Wednesday, February 11, 2009

शब्दों का टोटा


संकल्प: हम भी पटखनी खाने को तैयार हैं!

संकल्पीय शर्त: बशर्ते हजार पांच सौ नये नकोर, ब्लॉग पर प्रयोग योग्य, देशज/संस्कृताइज्ड शब्दों का भण्डार मिल सके।

असल में शब्दों का पड़ रहा है टोटा।1 दफ्तर में पढ़ते हैं फाइलों की सड़ल्ली नोटिंग या घसीटे हुये माई-डियरीय डेमी ऑफीशियल पत्र/सर्कुलर। हिन्दी में कुछ पढ़ने में नहीं आता सिवाय ब्लॉग के। नये शब्दों का वातायन ही नहीं खुलता। wierd मन हो रहा है चार छ महीने की छुट्टी ले पटखनी खाये पड़ जायें और मोटे-मोटे ग्रन्थ पढ़ कर विद्वतापूर्ण ठेलें। बिना मुखारी किये दिन में चार पोस्ट। शेविंग न करें और दस दिन बाद दाढ़ी बड़ी फोटो चफना दें ब्लॉग पर।

शब्दों का भी टोटा है और जिन्दगी भी ढूंढ रही है फुरसत। मालगाड़ी का इन्जन नम्बर नोट करते करते लाख टके की जिन्दगी बरबाद हो रही है। जीनत अम्मान तो क्या, फिल्म की एक्स्ट्रा भी देखने का टाइम नहीं निकल पा रहा।

मिठास है गुम। ब्लॉग की सक्रियता की सैकरीन के लिये शुगर-फ्री की लपेटी पोस्टें लिखे जा रहे हैं।

हम शर्त लगा सकते हैं- अस्सी परसेण्ट ब्लॉगर इसी मनस्थिति में आते हैं। पर कोई हुंकारी थोड़े ही भरेगा! अपनी पोल खोलने के लिये दम चाहिये जी!

पत्नीजी की त्वरित टिप्पणी: बहुत दम है! हुंह! चार महीने की छुट्टी ले कर बैठ जाओगे तो तुम्हें झेलेगा कौन। और चार दिन बाद ही ऊब जाओगे एकान्त से!


1. शब्दों का टोटा यूं है कि पहले उसे अंग्रेजी के शब्दों से पूरा किया जाता था, अब उत्तरोत्तर अवधी के देशज शब्दों से पूरा किया जा रहा है - "लस्तवा भुलाइ गवा" छाप!

Night

और कविता कोश से लिया एक फिल्मी गीत:

मुझ को इस रात की तनहाई में आवाज़ न दो/शमीम जयपुरी

मुझ को इस रात की तनहाई में आवाज़ न दो

जिसकी आवाज़ रुला दे मुझे वो साज़ न दो

आवाज़ न दो...

मैंने अब तुम से न मिलने की कसम खाई है

क्या खबर तुमको मेरी जान पे बन आई है

मैं बहक जाऊँ कसम खाके तुम ऐसा न करो

आवाज़ न दो...

दिल मेरा डूब गया आस मेरी टूट गई

मेरे हाथों ही से पतवार मेरी छूट गई

अब मैं तूफ़ान में हूँ साहिल से इशारा न करो

आवाज़ न दो...


31 comments:

  1. कुछ तो मिस्टेक है, इस गीत को भले ही पिछले ४-५ साल में नहीं सुना है लेकिन मुकेश की आवाज वाले गीत के बोल कुछ इस तरह हैं।

    मुझ को इस रात की तनहाई में आवाज़ न दो
    जिसकी आवाज़ रुला दे मुझे वो साज़ न दो
    आवाज़ न दो...
    रोशनी हो न सकी दिल भी जलाया मैने,
    तुमको भूला ही नहीं लाख भुलाया मैने,
    मैं परेशां हूँ मुझे और परेशां न करो...
    आवाज न दो...
    इस कदर जल्द किया मुझसे किनारा तुमने,
    कोई भटकेगा अकेला ये न सोचा तुमने...
    छुप गये हो तो मुझे याद भी आया न करो.
    आवाज न दो...


    बाकी हमारी समस्या दूसरी है, हिन्दी ब्लाग पढ पढ कर बहुत समय खर्च हो रहा है और बाकी का बहुत कुछ पढने/लिखने को पेंडिंग है। हम जल्दी ही बिना बताये सेब्बाटिकल लेने का सोच रहे हैं।

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  2. शब्दों का टोटा है तो फ़िक्र न करें आपके आस पास ही है शब्दों का जादूगर अजित वडनेकर .

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  3. मैं तो इस प्रविष्टि का आनन्द ले रहा हूं.
    सोच रहा हूं कहीं आप सच में दाढ़ी बढ़ा कर यहां उतर आये तो साहित्य की दुनिया के उन नामी गिरामी साहित्यकारों की जमात में आ जायेंगे जो बढ़ी दाढ़ी लेकर कुछ भी लिखकर, उसे जन सरोकार से जुड़ा बता अजर-अमर हो जाते हैं.

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  4. हिमांशु ने पते की बात कही है -कितना आसान नुस्खा है महान बनने का ! एक बार try कर ही लीजिये !

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  5. अरे आपको काहे का टोटा, जब कुछ लिखने का मन न करे तो बरसों पहले लिखी अपनी एक कविता पोस्ट का दें.

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  6. बात में दम है. जब लिखने में शब्दों का संकट महसूस कर रहे है तो अंदाज़ लगाइए कि बोलने में कितने कम शब्दों से कम चलाते होंगे.

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  7. कुछ अजदकिया पोस्ट लग रही है.. :)

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  8. कहीं यह उब तात्कालिक के बजाय बार बार लौट कर घेरने वाली तो नहीं है ....... वैसे तो हिमांशु जी ने महान बनने के आपके फार्मूले पर अपनी मुहर तो ठोक ही दी है /

    शब्दों का टोटा???? झकास , बीडू , तो है ही ???

    हम शर्त लगा सकते हैं- अस्सी परसेण्ट ब्लॉगर इसी मनस्थिति में आते हैं। पर कोई हुंकारी थोड़े ही भरेगा! अपनी पोल खोलने के लिये दम चाहिये जी!

    काहे को पोल खुलवाने में तुले हैं आप ??

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  9. शब्दों का टोटा जरूर है लेकिन केवल तथाकथित सभ्य साहित्य में। देशज साहित्य में तो शब्द ही खत्म नहीं होते और न खत्म होती हैं उनकी मिठास।

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  10. आप्टे का संस्कृत-हिन्दी शब्दकोष रखिए पास में दो पृ्ष्ठ रोज पढ़ लीजिए। शब्दों का टोटा खत्म!

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  11. आपकी बात से सौ % सहमत. भारतीय संसकृति समनवय की संसकृति कहलाती है. जो भी आया उसी को अपने अंदर आत्मसात कर लिया.

    हम तो आपके पद चिन्हों पर चल रहे हैं. जिस शब द की हिंदी नही आये, उसको ऐसा का ऐसा रोमन मे ठेल दो. और इसमे बुराई भी क्या है?
    जब हम कई संस्कृतियों को हजम कर गे तो आज के ग्लोबलिय माहोल मे हिंदी कुछ शब्द अंग्रेजी के नही पचा पायेगी?

    मेरा सोचना है कि इससे हिंदी और सशक्त ही होगी. हम तो इसी तरह ठेलेंगे. अगर शुद्ध हिंदी की हम से कोई आशा करे तो हम क्वार्टरली एक पोस्ट लिख पायेंगे.

    और भूल कर भी कहीं छुत्ती लेकर घर पर दाढी बढाने वाला प्रोग्राम मत सेट कर लिजियेगा. भाभी जी बिल्कुल सही कह रहीं हैं. छुट्टी दो तीन दिन ही अच्छी रहती है.:)

    रामराम.

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  12. शब्द शक्ति बढाने के निम्न उपायों पर गौर करें-
    1- नियम से सब्जी मंडी जायें, थोक की भी, रिटेल की भी। एक से एक शब्द, संबोधन मिलेंगे। नौजवान सब्जी वालों पर ध्यान दें, ये भाषा के अद्भुत प्रयोग करते हैं।
    2-कालेज, युनिवर्सिटी के रेस्त्रां में नियमित बैठें और बालक बालिकाओं की अनौपचारिक बातें सुनें। एक से एक जबर शब्द यहां मिलते हैं।
    3-रिक्शेवालों, चायवालों से और खास तौर पर बाइक, कार सही करने वाले मिस्त्रियों से दोस्ती करें, घनिष्ठता वाली, फिर उनकी सुनिये, कालिदास तक टें बोल जायें, उनकी भाषा सामर्थ्य देखकर।
    इतने उपाय करें, फिर आपकी प्रोग्रेस देखकर आगे का एडवांस कोर्स कराया जायेगा।

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  13. पढ़ने पढ़ाने का टोटा तो हमें भी है. यहाँ सुबह सवेरे जो अखबार पढ़ते है वह भी गुजराती का, दुसरा नजर भर मार लेता हूँ वह अंग्रेजी का होता है, क्योंकि सामग्री में वह हिन्दी/गुजराती वाले से इक्कीस होता है. हिन्दी केवल ब्लॉग पर पढ़ता हूँ, और आस-पास वातावरण गुजरातीमय होता है. यानी हिन्दी सुधरे भी तो कैसे? समस्या है जी. आप स्थानिय शब्दों का प्रयोग करें और साथ में अर्थ भी नत्थी कर दें, भाषा समृद्ध होगी.

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  14. हम तो बीस पर्सेंट में आते है जी.. कोई टोटा नही है.. हुंकारी भर रहे है.. दम है इसलिए..

    फिर लिखने के लिए शब्दो का नही भावनाओ का होना ज़रूरी है..

    रही एकांत की बात.. तो कभी कभी ले ही लिया जाना चाहिए.. इस से जीवन में ऊब नही आती..

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  15. @ आलोक पुराणिक - हम समझते थे कि आपने जो कहा है, उतना ही ऑनर्स कोर्स है। एडवान्स कोर्स माने क्या? क्या गुरुघण्टाल विश्वविद्यालय से एम.सी.बी.सी. कोर्स?

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  16. मजा आ गया. कुछ सीरियस प्रकार के लोग भी आप को सीरियसली ले रहे हैं. वैसे सतीश पंचम जी ने बड़ी अच्छी बात कही है. आप लोगों के पास अवधी है, बुन्देलखंडी है, भोजपुरी है, मैथिलि है. और सबसे बड़ी बात त्रिवेणी का संगम भी है. just have a dip. आभार..

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  17. पत्नीजी की त्वरित टिप्पणी: बहुत दम है! हुंह! चार महीने की छुट्टी ले कर बैठ जाओगे तो तुम्हें झेलेगा कौन। और चार दिन बाद ही ऊब जाओगे एकान्त से!

    "हा हा हा हा सच कह रही हैं....उनका तो कुछ ख्याल कीजिये ...और शब्द का टोटा.....ये तो सबके साथ होता है.....लकिन कुछ न कुछ विचार आ जातें हैं मस्तिष्क मे और फ़िर शब्द ही शब्द बिखरा जाते हैं..."

    Regards

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  18. शब्दों के टोटे में भी आप रोज पोस्ट ठेल देते है.....कितनी बड़ी हुंकारी है ...एक उपाय है टिप्पणियों में शब्दों का बेहताशा इस्तेमाल करे ....वैसे ...प्लेटफोर्म पर घूमते घूमते कई शब्द मिल जायेगे ... या मालगाडियों-रेलगाडियों पर लिखे दो चार शेर ही बाँट दे...

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  19. बहुत बढ़िया..शब्दों का टोटा..भी एक पोस्ट तो लिक्वा ही सकता है..micro या मिनी..जो भी..
    आप ने तो फिर भी बहुत अच्छी एक पोस्ट लिख दी...और हाँ यह गीत जो आप ने पोस्ट किया है..वह लता जी ने गाया था..कुमकुम पर फिल्माया गाया था..मुकेश का गाया गीत बोलों में अलग है.जो नीरज जी ने अपनी टिप्पणी में दिया है.

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  20. Ha Ha Ha ..... lagta hai kahin par nigahen ,kahin par nishana hai.

    Par baat sahi hai,jab tak vyast hain tabhi tak chhutti me dam najar aa raha hai.lambi chhuti na jhel paiyega.

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  21. सच कहूँ...ऐसी पोस्ट पढ़कर तो
    हम भी कसम खा के बहक सकते हैं.
    शब्दों का टोटा...और उस पर
    इतने सधे हुए शब्द !
    ===========================
    कमाल से कुछ अधिक है यह साहब.
    हम तो मुरीद हो गए हैं
    आपके इस अंदाज़ के...सच !
    =======================
    आभार
    डॉ.चन्द्रकुमार जैन

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  22. अगर आपके पास शब्दो का टोटा है तो फ़िर हमारे पास तो अकाल है,कंगाली है।वैसे आलोक जी आईडिया न जमे तो रेलवे प्लेटफ़ार्म भी बढिया सोर्स है,गर बुरा न लगे तो ट्राई करियेगा।

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  23. ब्‍लाग जगत में मैं तो अभी 'दुध मुंहा' हूं, दो साल भी नहीं हुए हैं मुझे। किन्‍तु देख रहा हूं कि यहां अगम्‍भीरता अधिक पसरी हुई है और यथास्थिति में अधिक विश्‍वास किया जाता है।

    मेरा सुदृढ विश्‍वास है कि ब्‍लाग के जरिए वे सब परिवर्त‍न लाए जा सकते हैं जिनके लिए इस देश के असंख्‍य असंगठित लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं। 'ब्‍लाग विधा' एक धारदार और परिणामदायी प्रभावी औजार का काम कर सकती है।
    ऐसे में आपको यदि शब्‍दों का टोटा अनुभव हो रहा हो तो यह तो 'मामूली से भी अधिक मामूली' बात है।
    किन्‍तु मेरी इन बातों को मेरी निराशा न समझा जाए। ब्‍लाग विधा तो खुद अभी 'दुध मुंही' है। अभी तो यह पालने में ही किलकारियां मार रही है। इसे 'समझ' आने पर यह चुप नहीं बैठेगी।

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  24. शब्दों के टोटे में ये हाल है.....!! वाह दादा...

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  25. आलोक पुराणिक के बताये कोर्स के आगे का कोर्स है चप्पल चटकाऊ कोर्स। नगरी-नगरी, द्वारे-द्वारे यायावरी करिये भाषा टिच्चन हो जायेगी और शब्दों के टोटे को लग जायेंगे सोंटे!

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  26. शव्दो का टोटा, अरे वाह, भारत मै अब शव्दो का भी टोटा, अजी बिन शव्दो के ही लेख लिख दिया करो..:)
    धन्यवाद

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  27. क्या ये केवल शब्दों के लिए ? शब्दों से ज्यादा तो मुझे जिंदगी के फुरसत ढूंढने वाली बात लग रही है. और उसे तो ब्लॉग से भी फुर्सत देनी चाहिए कभी-कभी. कभी अपनी जगह और मोबाइल/इन्टरनेट से दूर १०-१५ दिन रह कर देखिये. सुन के सम्भव नहीं लगता पर २-३ दिन तो सम्भव है ही. रूटीन जिंदगी से अलग बड़ा मजा आता है... मुझे तो अपनी मोनोटोनस जिंदगी झेली नहीं जाती इसलिए १५ दिन से कम की छुट्टी नहीं लेता. इसलिए आपकी गंगायात्रा वाली बात बहुत भली लगी थी.

    वैसे आप दाढ़ी बढाकर एक फोटो तो लगा ही दीजिये ! और अगर छुट्टी पर जाएँ भी तो कुछ पोस्ट शेड्यूल करके :-)

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  28. हम जैसे भाषा के अल्पज्ञानियों के लिए तो शब्दों के होलसेल सप्लायर आपलोग ही हैं, ज्ञानदत चचा.
    आपके यहाँ अकाल पड़ गया तो हम तो भूखे मर जाएंगे

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  29. मेडम की टिप्पणी सही लगी , चार महिना क्या दो महीने में ही ऊब जाओगे

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  30. जीनत अम्मान तो क्या, फिल्म की एक्स्ट्रा भी देखने का टाइम नहीं निकल पा रहा।

    क्या बात है हमारी जेनेरिक पोस्ट का इतना असर ;)

    छुट्टी लेकर बैठने की कामना करना ही अच्छा लगता है उसे इंपलीमेंट करने की जुर्रत करने से बड़ी शायद ही कोई गलती होती है

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  31. वैसे शब्दों और सोच के टोटे से तो आप कोसों दूर हैं. पर हाँ जो मुश्किलें आपने गिनाई हैं, उनसे इनकार भी नहीं किया जा सकता.

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय