Tuesday, March 17, 2009

टूटा मचान


टूटा मचान खूब मचमचा रहा है। सदरू भगत चढ़ने की कोशिश कर रहे हैं उसकी टूटी मचिया पर। पर जितनी बार ट्राई मारते हैं, उतनी बार बद्द-बद्द गिरते हैं पठकनी के बल। आलू-परवल का चोखा खा कर इण्टेलेक्चुअल बनने चले हैं लण्ठ कहीं के!

सदरुआइन बार बार कहती हैं कि तोहरे सात पुश्त में कौनो इण्टेलेक्चुअल रहा; जौन तुम हलकान किये जा रहे हो जियरा! इतना हलकान हम पर किये होते तो सिलिमडाक जैसी फिलिम बना दिये होते। रह गये बौड़म के बौड़म!

टूटा मचान भविष्यवाणी करता है - इण्टेलेक्चुअल बनना है तो दलितवादी बनो, साम्यवादी बनो। समाजवादी भी चलेगा। पर भगतवादी बनने से तो आरएसएस के भलण्टियर से ज्यादा न बन पाओगे! कौनो करीयर न बनेगा - न साहित्त में, न राजनीति में न साइकल का ही!

टूटा मचान की चिथड़ी पॉलीथीन की ध्वजा फहरा रही है। पर यह चिरकुट ही कहते हैं कि हवा बह रही है या ध्वजा फहरा रही है। इण्टेलेक्चुअल ही जानते हैं कि पवन स्थिर है, ध्वजा स्थिर है; केवल मन है जो फहर रहा है।

मन को टूटे मचान पर एकाग्र करो मित्र! पंगेबाजी में क्या धरा है!

बताओ, कबीर एमबीए भी न थे! यह मुझे शिवकुमार मिश्र की इसी पोस्ट की टिप्पणी से पता चला! :

सदरू भगत अगर अनपढ़ हैं तो क्या हुआ? कबीर कौन सा बीए, एमए पास किये थे? सुना है एमबीए भी नहीं पास कर पाए थे। कबीर का लिखा पढ़कर न जाने कितने इंटेलेक्चुअल गति को प्राप्त हो गए!

22 comments:

  1. ठीक है जी, जिसको जो कहना है कहे. मात्र हाफ पेंटिये कहलाने के डर से चुप काहे रहें? :)

    चिंतन सही है.

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  2. अरे यहाँ तो कुछ और ही लिखा है ।
    हम शीर्षक देख कर कुछ और ही समझे थे ।

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  3. जो भी हो सामने तो हो.....ये क्या की बाहर सामाजवादी ओर अन्दर से हांफ पेंटिया ....कम से कम इस मामले में हांफ पेंटिया अच्छे है जो सामने है वाही भीतर है .वैसे भी मुलायम जैसे समाजवादी ओर बंगाल के कोम्मुनिस्तो को देखकर अब किसी वाद से डर लगने लगा है .....अभिव्यक्ति से डर काहे ????

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  4. आर एस एस के तीन काम
    भोजन बैठक और विश्राम

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  5. अरे वाह,
    ये तो एक नया चैनल चालू कर दिया आपने, :-)
    वैसे आपने होली पर कोई पोस्ट नहीं लिखी, कम से कम घर पर बने पापड/चिप्स/गुंजिया की फ़ोटो ही दिखा देते :-)

    इलाहाबाद वालों ने आपको जमकर रंग लगाया कि नहीं ?

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  6. प्रणाम
    पवन स्थिर है, ध्वजा स्थिर है; केवल मन है जो फहर रहा है।
    मन तो चंचल है , उसे चंचल ही रहने दिया जाये , बाकि तो दिमाग का फितूर है चलता ही रहेगा .

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  7. कमाल है, सदरू भगत ने किताब कब से लिखना शुरू कर दिया जबकि उन्हें मैंने अनपढ ही गढा है। उनकी सदरूआईन यानि रमदेई भी क्या इतनी इसमारट हो गई है कि सिलमडाक तक झाड कर रख दे।
    लगता है सदरू भगत का कोई और Version Develop हो रहा है :)

    जय हो सदरू भगत की :)

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  8. इण्टेलेक्चुअल ही जानते हैं कि पवन स्थिर है, ध्वजा स्थिर है; केवल मन है जो फहर रहा है।

    -गहन चिंतन है Sir जी आज!

    --नीरज जी की बात पर भी ध्यान दिजीयेगा.. अम्मा जी की बनाई गुजिया की तस्वीर ही दिखा देते आप कम से कम!
    यूँ bhi घर की बनी गुजिया खाए /देखे साल हो गया -खुद बनाने में बहुत आलस आता है!:D

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  9. बात तो घणी चोखी कही जी आपने. अब सदरू भगत और रमदेई भी स्टार हो रहे है.

    रामराम.

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  10. इण्टेलेक्चुअल ही जानते हैं कि पवन स्थिर है, ध्वजा स्थिर है; केवल मन है जो फहर रहा है।

    मेरी नजर में आप ऐसे इकलौते ब्लॉगर हैं, जो नए नए कोटेशन गढते रहते हैं।

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  11. @ सतीश पंचम -
    वास्तव में ब्लॉगिंग में चरित्र रूपान्तण विचित्र है।
    वाल्ट डिज्नी डोनाल्ड डक बनाते हैं और वह वही रहता है। पर आप एक अनपढ़ चरित्र गढ़ें और भाई लोग उसे हार्वर्ड का प्रोफेसर बना डालें - यह सम्भव है!

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  12. सदरू भगत अगर अनपढ़ हैं तो क्या हुआ? कबीर कौन सा बीए, एम्ए पास किये थे? सुना है एमबीए भी नहीं पास कर पाए थे. कबीर का लिखा पढ़कर न जाने कितने इंटेलेक्चुअल गति को प्राप्त हो गए. ऐसे में सदरू भगत की किताब पढ़कर भी लोग उसी गति को प्राप्त हो सकते हैं.

    कितान का नाम 'टूटा मचान' भी बढ़िया है. नाम भारतीयता को प्रमोट भी करता है.

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  13. बाप रे! intellectual बातें हो रही हैं, सर पर पैर रख कर भागे हम तो.

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  14. apake favicon par pahli baar dhyan gaya...badhiya hai :)

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  15. लगता है कौनो भारी इंटलेक्चुअल कान्फरेन्स हो रहा है,कितनाहूँ दीदा फाड़ के आ कान खजुआ के समझने का कोसिस कर रहे हैं,मुदा कुच्छो नहीं बुझा रहा....

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  16. "मन को टूटे मचान पर एकाग्र करो मित्र! पंगेबाजी में क्या धरा है!"

    सत्य वचन भईया...हम इस बात को गाँठ बाँध लिए हैं...पक्का...
    नीरज

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  17. चुनावी बयार में मनवा में हलचल शुरू होई गवा ज्ञान जी के !

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  18. टूटा मचान भविष्यवाणी करता है - इण्टेलेक्चुअल बनना है तो दलितवादी बनो, साम्यवादी बनो।
    आज तक किसी यूनिवर्सिटी ने ‘इण्डेलेक्चुअल’ की डिग्री की ईजाद नहीं की और फिर, ये ‘वादी’ तो अभी तक सत्ता के गलियारों की वादी में ही एक ठो कुर्सी की तलाश में भटक रहे हैं:)

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  19. मन ही तो है जो सर्वस्व को समा ले या विष उगल दे :)

    शिव भाई की टीप्पणी और आपकी प्रविष्टी पढ आज 'वाह' कह दिया


    राही मनवा दुख की चिँता
    क्यूँ सताती है,
    दुख तो अपना साथी है

    स स्नेह,
    - लावण्या

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  20. हांफ पेंटिया.....
    चलिये हम तो चले अल्पना जी की गुजिया खाने हमे यह फ़ुल ओर हांफ पेंटिया दोनो मे कोई फ़र्क नही लगता, सब एक ही लगते है, लेकिन आप की इस प्यारी सी पोस्ट पर वाह वाह वाह वाह जरुर करेगे.
    धन्यवाद

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  21. क्या इसे मैं जवाबी हमला कहु.. ?

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  22. मन को फहराते रहें. आभार.

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय