मेरी पत्नी होली विषयक अनिवार्य खरीददारी करने कटरा गई थीं। आ कर बताया कि इस समय बाजार जाने में ठीक नहीं है। बेतहाशा भीड़ है। मैने यह पूछा कि क्या मन्दी का कुछ असर देखने को नहीं मिलता? उत्तर नकारात्मक था।
मेरा संस्थान (रेलवे) बाजार से इन्सुलर नहीं है और मन्दी के तनाव किसी न किसी प्रकार अनुभूत हो ही रहे हैं।
सरकारी कर्मचारी होने के नाते मुझे नौकरी जाने की असुरक्षा नहीं है। उल्टे कई सालों बाद सरकारी नौकरी होना सुकूनदायक लग रहा है। पर मेरा संस्थान (रेलवे) बाजार से इन्सुलर नहीं है और मन्दी के तनाव किसी न किसी प्रकार अनुभूत हो ही रहे हैं।
यह मालुम नहीं कितनी लम्बी चलेगी या कितनी गहरी होगी यह मन्दी। पर हिन्दी ब्लॉगजगत में न तो इसकी खास चर्चा देखने में आती है और (सिवाय सेन्सेक्स की चाल की बात के) न ही प्रभाव दिखाई पड़ते हैं। शायद हम ब्लॉगर लोग संतुष्ट और अघाये लोग हैं।
इस दशा में बीबीसी हिन्दी का धारावाहिक मुझे बहुत अपनी ओर खींचता है।
भरतलाल से मैने पूछा – कहीं मन्दी देखी? वह अचकचाया खड़ा रहा। बारबार पूछने पर बोला – का पूछत हयें? मन्दी कि मण्डी? हमके नाहीं मालुम! (क्या पूछ रहे हैं? मन्दी कि मण्डी? हमें नहीं मालुम!) |
मेरी अम्मा होली की तैयारी में आलू के पापड़ बनाने में लगी हैं। गुझिया/मठरी निर्माण अनुष्ठान भी आजकल में होगा – मां-पत्नी के ज्वाइण्ट वेंचर से।
आपको होली मुबारक।
पिछली पोस्ट - एक गृहणी की कलम से देखें।
आपको, आपके परिवार को, वरिष्ठजनों को, होली पर्व की शुभकामनायें
ReplyDeleteहोली के पकवान जोइंट वेंचर के माध्यम से . साधू साधू .
ReplyDeleteमंदी कहां है मंदी.. मैं भी यही सोचता हूँ...
ReplyDeleteजॉइन्ट वेंचर की मीठाई सहित "होली की ढेरो शुभकामनाऐं.."
आपको होली की बहुत शुभकामनाये.इस पर्व के जोश पर मन्दी का कभी असर न हो.
ReplyDeleteभारत में नहीं है मंदी ... होली की ढेरो शुभकामनाएं।
ReplyDeleteहालांकि मंदी की मार से हम जैसे बचे हुए हैं, लेकिन अपने काम्प्लेक्स में ही देखा है लोगों को नज़रें झुका कर घूमते .... इतनी दूर भी नहीं है ये हम से ......
ReplyDeleteबहरहाल ...... होली मुबारक़ हो .... आप को और आप के परिवार को !!
न मंदी न मण्डी -सब कुछ ऐसयीच ही हैं इंडियन मा !
ReplyDeleteअख़बारों में जो खबरें आ रही हैं उनके अतिरिक्त हमें तो कहीं कुछ नहीं दिख रहा. कीमतें भर बढती जा रहीं हैं. होली की शुभकामनायें.
ReplyDeleteज्ञानजी,
ReplyDeleteइस मंदी और मेरे व्यवसाय पर असर के बारे में लिखना आरंभ किया था
पर व्यस्तता के कारण रुक गया। इस विषय पर अवश्य लिखना चाहता हूँ। थोड़ा और समय चाहता हूँ।
आप सब को होली की शुभकामाएं
मेरी अम्मा होली की तैयारी में आलू के पापड़ बनाने में लगी हैं। गुझिया/मठरी निर्माण अनुष्ठान भी आजकल में होगा – मां-पत्नी के ज्वाइण्ट वेंचर से।
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को होली की रंग-बिरंगी ओर बहुत बधाई।
regards
होली की हार्दिक शुभकामनायें और बधाई, मंदी की मार सरकारी कर्मचारिओं पर कम पड़ी है.
ReplyDeleteब्लॉग में मंदी नही आ पाने के कारण कई है.. पर उस पर यदि बात कि जाए तो घमासान हो सकता है.. इसलिए उन्हे उनके हाल पर छोड़ देते है.. और आपको बधाई देते है होली क़ी..
ReplyDeleteआपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनायें ।
ReplyDeleteआपको व परिवार को होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं .
ReplyDeleteशायद हम ब्लॉगर लोग संतुष्ट और अघाये लोग हैं।
ReplyDeletebahut wazan hai is baat mein..shayad yahi wajah hai is vishay par jyada likha hua dekha nahin.
Amma ji ko papad banatey dekh kar laga ,main bhi pahunch jaun..paapad khane..khud se to aaj kal ghar mein papad etc.banana kahan hota hai..
Holi ki dher sari shubhkamnayen ghar mein sabhi ko dijeeyega.
होली की शुभकामनायें !
ReplyDeleteआप सही कहते हैं। लेकिन मंदी का असर है। हम वकीलों पर इस का असर है। शेयर बाजार में लुटिया डूब जाने, मंदी के बहाने फीस नहीं आ रही है। कैम्पस सेलेक्शन की आस में लड़के लड़कियाँ चक्कर लगा रहे हैं, वहीं कैम्पस सलेक्शन करवाने वाले ऐजेण्ट उन के पीछे हैं। प्रोपर्टी मार्केट में खरीददार खूब चक्कर लगा रहे हैं लेकिन खरीद नहीं रहे हैं। सब जगह मंदी है। बस चल रहा है तो खाने पीने और मौज मस्ती का व्यापार। होली तो वैसे ही मनेगी जैसे मनती आई है। होली का चंदा इस बार कोई मांगने नहीं आया। हाँ होली सहयोग ले गए हैं बच्चे और होली बना रहे हैं। महल्ले में कहीं विजया घुट रही है। सब कुछ वही है। मंदी भी है और होली भी। होली पर आप को, रीता भाभी और सब परिवार जनों को बधाई।
ReplyDeleteमंदी के चक्कर में कई बेचारों की नौकरियां गईं। प्राइवेट सेक्टर ने बहती गंगा में हाथ धोए हैं। अलबत्ता बाजार में जितनी महंगाई होती है उतनी ही है। अलबत्ता कोई अनदेखी मुसीबत पीछे से झांक रही हो तो भगवान बचाए..
ReplyDeleteहोली पर आप सबको मुबारकबाद..
जै जै
आपको सपरिवार रंगोत्सव की हार्दिक शुभकामना....
ReplyDeleteप्राइवेट नौकरी पेशाओं के लिए तो निश्चित रूप से होली मंदी पड़ गई है....पर कोई बात नहीं,होली तो कीचड पानी से भी उतनी ही मस्ती से खेली जा सकती...खुश होने के लिए बाज़ार के रंग की जरूरत नहीं पड़ती....मन ख़ुशी के रंग से भिंगोकर होली मनाई जा सकती है.
होली की रंगकामनायें स्वीकार करें।
ReplyDeleteशुक्र है भरतलाल ने यह नहीं पूछा कि
मंडी
शबाना नसीर वाली फिल्म।
उसने सब्जी वाली मंडी ही पूछी।
होली पर तो देहमंडी भी पूछी जा सकती है।
वैसे मंदी का असर देह पर ही पड़ता है।
आपको एवम आपके सपरिवार को हे प्रभु के पुरे परिवार, कि तरफ से भारतीय सस्कृति मे रचा- बसा, "होली" पर्व पर घणी ने घणी शुभकामनाऐ :)(: )(::
ReplyDeleteआप ने बहुत सही मुददा उठाया है, मंदी के बारे में बात होनी चाहिए, अब तो विश्व बैंक ने कहना शुरु कर दिया है कि ग्रेट डिप्रेशन के बाद का ये सबसे खराब दौर है, यानि के एक और डिप्रेशन सर पर है। हम सरकारी नौकरी वाले कुछ हद्द तक बचे हुए हैं लेकिन डरे हुए हैं। बहुत जल्द इसके बारे में लिखेगें।
ReplyDeleteआलू के पापड़? क्या अब भी बनते हैं? प्लीईईईईईइज हमें रेसिपी दिला दिजीए न, बहुत साल हो गये खाये। और क्या क्या याद दिलायेगा ये ब्लोगजगत मुझे?………:)
टिप्पणी लिखी थी पता नहीं कहा गयी, फ़िर से लिख रही हूँ ।
ReplyDeleteआप ने बहुत अच्छा मुद्दा उठाया, इस बारे में बात होनी चाहिए, अब तो विश्व बैंक ने भी कह दिया है कि ग्रेट डिप्रेशन के बाद ये मंदी का सबसे खतरनाक दौर है, और ग्रेट डिप्रेशन एक बार फ़िर से हमारे द्वार खड़ा है।
हां हम सरकारी नौकर कुछ हद तक बचे हुए तो है पर डरे हुए भी हैं। दूसरों के घर के मनहूसी छायी हो तो अपने घर मस्ती कैसे छा सकती है।
खैर , आप को सपरिवार होली की शुभकामनाएं।
आलू के पापड़? अब भी बनते हैं? प्लीईईईईइज मुझे रेसीपी दिला देगें क्या? बहुत साल हो गये खाये हुए? ये ब्लोगजगत और क्या क्या याद दिलवायेगा हमें?…।:)
Aapke blogpe pehlee baar aayee hun..bohot achhaa laga padhke....Haan...kaisee vidambana hai....Jo aapne kathan kee....!
ReplyDeleteRoman hindi me likh rahee hun, isliye, dono shabon ke hijje ekhee honge...!
Aapko aur aapke sabhee blog ke doston ko tyohaar kee hardik shubhkaamnayen..!
हम दाल रोटी वाले ब्लागर हैं। खाये-पिये अघाये नहीं।
ReplyDeleteलोगों से सरकारी नौकरी के रोने सुनते मुझे २० साल
हो गये। लेकिन ऐसे लोग बीस भी नहीं मिले जो नौकरी छो़ड़कर गये हों कहीं।
होली मुबारक। गुझिया बनवाने के किस्से लिखे जायें!
मन्दी का प्रभाव उतना व्यापक अनुभव नहीं होगा जितना अखबारों में देखने/पढने को मिलता है। हमारे बैंकों ने, अमरीकी बैंकों की तरह 'सब प्राइम लोन' नहीं दिए, सो हमारा बेडा गर्क नहीं हुआ। मध्यम वर्ग की 'बचत की मानसिकता' ने इस दौर में जो ताकत पूरे देश को दी है उसकी कल्पना भी कोई नहीं कर पा रहा है।
ReplyDeleteनिस्सन्देह, मन्दी का प्रभाव है तो अवश्य किन्तु उतना नहीं, जितना चर्चाओं में, अखबारों में है। यह हमारे परम्परावादी (और कुछ सीमा तक रूढीवादी) होने का प्रतिफल भी है।
ब्लागर अघाए हुए लोग हैं या नहीं किन्तु मन्दी से प्रत्यक्षत: प्रभावित तो नहीं ही हैं।
होली की सपरिवार शुभकामनाएँ माताजी को प्रणाम - मँदी तो यहाँ पर भी है पर, त्योहार और जीवन ऋतुओँ के साथ आते जाते रहते हैँ
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को होली की रंग-बिरंगी ओर बहुत बधाई।
ReplyDeleteबुरा न मानो होली है। होली है जी होली है
मंदी की चर्चा ब्लॉगजगत में न देखकर मुझे भी थोडी हैरानी हुई मगर मुझे लगा शायद अपने गायब रहने की वजह से मुझे पता नहीं चला होगा मगर मुझे नहीं लगता कि जिन लोगों को मंदी की चपेट लगी है या जो इससे बहुत प्रभावित हुए हैं, ऐसे लोगों की उपस्थिति हिंदी ब्लॉगजगत में ज्यादा है. जो हैं, मेरी तरह, उनकी सिट्टी-पिट्टी मेरी ही तरह गम है और ब्लॉगजगत से गायब रहेने का सबब भी यही मंदी है. हो सकता है मेरा मत गलत हो.
ReplyDeleteहोली कैसी हो..ली , जैसी भी हो..ली - हैप्पी होली !!!
ReplyDeleteहोली की शुभकामनाओं सहित!!!
प्राइमरी का मास्टर
फतेहपुर
मंदी का असर आम आदमी तक पहुंचने मे वक्त लगेगा अभी तो जिन्होने मेजे मारे हैं तेजी के उन पर ही देखाई दे रहा है. अभी देखते जाईये.
ReplyDeleteआपको परिवार सहित होली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं.
सरकारी होने के बड़े फायदे हैं......उनमे से एक आपने गिना दिया! होली की शुभ कामनाएं!
ReplyDeleteभाई ज्ञान जी,
ReplyDeleteमंदी के बारे में लेख ब्लॉग जगत में नहीं आते, ऐसा नहीं है, मेरे ब्लॉग के निम्न लेख पर गौर फरमायें......
"Monday, 13 October, 2008
करें तो क्या करे ?????????????
करें तो क्या करें??????????????
मित्रो,
अक्सर हमें हिदायतों भरे ऐसे लेख पात्र- पत्रिकाओं में पढने को मिल जातें हैं, जो देखने-सुनने में तो काफी लुभावने, और मार्गदर्शक से लागतें हैं, पर यदि अमल में लेते हैं तो " लौट के बुद्धू घर को आए" सरीखा हाल होता है।
ऐसा ही एक लेख हमें इकोनोमिक्स टाइम्स में मिला जो हु-ब-हु प्रस्तुत है.......
नौकरी कर रहे हैं, तो जानिए अपने अधिकारों
3 Oct, 2008, 1510 hrs IST, इकनॉमिक टाइम्स
टेक्स्ट:
वॉल स्ट्रीट के डरावने सपने ने कई भारतीयों को पहली बार आर्थिक अनिश्चितताओं के रूबरू लाकर खड़ा कर दिया है। खास तौर से उन लोगों को जिन्होंने अपने करियर के दौरान मंदी का दौर नहीं देखा था। ................."
इस पर आपने टिप्पणी भी दी थी. खैर बात ५ माह पुरानी सो ............
होली पर आपको सपरिवार हार्दिक बधाई.
भाई ज्ञान जी,
ReplyDeleteमंदी के बारे में लेख ब्लॉग जगत में नहीं आते, ऐसा नहीं है, मेरे ब्लॉग के निम्न लेख पर गौर फरमायें......
"Monday, 13 October, 2008
करें तो क्या करे ?????????????
करें तो क्या करें??????????????
मित्रो,
अक्सर हमें हिदायतों भरे ऐसे लेख पात्र- पत्रिकाओं में पढने को मिल जातें हैं, जो देखने-सुनने में तो काफी लुभावने, और मार्गदर्शक से लागतें हैं, पर यदि अमल में लेते हैं तो " लौट के बुद्धू घर को आए" सरीखा हाल होता है।
ऐसा ही एक लेख हमें इकोनोमिक्स टाइम्स में मिला जो हु-ब-हु प्रस्तुत है.......
नौकरी कर रहे हैं, तो जानिए अपने अधिकारों
3 Oct, 2008, 1510 hrs IST, इकनॉमिक टाइम्स
टेक्स्ट:
वॉल स्ट्रीट के डरावने सपने ने कई भारतीयों को पहली बार आर्थिक अनिश्चितताओं के रूबरू लाकर खड़ा कर दिया है। खास तौर से उन लोगों को जिन्होंने अपने करियर के दौरान मंदी का दौर नहीं देखा था। ................."
इस पर आपने टिप्पणी भी दी थी. खैर बात ५ माह पुरानी सो ............
होली पर आपको सपरिवार हार्दिक बधाई.
मन्दी का प्रभाव उतना व्यापक अनुभव नहीं होगा जितना अखबारों में देखने/पढने को मिलता है। हमारे बैंकों ने, अमरीकी बैंकों की तरह 'सब प्राइम लोन' नहीं दिए, सो हमारा बेडा गर्क नहीं हुआ। मध्यम वर्ग की 'बचत की मानसिकता' ने इस दौर में जो ताकत पूरे देश को दी है उसकी कल्पना भी कोई नहीं कर पा रहा है।
ReplyDeleteनिस्सन्देह, मन्दी का प्रभाव है तो अवश्य किन्तु उतना नहीं, जितना चर्चाओं में, अखबारों में है। यह हमारे परम्परावादी (और कुछ सीमा तक रूढीवादी) होने का प्रतिफल भी है।
ब्लागर अघाए हुए लोग हैं या नहीं किन्तु मन्दी से प्रत्यक्षत: प्रभावित तो नहीं ही हैं।
आप ने बहुत सही मुददा उठाया है, मंदी के बारे में बात होनी चाहिए, अब तो विश्व बैंक ने कहना शुरु कर दिया है कि ग्रेट डिप्रेशन के बाद का ये सबसे खराब दौर है, यानि के एक और डिप्रेशन सर पर है। हम सरकारी नौकरी वाले कुछ हद्द तक बचे हुए हैं लेकिन डरे हुए हैं। बहुत जल्द इसके बारे में लिखेगें।
ReplyDeleteआलू के पापड़? क्या अब भी बनते हैं? प्लीईईईईईइज हमें रेसिपी दिला दिजीए न, बहुत साल हो गये खाये। और क्या क्या याद दिलायेगा ये ब्लोगजगत मुझे?………:)
Aapke blogpe pehlee baar aayee hun..bohot achhaa laga padhke....Haan...kaisee vidambana hai....Jo aapne kathan kee....!
ReplyDeleteRoman hindi me likh rahee hun, isliye, dono shabon ke hijje ekhee honge...!
Aapko aur aapke sabhee blog ke doston ko tyohaar kee hardik shubhkaamnayen..!
आपको सपरिवार रंगोत्सव की हार्दिक शुभकामना....
ReplyDeleteप्राइवेट नौकरी पेशाओं के लिए तो निश्चित रूप से होली मंदी पड़ गई है....पर कोई बात नहीं,होली तो कीचड पानी से भी उतनी ही मस्ती से खेली जा सकती...खुश होने के लिए बाज़ार के रंग की जरूरत नहीं पड़ती....मन ख़ुशी के रंग से भिंगोकर होली मनाई जा सकती है.
टिप्पणी लिखी थी पता नहीं कहा गयी, फ़िर से लिख रही हूँ ।
ReplyDeleteआप ने बहुत अच्छा मुद्दा उठाया, इस बारे में बात होनी चाहिए, अब तो विश्व बैंक ने भी कह दिया है कि ग्रेट डिप्रेशन के बाद ये मंदी का सबसे खतरनाक दौर है, और ग्रेट डिप्रेशन एक बार फ़िर से हमारे द्वार खड़ा है।
हां हम सरकारी नौकर कुछ हद तक बचे हुए तो है पर डरे हुए भी हैं। दूसरों के घर के मनहूसी छायी हो तो अपने घर मस्ती कैसे छा सकती है।
खैर , आप को सपरिवार होली की शुभकामनाएं।
आलू के पापड़? अब भी बनते हैं? प्लीईईईईइज मुझे रेसीपी दिला देगें क्या? बहुत साल हो गये खाये हुए? ये ब्लोगजगत और क्या क्या याद दिलवायेगा हमें?…।:)