मैने रेडियो में नई बैटरी डाली। सेट ऑन किया तो पहले पहल आवाज आई इलाहाबाद आकाशवाणी के कृषिजगत कार्यक्रम की। आपस की बातचीत में डाक्टर साहब पल्स-पोलियो कार्यक्रम के बारे में बता रहे थे और किसान एंकर सलाह दे रहे थे कि रविवार “के गदेलवन के पल्स-पोलियो की खुराक जरूर पिलवायेन”!
थोड़ी देर में वे सब राम-राम कर अपनी दुकान दऊरी समेट गये। तब आये फिल्म सुपर स्टार जी। वे दशकों से सब को नसीहत दे रहे हैं पल्स-पोलियो खुराक पिलाने की। पर यूपी-बिहार की नामाकूल जनता है कि इस कार्यक्रम को असफल करने पर तुली है।
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डब्ल्यू.एच.ओ. और यूनीसेफ से जुड़ने में लाभ है?
ले दे कर एक सवाल आता है – जो किसानी प्रोग्राम में डाक्टर साहब से भी पूछा गया। “इससे नामर्दी तो नहीं आती”। अब सन उन्यासी से यह कार्यक्रम बधिया किया जा रहा है। जाने कितना पैसा डाउन द ड्रेन गया। उसमें कौन सी मर्दानगी आई?
ये दो प्रान्त अपनी उजड्डता से पूरी दुनियां को छका रहे हैं। यहां जनसंख्या की खेप पजान है लेफ्ट-राइट-सेण्टर। सरकार है कि बारम्बार पल्स-पोलियो में पैसा फूंके जा रही है। और लोग हैं कि मानते नहीं।
भैया, ऐंह दाईं गदेलवन के पल्स पोलियो क खुराक पिलाइ लियाव। (भैया, इस बार बच्चों को पल्स पोलियो की खुराक पिलवा लाइये!)
नहीं पिला पाये? कोई बात नहीं। अगली बारी, अटल बिहारी।
तगड़ा मामला है जनाब
ReplyDeleteयह तो माईक्रो पोलियो पोस्ट निकली !
ReplyDeleteकृषि जगत और पल्स पोलियो दोनों की बिरादरी एक ही है, शायद.
ReplyDeleteपोलियो मिटाओ अभियान एक दूध देते गाय है स्वास्थ्य व अन्य सरकारी विभागों को . हर महीने लाखो करोडो के वारे न्यारे . बेकार वेक्सीन तथा रखरखाब .सिर्फ़ खानापूर्ति है यह अभियान . पोलियो घोटाले मे कई बोफोर्स छिपे है . और इस का बंदर बाट ऊपर से नीचे बड़ी शान्ति से हो रहा है .
ReplyDeleteपैरा ओलिम्पिक्स में कई पदक लाकर हम खुश हो जाते है बिना इसके पीछे का साफ़ सच देखे कि पूरी दुनिया से शारीरिक बाधाएं तेज़ी से ख़त्म हो रही है और हम ही बचे रह गए है. एक तीखी किंतु ज़रूरी पोस्ट.
ReplyDeleteचलिए सर जी अच्छा हुआ आज उस खूसट उरई वाले बुड्ढे की टांग खिंचाई का बंदोबस्त आप ने कर दिया. आभार.
ReplyDeleteपोलियो ड्राप भूल न जाना। समय लगता है ज्ञानजी दवा पिलवाने में सबको!
ReplyDeleteज्ञानजी,
ReplyDeleteपोलियो उन्मुलन कार्यक्रम की महत्ता पर शायद आपका सवाल नहीं हैं.. इस कार्यक्रम की विफलता पर है..(मैं ऐसा समझा).. इन कार्यक्रमों से जुड़ने का अनुभव रहा है तो इस पर मेरे विचार..
क्या है समस्या..
ऐसे क्रार्यक्रमों के implementation पर प्रश्न है.. आखिर क्यों ये कार्यक्रम इतने समय से चल रहा है.. और कब खत्म होगा..गैर सरकारी संगठन इन पर करोडो़ डालर खर्च करते है.. लेकिन ये भी समझना होगा कि ये खर्चा भी सरकारी तंत्र के माध्यम से ही होता है.. इनका स्वंय का खर्च केवल कुछ तकनिकी विशेषग्यों और उसके मुल्यांकन तक सिमित होता है..
लेकिन आखिर ये कार्यक्रम कब तक.. क्यों इतना समय लग रहा है..
हमारा देश भौगोलिक रुप से और जनसंख्या दोनों लिहाज से काफी विशाल है.. और कई इलाके तो पहुचना भी दूर्गम है... ऐसे में... सभी बच्चों को दवा पिलाना संभव नहीं हो पा रहा.. कई बच्चों हर बार छूट जाते है.. और कार्यक्रम सफल नहीं हो पा रहा.. (और भी कुछ तकनिकी मुद्दे है जो बाद में लिखने का प्रयास करुंगा..)और प्रयास निरन्तर जारी है..
तो फिर क्यों हर बार दवा..
पोलियो उन्मुलन तो नहीं हो पा रहा लेकिन पोलियो के केस जरुर कम हुऐ है.. कई राज्यों में लगभग शुन्य भी हो गये है.. ये भी ए्क बड़ी उपलब्धी है.. और तो और इस वजह से जो स्वास्थ्य जागरुकता आ रही है... नियमित टिकाकरण की दर भी बढ़ रही है.. (कई शोध इस बारें में हुऐ है..)
तो हम क्या कर सकते है...
हम इस कार्यक्रम की बेशक आलोचना करें.. इस पर प्रश्न उठायें.. इसकी विफलताऐं बताऐं.. सभी करें.. पर जिम्मेदारी से पोलियो रविवार के दिन बच्चों को दवा पिलायें.. इससे कोई हानी नहीं होती.... "नहीं पिला पाये? कोई बात नहीं।अगली बारी, अटल बिहारी".. ये न सोचे.. हम कहें "हर बच्चा हर बार"..
इस बारें में जल्द ही एक शोधपरख आलेख लिखने का प्रयास करुंगा..
आदर सहित..
रंजन
सरकारी कामों मे सरकारी असर तो रहेगा ही ना.
ReplyDeleteरामराम.
ये दो प्रान्त अपनी उजड्डता से पूरी दुनियां को छका रहे हैं।
ReplyDelete-एकदमे सही!!
पोलियो अभियान कितना जरुरी है और लोग उसे उडाये दे रहे हैं ऐसे.बड़ा अफसोस होता है.
दवा पिलाने से काफी पहले से ही स्थानीय प्रभाव वाले दो चार धर्मगुरुओं और अध्यापकों को लेकर एक जागृति अभियान चलाने से और लोगों की आधारहीन शंकाओं का निवारण करने से ही यह अभियान सफल बनाया जा सकता है. जब चेचक मिटाई जा सकती है तो पोलियो और कोढ़ जैसी बीमारियां भी समाप्त की जा सकती हैं - आख़िर बाकी दुनिया से तो वे लगभग मिट ही चुकी हैं. [ज्ञातव्य है कि पोलियो का टीका यहाँ पिट्सबर्ग में ही खोजा गया था.]
ReplyDeleteपूर्वी उत्तरप्रदेश के जिले सिद्धार्थनगर में तैनाती के दौरान मैने सुना था कि वहाँ की मुस्लिम आबादी द्वारा पोलियो वैक्सीन का विरोध किया जा रहा है। कारण यह अफवाह कि इससे नपुन्सकता आती है और सरकार एक साजिश के तहत जनसंख्या को कम करने की नीति पर चल रही है।
ReplyDeleteवहाँ के सी.एम.ओ. के साथ हम एक मुस्लिम बहुल गाँव में गये जहाँ बड़ी संख्या में अधनंगे और कुपोषित बच्चों को देखकर एक व्यक्ति से बच्चों को रोकने के उपाय अपनाने के बारे में चर्चा करने लगे।
उसने इसे फालतू बात करार देते हुए कहा कि यह गैर-इस्लामी काम है। बच्चे खुदा की नेमत हैं। वही इन्हें भेजता है और वही परवरिश भी करता है। हम क्यों उसकी मर्जी के खिलाफ जाय? पोलियो का नाम लेते ही वे भड़क उठे।
पोलियो उन्मूलन तो आवश्यक है किन्तु सरकारी तन्त्र की गैरजिम्मेदारी तथा खानापूर्ति की मानसिकता के साथ ही साथ लोगों में जागरूकता में कमी के कारण इस अभियान को अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाता।
ReplyDeleteअच्छी है, मैं तो उसे चूंटिया (चिकोटिया) पोस्ट कहूँगा।
ReplyDeleteपता नही सरकारी कर्यक्रम असरकारी कब बनेंगे।
ReplyDeleteसर जी चलने दीजिये ......जब तक चलाते है ..एक तो पता नही कोल्ड चैन मेंटेन करते है या नही .....पर बेचारे मेहनत भी करते है .वैसे भी हमारे यहाँ एक तबका इसे अमेरिका की दवाई मानकर पीता नही है ....ब्राजील में ये काफ़ी सफल रहा है ...पर वहां महत्वपूर्ण था नीचे ग्रास रूट तक के लोगो का समर्पण.......वैसे न पीने वाले लोग ही इसमे रूकावट डाल रहे है..
ReplyDeleteआपकी पोस्ट पर टिप्पणी करने के माध्यम से रंजनती को धन्यवाद और स्मार्ट इण्डियनजी के सुझाव का समर्थन।
ReplyDeleteयह अभ्रियान लाभदायक भले ही न हो, हानिकारक तो नहीं ही है। रंजनजी की यह बात आश्वस्त करती है कि पोलियो प्रकरणा में कमी आई और कुछ प्रदेशों में शून्य स्थिति आ गई।
इस कार्यक्रम का अभाग्य शायद यही है कि (1)इसे सरकार क्रियान्वित कर रही है। सरकारी काम पर हर किसी को सन्देह ही होता है। और (2) यह नि:शुल्क है।
इस अभियान से सरकार को हटाया जाए (यद्यपि यह असम्भव ही है) तो इसकी विश्वसनीयता बढेगी। और प्रति शिशु कम से कम एक रुपया शुल्क लगा दिया जाए तो पालक शायद इसका मूल्यांकन कर लें।
हमारे यहाँ सबसे ज्यादा प्रभावी धर्मगुरू है. इनकी मदद ली जानी चाहिए. न माने तो बंदूक नी नोक पर अपील करवानी चाहिए. समाज का खा रहे हैं तो कुछ कर्तव्य भी बनता है.
ReplyDeleteउन राज्यों में जहाँ बाहर से बहुत लोग रोजगार के लिए आ रहे हैं, पोलियो उन्मुलन दुष्कर होता है.
ये दो प्रान्त अपनी उजड्डता से पूरी दुनियां को छका रहे हैं।
ReplyDeleteओर यह लोग दुनियां मै अपनी मर्दनगी दिखा कर कोन सा खम्बां उखाड रहे है, लेकिन हर साल नया कलेंडर छाप रहे है, टांगने की जगह हो ना हो.
राम राम जी की
इसमें अब सख्ती की जरीरत है जो पोलियो दवा न पिलाये उसका राशन कार्ड निरस्त कर दे सरकार या फिर खेत का पानी बंद तब ही सुधरेंगे पर सरकार ऐसा क्यूं करेगी । यह उसकी तुष्टीकरण नीती के खिलाफ जो है ।
ReplyDeleteअभी भी इन 'दो' क्षेत्रों में जागरूकता की भारी आवश्यकता है.-पोलियो प्रोग्राम की गंभीरता को समझने के लिए.
ReplyDelete[वैसे तो सब राम भरोसे है.]
ज्ञान जी,
ReplyDeleteये पोलियो अभियान तब से शुरू हो रहा है, जब मैं तीसरी चौथी क्लास में था. लेकिन अभी तक भी सफल नहीं हुआ है.
यह अमिताभ बच्चनजी का ही प्रदेश है, जिसको लेकर वह इश्तिहार में दिखते थे, यह कहते हुए कि एकैंदम ला एंड आर्डर मच गया है यूपी में देखो लड़के कैसे स्कूल में जा रहे हैं।
ReplyDeleteसरजी, 2026 में यूपी की पापुलेशन होगी तीस करोड़, जो अभी के यूएस के बराबरहै।
यूएस तब भी उत्ता का उत्ता रहेगा।
यूएस का मुकाबला तब यूपी अकेले कर लेगा, डकैती में माराधाड़ी में।
पोलियो - ठीक उसी तरह है जैसे कोई कहे रोटी पो लियो.......यानि सब कुछ तो तैयार है, गेहूँ खेत से लाये गये, ओसाये गये, पीसे गये.....और आँटा बनाकर गूंथा गया.....बस अब रोटी पोना बाकी है लेकिन लोग हैं कि उसके लिये भी तैयार नहीं - कहीं कहेंगे अमरीकी गेहूँ है तो कहीं कहेंगे जिसने मुँह चीरा है वह खाने को तो देगा ही फिर पोने की क्या जरूरत है.....ले देकर फिर वही बात - पो लियो.....जाने इस पो लियो और पोलियो के चक्कर में मासूम बच्चे शिकार बनते रहेंगे।
ReplyDeleteशायद पोलियो मिटाने के अभियान* में पोलियो ग्रसित लोगों को लगाना चाहिए, शायद कुछ लोगों को उन्हें देखकर, उनसे सुनकर, दवा का महत्व पता चले।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
पोलिओ दवा पिलाने पर एक छोटा खिलौना मिलना शुरू हुआ था ! अब तो वह भी कोई नहीं देता !
ReplyDeletevo subha kabhi to aayegi.......
ReplyDeleteअसल बात यह है कि न तो उनका मन है लोगों को पोलियोमुक्त करने का और जनता का मन है पोलियोमुक्त होने का. सब कुछ बस ऐसे ही चला जा रहा है और ऐसे ही चले जाने वाले काम कभी सफल नहीं होते.
ReplyDeleteBahut sundar...!!
ReplyDelete___________________________________
युवा शक्ति को समर्पित ब्लॉग http://yuva-jagat.blogspot.com/ पर आयें और देखें कि BHU में गुरुओं के चरण छूने पर क्यों प्रतिबन्ध लगा दिया गया है...आपकी इस बारे में क्या राय है ??
कई कुप्रथाओं और बीमारीओं की तरह एक दिन ये भी ख़त्म होगा. हम तो इसी आस में हैं ! ऐसी अफवाह फैलाने वालों को क्या मिलता है? मुझे तो दूर-दूर तक कोई लाभ नहीं दीखता. ये दो प्रान्त... यहाँ कुछ भी सम्भव है !
ReplyDeleteये दो प्रान्त अपनी उजड्डता से पूरी दुनियां को छका रहे हैं।
ReplyDeleteSo true
जरा इसे भी पढे। ध्यान से और पूरा
ReplyDelete10 yrs after side effects of polio drop kills infant, court orders govt to pay Rs 2 lakh to family
http://www.indianexpress.com/news/10-yrs-after-side-effects-of-polio-drop-kills-infant-court-orders-govt-to-pay-rs-2-lakh-to-family/406758/
ऐसे हजारो केस है पर सामने नही आते। या तो सुधार की जरुरत है या इस ड्राप के विकल्प ढूढने की।
जितने लम्बे समय से यह अभियान चल रहा है, उससे इसकी विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिन्ह लगता है।
ReplyDeleteकई लोग खुद अपने पैरोँ पर,
ReplyDeleteकुल्हाडी मारते हैँ
ये तो ऐसी स्थिति है :(
दुखद !!
- लावण्या
एक और दुखद समाचार
ReplyDeleteपोलियो की दवा पीने के बाद बच्ची की मौत
http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/4066840.cms
इस पर हमारे बुद्धिजीवी कह सकते है कि सडक दुर्घटना मे इतने बच्चे मरते है, उसमे इतने मरते है। यहाँ एक मर गया तो क्या हुआ? वे सही हो सकते है पर जिस घर मे यह हुआ उनके लिये यह एक मौत ही दिल दहला देने वाली है। पोलियो ड्राप से हुयी मौतो पर कोई चर्चा नही करता क्योकि ये बिल गेट्स की दुकान है। सबके पेट वह भर सकता है। ड्राप्स पिलाने के बाद कुछ भी गडबड होने पर तुरंत डाक्टर के पास जाये और डाक्टर इसे गम्भीरता से ले - इस बात को भी अमिताभ की अपील मे जोडना चाहिये।
जितनी योजनायें ,उतने ही कमाने के मौके..........बाकी रही आम जनता की बात,तो उनको सम्हालने समझने में पता नही और कितने दशक लगें.
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