Monday, March 9, 2009

एक गृहणी की कलम से


Rita Writingरीता पाण्डेय ने यह चार पेज का अपनी हैण्डराइटिंग में लिखा किसी नोटबुक के बीच का पुल-आउट पोस्ट बनाने के लिये दिया। वह मैं यथावत प्रस्तुत कर रहा हूं।
Rita Small 

सिंगमण्ड फ्रॉयड ने कभी कहा था कि स्त्रियां क्या चाहती हैं, यह बहुत बड़ा प्रश्न है और “मैं इसका उत्तर नहीं दे सकता”।

यह एक बड़ी सच्चाई है कि पुरुष या पति यह जानता ही नहीं कि स्त्री (या उसकी पत्नी) उससे किस प्रकार के सहयोग, स्नेह या सम्मान की अपेक्षा करती है। पर यही सच्चाई स्त्रियों के सामने भी प्रश्न चिन्ह के रूप में खड़ी है कि क्या उन्हें पता है कि उन्हें अपने पति से किस तरह का सहयोग चाहिये? हमें पहले अपने आप में यह स्पष्ट होना चाहिये कि हम अपने पति से क्या अपेक्षा रखते हैं।

बहुत गहराई में झांक कर देखें तो स्त्रियां भी वह सब पाना चाहती हैं जो पुरुष पाना चाहते हैं – सफलता, शक्ति, धन, हैसियत, प्यार, विवाह, खुशी और संतुष्टि। पुरुष प्रधान समाज में यह सब पाने का अवसर पुरुष को कई बार दिया जाता है, वहीं स्त्रियों के लिये एक या दो अवसर के बाद रास्ते बन्द हो जाते हैं। कहीं कहीं तो अवसर मिलता ही नहीं।

नारी अंतर्मन की यह पीड़ा और कुछ हासिल कर लेने की अपेक्षा उन्हें एक अनबूझ पहेली के रूप में सामने लाती है। मेरे विचार से अगर हमें यह स्पष्ट हो कि हमें क्या चाहिये तो हमें अपने पति से भी स्पष्ट रूप से कह देना चाहिये कि हम उनसे क्या चाहते हैं -

  1. हम पति से निश्छल प्रेम का व्यक्तिगत प्रदर्शन चाहते हैं। हमें किसी कीमती उपहार की बजाय उनका हमारी हंसी में हिस्सेदार बनना ही बहुत बड़ा उपहार होगा।
  2. प्रशंसा एक बहुत बड़ा उपहार है। पत्नी अपनी प्रशंसा सुनना चाहती है। आप घुमा-फिरा कर प्रशंसा करने की बजाय सटीक प्रशंसा कीजिये। प्रशंसा से तो कितनी ही समस्याओं का समाधान हो जाता है।
  3. औरत अपने काम के प्रति गम्भीर होती है। चाहे गृहस्थी का काम हो या गृहस्थी के साथ साथ बाहर का काम हो। कोई भी कार्य पुरुषों को हैसियत और उनकी पहचान देता है। औरतें भी यही चाहती हैं कि उनके काम को उतना ही महत्व मिले जितना पुरुष अपने काम को देते हैं। कमसे कम पुरुषों को स्त्रियों के काम में रुचि अवश्य दिखानी चाहिये।
  4. स्त्रियों को सहानुभूति की आवश्यकता होती है। पुरुषों के लिये बातचीत समस्या बताने, व्याख्या करने और समाधान निकालने का औजार है। पर स्त्रियों के लिये बातचीत अपनी भावनाओं को दूसरों के साथ बांटने और दिल हल्का करने का तरीका है। भावनाओं को कुरेदकर लम्बे संवाद सुनने की अपेक्षा पति से करती है पत्नी – यदि पति में थोड़ा धैर्य हो।
  5. स्त्रियां समस्याओं का समाधान बहुत अच्छा करना जानती हैं। स्त्रियां और पुरुष अलग अलग ढ़ंग से समस्यायें सुलझाते हैं। पुरुष समस्या पर सीधा वार करता है। सीधा रास्ता चुन कर उसपर चलने का प्रयास करता है। परंतु स्त्रियों के साथ भावनाओं का जाल बहुत घना होता है। वे अपनी समस्याओं को ले कर अड़ नहीं जातीं। समस्याओं को सुलझाने में अपने परिवार को अस्त-व्यस्त नहीं करना चाहतीं। वे अपने समस्या सुलझाने के प्रकार का समर्थन और सम्मान चाहती हैं पुरुष से। वे चाहती हैं कि पुरुष उन्हें कमजोर न समझें।
  6. घर में रहने वाली गृहणी शायद ही अपने पति से घर का कार्य करवाना चाहेगी। पर दिन भर के काम से थकी पत्नी को पति का स्नेह और सहानुभूति भरा स्पर्श ही ऊर्जा प्रदान कर देगा। और आप रसोईघर में साथ खड़े भर हो जायें आप देखेंगे कि सामान्य सा खाना लजीज व्यंजन में बदल जायेगा। हां, जो स्त्रियां बाहर भी काम करती हैं वे जरूर चाहेंगी कि पति गृहकार्य में बराबर का हिस्सेदार हो। स्त्री को इस बारे में आक्रामक रुख अख्तियार करने की बजाय स्नेह पूर्वक कहना चाहिये।
  7. स्त्रियां अपने जीवन साथी को सचमुच अपने बराबर का देखना चाहती हैं। ऐसे व्यक्ति के रूप में जो उनकी भावनाओं का सम्मान करे। संवेदना, सहानुभूति और सुरक्षा का आश्वासन दे।    


