Monday, February 9, 2009

लस्तवइ भुलाइ गये!


मैं फिर गंगा किनारे गया। सब्जियों की खेती देखने नहीं, अपने आप को अनवाइण्ड करने। अपना मोबाइल ले कर नहीं गया – कोई फोन नहीं चाहता था एक घण्टे भर।

एक छोटा बच्चा तेजी से चलता हुआ गया – बोलता जा रहा था – “अले हम त लस्तवइ भुलाइ गये”। (अरे मैं तो रास्ता ही भूल गया।) थोड़ी देर बाद वह अपनी गोल में मिला दिखा।

दो लड़कियां दिखीं – पूनम और गुड़िया। गंगा किनारे क्यारी खोद, खाद डाल कर टमाटर रोप रही थीं। पूनम फावड़े से क्यारी बना कर यूरिया छिड़क रही थी। गुड़िया पौधे रोप रही थी। खनकदार हंसी पूनम की। भाई कहीं गया है। समय बरबाद न हो, इस लिये वे यह काम करने आई हैं।

उन दोनो की अम्मा बीमार है, लिहाजा उन्हें ही यह रुपाई का काम करना है। मेरी पत्नी बातचीत में पूनम से कहती हैं – लड़कियां भी अब आगे बढ़ रही हैं। पूनम तुरंत जवाब देती है –

“लड़कियां ही तो आगे बढ़ रही हैं। लड़के तो बस अपने को लड़का मान कर खुश हैं।”

छठी क्लास पास पूनम का यह बड़ा गूढ़ ऑब्जर्वेशन है।

Poonam legsमैने पूनम का फोटो लिया। पर वह यहां लगाऊंगा नहीं। आप तो उसका गंगा की रेती में क्यारी बनाता फावड़ा देखें।

Rohitइतने में रेत के खेत में चाचा को दोपहर का भोजन दे कर लौटता रोहित दीखता है। घर लौट कर स्कूल जायेगा। चिल्ला गांव में रहता है और शशिरानी पब्लिक स्कूल में पढ़ता है। गली में हर दूसरा स्कूल पब्लिक स्कूल है। जो पब्लिक के लिये हो वह पब्लिक स्कूल।  

एक बुआ और भतीजी दिखीं। वे भी रास्ता भूल गई थीं। जेके देखअ, उहई लस्तवा भूला रहा। (जिसको देखो, वही रास्ता भूला था।)

हमहूं लस्तवा भुलान हई (क्या बताऊं, मैं भी रास्ता भूला हूं)। न केवल कैसे करना चाहता हूं, वरन क्या करना चाहता हूं, यह भी स्पष्ट नहीं है। कौन भाग्यशाली है जो जानता है मुकाम और मार्ग?!


Girirajkishor गिरिराज किशोर जी के ब्लॉग पर एक महत्वपूर्ण पोस्ट है - भाषा का तप त्याग और उपेक्षा। फीड में यह पूरी पोस्ट है पर ब्लॉग पर मात्र रोमनागरी में शीर्षक बचा है।

पता नहीं, उनका ब्लॉग वे मैनेज करते हैं या उनके बिहाफ पर कोई अन्य (वैसे प्रतिटिप्पणियां रोमनागरी में उनकी ही प्रतीत होती हैं)। पर यह बेहतर होगा कि वह हिन्दी की स्थिति विषयक पोस्ट लोग देख पायें। इकहत्तर वर्षीय श्री गिरिराज किशोर अगर ब्लॉग इत्यादि के प्रति प्रो-एक्टिव हैं तो प्रसन्नता का विषय है।

(वैसे यह वर्ड डाक्यूमेण्ट में पांच पेज की फुरसतियात्मक पोस्ट है। पाठक के पेशेंस को परखती हुई!) 


37 comments:

  1. हमहूं लस्तवा भुलान हई - कौउन जाने का मुकाम. अभी तो दो दिन दिल्ली में पटखनी खाये पड़े है.

    बहुत शानदार/जानदार पोस्ट.

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  2. “लड़कियां ही तो आगे बढ़ रही हैं। लड़के तो बस अपने को लड़का मान कर खुश हैं।”

    सत्य वचन...हाईस्कूल, इण्टरमीडियेट का परिणाम उठा कर देखिये यही देखने को मिलेगा। लडकियाँ आगे भी ऐसी तरक्की करें और लडके भी खूब तरक्की करें तब ही मजा आयेगा।

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  3. तो इन दिनों गंगा विहार चल रहा है -राजा शांतनु के पड़ चिह्नों पर या ऐसे ही !

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  4. ज्ञान जी, बहुत ही सुंदर और वैचारिक गद्य काव्य का सृजन हो गया है।
    हम सभी रास्ता भटके हुए हैं और भौंचक्क भी हैं कि रास्ता तलाशते भी नहीं। दिखाई देने वाले रास्तों में ही एक सही रास्ता भी है। पर गलत के फेर में उधर कदम उठते ही नहीं।

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  5. तो खूब गंगा के किनारे विहार हो रहा है। चंगा है जी। हम भी यहाँ बैठे ठाले विवरण ले रहे हैं। आज सिध्दार्थ जी की पोस्ट भी विहार करवा रही है। मौजा ही मौजा।

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  6. हमहूं लस्तवा भुलान हई (क्या बताऊं, मैं भी रास्ता भूला हूं)। न केवल कैसे करना चाहता हूं, वरन क्या करना चाहता हूं, यह भी स्पष्ट नहीं है। कौन भाग्यशाली है जो जानता है मुकाम और मार्ग?!
    बहुत ही लाजवाब सोच. शायद हम सबकी यही सोच है.?

    रामराम.

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  7. जेके देखअ, उहई लस्तवा भूला रहा। (जिसको देखो, वही रास्ता भूला था।)
    " बहुत सार्थक लेख गंगा के किनारे का सजीव चित्रण.....रास्ता भूलने वाली बात आज के जीवन मे भी लागु हो रही है .....सच कहा जिसे देखो वही रास्ता भूल रहा है .....बहुत गूढ़ और गहरा अर्थ है इस पंक्ति का..."

    Regards

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  8. आपने गंगा किनारे की सैर के लिए मोबाइल घर छोड़ दिया। कैमरा साथ ले गये। अच्छा किया।

    मेरे पास तो अलग से कम्प्यूटर-मित्र कैमरा है ही नहीं। मेरा मोबाइल फिलहाल दोनो काम कर रहा है। मेरी यमुना जी की सैर की तस्वीरें देखने जरूर आइएगा।
    यमुना का नया पुल नेट पर बहुत कम डाला गया है।

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  9. लस्तवा हम भी भूले हुए है और उसकी तलाश मे भटक रहे हैं।

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  10. बच्चे स्कूल जा रहें है, ये सबसे अच्छी बात है.. पब्लिक हो या सरकारी क्या फर्क पड़्ता है....

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  11. भाई ज्ञानदत्त जी, यदि आप रास्ता भूलेंगे तो भला कैसे चलेगा। आपको तो भूले हुओं को रास्ते पर लाना है।

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  12. वैसे तो सभी रस्ता भूले हुए हैं बहुत कम है जो सही रास्ते पर हैं।बहुत बढिया पोस्ट है।धन्यवाद।

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  13. गंगाजी के किनारे सही जा रहे हैं आप।
    लड़कियां घणी स्पीड से आगे बढ़ रही हैं, इत्ती कि पकड़ में नहीं आ रही हैं। अभी कल ही एक धांसू वाकया हो गया। मेरी एक छात्रा करीब इक्कीस वर्षीय बालिका एक स्कूल में एक पांच साल के बालक के साथ दिखायी दी। मैंने पूछा कैसे यहां,मैं तो यहां अपनी बेटी के लिये आया हूं,उसने बताया कि वह अपने भाई की पेरेट्स टीचर्स मीट के लिए आयी है। फिर मुस्कुराकर बताने लगी कि दोनों भाई बहन में करीब पंद्रह साल का अंतर है। पापा दुबई में हैं, मम्मी टिपीकल हाऊस वाइफ हैं। पूरा घर बाहर का काम वही देख रही है।
    पापाजी ने जिस लड़के की चाहत में पंद्रह साल बाद घर में नयी जिम्मेदारी लाने का काम किया, वह भी अब उस लड़की की जिम्मेदारी है।
    वह लड़का उस बालिका को क्या सपोर्ट करेगा, पूरी जिंदगी वह बालिका ही उसका सपोर्ट बनेगी।

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  14. “लड़कियां ही तो आगे बढ़ रही हैं। लड़के तो बस अपने को लड़का मान कर खुश हैं।”
    सच में, गूढ़ वचन है यह..

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  15. छोरी गंगा किनारे वाली ने बहुत सही बात कह दी कि लड़कियां ही तो आगे बढ़ रही हैं, लड़के तो बस अपने को लड़का मान कर खुश हैं.

    यही हाल रहा तो ज्यादा समय तक खुश नहीं रह पाएंगे.

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  16. आलोकजी ने जो किस्सा सुनाया है वह भी पोस्ट को आगे बढ़ाने वाला है.

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  17. मैं तो रास्ता नहीं भूली...बिल्कुल सही ब्लॉग पर पहुँची हूँ.

    बेशक !!!!!!!!लड़कियां हर क्षेत्र में ,हर देश में तरक्की कर रही हैं..लड़के भी खूब तरक्की करें .उनके लिए भी शुभकामनाएं.

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  18. बहुत सरल पर बहुत ही गूढ़ पोस्ट है आपकी ।
    पूनम की बात मे भी सच्चाई है ।

    आपकी पोस्ट भी लोगों को रास्ता तलाशने मे मदद करेगी ।

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  19. अक्सर लोग लस्तवइ भुलाइ जाते है... आपकी आज की पोस्ट रूटीन से हट कर लगी... अच्छा लगा...

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  20. सही जगह अनवाइण्ड होते है आप ....शीर्षक खासा दिलचस्प लगा आपका

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  21. ऐसे लस्तवा भुलाई के भटकने का भी अपना मजा है ! ज्ञान तो हर जगह से मिल सकता है... कोई भी गुरु हो सकता है. ये आपकी कई पोस्ट में दीखता है.

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  22. छही लस्तवा कहवाँ हव भइया....

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  23. अन्वाईंड करने के लिए गंगा के किनारे के अलावा आप और कहीं क्यूँ नहीं जाते...ठीक समझे हमारा इशारा खोपोली ही है... शिव से पूछिए वो ऐसे अन्वाईंड हुए हैं यहाँ आ कर की की वापस कलकत्ता जा कर रिवाईंड ही नहीं हो पा रहे...
    नीरज

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  24. हमहूं लस्तवा भुलान हई (क्या बताऊं, मैं भी रास्ता भूला हूं)। न केवल कैसे करना चाहता हूं, वरन क्या करना चाहता हूं, यह भी स्पष्ट नहीं है। कौन भाग्यशाली है जो जानता है मुकाम और मार्ग?!

    ...........

    कितनी गूढ़ बात कही आपने......बहुत अपने से लगे ये वाक्य...

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  25. लड़कियां ही तो आगे बढ़ रही हैं। लड़के तो बस अपने को लड़का मान कर खुश हैं।

    ..........सच कहा
    जिसे देखो वही रास्ता भूल रहा है .....बहुत गूढ़ और गहरा अर्थ!!!!

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  26. “लड़कियां ही तो आगे बढ़ रही हैं। लड़के तो बस अपने को लड़का मान कर खुश हैं।”

    एकदम सही कहा उसने।
    हमहूं लस्तवा भुलान हई (क्या बताऊं, मैं भी रास्ता भूला हूं)। न केवल कैसे करना चाहता हूं, वरन क्या करना चाहता हूं, यह भी स्पष्ट नहीं है। कौन भाग्यशाली है जो जानता है मुकाम और मार्ग?!

    सब के मन का सवाल्। इस मनोविज्ञान की क्लास का अपना ही मजा है। आप के इस वाक्य ने मेरे मन में चल रहे कुछ सवालों का जवाब दे दिया, शुक्रिया।

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  27. निस्‍सन्‍देह लडकियां ही आगे बढ रही हैं और लडके समय की घडी उल्‍टी घुमा कर 18वीं शताब्‍दी में जा रहे हैं। मैंगलोर में भी उन्‍होंने यही साबित किया।

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  28. लड़कियां ही तो आगे बढ़ रही हैं। लड़के तो बस अपने को लड़का मान कर खुश हैं।”

    अजहर हाशमी की पंक्तियों को फ़िर दोहराउंगा,जिन्हें पहले भी कई बार टिपिया चुका हूँ. -

    दुर्दिनों के दौर में देखा
    बेटियाँ संवेदनाएं हैं |
    गर्म झोंके बन रहे बेटे
    बेटियाँ ठंडी हवाएं हैं ||

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  29. जेके देखअ, उहई लस्तवा भूला रहा। अजी मेरा भारत ही सारा रास्ता भूल गया है....... अपने संस्कारो से, अपनी जडो से, अपना घर ही खो बेठा है, बस दुसरो के घर को ही अपना मान बेठा है, कोन इसे सही रास्ता दिखाये???अपने सोने को तो मिट्टी बता रहा है, दुसरो की मिट्टी को सोना...
    धन्यवाद आप का गंगा किनारा बहुत सुंदर लगा.

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  30. रोचक पोस्ट।
    एक ठो बात बताइये।
    आप मोबाइल साथ ले नहीं गये। फ़िर फोटो कैसे लिये? क्या दूसरा कैमरा ले लिये?

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  31. “अले हम त लस्तवइ भुलाइ गये.” बहुत मासूम कथन. पढ़ते ही चेहरे पर स्वतः मुस्कान आ गयी.

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  32. रास्‍ता मत भूलिए हुजूर, आपको तो बहुतों को राह दिखानी है।

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  33. लड़के अपने को लड़का समझ कर खुश हैं .......सत्य वचन . आप रास्ता न भूलिए सरकार ....याद रखिये ...अरे अभी तो मीलों मुझको ...मीलों मुझको चलना है .

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  34. dekh kar aachha laga ki aadami loog insecure nahi hai ki girls aaga aa rahi hai.

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  35. “लड़कियां ही तो आगे बढ़ रही हैं। लड़के तो बस अपने को लड़का मान कर खुश हैं।”
    sach hae .

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  36. Humhu lastwa bhula gayeel rahni, dikhaye khatir dhanywaad!!

    Banaras ke ghaat humein bhi achhe lagte hain bas mann hota hai wahi baithe rahen shaam ko aur BHU ke fine art students se apni pictures banwate rahen :)

    padhkar anand aaya..

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  37. Aapne bilkul saki kaha....
    “लड़कियां ही तो आगे बढ़ रही हैं। लड़के तो बस अपने को लड़का मान कर खुश हैं।”

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय