मेरी रेलगाडी का इंजन गायब है। मेरे ब्लॉग पर ऊपर आने वाला स्क्रॉल मैसेज (कि आपका स्वागत है) भी निकाल दिया है। “अटको मत चलते रहो” वाले फ्लिंस्टन जी भी अब नहीं हैं। मेरा ब्लॉगरोल भी अब ऊर्ध्व-स्क्रॉल नहीं होता। ब्लॉग अब सीधे पोस्ट पर ले जाने का यत्न करता है।
यह सब फ्रिल्स मैने बड़े चाव से मन लगा कर संजोये थे। पर यह भी लगता था कि यह ध्यान विकर्षण (distraction) करता है। लोग यह देखने नहीं आते। पाठक पठन सामग्री के लिये आते हैं – जो उन्हे बिना लागलपेट के मिलनी चाहिये। लिहाजा वे सब हटा दिये हैं और पोस्ट की पट्टी भी चौड़ाई में बढ़ा दी है।
यह पहले से महसूस कर रहा था, पर अनुराग मिश्र (Raag) जी की एक टिप्पणी ने उसपर निश्चयात्मक रूप से कार्य करने को बाध्य कर दिया -
धन्यवाद ज्ञानदत्त जी, एक रोचक विषय के लिये। मैं आपका ब्लॉग नित्य गूगल रीडर से पढ़ता हूं। पर यह कष्टकारक है कि जब मैं टिप्पणी करने जाता हूं तो पाता हूं कि आपने ब्लॉग को ढेरों एनीमेशन लिंक्स, जीआईएफ चित्रों और भीषण रंगों से युक्त कर रखा है। अपने पाठकों के लिये कृपया इन फ्लैशी एनिमेशन लिंक्स को हटा दें। यह ध्यान बंटाते हैं।
(टिप्पणी अंश का अनुवाद मेरा है।)
हम कुछ बातों पर बहुत समय से सोचते हैं, पर एक नज (nudge – हल्का धक्का) चाहिये होता है कार्यान्वयन करने के लिये।
खैर, इसी प्रकार मैं कई लोगों के ब्लॉग पर विविधता युक्त चिड़ियाघर देखता हूं। उस सब विकर्षण में सम्प्रेषण गायब हो जाता है। इसके अलावा ब्लॉग पूरी तरह खुलने में भी समय लगता है। … ब्लॉग को ब्लॉग ही रहने दो चिड़ियाघर न करो!
सामान्यीकरण – सिम्प्लीफिकेशन कुंजी है। बेकर-पोस्नर का ब्लॉग इतना सिम्पल ले-आउट वाला है और इतना महत्वपूर्ण! दोनो (गैरी बेकर, रिचर्ड पोस्नर) ओल्डीज हैं! उनकी पोस्टों की गुणवत्ता देखिये – फेण्टाबुलस!
मेरा ब्लॉग साधारण नेट कनेक्शन से अब २७ सेकेण्ड में डाउनलोड हो रहा है और मुख्य सामग्री (पोस्ट व टिप्पणियां) ५ सेकेण्ड में डाउनलोड हो रहे हैं। यह मापने के लिये आप यह स्टाप-वाच का प्रयोग कर सकते हैं।
ReplyDeleteहम तो अपने चिड़ियाघर से बाहर नहीं निकलूँगा, गुरु जी !
बाहर सभ्य मानुष लोग बहुतै परेशान करता है ।
चलिये, ईहाँ हमको टिप्पणी नहीं त केला तो मिलबे करता है, न ?
आप शेर हो, गुर्रा भर दो कि थर-थर टिप्पणी टपकने लगती है ।
Good change.
ReplyDeletePage appears faster.
Looks less cluttered.
Am I the first to comment?
Regards
G Vishwanath
यह बहुत बढ़िया काम किया आपने. अब तो इस सादगी पर सदके जाँवा. :)
ReplyDeleteबधाई हो-किसी की तो सुनी आपने. :)
शो रूम डिसप्ले तो वह करे जिसको ग्राहकों का टोटा हो . आपका माल तो बनते ही बिकता है . शुरू मे तो मुझे लगता था वाइरस है इन चलते फोटो मे .
