फुदकती सोच पब और प्रार्थना को जोड़ देती है!1
मैं नहीं जानता पब का वातावरण। देखा नहीं है – बाहर से भी। पर यह समझता हूं कि पब नौजवानों की सोशल गैदरिंग का आधुनिक तरीका है। यह शराब सेवन और धूम्रपान पर आर्धारित है (बंगाल की अड्डा संस्कृति की तरह नहीं, जो शायद लम्बे और गहन बौद्धिक बातचीत से सम्बन्ध रखती है)।
मुझे आशंका है (पर ठीक से पता नहीं) कि पब स्वच्छंद यौन सम्बन्ध के उत्प्रेरक हैं। हों, तो भी मैं उनके उद्दण्ड मुथालिकीय विरोध का समर्थक नहीं। हिन्दू धर्म इस प्रकार की तालीबानिक ठेकेदारी किसी को नहीं देता।
मैं यहां सामाजिक शराब सेवन और धूम्रपान (जिसमें नशीले पदार्थ जैसे मरीजुआना का सेवन शामिल है) के बारे में कहना चाहता हूं। ये सेवन एडिक्टिव (लत लगाने वाले) हैं। अगर आप इनका विरोध करते हैं तो आपको खैनी, पान मसाला और तम्बाकू आदि का भी पुरजोर विरोध करना चाहिये। पर शायद तथाकथित हिन्दुत्व के ठेकेदार पानमसाला और जर्दा कम्पनियों के मालिक होंगे। हनुमान जी के कैलेण्डर जर्दा विज्ञापित करते देखे जा सकते हैं!
अनिद्रा और अवसाद की दवाइयों के एडिक्टिव प्रकार से मैं भली प्रकार परिचित हूं। और मैं चाहता हूं कि लोग किसी भी प्रकार की व्यसनी जकड़न से बचें। क्रियायोग अथवा सुदर्शन क्रिया शायद समाधान हैं – और निकट भविष्य में इनकी ओर जाने का मैं प्रयास करूंगा। पर समाधान के रूप में प्राणायाम और प्रार्थना बहुत सरल उपाय लगते हैं। सामुहिक या व्यक्तिगत प्रार्थना हमारे व्यक्तिगत महत्व को रेखांकित करती है। व्यक्तिगत महत्व समझने के बाद हमें ये व्यसन महत्वहीन लगने लगते हैं। ऐसा मैने पढ़ा है।
पब में एडिक्शन है, और एडिक्शन का एण्टीडोट प्रार्थना में है। यह मेरी फुदकती सोच है। उद्दण्ड हिन्दुत्व पब संस्कृति का तोड़ नहीं!
1. Hopping thoughts correlate Pub and Prayer!
1. गुंडागिर्दी करने का हक किसी को नहीं है - चाहे यह गुंडागिर्दी शराब के नाम पर हो या वेलेंटाइन डे के नाम पर.
ReplyDelete2. शराब सेवन उतना ऐडिकटिव भी नहीं है जितना कि छिपी-खुली धार्मिक स्वीकृति वाले नशीले पदार्थ जैसे कि भांग और गांजा (चिलम वाला).
3. एडिक्शन और अवसाद का सद्विचार, सत्संग, पौष्टिक भोजन और पोजिटिव एटटित्युड से बेहतर बचाव क्या होगा?
4. इलाज के लिए तो प्रोफेशनल सहायता से बेहतर शायद कुछ और न हो.
पब संस्कृति का विरोध करने वाले लोग पथभ्रष्टो की पिटाई करने के पहले चेतावनी दे देते तो अच्छा रहता। मै यह समझता हुं की यह एक अच्छी बात है की देश के युवा संवेदनशील है और इस बुराई को मिटाने के लिए कुछ कर रहे है। लेकिन दुख की बात है की मेरी तरह सोचने वाले लोगो के नजरिए और विचारो को न तो आज की मिडीया ग्रहण कर रही है ना ही राजनेता । इसकी वजह यह नही है की मेरी तरह सोचने वाले लोग कम है । इसका कारण है की राजनिती तथा मिडीया अत्याधिक विदेशी (चर्च-वाद) की घुसपैठ हो गई है।
ReplyDeleteफुदकती सोच !हा हा हा !!
ReplyDeleteआपकी फुदकती सोच सही है.उद्दण्ड हिन्दुत्व पब संस्कृति का तोड़ नहीं!
