निषादघाट पर वे चार बैठे थे। मैने पहचाना कि उनमें से आखिरी छोर पर अवधेश हैं। अवधेश से पूछा – डाल्फिन देखी है? सोंइस।
उत्तर मिला – नाहीं, आज नाहीं देखानि (नहीं आज नहीं दिखी)।
लेकिन दिखती है?
यह मेरे लिये सनसनी की बात थी। कन्फर्म करने के लिये पूछा – सोंइस?
हां, जौन पानी से उछरथ (हां, वही जो पानी से उछलती है)।
कितनी दिखी?
बहुत कम दिखाथिं। एक्के रही (बहुत कम दिखती हैं, एक ही थी)।
साथ वाले स्वीकार में मुण्डी हिला रहे थे। एक की बोली हुई और तीन की मौन गवाही कि सोंइस है, यहां गंगा में, शिवकुटी, प्रयागराज में। मुझे बहुत खुशी हुई। कभी मैं भी देख पाऊंगा। बचपन में देखी थी।
मुझे प्रसन्नता इसलिये है कि सोंइस होने से यह प्रमाण मिलता है कि ईको-सिस्टम अभी बरबाद नहीं हुआ है। गंगामाई की जीवविविधता अभी भी बरकरार है - आदमी के सभी कुयत्नों के बावजूद! सोंइस स्तनपायी है और श्वांस लेने के लिये रेगुलर इण्टरवल पर पानी के ऊपर आती है। कभी कभी शाम के अन्धेरे में जब सब कुछ शांत होता है तो दूर छपाक - छपाक की ध्वनि आती है गंगा तट पर - शायद वह गांगेय डॉल्फिन ही हो!
मुझे तीन-चार पानी के सांपों का परिवार भी किनारे तैरते दिखा। मेरा कैमरा उन्हे ठीक से कवर नहीं कर पाया। पर सवेरे सवेरे वह देखना मुझे प्रसन्न कर गया।
और यह गार्जियन का लिंक मुझे शाम के समय पता चला जो बताता है कि चीन की यांग्त्सी नदी में डॉल्फिन सन २००२ के बाद नहीं दिखी। अब यह माना जा सकता है कि मछली पकड़ने, बांध/डैम बनने और नदी में गाद भरने के फल स्वरूप यह विलुप्त हो गयी। पानी के मटमैला होने से यह लगभग अंधी पहले ही हो गयी थी। गंगा में डॉल्फिन बची है, यह प्रसन्नता की बात है न?
आप पता नहीं पहले पैराग्राफ के मेरी पोस्ट के लिंक पर जाते हैं या नहीं, मैं अपनी पुरानी पोस्ट नीचे प्रस्तुत कर देता हूं।
सोंइस
(नवम्बर 13' 2008)
कल पहाड़ों के बारे में पढ़ा तो बरबस मुझे अपने बचपन की गंगा जी याद आ गयीं। कनिगड़ा के घाट (मेरे गांव के नजदीक का घाट) पर गंगाजी में बहुत पानी होता था और उसमें काले – भूरे रंग की सोंइस छप्प – छप्प करती थीं। लोगों के पास नहीं आती थीं। पर होती बहुत थीं। हम बच्चों के लिये बड़ा कौतूहल हुआ करती थीं।
मुझे अब भी याद है कि चार साल का रहा होऊंगा – जब मुझे तेज बुखार आया था; और उस समय दिमाग में ढेरों सोंइस तैर रही थीं। बहुत छुटपन की कोई कोई याद बहुत स्पष्ट होती है।अब गंगा में पानी ही नहीं बचा।
पता चला है कि बंगलादेश में मेघना, पद्मा, जमुना, कर्नफूली और संगू (गंगा की डिस्ट्रीब्यूटरी) नदियों में ये अब भी हैं, यद्यपि समाप्तप्राय हैं। हजार डेढ़ हजार बची होंगी। बंगला में इन्हें शिशुक कहा जाता है। वहां इनका शिकार इनके अन्दर की चर्बी के तेल के लिये किया जाता है।
मीठे पानी की ये सोंइस (डॉल्फिन) प्रयाग के परिवेश से तो शायद गंगा के पानी घट जाने से समाप्त हो गयीं। मुझे नहीं लगता कि यहां इनका शिकार किया जाता रहा होगा। गंगा के पानी की स्वच्छता कम होने से भी शायद फर्क पड़ा हो। मैने अपने जान पहचान वालों से पूछा तो सबको अपने बचपन में देखी सोंइस ही याद है। मेरी पत्नी जी को तो वह भी याद नहीं।
सोंइस, तुम नहीं रही मेरे परिवेश में। पर तुम मेरी स्मृति में रहोगी।
बहुत सुंदर जीव होती है डॉल्फ़िन्स!
ReplyDeleteकेलिफ़ोर्निया के कई तटों पर बडे आकार और झुंड मे दर्शन देती हैं.
सोंइस का फोटू लग जाये किसी तरह तो गंगा घाट की सोंइस भी देख ली जाये.