ReplyDeleteये हुई कुछ बात, बस आप को जो ज्ञान प्राप्त हुआ है वो उन चंद ब्लोगरस को भी हो जाये जिन्होंने फ्री के मॉल से अपने ब्लोग को चांदनी चौक बना कर रखा है। इतनी भीड़-भाड़ कर रखी है पता नही चलता कब कौन आकर कंप्यूटर की ऐसी तेसी (एडवेयर, ट्रोजन, स्पैमवेयर) कर देता है।
ReplyDeleteसादा चिट्ठा उच्च विचार ! यह जज्बा रहे बरकरार !
ReplyDeleteआपने ये तो नही बताया है जी कि रेलगाडी का इंजन कोयले का या डीजल का था ? मुझे खुश है कि ओल्डीज सभी की भावनाओं का सम्मान करते है जैसे कि आपने किसी के सुझाव पर स्क्र्ल रोल हटा दिया . एक मेरा सुझाव है सर रेलगाडी में इंजिन जरुर लगाए . वगैर इंजिन के रेलगाडी अच्छी तो भी तो नही लगती है . आपकी तरह तरह की पोस्ट पढ़कर तबियत खुश हो जाती है बहुत ही अच्छा रंगबिरंग लिखते है बधाई . ओल्डीज इज गोल्डीज हा हा हा ..
ReplyDeleteलेकिन आभा-बोधिस्तव तो इसीलिये आपका ब्लाग पसंद करते थे कि उनकी बिटिया भानी को आपके ब्लाग का चलता हुआ आदमी देखना अच्छा लगता है।
ReplyDeleteबढ़िया है, लेकिन मेरा झरोखा को ऊपर ले आए और पहले से ही असली अफसर के माफिक धमकी :) देते हुए जो कॉपी राइट वाला स्टेटमेंट है उसको हो सके तो इस तरह से सेट करे की वो हमेशा पोस्ट ख़तम होने के बाद और टिप्पणियों के पहले दिखे या आखिरी टिपण्णी के बाद दिखे.
ReplyDeleteबहुत काम की बात बताई आपने. आज आराम लगा टिपियाने मे.
ReplyDeleteरामराम.
वेबपेज का पहला नियम है कि वह जल्दी खुले। और इस नियम को मानने में आपने इतनी देर काहे कर दी :)
ReplyDeleteसादा ब्लॉग रखना मेरी भी पसंदीदा टेक्नीक है। कई ब्लॉग पर भारी भरकम जावा सक्रिप्ट चलती है जहां पर मैं कम ही जाता हूँ क्योंकि तब मेरा सिस्टम टैं बोलने लगता है :)
ब्लोग कन्टेन्ट तो महत्त्वपूर्ण है ही - परँतु, अलग अलग कम्प्युटरोँ से डाउनलोड मेँ कितना अधिक या कम समय लगता है ये भी खास महत्त्व रखता है
ReplyDelete- लावण्या
आप तो स्टार ब्लागरों में से हैं, और आपके ब्लॉग पर काफ़ी ट्रैफिक भी जेनेरेट होता है,
ReplyDeleteतो ब्लॉग के monetisation के बारे में क्या ख़याल है.....
ठीख किया।
ReplyDeleteआप चाहें तो नाम और यूआरएल दिखा कर भी टिप्पणी देने के विकल्प को खोल सकते हैं।
बदले-बदले से नज़र आ रहे है सरकार्।
ReplyDelete@ अनूप शुक्ल>लेकिन आभा-बोधिस्तव तो इसीलिये आपका ब्लाग पसंद करते थे कि उनकी बिटिया भानी को आपके ब्लाग का चलता हुआ आदमी देखना अच्छा लगता है।
ReplyDelete-----
भानी अब बड़ी हो गयी होगी। बोधिसत्व ने बहुत समय से चित्र नहीं दिखाया उसका।
attempt to badhia hai sir ji. sada jivan ucch vichar.aaj dekhne ke bad sachmuch blog ke content par hi man ekagra raha.
ReplyDeleteek bat hai comments se life me lesson lena koi aapse sikhe.
" हमे तो पहले भी कोई कठिनाई नही होती थी आज भी नही हुई......"
ReplyDeleteRegards
bahut achcha parivartan hai.
ReplyDeletebahut hi achcha ruup.
[lekin wo 'chalta engine bahut achcha lagta tha.mere khyal se ek ya do java widget lagane se bahut fark nahin padega.]
धन्यवाद! अब घर पर भी आपका ब्लॉग पढ़ सकते हैं पहले केवल उसे पढने के लिए ही दफ्तर जाना पड़ता था. ;)
ReplyDeleteसही सलाह दी... कंटेट महत्त्वपुर्ण है..
ReplyDeleteअच्छे आइटम की पैकेजिंग भी अच्छी हो ले, तो कोई बुरी बात नहीं है। इंजन अच्छा लगता था, बाकी के ताम झाम भी ठीक ही थे। डाइरेक्ट मुद्दे पर आना तो घणा डेंजरस विचार है। कपड़े वपड़े जो हम पहनते हैं, वो भी तो पैकेजिंग है। सुरुचिपूर्ण और दर्शनीय होने में क्या पिराबलम है जी। जमाये रहिये।
ReplyDeleteकंटेट बगैर पैकेजिंग के काम नहीं करता,सिर्फ पैकेजिंग बगैर कंटेट के लंबे टाइम टाइम तक नहीं चलती.
वाह सर जी.. आपके ब्लॉग पर जब तक चित्र थे तब तक ठीक आपने हटाते ही दूसरो के ब्लॉग चिड़ियाघर हो गये.. ये तो अच्छी बात नही जी.. वैसे खुशी है क़ी आपने सादगी अपना ली.. पर भूलिएगा मत आपने क्या शीर्षक दिया है.. ब्लॉग पोस्ट प्रमुख है, शेष गौण...
ReplyDeleteनिष्कर्ष: आप अपना फोटो निकाल कर उसकी जगह चलते इंजन का फोटो डाल दिजिये. वो ज्यादा डिमांड में है. :)
ReplyDeleteटिप्पणी पाने वाले तो वैसे भी आपको उसी फोटू से पहचानते हैं, कन्फ्यूज न हो जायें कि गलत जगह चले आये.
ब्लॉग को ब्लॉग ही रहने दो चिड़ियाघर न करो!
ReplyDeleteये बात सही कही आपने. परंतु पाठ की चौड़ाई ज्यादा रखना भी पढ़ने में परेशानी पैदा करता है. इसकी चौड़ाई वर्तमान का ६०-७० प्रतिशत ही पर्याप्त है, अन्यथा गर्दन और नजरें टेढ़ी करनी पड़ जाती हैं...
यह एक सकारात्मक बदलाव है, जो गम्भीरता को भी प्रदर्शित करता है।
ReplyDeletenamasaar gyandatt ji (pahali tippi hai isaliye kar raha hun)
ReplyDelete"kahate hain na ki aanjate aannate kaana na kar dena"
usase pahale decision le liya.
Gyandatt ji namakskar, (pahali tippi hai isaliye kar rah hun)
ReplyDelete"jyada aanjane se kaana hone ka dar rahata hai"
sahi decision hai.
मेरा ब्लॉग अभी भी आपके ब्लॉग से कम टाइम ले रहा है लोड होने में
ReplyDeleteसोच रहे हैं टेम्पलेट चेंज करके टाइम और कम कर लें बस अभी वाले टेम्पलेट से थोड़ा मोह सा है आपकी बात सुन कर मोह कम करने का प्रयास करते हैं
वैसे हमारा कनेक्शन तेज है आपका ब्लॉग सेकंड में ही लोड हो गया और हमारा 13.75 सेकंड में
ReplyDeleteसादगी से बढ़ कर सौन्दर्य और कहाँ....सच कहा आपने...
ReplyDeleteनीरज
हमें तो चलता इंजन बहुत अच्छा लगता था :(
ReplyDeleteबेक्नर-पोस्नर ब्लॉग की सादगी वाकई प्रशंसनीय है। आपका ब्लॉग भी अब ज्यादा अच्छा लग रहा है। हमें भी अपना चिड़ियाघर संवारने के कुछ गुर दीजिए।
ReplyDeleteचलिए किसी बात को तो हम आपसे पहले समझे वो भी बिना किसी के समझाए :)
ReplyDeleteअब लगे हाथ टिप्पणी बॉक्स भी पोस्ट के नीचे लगा दीजिए और सबस्क्राइब करने का ऑप्शन भी रहे !
@ Raviratlami -
ReplyDeleteपोस्ट-क्षेत्र की चौड़ाई कुछ कम कर दी है! :)
सादा ब्लॉग, उच्च विचार!!
ReplyDeleteसत्य वचन ! वैसे काफ़ी दिनों से तो हम तो रीडर में ही पढ़ लेते हैं. उसके बाद टिपियाने के लिए खोल के छोड़ देते थे... ये कभी ध्यान नहीं दिया की कितने समय में खुलता है.
अच्छा तो यही सब बदला है!
ReplyDeleteसही है कुछ ब्लोग खुलने में बहुत देर लगाते हैं।आभार।
ReplyDeleteफेंटेबुलस--- अन्य ब्लागर ध्यान दें तो हम जैसों का समय बचेगा- अधिक ब्लाग देख पाएंगे।
ReplyDeleteKafi mahatwapurn sujhav diye hain aapne. Vakai kuch blogs load hone mein kafi samay lagate hain. Sujhavon sahit mera bhi maargdarshan karein.
ReplyDelete(gandhivichar.blogspot.com)
जिस प्रकार आदमी कपड़े बदलता है वैसे ही ब्लाग भी अपना रूप-रंग बदलते रहते हैं।
ReplyDeleteआलोक जी की बात में दम है सर जी.....
ReplyDeleteअजी इंजन तो लालू ले गया, लेकिन आप का ब्लांग तो बहुत जल्द खुल जाता था ? कभी अडचन नही आई, कुश की बात भी ठीक है.
ReplyDeleteधन्यवाद
ज्ञान जी,
ReplyDeleteमैंने भी इसी बात को सोचकर अपने ब्लॉग पर ज्यादा कुछ नहीं डाल रखा है. ससुरा काफी टाइम लेता था खुलने में.
हमे न पहले कोइ समस्या थी ना आज है। होगी किसी को ओफ़्फ़ीस जाने कि जल्दी मगर हम तो फुरसती आदमी है । भले कितना भी समय लगे टिप्पणी तो करना ही है ।
ReplyDeleteरविजी, अनुनादजी आदि विशेषज्ञ तकनीकी आधार पर तनिक सलाह दें - क्या सबने ऐसा ही करना चाहिए?
ReplyDeleteज्ञानजी के लिए इतना ही कि परिवर्तन ही जीवन है।
वैसे आज मानसिक हलचल हो ही गई ब्लॉग का टेम्पलेट चेंज करें न करें
ReplyDeleteउलझन में डाल दिया आपने
वैसे ऊपर उन्मुक्त जी की टिप्पणी जानदार है ट्राई कीजियेगा ?
प्रिय ज्ञान जी,
ReplyDeleteआज आपका चिट्ठा देख कर बडी सुखद अनुभूति हुई. दो सुझाव
1. दाईं बगलपट्टी को बाईं ओर लका कर स्नेही पाठकों से जर पूछ लें कि उनको इन दोनों में से कौन सी स्थिति अधिक पसंद है.
2. ज्ञानदत्त पाण्डेय की मानसिक हलचल
मन में बहुत कुछ चलता है।
मन है तो मैं हूं| मेरे होने का दस्तावेजी प्रमाण बन रहा है यह ब्लॉग|
|| Gyandutt Pandey Ki Mansik Halchal ||
इस को एक या दो साईज कम करके देख लीजिये कि कैसा लगता है. खास कर पहली दो पंक्तियों को एक करके और देख लीजिये
सस्नेह -- शास्त्री
बहुत सही मुद्दे पर बात की आपने।
ReplyDeleteशुरु शुरु में जब मैं ब्लॉग जगत पर आया तो यही सोचता था कि ये भी डाल लूं अपने ब्लॉग पर, वो भी डाल लूं, फिर धीरे से समझ में आई हकीकत।
अभी भी शायद खामी है ही मेरे ब्लॉग में ऐसी कुछ,
जल्द ही सुधारता हूं।
ब्लॉग को ब्लॉग ही रहने दो चिड़ियाघर न करो!
ReplyDeleteजेई के लाने हम सुई आ गए ज्ञान भैया
अब जो नै कहियो चिडियाघर में नओ
जनावर कौन आय ....
जय राम जी की
आ, श्री ज्ञानदत्त पाण्डेयजी
ReplyDeleteजब जगे तब सवेरा॥
रही बात उल्ट फेर कि तो यह आपकी रुचि पर निर्भर करता है। हम अभी जवान है सो हमे लटके झटके वाले घोसले पसन्द है।
ब्लॉग पोस्ट निश्चित रूप से प्रमुख है. पोस्ट में तो दम होना ही चाहिए.इसी के लिए ब्लॉग पढ़ा जाता है, किंतु साथ में ब्लॉग आकार्षक भी है, तो सोने में सुहागा. हाँ ब्लॉग खुलने में दिक्कत नही आना चाहिए.
ReplyDeleteज्ञानदत्त जी हमारी बात को इतना महत्व देने के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteखैर, इसी प्रकार मैं कई लोगों के ब्लॉग पर विविधता युक्त चिड़ियाघर देखता हूं। उस सब विकर्षण में सम्प्रेषण गायब हो जाता है। इसके अलावा ब्लॉग पूरी तरह खुलने में भी समय लगता है। … ब्लॉग को ब्लॉग ही रहने दो चिड़ियाघर न करो!
ReplyDeleteदेर आए दुरुस्त आए. समझ भी चीज़ ऐसी है कि देर से आती है, तभी तो उत्तरोत्तर हर कोई विकास का दावा करता रहता है, पहले से अधिक गुणवत्ता का आईटम पेश करता रहता है.........जैसे हम उसे स्वीकार करते रहते है, बिना बोले, उसी तरह आपके ब्लॉग में हुए इस परिवर्तन का भी हम स्वागत करते है.
चन्द्र मोहन गुप्त
ज्ञान वर्धक बात कही आपने, शुक्रिया
ReplyDeleteDear fellow blogger
ReplyDeleteI don't know whether you will publish this comment or not as this is in English.
Sorry friend, i completely disagree with your post content. Just think of a lady without hair, without hair style, without good clothes, without perfume, without lipstick, bindi, trinket, Bengals, gold chain. Further, Can you think of a human being without his body. Only a brain and a mechanism of life cannot make a complete man. Those outer things, you may think unnecessary or un-required but again you will come to grade such people without all these.
Of course, as your friend Anurag Mishra advised you to tone up or tune up, you must not give in to visual pollution. Gif immage, high intensity colours, rolling or running thing or animation create visual distraction and you must not or use them with caution.
Colour should be soothing and not a red rag to a bull.
Coming upto to your content. You are right contents are the life blood of a blog but beautiful containers are needed to sustain those important machinery or system. One must not compromise his content but at the same time one should not ignore beauty.
Think of a sculptor, painter, idol maker and other artists beautifying their creations and we people could not but say, Wah marvelous, bravo.
Thanks
This link was given to me by one of my friends who is in Indian railway. Even i am also in Indian railway. In the morning we were chatting on random matters. I emphasized on designs and beauty of blogs. We chatted for two hours and when we disconnected he could not but sent this link to give me a fitting reply to prove me wrong. But he had no idea that i think otherwise.
ReplyDeleteAnyway nice to go through a indigenous blog. I as a bloggers am linked to some foreign bloggers and some foreigners as i blog in English and that also on English grammar. It is through that friend i came to read some Hindi blogs. Blogging in India is growing.
By the way, i would like to submit your blog to http://blogcatalog.com and make it global as there are so many Indian bloggers and the blog directory is huge.
No doubt your blog has good followers and i wish success in your solemn endeavor. Please don't think the earlier comment something different or something like ignoring you or your endeavor.
Should you take that in that way then you have the right to ignore as you happen to moderate comments.
And delete this comment as this meant to you and not in any way related to your post. Good luck and happy blogging.
@ दैटलव्डफ्लॉवर: आपके कमेण्ट का स्वागत। मेरा ब्लॉग (मेरे विचार से) red rag to a bull पहले भी न था, और अब भी नहीं है।
ReplyDeleteखैर मुझे नहीं लगता कि मेरे और आपके विचारों में कोई भीषण मतभेद है।
धन्यवाद।
अब आपका ब्लॉग पहले से अधिक नीट एण्ड क्लीन लग रहा है इसमें कोई दो राय नहीं हैं लेकिन पहले वाला डिज़ाइन ध्यान भटकाऊ कभी नहीं लगा मुझे, कदाचित् इसलिए कि नज़रें पोस्ट के अतिरिक्त कहीं और जाती ही नहीं! :)
ReplyDeleteबदलाव भी होते रहना चाहिए, एक लिबास को अधिक समय तक पहनते-२ बोरियत भी हो जाती है। कदाचित् मुझे भी अपने ब्लॉग के आवरण को बदलने के बारे में सोचना चाहिए!! ;)
अब आपका ब्लॉग पहले से अधिक नीट एण्ड क्लीन लग रहा है इसमें कोई दो राय नहीं हैं लेकिन पहले वाला डिज़ाइन ध्यान भटकाऊ कभी नहीं लगा मुझे, कदाचित् इसलिए कि नज़रें पोस्ट के अतिरिक्त कहीं और जाती ही नहीं! :)
ReplyDeleteबदलाव भी होते रहना चाहिए, एक लिबास को अधिक समय तक पहनते-२ बोरियत भी हो जाती है। कदाचित् मुझे भी अपने ब्लॉग के आवरण को बदलने के बारे में सोचना चाहिए!! ;)
This link was given to me by one of my friends who is in Indian railway. Even i am also in Indian railway. In the morning we were chatting on random matters. I emphasized on designs and beauty of blogs. We chatted for two hours and when we disconnected he could not but sent this link to give me a fitting reply to prove me wrong. But he had no idea that i think otherwise.
ReplyDeleteAnyway nice to go through a indigenous blog. I as a bloggers am linked to some foreign bloggers and some foreigners as i blog in English and that also on English grammar. It is through that friend i came to read some Hindi blogs. Blogging in India is growing.
By the way, i would like to submit your blog to http://blogcatalog.com and make it global as there are so many Indian bloggers and the blog directory is huge.
No doubt your blog has good followers and i wish success in your solemn endeavor. Please don't think the earlier comment something different or something like ignoring you or your endeavor.
Should you take that in that way then you have the right to ignore as you happen to moderate comments.
And delete this comment as this meant to you and not in any way related to your post. Good luck and happy blogging.
Dear fellow blogger
ReplyDeleteI don't know whether you will publish this comment or not as this is in English.
Sorry friend, i completely disagree with your post content. Just think of a lady without hair, without hair style, without good clothes, without perfume, without lipstick, bindi, trinket, Bengals, gold chain. Further, Can you think of a human being without his body. Only a brain and a mechanism of life cannot make a complete man. Those outer things, you may think unnecessary or un-required but again you will come to grade such people without all these.
Of course, as your friend Anurag Mishra advised you to tone up or tune up, you must not give in to visual pollution. Gif immage, high intensity colours, rolling or running thing or animation create visual distraction and you must not or use them with caution.
Colour should be soothing and not a red rag to a bull.
Coming upto to your content. You are right contents are the life blood of a blog but beautiful containers are needed to sustain those important machinery or system. One must not compromise his content but at the same time one should not ignore beauty.
Think of a sculptor, painter, idol maker and other artists beautifying their creations and we people could not but say, Wah marvelous, bravo.
Thanks
प्रिय ज्ञान जी,
ReplyDeleteआज आपका चिट्ठा देख कर बडी सुखद अनुभूति हुई. दो सुझाव
1. दाईं बगलपट्टी को बाईं ओर लका कर स्नेही पाठकों से जर पूछ लें कि उनको इन दोनों में से कौन सी स्थिति अधिक पसंद है.
2. ज्ञानदत्त पाण्डेय की मानसिक हलचल
मन में बहुत कुछ चलता है।
मन है तो मैं हूं| मेरे होने का दस्तावेजी प्रमाण बन रहा है यह ब्लॉग|
|| Gyandutt Pandey Ki Mansik Halchal ||
इस को एक या दो साईज कम करके देख लीजिये कि कैसा लगता है. खास कर पहली दो पंक्तियों को एक करके और देख लीजिये
सस्नेह -- शास्त्री
Gyandatt ji namakskar, (pahali tippi hai isaliye kar rah hun)
ReplyDelete"jyada aanjane se kaana hone ka dar rahata hai"
sahi decision hai.
यह एक सकारात्मक बदलाव है, जो गम्भीरता को भी प्रदर्शित करता है।
ReplyDeleteअच्छे आइटम की पैकेजिंग भी अच्छी हो ले, तो कोई बुरी बात नहीं है। इंजन अच्छा लगता था, बाकी के ताम झाम भी ठीक ही थे। डाइरेक्ट मुद्दे पर आना तो घणा डेंजरस विचार है। कपड़े वपड़े जो हम पहनते हैं, वो भी तो पैकेजिंग है। सुरुचिपूर्ण और दर्शनीय होने में क्या पिराबलम है जी। जमाये रहिये।
ReplyDeleteकंटेट बगैर पैकेजिंग के काम नहीं करता,सिर्फ पैकेजिंग बगैर कंटेट के लंबे टाइम टाइम तक नहीं चलती.
@ अनूप शुक्ल>लेकिन आभा-बोधिस्तव तो इसीलिये आपका ब्लाग पसंद करते थे कि उनकी बिटिया भानी को आपके ब्लाग का चलता हुआ आदमी देखना अच्छा लगता है।
ReplyDelete-----
भानी अब बड़ी हो गयी होगी। बोधिसत्व ने बहुत समय से चित्र नहीं दिखाया उसका।
आप तो स्टार ब्लागरों में से हैं, और आपके ब्लॉग पर काफ़ी ट्रैफिक भी जेनेरेट होता है,
ReplyDeleteतो ब्लॉग के monetisation के बारे में क्या ख़याल है.....
वेबपेज का पहला नियम है कि वह जल्दी खुले। और इस नियम को मानने में आपने इतनी देर काहे कर दी :)
ReplyDeleteसादा ब्लॉग रखना मेरी भी पसंदीदा टेक्नीक है। कई ब्लॉग पर भारी भरकम जावा सक्रिप्ट चलती है जहां पर मैं कम ही जाता हूँ क्योंकि तब मेरा सिस्टम टैं बोलने लगता है :)
ये हुई कुछ बात, बस आप को जो ज्ञान प्राप्त हुआ है वो उन चंद ब्लोगरस को भी हो जाये जिन्होंने फ्री के मॉल से अपने ब्लोग को चांदनी चौक बना कर रखा है। इतनी भीड़-भाड़ कर रखी है पता नही चलता कब कौन आकर कंप्यूटर की ऐसी तेसी (एडवेयर, ट्रोजन, स्पैमवेयर) कर देता है।
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