ReplyDeleteपब संस्कृति भारत में किसी बौद्धिक विमर्श के साथ कभी जुड़ी नही रही है.निर्मल जी की कहानिओं में भी पब किसी अवसादग्रस्त व्यक्ति के एकांत को और गहराती ही है.भारत में इस संस्कृति को पौर्वात्य मूल्यों पर खतरे के रूप में प्रचारित कर गुंडागर्दी के स्तर पर विरोध किया जा रहा है जो आपको कुछ दिन बाद १४ फरवरी को भी देखने को मिलेगा.
ReplyDeleteबहरहाल प्रार्थना और ध्यान शक्तिशाली विकल्प है इसमे संशय नही.
फ़ुदकती सोच का सौंदर्य वर्णन करने के लिये शब्द नहीं है। :)
ReplyDeleteआपकी बात बिल्कुल सही है. बंगाल की अड्डाबाजी एक गप शप या कहें कि एक गल्प गोष्ठी हम उम्र लोगो के बीच होती है.
ReplyDeleteआज आपने अड्डा शब्द याद दिला कर पुरानी यादों को ताजा कर दिया. जब शाम को घर से तैयार होकर निकलते थे तो मां पूछती थी" कोथाय जाचिस रे"? और हमारा जवाब होता " मां आमि अड्डा दिते जाछि".
कितना पवित्र शब्द है? आज क्या युवा अपनी मां को कह के जाता होगा कि" मैं पब मे जारहा हूं?
पर साहब जमाना है. और हिन्दू संसकृति मे तालिबानी कल्चर ना रहा है और शायद ना कभी रहेगा. ऐसा मेरा मानना है.
ये सही है कि एडिक्शन को प्रार्थना और दृढ इच्छा शक्ति से दूर किया जा सकता है.
रामराम.
प्रार्थना ज़रुरी है।
ReplyDeleteआपकी सोच भी फुदकने लग गयी, शराब के नशे ये याद आया - नशा शराब में होता तो नाचती बोतल। मस्ती मस्ती में शुरू की चीज कब व्यसन बन जाती है जब तक ये पता चलता है तब आदमी इसका लती हो जाता है और कुछ समय बाद जिंदगी ही उसे लात मार देती है।
ReplyDeleteअहा!... अहा!... अहा!...
ReplyDeleteमेरी फुदकती टिप्पणी :)
प्रणायम, सहज क्रिया आदि एक मानसिक स्थिरता दिलाने की प्रक्रिया को अपनाना भी एक मानसिक स्थिरता मांगती है.
ReplyDeleteहम जैसे और आप जैसे चिर युवाओं एवं इस पब संस्कृति को अपनाये युवाओं की फुदकती स्थितियों के लिए कोई नई फुदकन प्रणायाम या फुदकन क्रिया की व्यवस्था आये तो काम बनें.
डंडे से खैर कब क्या हासिल हुआ है-उसका तो विरोध होना ही चाहिये.
जोर जबरद्स्ती से आप पब बन्द नहीं कर सकते... वेलनटाईन डे जिसे मनाना है मनायेगा.. और क्यों नहीं मनाये.. क्या भारतिय क्या पाश्चात्य..अगर लकिर खिचेंगे तो बहुत लम्बी हो सकती है.. और ’लंगोट’ तक भी जा सकती है.. जरुरत है विकल्प देने की.. आप युवाओ को पब से बेहतर विकल्प दें.. तो वो पब में क्यों जायेंगें..
ReplyDeleteआपकी फुदकती सोच भी एक विकल्प दे रही है.. चर्चा जारी रहे.. कुछ तो हल होगा ही..
मैं पब में जाता रहता हू.. वहा दोस्तो के साथ बैठकर बतियाना अच्छा लगता है.. मैं सिगरेट और शराब नही पिता.. और इसके लिए मुझे किसी क्रियायोग अथवा सुदर्शन क्रिया की आवश्यकता नही.. पब जाने का ये अर्थ नही की मैं भारतीय नही हू.. और मैं भारतीय हू या नही इसका फ़ैसला लेने वाले कोई और नही होंगे..
ReplyDeleteआपने बिल्कुल ठीक कहा है.. "शायद तथाकथित हिन्दुत्व के ठेकेदार पानमसाला और जर्दा कम्पनियों के मालिक होंगे"
हिन्दुत्ववादी जाहिल सोच रखते हैं। इन्हें हिन्दुत्व का अर्थ भी नहीं पता और पब का भी नहीं।...फुदकती सोच है बात गंभीर है...
ReplyDeleteताऊ को पहली बार बांग्ला बोलते सुना है....क्या राज़ है ?
इस टिप्पणी को पब से लौटकर ही कर रहे हैं(बुधवार को ११ किमी दौडने के बाद दारू पीने के बाद)। कितनी अजीब बात है कि राईस विश्वविद्यालय अमेरिका के उन कुछ उंगली पर गिनने लायक स्कूल्स में से है जिन्होने कैम्पस परिसर पर ही पब चलाने की अनुमति दे रखी है। और मजे की बात है कि ये नो प्राफ़िट नो लास के चलते बहुत सस्ती बीयर बेचते हैं क्योंकि साकी (बारटेन्डर) भी ग्रेजुएट स्टूडेन्ट्स ही होते हैं (हम अगले सेमेस्टर में बनने का सोच रहे हैं) ।
ReplyDeletehttp://valhalla.rice.edu (ये हमारे पब का पता है)
राईस यूनिवर्सिटी टेक्सास (Consevative state) में है लेकिन हमारा स्कूल काफ़ी Liberal है। और तो और Gay & Lesbians से सम्बन्धित विद्यार्थी संघ भी मिल जायेंगे और Catholic/Baptist student organization भी, मजे की बात है कि इस सबके बाद भी स्कूल भ्रष्ट नहीं हुआ है जैसा बहुत से लोग सोच रहे हॊंगें।
उदार सोच के बहुत से साईड इफ़ैक्ट्स होते हैं और जैसे सब अच्छे नहीं हो सकते, सभी बुरे भी नहीं हो सकते। ये बेईमानी है कि हम सब कुछ अच्छा चाहें, ये एक पैकेज्ड डील है जिसमें सब कुछ मिलेगा।
बस जिस दिन लोग इस पैकेज्ड डील को समझ लेंगे सारी समस्यायें खतम। मां बाप चाहते हैं कि कन्या खूब पढे, नौकरी करे लेकिन अपनी समझ से सोचकर उनके अच्छे बुरे पर सवाल न करे, अपनी सोच से कोई लडका अच्छा लगे तो उसे जीवनसाथी न बनाये, ये सरासर बेईमानी है।
आपकी बात से सहमत हैं कि नशा एक अच्छी बात नहीं, लेकिन अच्छा तो बहुत कुछ नहीं है। क्या करें, फ़िर वही पैकेज्ड डील....
युवाओं पर भरोसा करें, वो भी अपना अच्छा बुरा सोचने में सक्षम हैं।
बहुत सटीक लिखा है
ReplyDeleteदो एक बार कुछ पब वब टाइप की जगह पर जाना हुआ अगर सिगरेट का इरिटेटिंग धुआं कुछ ज्यादा नही हो तो हमें पब ज्यादा बार जाने में कोई परेशानी नही होती .
खैर वो धुंआ तो पब के बाहर भी हर जगह मिल जाता है
पब कभी गया नहीं अतः कह नहीं सकता कि वहाँ क्या होता है. हमारे यहाँ तो खूलेआम शराब बिकती भी नहीं.
ReplyDeleteबंगाल में अड्डाबाजी समय को बरबाद करने का साधन था, क्या हासिल होता था/है पता नहीं. पब बौद्धिक कसरत के लिए नहीं, तनाव मुक्ति के लिए जाते है.
पब अधिक संख्यक लोग नहीं जाते इसलिए पब जाने वालों का विरोध कर ईर्ष्यालुओं का समर्थन भी पाया जा सकता है. धूम्रपान तो हर वर्ग करता है.
मार-पीट या गुंडा-गर्दी से क्या साबित करना चाहते है ।
ReplyDeleteआज सुबह ही आउटलुक (९ feb. ) मे पढ़ रहे थे इसी विषय मे ।
पब संस्कृति हमारी संस्कृटि तो कदापि नही, पब क्या ओर बहुत सी बिमारियां जो पाश्चात्य मै है, जेसे यह आने वाला वेलनटाईन डे, असल मै हम बन्दर है, नकल मारना हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, चाहे फ़ुलहड ही दिखे नकल तो मारनी ही है,
ReplyDeleteपाश्चात्य जगत मे बहुत सर्दी होती है, ओर यह सब इन के अपने तोय्हार है अपना कलचर है, मेने तो कभी किसी गोरे को दिपावली, होली, रक्षा बंधन मनाते नही देखा, बाल्कि यह शायद हमारे इन त्योहारो को जानते भी नही होगे, तो क्या यह आजाद नही ? पिछडे है? ओर हम बंदर ही तो हुये जो इन का अनुसरण करते है....:)
ग्याण जी धन्यवाद आप ने बहुत अच्छा विषय उठाया, लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है.
पब या बार को नशे से जोड़कर देखना भी पूरी तरह सही नहीं है. कई बार मैं भी गया हूँ हमारे ग्रुप में आधे लोग ऐसे हैं जिन्होंने कभी दारु, सिगरेट छुई भी नहीं है ! एक-दो बार उत्सुकता से, और कई बार साथ के एकाध लोगों की इच्छा हो गई तब. पब में कॉफी, बार में दूध और जूस भी मिल जाता है ! हर जगह का तो पता नहीं लेकिन एक जगह दूध मंगाने का तो अपना अनुभव है. अपनी-अपनी जीवन शैली है, अच्छा-बुरा सोचना और अपने लिए कुछ भी करने के लिए व्यक्ति स्वतंत्र है. परिवार, स्कूल, संस्कार ये कुछ अच्छा-बुरा सिखाते हैं. उसके बाद जिसे जो अच्छा लगा वो करे ! ये लोग बीच में कहाँ से आते हैं अपनी समझ के बाहर है.
ReplyDeleteये जो तालिबानी कल्चर अपनाते हैं उन्हें सरे आम गोली मार दी जाय तो भी कोई बुराई नहीं है. मुझे इस बात का दुःख है की ये 'हिंदू' शब्द का इस्तेमाल करते हैं, जिसकी विशालता और अच्छी बातें कभी कम नहीं पड़ती.
इनका काम किसी भी तरीके से जस्टिफाई किया ही नहीं जा सकता. मुझे तो ये मानसिक बीमार लोग लगते हैं देश और धर्म का नाम बदनाम करने वाले दुश्मन. बाकी और भी कई नेक काम (जैसे प्रार्थना) हैं जो एंटीनोड का काम कर सकते हैं लेकिन एंटीनोड की तलाश किसे है ? इन तालिबानों को तो नहीं ही है ! कर्नाटक के मुख्यमंत्री को नहीं चाहिए, पर उनकी बेटी जो बीपीओ कंपनी चलाती हैं उनकी नजर में ये फैसला औरतों को करना है की उन्हें जाना है या नहीं ! या तो ये जेनेरेशन गैप है या मानसिक कुंठा ! जो भी हो मुझे परेशानी हिंदुत्व और भारत को बदनाम करने को लेकर ज्यादा हुई. हिंदुत्व और भारत उनके बाप का नही. अगर सरकार को कुछ करना है तो ऐसे नामों को इस्तेमाल करने पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए. धार्मिक और देश का नाम इस्तेमाल करके पार्टी नहीं बनाने दिया जाना चाहिए. और ऐसी घटनाएं तो सपने में भी घटित नहीं होने दिए जाने चाहिए.
अगर पाकिस्तानी अखबार लिखते हैं की हिंदुस्तान में ख़ुद तालिबान है और फलां सेना के स्युसाइडबमर होते हैं ! तो क्या ग़लत कहते हैं? अगर हम अपने घर में इतना होने देते हैं तो उन्हें बढ़ा-चढा के कहने का हक़ बनता है.
ब्लागिंग से ज्यादा पबबाजी कहां होती है जी। ब्लागिये किसी पबबाज से कहां कम हैं जी।
ReplyDeleteपब नहीं मादक पेय स्वच्छंद यौन संबंधों के उत्प्रेरक होते हैं, ऐसी धारणा है लेकिन कितना, ये पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता. इस पर अभी रिसर्च चल रही है. मादक पेय किसी पब में लिया जाए, किसी रेव पार्टी में या पेज थ्री गैदरिंग में असर एक जैसा ही होता है. मेरे हिसाब से ये फुदकती सोच हमारे अंदर की बेसिक इंस्टिंक्ट है. हशीश, हेरोइन, कोकीन और दारू का काकटेल जैसे ही हलक के नीचे उतरता है अंदर बैठा कुक्कुर मुक्ति का एहसास कर कूदने या फुदकने या बहकने लगता है. पान, पान मसाला, खैनी खाकर सरे राह पीकने वाले और किसी भी दीवार पर कुक्कुरों की तरह पेशब करने वालों से लाख अच्छे है पब में बैठ कर पीने वाले
ReplyDeleteआप की फुदकती सोच में एक सच्चाई है.धरम या संस्कृति के नाम पर उद्दंडता कतई बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिये.मादक पदार्थों का सेवन भी पूरी तरह से सही नहीं है..यह आदत बाकि सभी व्यसनों कोंभी जनम दे सकती/देती है.मैं जिस देश में रहती हूँ वहां शराब खरीदने के लिए लायसेंस की जरुरत होती है..और सब को यह लायसेंस नहीं मिलता.यूँ तो लोग पाने के रास्ते निकल लेते हैं लेकिन स्थिति नियंत्रण में तो रहती है.
