लाइफ पत्रिका ने अपनी फोटो आर्काइव गूगल सर्च के माध्यम से उपलब्ध कराई है – व्यक्तिगत और नॉन-कमर्शियल प्रयोग के लिये।
मुझे यह आभा गांधी की फोटो बहुत अच्छी लगी। मारग्रेट बुर्के-ह्वाइट का सन १९४६ में लिया गया यह चित्र आभाजी को पुराने और नये मॉडल के चर्खे के साथ दिखाता है। कितनी सुन्दर लग रही हैं आभाजी। मैने ज्यादा पता नहीं किया, पर बंगला लड़की लगती हैं वे। और यह फोटो देख मेरा मन एक चरखा लेने, चलाने का होने लगा है।
पिछली पोस्ट:
जी विश्वनाथ: मंदी का मेरे व्यवसाय पर प्रभाव
आभा गांधी के चित्र की मोहकता क्रमशः उदात्तता में परिणत हो गयी देखते-देखते ।
ReplyDeleteअतीव सुन्दर
ReplyDeleteअच्छे चित्र हैं। चरखा ले कर क्या करेंगे? मन तो बहुत चीजों के लिए करता है। पर सब होती थोड़े ही हैं। मन की करते जाएँ तो घर म्यूजियम हो जाए। (मैं ने अजायबघऱ जान बूझ कर नहीं लिखा।)
ReplyDeleteआपकी यह पोस्ट पढ़कर मेरा मन बिलाग लिखने का करने लगा है !
ReplyDeleteअब चरखा बन्द करके हमारी टिप्पणी को प्रकाशित कर दीजिए बस !
बहुत सुंदर विवरण दिया है आपने.
ReplyDeleteरामराम.
इन चित्रों को पुरानी शेल्फों से बाहर लाकर हम तक पहुंचाने के लिए आपका आभार.
ReplyDeleteबहुत मन भावन सी पोस्त है। ज्याद समय भी नहीं खपता इसमें। :)
ReplyDelete@विवेक सिंह
ब्लॉग लिखना दुबारा शुरू करने में आप काफी देर कर चुके हैं। अब यह बहाना काफी है कलम उठाने के लिए। :D
अच्छे लगे ये चित्र ... धन्यवाद।
ReplyDeletena na photo par mat jaaiye, dekhne me bhale hi aasan lagta ho, charkha chalana hai badi mushkil ka kaam. ek baar shuru kar diya to usi ke lapete me aa jayenge, fir blog kab likhiyega aur ham kaise padhnege.
ReplyDeleteaam janta ka khayal karte huye ye kaam naa hi kijiye...
black and white photographs me ek alag hi akarshan hota hai, ye hamse share karne ke liye thank you.
आभा गांधी की तस्विर बहुत सुन्दर है..
ReplyDeleteऔर विवेक भाई की टिप्पणी देख कर भी अच्छा लगा.. आ जाओ साहेब.. स्वागत..
sunder photo.
ReplyDeleteकभी कभी अतीत में झांक लेने से नया मनोबल मिलता है। गांधीजी और उनकी बहू आभा की तस्वीर देख कर उस इतिहास को ताज़ा कर दिया जो अब लोग प्रायः भूलते जा रहे हैं।
ReplyDeleteलाइफ पत्रिका ने यह बहुत बढ़िया काम किया है, साधुवाद।
ReplyDeleteअक्सर जब कभी चरखा या उसकी तस्वीर देखता हूं तो अपने पिताजी की याद आ जाती है
और साथ मे याद आता है अपना बचपन। उनका चरखा आज भी रखा हुआ है।
सुन्दर फ़ोटो! इसी बहाने आपका इतवार को न लिखने का क्रम टूटा!
ReplyDeleteक्या केने क्या केने
ReplyDeleteदोनों tasweeren behad अच्छी हैं.achcha sankalan किया है.
ReplyDeleteabha जी की tasweer pahli बार dekhi ..purane वाला charkha अब भी शायद कहीं मिलता jarur होगा..
gaavon से sut kat.tey हैं.आप का मन कर रहा है तो ले aayeye..यह भी एक vyayam ही तो है.
गांधी जी की मुस्कुराहट के क्या कहने, तस्वीरें बांटने का शुक्रिया!
ReplyDeletenice photographs
ReplyDeleteदुर्लभ चित्र.
ReplyDeleteक्या समय था भारत मेँ और आज आभा जी और गाँधी जी के जीवन पर भी बहस का बाज़ार गरम है ये आज का सच है
ReplyDelete- लावण्या
अब तो आप जो भी लिख देंगे टिप्पणीकार महानुभाव लाइन लगा देंगे। एक दूसरे पर गिर पड़ेंगे। यह उपलब्धि हासिल करने में जरूर आपने बड़ी मेहनत की होगी। ठीक वैसे ही जैसे गान्धी बाबा ने की थी। तभी तो उनका चरखा आज भी आभा जी को खूबसूरत बना दे रहा है।
ReplyDeleteनेहरू जी ने गान्धी के कुटीर उद्योग की अवधारणा हवा में उड़ा दी थी । बड़े-बड़े उद्योगों को भारत का मन्दिर बताया था ...लेकिन गान्धी नाम के साथ कुछ भी चल जाएगा जी। जैसे यह पोस्ट।
nice pictures
ReplyDeleteशुक्र है, गांधी चर्चा 'नीलामी' से अन्य सन्दर्भ में हुई।
ReplyDeleteगांधी आज केवल भारत की ही नहीं, समूचे विश्व की अनिवार्यता हैं। उनका रास्ता की समूची मानवता की बेहतरी का रास्ता है।
मैं खुद चरखा नहीं कातता हूं किन्तु आपसे अनुरोध कर रहा हूं कि आपके मन में चरखा लेने का भाव आया है तो चरखा अवश्य लीजिए किन्तु कातने के लिए, ड्राइंग रूम की सजावट के लिए नहीं।
यदि ऐसा कर सकें तो अपने अनुभव अवश्य बताइएगा।
Nice pictures.
ReplyDeleteदुर्लभ ! चरखा तो नहीं तकली एक-दो बार जरूर ट्राई किया है.
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