कार्तिक में सवेरे चार-पांच बजे से स्त्रियां घाट पर स्नान प्रारम्भ कर देती हैं। इस बार इस ओर गंगाजी की कटान है और वेग भी तेज है। नहाने में दिक्कत अवश्य आती है। पर वह दिक्कत उन्हें रोकती हो – यह नहीं लगता।
मैं तो सवेरे पौने छ बजे गंगा तट पर जाता हूं। बहुत सी स्त्रियां लौटती दीखती हैं और कई तो स्नान के बाद पण्डाजी के पास संकल्प करती पाई जाती हैं। बहुत सी शंकर जी के मन्दिर में पूजा-अर्चना में दीखती हैं।
कल शाम शनिवार को उन्हें हनुमान जी के मन्दिर में पीपल के पेंड़ के थाले में दीपक सजाते पाया था। जगमगाते दीपक और ढेर सारा बिखरा तेल। उनपर आते अनेक चींटे – बड़ी प्रजाति वाले।
स्त्रियों की साधना-आराधना का मास लगता है कार्तिक!
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आज का सवेरा- सूर्योदय सवेरे ६:०३ बजे
स्त्रियां, सवेरे ६:०८ बजे
वापस लौटती स्त्रियां, सवेरे ६:१६ बजे
शनिवार को कल पीपल के थाले पर दिये सजाती स्त्रियां
पूरे देश में अभी भी सुबह जल्दी उठना बहुत अच्छी आदत मानी जाती है । दिन में इस तरह न केवल १ घंटा अतिरिक्त मिल जाता है अपितु दिन भर स्फूर्ति बनी रहती है । साथ ही साथ सुबह टहलने से व्यायाम और बहते जल में स्नान । यदि धर्म के नाम पर यह सब हो रहा है तो धर्म के इस पक्ष को क्यों न और पुष्ट किया जाये ।
ReplyDeleteऐसा शास्त्रों में कहा गया है की कार्तिक मास में गंगा स्नान और दान देने से पुण्य मिलता है बस सब सुबह सुबह थोड़ा समय भगवान को दे दिया करते है उन्हे याद करके...
ReplyDeleteसचित्र बढ़िया प्रस्तुति.....धन्यवाद
जै हो गंगा मैया की।
ReplyDelete...निबाहना तो कोई स्त्रियों से ही सीखे,,उनके बल पर ही तो हम सभ्यता और संस्कृति की नाव अनवरत खेते आ रहे हैं....सजीव चित्रण से गंगा स्नान तो तात आप हमारा भी करवा ही देते है....शुक्रिया.....अशेष..
ReplyDeleteयह तो शोध का विषय है की कातिक में ही वे ऐसा ज्यादा क्यों करती हैं ?
ReplyDeleteअब शहर लील रहे हैं यह संस्कार.
ReplyDeleteधन्य भये...फोटू में गंगा जी के दर्शन करते दो लौटा नल के जल से स्नान कर लिया. लेक ऑन्टारियो का ही जल सही..कार्तिक स्नान तो स्नान है ही. पत्नी को समझा दिया है..सब जल एक समान!!
ReplyDeleteहमारे यहाँ तो पौष मास यानि पूस यानी सबसे ठंडा मास को कन्याये अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए सूर्योदय से पूर्व गंगा स्नान करती है . या कहे करती थी . क्योकि परम्पराए खत्म हो चली है
ReplyDeleteकई पारम्परिक संस्कार पता चलते है.
ReplyDeleteजै गंगा मैया।
ReplyDeleteसंस्कृति की बहुत सी लौकिक परम्पराओं को स्त्री ने सुरक्षित रखा है.हर समुदाय की अपनी कुछ विशिष्ट रीतियाँ होती हैं जो शादी-ब्याह वगेरह में दिखाई देती हैं.उस समुदाय की महिलाओं ने जिसे अपनी मां और सास को ऐसा करते देखा था वही स्मृति में उसे सुरक्षित रखे रही.शास्त्रीय परम्पराएं तो लिखित रूप में सुरक्षित रहीं पर लौकिक परम्पराएं सिर्फ स्त्री ने ही बचा कर रखी है.आपकी इस पोस्ट के बहाने उसे प्रणाम.
ReplyDeleteशीर्षक देखकर लगता है जैसे बाकी के ग्यारह महीने स्त्रियाँ नहाती ही न हों।
ReplyDeleteपर हमें क्या ? जब स्त्रियों को ही आपत्ति नहीं :)
कार्तिक मास को पवित्र मास माना गया है। मुझे याद है कि जब मैं छोटा था तो मेरी दादी मुझे अपने साथ कार्तिक स्नान के लिए ले जाया करती थीं। वर्षों तक प्रतिदिन प्रातः मैं उनके साथ रायपुर के दूधाधारी मन्दिर की आरती में उपस्थित रहा हूँ
ReplyDeleteरामायणप्रेमी पाठकों को ध्यान में रखकर आज से मैंने एक नया ब्लॉग "संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" आरम्भ किया है। आशा करता हूँ कि आप सभी को मेरा नया ब्लॉग "संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" पसन्द आयेगा और उससे लाभान्वित होंगे।
आशा करता हूँ कि श्री ज्ञानदत्त जी मेरे इस प्रचार को सहर्ष अनुमति देंगे।
धन्यवाद!
शुकर भगवान का आप की आंख सुबह चार बजे नही खुली..... नही तो नहाती हुयी.... राम राम
ReplyDeleteकार्तिक शुक्ल षष्ठी को आलसी का जन्म हुआ था। नानी प्यार से छठ्ठू कहती थी तो बहुत बैकवर्ड लगती थी - आज सोचता हूँ तो अपने उपर लज्जा आती है। सूर्य पूजा की अद्वितीय तपोनिष्ठा से वह मुझे जोड़ती थीं और मैं ...! जाने कितनी ही बातों का महत्त्व 'बड़े' होने पर पता चला। इसीलिए बहुत बार मैं 'स्वयं कहो और स्वय़ं सुनो' की मन:स्थिति में होता हूँ।
ReplyDeleteसोच रहा हूँ कि पूरे कार्तिक प्रात: सबसे पहले आप की पोस्ट पढ़ी जाय और उसके बाद अवधिया जी की वाल्मीकि रामायण पढ़ी जाय। अपना पुण्य़ इसी से जुट जाएगा। पिताजी को भी समझा दूँगा, शायद वह मुझे नास्तिक कहने के पहले सोचेंगे। .....लेकिन यह तो इस पर निर्भर होगा कि आप यह क्रम जारी रखें।
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श्रीमती जी पीछे पड़ी हैं - पंडिताइन ने 23000 सूर्य मंत्रों का जाप बताया है। बहुत फॉलोअप के बाद मैंने आज रविवार के दिन प्रारम्भ करने को कहा था। वह शायद भुला गई हैं - तभी तो उनके हाथ की तली रोहू खाने के बाद मैं यह पोस्ट लिख रहा हूँ। सूर्य भगवान अब अगले अतवार तक अकुलाएँगे। ....
मैं यह सब क्यों लिख रहा हूँ ? सहज आत्मीयता के कारण? चचा सोचता हूँ आप से कभी साक्षात न मिलूँ। बस ऐसे ही आभासी दुनिया में सम्वाद होता रहे। .... भौतिक शरीर के साक्षात्कार कई बार बहुत कुछ 'भंग' कर देते हैं।..
बहुत दिन से जवाहिरलाल उर्फ सनीचरा नहीं दिख रहा है
ReplyDeleteपी ओ के कहीं पडा न हो :)
अरे आप तो गंगा वारे हैं आपके यहाँ तो हर मॉस स्नान का मॉस होता है. हमारे यहाँ तो बस होली, दिवाली! चित्र बहुत अच्छे लगे.
ReplyDeleteआदरणीय पाण्डेय जी,
ReplyDeleteइस समय तो रसूलाबद,संगम के साथ ही बलुआघट पर कितनी रौनक होगी इसकी मैं सिर्फ़ कल्पना कर रहा था कि आपकी पोस्ट पर मां के दर्शन भी हो गये।
वह भी सूर्योदय के समय।
वैसे इस समय बलुआघट के मेले की बड़ी याद आ रही है-----
हेमन्त कुमार
हालाँकि मैं बहुत ज्यादा धार्मिक नहीं हूँ ..नियमित पूजा पाठ भी नहीं हो पता ...मगर कार्तिक मास में सुबह सुबह मंदिर में दीपकों की कतारबंध पंक्तियाँ बहुत बचपन से लुभाती रही हैं ...बचपन में नानी के साथ और यहाँ जयपुर में भी २-३ बार इस मास में स्नान का पुण्य लाभ लिया है ... ...एक अलौकिक अनुभव होता है ...
ReplyDelete@अरविन्दजी ...
जहाँ तक शोध की बात है ...कार्तिक मास में तारों की छाँव में नदी के शीतल जल में स्नान करने से सर्दी से होने वाले रोग सर्दी जुखाम आदि से दूर रखने लायक प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है ...अब इस शहर में नदी तो नहीं है ...तो नल के ठंडे पानी से ही काम चलता है ...मगर यह अनुभव किया है की मौसम बदलते ही होने वाला सर्दी जुखाम कार्तिक मास में इतने ठंडे जल से स्नान पर भी कोई असर नहीं दिखाता ..
और कार्तिक स्नान सिर्फ स्त्रियाँ ही नहीं ...पुरुष भी कर सकते हैं ...ऐसा विधान है ...छोटी काशी कहलाये जाने वाले इस शहर में इस मास में मंदिरों में सुबह स्त्री और पुरुषों दोनों की है भारी उपस्थिति रहती है ..
आपको बहुत आभार ...दूर से ही सही इस मास में गंगाजी के दर्शन होते रहेंगे ...!!
striyon ke nahane ka maas:
ReplyDeleteChetra...
baishaakha....
jaiyesht...
aashad....
saawan...
bhado....
.....
Sabhi barah mahine.
To ye shirahska kuch atpata sa laga tha :)
कार्तिक में सवेरे चार-पांच बजे से स्त्रियां घाट पर स्नान प्रारम्भ कर देती हैं।
Aur sampann wahi 10-11 baje hota hoga snan !!
How do they manage?
Snana karna nahi...
...4-5 baje uthna?
पुराने रीतिरिवाज लुप्त होते जा रहे हैं.....कार्तिक में स्त्रीयों द्वारा स्नान की परम्परा के पीछे जरूर कोई वजह रही होगी।इस बारे में कुछ जानते हो तो जरूर लिखे।पोस्ट व चित्र बढिया हैं।
ReplyDeleteज्ञान में इजाफा..
ReplyDeleteमेरे लिये तो सबसे पवित्र स्मृति कार्तिक मास में तुलसी चौरे पे दिया जलाती माँ के पास बैठने की होती है।
ReplyDeleteअजीब सा रहस्यबोध होता है..लगता है कि जीवन का रहस्य अभी उभर आयेगा। शब्दातीत.....
इस स्नान-दान का ऐसे कोई महत्व हो या न हो, लेकिन हमारी परंपरा से हमें जोड़े रखने और कहीं न कहीं पूरे देश को एक सूत्र में बांधे रखने के माध्यम ये ज़रूर हैं. यह अलग बात है कि इसके नाम पर कुछ लोगों की रोज़ी-रोटी भी चल रही होती है. इस रोजी-रोटी को कुछ लोग तो रोजी-रोटी तक ही सीमित रखते हैं, लेकिन कुछ लोग पांच सितारा निवासों और बिज़नेस क्लास हवाई यात्राओं तक लिए जाने की कोशिश करते हैं. ऐसी कोशिश करने वालों की कमी प्रयागराज में भी नहीं है. कुछ उनके प्रयासों पर भी लिखें. प्रतीक्षा रहेगी.
ReplyDeleteवैसे आपने झांकी अच्छी सजाई है.
Maine to suna tha ki Kartik Maah mein Jamuna Snan ka Mahatwa hai par aap sapramaan ganga snan kara rahay hain to meri kya bisaat ki main iske mahatwa ko na maanun.
ReplyDeleteगिरिजेशजी कह रहे हैं.:'भौतिक शरीर के साक्षात्कार कई बार बहुत कुछ 'भंग' कर देते हैं।' सच में?
ReplyDeleteभारतीय परम्पराओं की
ReplyDeleteसचित्र छवि
आपके ब्लॉग पर देख पाना
सुखद अनुभव है मेरे लिए ........
ना गंगा माई को ही देखा है आज तक ,
नाही दीप जलाकर
पीपल तले
उन्हें सजाकर रखतीं स्त्रियाँ ...
कार्तिक माह स्नान का
उन्हें खूब पुन्य मिले
- लावण्या
आदरणीय ज्ञानदत्त जी,
ReplyDeleteकार्तिक माह का स्नान, कतकी का मेला, यही वह सब है जो छूट गया था, यादें ताजा हो आई वो नानी का अस्सी बरस की उमर में गंगाजी जाना तड़के तड़के फिर पूजा पाठ, बरखण्ड़ेश्वर बाबा की पूजा तब कहीं जाकर चाय, चबैना।
चित्रमय झलकियों ने वहीं किले और संगम की सैर करा दी।
बहुत अच्छी पोस्ट,
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
आदरणीय ज्ञानदत्त जी,
ReplyDeleteकार्तिक माह का स्नान, कतकी का मेला, यही वह सब है जो छूट गया था, यादें ताजा हो आई वो नानी का अस्सी बरस की उमर में गंगाजी जाना तड़के तड़के फिर पूजा पाठ, बरखण्ड़ेश्वर बाबा की पूजा तब कहीं जाकर चाय, चबैना।
चित्रमय झलकियों ने वहीं किले और संगम की सैर करा दी।
बहुत अच्छी पोस्ट,
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
आदरणीय पाण्डेय जी,
ReplyDeleteइस समय तो रसूलाबद,संगम के साथ ही बलुआघट पर कितनी रौनक होगी इसकी मैं सिर्फ़ कल्पना कर रहा था कि आपकी पोस्ट पर मां के दर्शन भी हो गये।
वह भी सूर्योदय के समय।
वैसे इस समय बलुआघट के मेले की बड़ी याद आ रही है-----
हेमन्त कुमार
कार्तिक मास को पवित्र मास माना गया है। मुझे याद है कि जब मैं छोटा था तो मेरी दादी मुझे अपने साथ कार्तिक स्नान के लिए ले जाया करती थीं। वर्षों तक प्रतिदिन प्रातः मैं उनके साथ रायपुर के दूधाधारी मन्दिर की आरती में उपस्थित रहा हूँ
ReplyDeleteरामायणप्रेमी पाठकों को ध्यान में रखकर आज से मैंने एक नया ब्लॉग "संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" आरम्भ किया है। आशा करता हूँ कि आप सभी को मेरा नया ब्लॉग "संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण" पसन्द आयेगा और उससे लाभान्वित होंगे।
आशा करता हूँ कि श्री ज्ञानदत्त जी मेरे इस प्रचार को सहर्ष अनुमति देंगे।
धन्यवाद!
संस्कृति की बहुत सी लौकिक परम्पराओं को स्त्री ने सुरक्षित रखा है.हर समुदाय की अपनी कुछ विशिष्ट रीतियाँ होती हैं जो शादी-ब्याह वगेरह में दिखाई देती हैं.उस समुदाय की महिलाओं ने जिसे अपनी मां और सास को ऐसा करते देखा था वही स्मृति में उसे सुरक्षित रखे रही.शास्त्रीय परम्पराएं तो लिखित रूप में सुरक्षित रहीं पर लौकिक परम्पराएं सिर्फ स्त्री ने ही बचा कर रखी है.आपकी इस पोस्ट के बहाने उसे प्रणाम.
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