ReplyDeleteहमारे 'कथित लोकतान्त्रिक 'देश में जब तक एक मत हो कर इन सभी समस्याओं का हल नहीं निकलता हमारी युवा पीढी भी confuse रहेगी.शायद वह यह नहीं समझ पा रही है की उसे क्या करना चाहिये क्या नहीं?एक तरफ़ आधुनिक दिखने की होड़ दूसरी और संस्कृति के नाम पर मार पिटाई. मेरे ख्याल से हर घर की यह जिम्मेदारी होनी चाहिये की किसे कितनी छूट दी जानी चाहिये.और इस के लिए जरुरी है सभी अपनी नैतिक जिम्मेदारियों को समझें.और एक नियंत्रण रेखा तय करें.आप ने कहा प्रार्थना ..सच है प्रार्थना में शक्ति है...हम भी यही प्रार्थना करते हैं..कि ईश्वर हम सभी को अच्छे बुरे में अन्तर करने की समझ दे..
आपने बिल्कुल बजा फ़रमाया सर पब कल्चर के विषय में।
ReplyDeleteये हिन्दुत्व का भोंपू बजाने वाले बेशक पानमसाला ज़र्दा आदि बनाने वाली कंपनियों के मालिक न हों लेकिन सेवन न करते हों ये बात हज़म नहीं होती। और मदिरा सेवन भी इनमें से कई करते होंगे। बात यहाँ पर संस्कृति की है ही नहीं जी, बात यहाँ इसका भोंपू बजा अपनी राजनीतिक जगह बनाने की है। और नई बात क्या है, दूसरे कई दल सालों से ऐसा करते आ रहे हैं!!
ReplyDeleteसंस्क्रति एक फोल्डेबल चीज है जिसे जब चाहे जैसे इस्तेमाल कर लो....बरसो से लोग करते आ रहे है......
ReplyDeleteनीरज रोहिल्ला और अभिषेक की बातों को मेरा पूरा समर्थन. कोई चीज़ रोककर ही कहाँ कम हुई है? पश्चिम में पब social gathering की एकमात्र जगह होते हैं मगर मैंने वहां अपनी आंखों से वैसे शराबी नहीं देखे जैसे अपने यहाँ दीखते हैं जो नशे में डोलते हैं और गाली-गलौच मारपीट करते हैं. उन्मुक्तता एक बात है और सभ्यता और संयम दूसरी. पश्चिम में मुझे इन सबका सामंजस्य अपने से ज़्यादा दिखाई देता है. वहां पब में लोग अपने बच्चों को भी लेकर आते हैं और माहौल इतना घरेलु होता है कि आप अपने को बाहर का महसूस ही नहीं करते.
ReplyDeleteकभी निर्मल वर्मा का संस्मरण "चीडों पर चाँदनी" पढ़कर देखिये.
और ये मुतालिक और तालिबानी मानसिकता वाले लोग ये बताएं कि भारत में जो वसंतोत्सव मनाया जाता था उसमें क्या युवक-युवतियां अपनी पसंद के जोड़े नहीं बनाते थे? श्रृंगार उस समय अपने चरम पर था. बंगलौर में ये लोग इस बार valentine day पर बड़े बड़े फतवे जारी कर रहे हैं और यहाँ के युवा भी उनको ठोकने पीटने को तैयार बैठे हैं.
अब तक नहीं देखा पब
ReplyDeleteतो फिर देखोगे कब???
आपकी फुदकती सोच बिल्कुल सही है.प्रार्थना और ध्यान शक्तिशाली विकल्प है.
ReplyDeleteThe total self centered behavior from any sector of society ,
ReplyDeleteis unacceptable...
&
the decisions where an individual wants to go,should be personal choice.
As far as my life , i have no attarction to go to any pub.
But, I'd like very much an intellectual meeting place if it is held in a so called "pub"..
सामाजिक दोष का विरोध हरेक को करना चाहिये, लेकिन कानून का उल्लंघन किये बिना. कानून अपने हाथ में न लिया जाये,
ReplyDeleteसस्नेह -- शास्त्री
-- हर वैचारिक क्राति की नीव है लेखन, विचारों का आदानप्रदान, एवं सोचने के लिये प्रोत्साहन. हिन्दीजगत में एक सकारात्मक वैचारिक क्राति की जरूरत है.
महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)
सामाजिक दोष का विरोध हरेक को करना चाहिये, लेकिन कानून का उल्लंघन किये बिना. कानून अपने हाथ में न लिया जाये,
ReplyDeleteसस्नेह -- शास्त्री
-- हर वैचारिक क्राति की नीव है लेखन, विचारों का आदानप्रदान, एवं सोचने के लिये प्रोत्साहन. हिन्दीजगत में एक सकारात्मक वैचारिक क्राति की जरूरत है.
महज 10 साल में हिन्दी चिट्ठे यह कार्य कर सकते हैं. अत: नियमित रूप से लिखते रहें, एवं टिपिया कर साथियों को प्रोत्साहित करते रहें. (सारथी: http://www.Sarathi.info)
नीरज रोहिल्ला और अभिषेक की बातों को मेरा पूरा समर्थन. कोई चीज़ रोककर ही कहाँ कम हुई है? पश्चिम में पब social gathering की एकमात्र जगह होते हैं मगर मैंने वहां अपनी आंखों से वैसे शराबी नहीं देखे जैसे अपने यहाँ दीखते हैं जो नशे में डोलते हैं और गाली-गलौच मारपीट करते हैं. उन्मुक्तता एक बात है और सभ्यता और संयम दूसरी. पश्चिम में मुझे इन सबका सामंजस्य अपने से ज़्यादा दिखाई देता है. वहां पब में लोग अपने बच्चों को भी लेकर आते हैं और माहौल इतना घरेलु होता है कि आप अपने को बाहर का महसूस ही नहीं करते.
ReplyDeleteकभी निर्मल वर्मा का संस्मरण "चीडों पर चाँदनी" पढ़कर देखिये.
और ये मुतालिक और तालिबानी मानसिकता वाले लोग ये बताएं कि भारत में जो वसंतोत्सव मनाया जाता था उसमें क्या युवक-युवतियां अपनी पसंद के जोड़े नहीं बनाते थे? श्रृंगार उस समय अपने चरम पर था. बंगलौर में ये लोग इस बार valentine day पर बड़े बड़े फतवे जारी कर रहे हैं और यहाँ के युवा भी उनको ठोकने पीटने को तैयार बैठे हैं.
आप की फुदकती सोच में एक सच्चाई है.धरम या संस्कृति के नाम पर उद्दंडता कतई बर्दाश्त नहीं की जानी चाहिये.मादक पदार्थों का सेवन भी पूरी तरह से सही नहीं है..यह आदत बाकि सभी व्यसनों कोंभी जनम दे सकती/देती है.मैं जिस देश में रहती हूँ वहां शराब खरीदने के लिए लायसेंस की जरुरत होती है..और सब को यह लायसेंस नहीं मिलता.यूँ तो लोग पाने के रास्ते निकल लेते हैं लेकिन स्थिति नियंत्रण में तो रहती है.
ReplyDeleteहमारे 'कथित लोकतान्त्रिक 'देश में जब तक एक मत हो कर इन सभी समस्याओं का हल नहीं निकलता हमारी युवा पीढी भी confuse रहेगी.शायद वह यह नहीं समझ पा रही है की उसे क्या करना चाहिये क्या नहीं?एक तरफ़ आधुनिक दिखने की होड़ दूसरी और संस्कृति के नाम पर मार पिटाई. मेरे ख्याल से हर घर की यह जिम्मेदारी होनी चाहिये की किसे कितनी छूट दी जानी चाहिये.और इस के लिए जरुरी है सभी अपनी नैतिक जिम्मेदारियों को समझें.और एक नियंत्रण रेखा तय करें.आप ने कहा प्रार्थना ..सच है प्रार्थना में शक्ति है...हम भी यही प्रार्थना करते हैं..कि ईश्वर हम सभी को अच्छे बुरे में अन्तर करने की समझ दे..