41 comments:

  1. अच्छा लिखा है आपने.

    काश! यह सब करना इतना ही सरल होता.

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  2. एक सधा हुआ आलेख, बधाई. पत्नी को पढ़वा दूँगा. :)

    महिला दिवस पर आपको बधाई.

    होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

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  3. स्त्री-भावना और विचार की इस अभिव्यक्ति को मेरा सादर स्वीकार. धन्यवाद ।

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  4. इन सब चाहत पूरी होने की बाद भी यदि पत्नी संतुष्ट न हो तो दोष किसका माना जाए

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  5. स्त्री मन की एक झांकी इस वातायन द्वारा देखने को मिली.

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  6. कुछ अन्दर की बात पता चली देखतें हैं कितना अमल हो पाता है। समीर जी ये आपके खुद के पढ़ने के लिये है, भाभीजी को पढ़वायेंगे तो एक नयी लिस्ट आपको तैयार मिलेगी।

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  7. इस प्र्श्न का उत्तर पाने का प्रयास एक और ब्लोग पर चल रहा है.
    http://sachmein.blogspot.com/ पर 'जी्वन के सत्य' ना्मक पोस्ट देखे.

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  8. bahut achha aur sachha lekh,badhai

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  9. इन सात विचारों को विवाह के समय हर फेरे के साथ बाँचना चाहिये और किसी भी पारिवारिक समस्या के समय इनका पुनर्पठन होना चाहिये ।

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  10. .....स्त्रियां अपने जीवन साथी को सचमुच अपने बराबर का देखना चाहती हैं। ऐसे व्यक्ति के रूप में जो उनकी भावनाओं का सम्मान करे। संवेदना, सहानुभूति और सुरक्षा का आश्वासन दे।
    " आज का ये लेख बहुत सराहनीय है......पढ़ कर एक सुखद अनुभूति हुई है....."

    Regards

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  11. मानसिक हलचल से निकला यह सत्व बहुत ही गंभीर चिंतन को प्रकट करता है। आप के इन सभी विचारों से पहले से ही सहमति है। बहुत अन्य लोगों को आप से शिकायत रही होगी तो वह भी दूर हो जाएगी।

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  12. वाह उम्दा पोस्ट! आपका ब्लॉग वाकई में मानसिक हलचल पैदा करता है..

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  13. keep writing reeta

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  14. सत्य वचन, हमरा तो फंडा है कि सुखद वैवाहिक जीवन की नींव एकनिष्ठता के सत्य और परस्पर तारीफों के झूठ पर टिकी है।

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  15. शुक्रिया, इस सीख भरे लेख के लिए।
    चूंकि अपन अभी इकल्ले हैं इसलिए इस लेख को अपने भविष्य के लिए सीख मान कर चलते हैं।
    ;)

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  16. होली के रंग-विरंगे त्यौहार पर आपने जो बुरा न मानों पर गहरे से सोंचों जैसे शैली में जितनी सटीक बातें प्रस्तुत की हैं निशित रूप से प्रशंसा योग्य है.
    जो स्वयं अपेक्षा रखते हैं यदि वही व्यव्हार हम बहार ही नहीं , घर में भी प्राम्भ कर दे तो घर का वातावरण किसी स्वर्ग से कम न होगा.

    सुन्दर एवं सटीक प्रस्तुति पर बधाई.

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  17. बहुत सुंदर पोस्‍ट लिखा है ... नारी मनोविज्ञान का सुदर चित्रण किया है आपने ... एक एक वाक्‍य से सहमत हूं मैं।

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  18. बहुत सधा हुआ लेख है ।
    ज्ञान जी और रीता जी आपको और आपके परिवार को होली मुबारक हो ।

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  19. स्त्री के मन में झाकने यह अवसर देकर आपने बहुत अच्छा किया -होली की आपको और ज्ञान जी को आदरभरी शुभकामनाएं !

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  20. बहुत ही सुलझा हुए विचार जो एक नारी के अंतरमन की झलक दिखाते हैं। पुरुष और नारी एक ही गाडी के दो पहिए ही तो हैं, कोई भी आगे या पीछे रहे तो परिवार की गाडी़ ठप हो जाएगी। बधाई एक अच्छे विचारणीय लेख के लिए।

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  21. बहुत ही सुन्दर. पथप्रदर्शक भी. आभार

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  22. समझदारी भरा लेख है लेकिन, इतनी समझदारी हो तो, फिर समस्या कहां है। शुभ होली

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  23. बहुत बडा यक्ष प्रश्न है जिसका जवाब तो आज कभी का मिल गया होता. पर मानव कहीं पर भी राजी नही होता.

    वैसे निजी रुप से यही कहना चाहुंगा कि इस दुनियां मे भ्रम बना रहे तो शांति भी बनी रहती है.

    होली की बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  24. स्त्री मन की शानदार प्रस्तुति.. काश वाकई ऐसा हो जाए तो दुनिया का रंग ही बदल जाए.. आपको होली की ढेरों शुभकामनाएं...

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  25. रीता जी ,
    आपके लेख के पूर्वार्द्ध से सहमत हूँ।
    लिखती रहें , अपना ब्लॉग बना लें तो और अच्छा ।
    शुभकामनाएँ!

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  26. नारी मन को दर्शाता बहुत सुन्दर लगा आपका यह लेख ..बहुत बढ़िया..आभार

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  27. घर को स्वर्ग बना सकने वाला सटीक फार्मुला। अगर इन पर अमल हो सके तो पति-पत्नी के रिश्तो को एक नया आयाम मिलते देर न लगेगी।

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  28. एक एक शब्द से सहमत हूँ...इस उधेड़ बुन में बहुत दिनों तक पड़ी रही की मैं क्या चाहती हूँ ..किसी दिन इस बारे में विस्तार से लिखूंगी .

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  29. रीटा जी ने एकदम सच कहा है। यही सब अपेक्षायें और इच्छाएं पुरुषों की भी होती हैं। जिस परिवार में दोनों की अपेक्षायें और इच्छाएं पूरी हों वो परिवार तो अपने आप स्वर्ग बन जाता है।
    होली की शुभकामनाएं आप को और आप के परिवार को

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  30. बहुत सुन्दर और जानकारी पूर्ण लेख लिखा है...मेरी पत्नी रीता जी के विचारों से बहुत प्रभावित हुई हैं....उन्हें और आपको हम दोनों की तरह से होली की शुभ कामनाएं ...
    नीरज

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  31. सौ. रीता भाभी जी ,बहुत सुँदर सँदेश दिया आपने
    और्,
    महिला दिवस व होली पर्व की सपरिवार शुभकामनाएँ आपको
    स्नेह,
    - लावण्या

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  32. यह समूची पोस्‍ट 'पुरुष प्रधानता' और 'पुरुष कृपा पर जीवित स्‍त्री' वाला भाव ही दर्शाती है। मानो, यह सब कर, पुरुष, स्‍त्री पर अतिरिक्‍त कृपा कर रहा हो।
    'स्‍त्री' को एक 'व्‍यक्ति' के रूप में स्‍वीकारोक्ति और तदनुसार ही पहचान भी जिस दिन मिल जाएगी, उस दिन ऐसे विमर्श स्‍वत: ही अनावश्‍यक और अप्रासंगिक हो जाएंगे।

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  33. अति सुंदर विचार काश सभी ऎसा सोचते/ सोचती तो सभी घर कितने सुखी होते.
    धन्यवाद

    आपको और आपके परिवार को होली की रंग-बिरंगी ओर बहुत बधाई।
    बुरा न मानो होली है। होली है जी होली है

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  34. Yah post kaise miss ho gayi?

    Reeta ji bahut bahut badhayee itna suljha hua likhne ke liye..

    aisa laga jaise, na jane kitne nari dilon ki baat aap ne kagaz par utar di hai.

    bahut sundar!

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  35. पूर्ण,सटीक,शब्दशः सही....कुछ और नहीं बचा या छूटा कहने से......
    एक आध अपवाद रह जायं तो बात और है,पर यह आलेख प्रत्येक पत्नी के मन की बात ,उसकी अपने पति से अपेक्षा है.

    बस इसी सोच के साथ और इस लीक पर यदि दंपत्ति चलें तो जीवन में शायद ही कभी ऐसा अवसर आएगा,जब टकराव की स्थिति बनेगी.

    बहुत बहुत सुन्दर इस आलेख हेतु कोटिशः आभार.

    आपसे निवेदन है कि लेखन में निरंतरता बनाये रखें...आपके सुलझे विचार बहुतों की उलझी जिन्दगी को सुलझाने में मददगार होंगे.

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  36. @ विष्णु वैरागी: यह समूची पोस्‍ट 'पुरुष प्रधानता' और 'पुरुष कृपा पर जीवित स्‍त्री' वाला भाव ही दर्शाती है।

    लानत है आपकी इस सोच पर वैरागी जी। जब तक आप जैसे विघ्नतोषी लोग कथित नारीवाद के नाम पर चाटुकारिता और वैमनस्य के विषभाव को एक साथ फैलाते रहेंगे, जबतक प्रकृति की आदर्श व्यवस्था के उलट स्त्री-पुरुष को परस्पर पूरक मानने के बजाय प्रतिद्वन्द्विता की पटरी पर दौड़ाते रहेंगे तबतक इनके बीच शान्तिपूर्ण सौहार्द के बजाय घमासान होता रहेगा, परिवार टूटते रहेंगे, एकल जीवन में सुखप्राप्ति की मृगतृष्णा के पीछे तथाकथित स्वतंत्र नर-नारी भागते हुए हलकान होते रहेंगे।

    कदाचित्‌ आपको भी पति-पत्नी के बीच असीम प्रेम और समर्पण का चरम आनन्द भोगने का अवसर नहीं मिला है। आपने किसी पुरुष को अपनी पत्नी के लिए तपस्या और त्याग करते भी नहीं देखा होगा। शायद इस दिशा में आप सोच भी न पा रहे हों। इसीलिए यह माने बैठे हैं कि नारी केवल दया की पात्र हो सकती है। प्रेम की अधिकारिणी और परिवार की अधिष्ठात्री नहीं।

    ऐसा यदि सच है तो यह बहुत अफसोसजनक है।

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  37. इस लेख का पूर्वार्द्ध हो या अन्त सत्य से भरा हुआ है। यह लेख पुरुष वर्ग के लिये उपयोगी टिप्स है चाहे तो अपने घर में आजमा कर देख लें। फिर घर की बात बाहर नही जायेगी।

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  38. बढ़िया । सुन्दर। अब आप देखिये समीरलाल को खुद के पालन करने की पोस्ट है और उसे वो भाभीजी को पढ़वा के छुट्टी पा लेना चाहते हैं! वैसे जैसा आलोक पुराणिक ने लिखा थोड़ी बहुत झूठी तारीफ़ भी जरूरी है! है न!

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  39. Yesss ! That's like my 'Guruvar '!
    अब तक की घृष्टाओं के लिये क्षमा चाहूँगा, गुरुवर ।
    मेरा आपकी विद्वता का कायल होना ही, दर असल मेरे क्षोभ का भी कारण रहा है ।
    आज यह पोस्ट पढ़ कर मन आह्लादित है ।
    यदि ज्ञानदत्त पांडेय नाम का मनुष्य ऎसी सारगर्भित पोस्ट लिखने में सक्षम है, तो फिर आलू टमाटर या महज़ चर्चित होने के लिये पोस्ट के स्तर से समझौता क्यों ? परस्पर चुहल अपवाद हैं, पर ब्लागिंग क्या बुद्धिजीवियों की हा हा ठी ठी का मंच मात्र है ?

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  40. अपने लिए तो भविष्य में बड़ी काम आने वाली है ये पोस्ट :-)

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय