टिप्पणी करें!
आशा है अभिषेक जी को कुछ जानकारी मिल जायेगी इस पोस्ट से।
यह है प्रवीण का पावरप्वाइण्ट| अंग्रेजी में है, पर मुझे हिन्दी समर्थक कृपया न कोसें (वे इसे बाइपास कर सकते हैं!)।
thanks for this informative post
ReplyDeleteवाह...यह तो बड़े काम की चीज है....
ReplyDeleteयह भी अच्छा विचार है. काश सारी सवारी गाड़ियां दिल्ली-चंडीगढ़ शताब्दी सी भी हो जाएं !
ReplyDeleteमोबाइल टिकिटिंग की बात तो पूरानी है. कब से चल रहा है कि जल्द ही दी जाएंगी. मुश्किल भी नहीं.
ReplyDeleteचलिए, यह अग्रिम बधाई वाली बात है,आपको भी सूचना हेतु धन्यवाद.
ReplyDelete@ डा. मनोज मिश्र - आपने बधाई दी, हमने ली। काहे की, पता नहीं! :)
ReplyDeleteकभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है कि ये हिन्दी ब्लॉगजगत असल में हिन्दी बधाई-जगत है! इसकी बधाई की टिप्पणियों में तर जाती है बोरियत! ये बधाइयां न होती तो पसर जाती मनहूसियत!
कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है!
बहुत बहुत बधाइयाँ.. ;)
ReplyDeleteसुखद रहा रेल्वे के तकनिकी के बढ़ते इस्तेमाल को जानना.
ReplyDeleteकाफ़ी अच्छी सोच है..एक्ज़ीक्यूशन भी अच्छा हो जाये, तो क्या बात हो.. :)
ReplyDeleteवैसे अच्छा लगा कि आपने इस विषय पर इतना मटीरियल तक उपलब्ध करवाया...एकठो पुरस्कार तो बनता है... जनाब पी.डी हाज़िर हो ;)
ये सुविधा लागु हो जाये तो बहुत अच्छा होगा रेलवे के लिए भी और यात्रियों के लिए भी |
ReplyDeleteवाह सर जी क्या आईडिया है . अगर रास्ते मे टिकिट डीलीट हो गय तो
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी धन्यवाद्
ReplyDeleteकागज़ बचाने का एक तरीका यह भी है कि पुनर्चक्रित कागज़ का प्रयोग किया जाए तथा पेड़ों को लगाने पर भी ज़ोर दिया जाए।
ReplyDelete@ Amit - कागज के प्रयोग के बारे में मैं क्या कहूं? रोज तीस (कम से कम) फोटो कॉपी वाले कागज बरबाद होते हैं मेरी मालगाडी की मॉनिटरिंग पोजीशन में। :(
ReplyDeleteवैसे कागज कि बर्बादी पर हम इतना ही कहेंगे कि पेपरलेस ऑफिस कि जहाँ बात होती है वहाँ इतना अधिक उर्जा कि बर्बादी होती है जिससे पर्यावरण को सामान रूप से क्षति पहुँचती है.. सो मुझे तो पेपरलेस ऑफिस का फन्डा अधिक नहीं सुहाता है..
ReplyDelete@ पंकज - इस बार बधाई देकर ही छोड़ दिए हैं.. :)
अब मैं सोचता हूं कि हाई टेक टिकट बन जाने पर वह विरहिणी कौन सा गीत गाएगी जो अपने पति के रेल के जरिये परदेस जाने पर कोसती है कि
ReplyDeleteरेलीया बैरन पिया को लिये जाय रे
हो जाय बरखा टिकस गल जाय रे :)
मैं चाहता हूँ कि 'कोसप्रूफ टिकट' का इंतजाम किया जाय, विरहिणी चाहे कितना भी कोसे , टिकट सही सलामत रहे वरना लटक कर या बिन टिकट शौचालय में बैठ कर प्रेमी को ही सांसत झेलते हुए परदेश जाना पडेगा :)
रेल्वे तकनीक का इस्तेमाल तो कर रहा है, परंतु फ़िर भी पता नहीं क्यों इन्फ़्रास्ट्रक्चर अच्छा या प्रभावी तरीके से इसको उपयोग नहीं कर पा रहा है। वाकई अगर आप को जानना है तो मैं इस पर दो पोस्टें विस्तृत में लिख चुका हूँ, या कह सकते हैं कि बुराई कर चुका हूँ।
ReplyDeleteपता नहीं रेल्वे इन दलालों और खाईपीवालों से कब मुक्त होगा, ज्ञान दा मैं आपकी बात तो बिल्कुल भी नहीं कर रहा हूँ, केवल संदर्भित टिप्पणी कर रहा हूँ, क्योंकि रेल्वे कितनी भी नई टेक्नोलोजी का उपयोग कर ले पर कहीं न कहीं लेकुना तो रखता ही है। अगर आप को विश्वास न हो तो सुबह आठ बजे आईआरसीटीसी पर किसी व्यस्त रुठ की गाड़ी का तत्काल में आरक्षण करवाने की कोशिश करें आपके कम्पयूटर पर वेबपेज ही नहीं खुलेगा, और जब खुलेगा तब तक वेटिंग आ चुकी होगी।
रेल्वे खूब सारे प्रयास कर रहा है पर अगर नई तकनीक के साथ विशेषज्ञों से सेवायें ले तो शायद प्रयास में चार चांद लग सकते हैं।
ज्ञानदत्त जी बहुत सुंदर बात,
ReplyDeleteधन्यवाद इस जानकारी के लिए।
ReplyDeletemobile call se ticket booking 2004 se ho rahi hai. aur ye seva airtel/vodafone/idea per hai.
ReplyDelete'कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है!' इस फ़िल्मी गाने के उचित प्रयोग पर आप बधाई के पात्र हुए... बधाई स्वीकारें !
ReplyDeleteमोबाईल से रेल्वे टिकट बुकिंग तो कब से चल रही है। आप खुद अपने मोबाईल पर (जिस मोबाईल में GPRS की सुविधा हो) टिकट बुक कर सकते हैं। अधिक जानकारी के लिए आप NG Pay का जालस्थल देखें।
ReplyDeleteक्षमा चाहता हूं लिंक सही नहीं लगा। सही लिंक यह है।
ReplyDeletewww.ngpay.com
क्षमा चाहता हूं लिंक सही नहीं लगा। सही लिंक यह है।
ReplyDeletewww.ngpay.com
mobile call se ticket booking 2004 se ho rahi hai. aur ye seva airtel/vodafone/idea per hai.
ReplyDeleteरेल्वे तकनीक का इस्तेमाल तो कर रहा है, परंतु फ़िर भी पता नहीं क्यों इन्फ़्रास्ट्रक्चर अच्छा या प्रभावी तरीके से इसको उपयोग नहीं कर पा रहा है। वाकई अगर आप को जानना है तो मैं इस पर दो पोस्टें विस्तृत में लिख चुका हूँ, या कह सकते हैं कि बुराई कर चुका हूँ।
ReplyDeleteपता नहीं रेल्वे इन दलालों और खाईपीवालों से कब मुक्त होगा, ज्ञान दा मैं आपकी बात तो बिल्कुल भी नहीं कर रहा हूँ, केवल संदर्भित टिप्पणी कर रहा हूँ, क्योंकि रेल्वे कितनी भी नई टेक्नोलोजी का उपयोग कर ले पर कहीं न कहीं लेकुना तो रखता ही है। अगर आप को विश्वास न हो तो सुबह आठ बजे आईआरसीटीसी पर किसी व्यस्त रुठ की गाड़ी का तत्काल में आरक्षण करवाने की कोशिश करें आपके कम्पयूटर पर वेबपेज ही नहीं खुलेगा, और जब खुलेगा तब तक वेटिंग आ चुकी होगी।
रेल्वे खूब सारे प्रयास कर रहा है पर अगर नई तकनीक के साथ विशेषज्ञों से सेवायें ले तो शायद प्रयास में चार चांद लग सकते हैं।
वैसे कागज कि बर्बादी पर हम इतना ही कहेंगे कि पेपरलेस ऑफिस कि जहाँ बात होती है वहाँ इतना अधिक उर्जा कि बर्बादी होती है जिससे पर्यावरण को सामान रूप से क्षति पहुँचती है.. सो मुझे तो पेपरलेस ऑफिस का फन्डा अधिक नहीं सुहाता है..
ReplyDelete@ पंकज - इस बार बधाई देकर ही छोड़ दिए हैं.. :)
@ डा. मनोज मिश्र - आपने बधाई दी, हमने ली। काहे की, पता नहीं! :)
ReplyDeleteकभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है कि ये हिन्दी ब्लॉगजगत असल में हिन्दी बधाई-जगत है! इसकी बधाई की टिप्पणियों में तर जाती है बोरियत! ये बधाइयां न होती तो पसर जाती मनहूसियत!
कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है!