ReplyDeleteकल से जरा उन चारों के बीच थोड़ा ज्यादा देर बैठिये. :)
सोंइस देखने का अनुभव मुझे भी रहा है. मै वाराणसी के दशाश्वमेध घाट पर यूँ ही भ्रमण कर रहा था कि गंगा के मध्य धारा मे भूरे रंग की आकृति उभरी और पलांश मे लुप्त भी हो गयी. लोगो ने बताया कि यह सोंइस था.
ReplyDeleteएक साथ कई भाव रोप दिए हैं इस चिट्ठे में...पुराने लिंक पर जाते है जी,,,टिप्पणियां नहीं कर पाते हैं....:)
ReplyDeleteJagran ke 2 din purane article ka link hai isame abhi ganaga me dolphin dikhane ka jikra kiya gaya hai.
ReplyDeletehttp://in.jagran.yahoo.com/news/travel/general/16_36_427.html
ek aur link
ReplyDeletehttp://timesofindia.indiatimes.com/city/kolkata-/Swiss-explorer-on-Ganga-voyage/articleshow/5140174.cms
ऐसे ही गंगा तट पर निर्जन निर्द्वंद घूमते रहे तो तो कोई गांगेय लोचनेस मान्स्टर भी कभी मिल जायेगा !
ReplyDeleteअब यह हमारा राष्ट्रीय जलजन्तु है !
उम्मीद है हमें जल्द ही गंगई डोल्फिन का चित्र यहाँ देखने को मिलेगा |
ReplyDeleteकाश ये जन्तु आम तौर पर दिखाई देने लगे। गंगा जीवन्त हो उठे।
ReplyDeleteक्या सचमुच डालफिन दिखती है
ReplyDeleteनिषाद घाट पर ...!!
कल डिस्कवरी चैनल वाले आपका नंबर मांग रहे थे.. दे दू क्या ?
ReplyDeleteडाल्फिनो का गंगा से कम होना एक दुखद धटना है।
ReplyDeleteमुझे प्रसन्नता इसलिये है कि सोंइस होने से यह प्रमाण मिलता है कि ईको-सिस्टम अभी बरबाद नहीं हुआ है।
ReplyDelete..hummmm !!
Dil ko Khush rakhne ko Ghalib ye khayal accha hai !!
सुना है इन्हें संरक्षित किया जा रहा है.गोवा में जहाँ मंडोवी नदी समुद्र से मिलती है, उस क्षेत्र में ढेरों दीखते हैं. अब ये फ्रेश वाटर वाले हैं या नहीं पता नहीं है.
ReplyDeleteराष्ट्रीय जलज्न्तु आपको ज़ल्द नज़र आये और उसके व पर्यावरण के संरक्षण के लिये आपकी चिंता जायज है।पता नही कैसे और कब हमने खुस ही अपना कुदरती खज़ाना लूट लिया।
ReplyDeleteज्ञान दत्त जी आपकी गंगा में आपको डालफिन दिखे यही कामना करता हूँ | केमरा तो आप हमेशा साथ रखते है कभी आपको फोटो भी मिल जाए और हम भी गंगे में डालफिन देख पायें !!!
ReplyDeleteहमारे लिए तो यह सोच ही रोमांचित करने वाली है।....आप सही भ्रमण का मजा उठा रहे हैं और हमारे लिए भी बढिया पोस्ट रच रहे हैं।आभार।
ReplyDeleteमैं सोच रहा था कि ब्लॉग पढना इंसान को कितना बदलता है. ४ दिन के लिए घर जा रहा हूँ. और एक दिन तो गंगा किनारे जाने का प्लान है ही. देखता हूँ शायद मुझे भी दिख जाय ! मुझे लगता है कि अब कुछ ज्यादा लोगों से बात कर पाऊंगा मैं...
ReplyDeleteकलुषहारिणी गंगा में तो डॉल्फिन देखने का सौभाग्य नहीं मिला है हमें पर हमने इस जीव को चिल्का झील में अवश्य देखा है।
ReplyDeleteजी, शायद वह शायद वह गांगेय डॉल्फिन ही हो! अब इस प्रदूषण में और क्या संभव है ?
ReplyDeleteकुदरत ने अपने जुगाड़ बहुत पहले से कर रखे है इको सिस्टम के ....ये तो इन्सान है जिसने इसमें पैबंद लगा दिए है ...
ReplyDeleteअतिसुन्दर!
ReplyDeleteडाल्फिनो का गंगा से कम होने के कई कारण हो सकते है, गंगा का पानी हद से ज्यादा गंदा होना ( जो एक सच है) ओर फ़िर लोग भी इस का शिकार करते होगे... शेर बाघ हम ने खत्म कर दिये हिरन भी मार भगाये ओर यह डाल्फ़िनो का ना भी लग गया....
ReplyDeleteवेसे आप का यह गंगा घाट एक दिन जरुर देखने आना पडेगा, बहुत सुंदर लिखा आप ने
तट से देखने पर लगता था गंगाजी के भीतर से भिश्ती मसक पानी की सतह पर निकला, फिर डूब गया | हांलाकि अब भिश्ती भी नहीं हैं | मालवीय पुल (अंग्रेजों का डफरिन ब्रिज ) पर से जब दिखातीं तब उसका नन्ही डालफिन का रूप दीखता था |
ReplyDeleteआदरणीय ज्ञानदत्त जी,
ReplyDeleteविषय कैसा भी क्लीष्ट क्यों ना हो आपकी लेखनी का प्रवाह सुगम बना देता है। तस्वीरें तो जैसे अपनी जबानी खुद ही कह देती हैं।
पनैले सांप देखने में बहुत ही सुखद लगा कि गंगा मईया इतने प्रदूषण के बाद भी दैवीय शक्तियाँ बचाये हुये हैं कि जल-जन्तु बने रहें और वो अपनी ओर से प्राकृतिक संतुलन बनाये रखने के प्रयास कर सकें।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
डाल्फ़िन.. गंगा में...सुखद आश्चर्य:)
ReplyDeleteसंगम स्नान के लिए गए तब गंगा जी यमुना जी बाढ़ पर थी . नावं से लौटने पर धार काटने में घंटा भर लगा . वहीँ पर गंगा डोल्फिन अपनी मस्ती में उछल रही थी और हम डर रहे थे कहीं नाव के नीचे से उछली तो हम तो गए काम से . नाव बाले ने हमारे डर का बहुत मजाक बनाया . तट पर पहुचते ही नाव वाले से मजाक में कहा अब डर हमसे ,क्योकि मेरे हाथ में रिवाल्वर थी उस समय
ReplyDeleteवैसे तो आपकी सभी पोस्ट अच्छी होती हैं (कहने की ज़रुरत है क्या?) मगर यह वाली पढ़कर कलेजे को विशेष ठंडक पहुँची. यह जानकार खुशी हुई कि सांइस अभी भी हैं और (शायद) उन्हें बचाया जा सकता है.
ReplyDeleteआँखें भर आईं, जाने क्यों !
ReplyDeleteआज की पोस्ट कल पढ़ेंगे।
ऐसा पढ़ा है कि जिस प्रकार कुकुरों को मनुष्य से खासा लगाव होता है (किसी अन्य जीव के मुकाबले) उसी प्रकार डॉल्फिनों को भी मनुष्य से लगाव होता है।
ReplyDeleteगंगा में अभी भी हैं यह वाकई सुखद समाचार है लेकिन कब तक रहेंगी इसकी आशंका बरकरार है! :(
संगम स्नान के लिए गए तब गंगा जी यमुना जी बाढ़ पर थी . नावं से लौटने पर धार काटने में घंटा भर लगा . वहीँ पर गंगा डोल्फिन अपनी मस्ती में उछल रही थी और हम डर रहे थे कहीं नाव के नीचे से उछली तो हम तो गए काम से . नाव बाले ने हमारे डर का बहुत मजाक बनाया . तट पर पहुचते ही नाव वाले से मजाक में कहा अब डर हमसे ,क्योकि मेरे हाथ में रिवाल्वर थी उस समय
ReplyDeleteआदरणीय ज्ञानदत्त जी,
ReplyDeleteविषय कैसा भी क्लीष्ट क्यों ना हो आपकी लेखनी का प्रवाह सुगम बना देता है। तस्वीरें तो जैसे अपनी जबानी खुद ही कह देती हैं।
पनैले सांप देखने में बहुत ही सुखद लगा कि गंगा मईया इतने प्रदूषण के बाद भी दैवीय शक्तियाँ बचाये हुये हैं कि जल-जन्तु बने रहें और वो अपनी ओर से प्राकृतिक संतुलन बनाये रखने के प्रयास कर सकें।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
डाल्फिनो का गंगा से कम होने के कई कारण हो सकते है, गंगा का पानी हद से ज्यादा गंदा होना ( जो एक सच है) ओर फ़िर लोग भी इस का शिकार करते होगे... शेर बाघ हम ने खत्म कर दिये हिरन भी मार भगाये ओर यह डाल्फ़िनो का ना भी लग गया....
ReplyDeleteवेसे आप का यह गंगा घाट एक दिन जरुर देखने आना पडेगा, बहुत सुंदर लिखा आप ने
मुझे प्रसन्नता इसलिये है कि सोंइस होने से यह प्रमाण मिलता है कि ईको-सिस्टम अभी बरबाद नहीं हुआ है।
ReplyDelete..hummmm !!
Dil ko Khush rakhne ko Ghalib ye khayal accha hai !!
डाल्फिनो का गंगा से कम होना एक दुखद धटना है।
ReplyDeleteबचपन में, जब करते थे गंगा पार..दिखती थी दूर सोंइस लहरों में कलैया खाते हुए...कैसे डर कर भाग आते थे हम! सब याद है। अब तो गंगा का अस्तित्व ही संकट में है।
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