इज्राइल में १० फरवरी को चुनाव सम्पन्न हुये। अठारवीं नेसेट के लिये ३३ पार्टियों में द्वन्द्व था। एक सौ बीस सीटों की नेसेट में कदीमा (नेता जिपी लिवनी, मध्य-वाम दल) को २८, लिकूद (नेता बेन्जामिन नेतन्याहू, मध्य-दक्षिण दल) को २७, दक्षिण पन्थी अवी लिबरमान के दल इज्राइल बेतेनु को १५, धार्मिक दल शास को ११ और वामपन्थी लेबर दल को १३ सीटें मिलीं। सात अन्य दलों को बाकी २६ सीटें वोटों के अनुपात में बंटीं। इक्कीस दलों को एक भी सीट नहीं मिली।
कोई दल या गठबन्धन सरकार बनाने के ६१ के आंकड़े को छूता नजर नहीं आता।
जो सम्भावनाये हैं, उनमें एक यह भी है कि कदीमा-लिकूद और कुछ फुटकर दल मिल कर सरकार चलायें। अभी कठोर लेन देन चल रहा है।
जैसा लगता है, भारत में भी दशा यही बनेगी कि कोई बहुमत नहीं पायेगा। पर देश के दोनो बड़े दल (कांग्रेस और भाजपा) मिल कर बहुमत पा सकते हैं। सिवाय “हिन्दुत्व” और “सेक्युलर” के आभासी अन्तर के, इनकी आंतरिक, परराष्ट्रीय अथवा आर्थिक नीतियों में बहुत अन्तर नहीं है। ये दल भी कठोर लेन-देन के बाद अगर कॉमन प्रोग्राम के आधार पर साझा सरकार देते हैं तो वह वृहत गठबन्धन की सरकार से खराब नहीं होगी।
पता नहीं, कदीमा-लिकूद छाप कुछ सम्भव है कि नहीं भारत में। एक अन्तर जो भारत और इज्राइल में है वह यह कि वहां उम्मीदवार नहीं, पार्टियां चुनाव लड़ती हैं और नेसेट में पार्टियों को मिले वोट के अनुपात में स्थान मिलते हैं। पर भारत में यह न होने पर भी दोनो मुख्य दलों का गठबन्धन शायद बेहतर करे, चूंकि दोनो ओर समझदार लोगों की कमी नहीं है।
इज्राइल चुनाव के बारे में आप यहां से जान सकते हैं।
विचार बहुत उम्दा है कि हमारी दो बड़ी पार्टियां गठबंधन कर एक स्थायी बेहतर सरकार दें, पर मुझे ऐसा नहीं लगता.
ReplyDeleteबड़ा क्लोजली फॉलो किया आपने इजराइल का चुनाव..खैर, विचार उत्तम है. देखिये, क्या होता है..अब ज्यादा समय तो बाकी भी नहीं है.
ReplyDelete@ समीर "ऊड़न तश्तरी"> देखिये, क्या होता है..अब ज्यादा समय तो बाकी भी नहीं है.
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मैं यह नहीं कह रहा कि वे चुनाव साथ साथ लड़ें। चुनाव में जो जितनी प्रतिद्वन्द्विता हो करें, पर बाद में सरकार हार्ड बार्गेनिंग के बाद साझा बनायें। उसके लिये समय नहीं गया। एक सम्भावना को खुला रखने की बात है।
चुनाव गेंदा फूल :)
ReplyDeleteबस, वह समय आने ही वाला है, जब दो-तीन साल के आर्थिक आपातकाल सहित राष्ट्रीय सरकार बनेगी। सरकार का मुखिया होगा राष्ट्रपति। न कोई पक्ष होगा न विपक्ष। किसी वोट बैंक की चिंता नहीं। सब कुछ राष्ट्र हित में।
ReplyDeleteवाह! क्या सीन है!!
धर्म .साम्प्रदायिकता ,जाति,भ्रष्टाचार इन सब को एक नही होने देगा . राष्ट्र हित कोई सोचता नही नेता भी और वोटर भी . जिस दिन राष्ट्र ऊपर होगा उसी दिन भारत इस्राइल की तरह अपने आप मे ताकत बन जायेगा और उसे इधर उधर मदद के लिए ताकना नही पड़ेगा
ReplyDeleteमुझे नही लगता कि दोनो दल कभी साथ सरकार बना पाएँगे। ऐसा हुआ तो दोनों में से एक हमेशा के लिए समाप्त हो लेगा।
ReplyDeleteअभी काफी दिनों तक यानि दस बीस वर्षों तक स्पष्ट बहुमत की संभावना तो बिल्कुल नहीं दिखाई देती.... मिल जुलकर सरकार चला लेना ही एकमात्र विकल्प रह जाता है।
ReplyDeleteआपकी भावना फिलहाल तो 'आकाश कुसुम' ही लगती है।
ReplyDeleteआपका ्कथन बहुत सही है. और आपने भारतिय परिपेक्ष मे इसको बहुत बेहतर नजरिये से देखा है.
ReplyDeleteरामराम.
भारत में वोटबैंक की राजनीति के चलते ऐसा हो पायेगा ये असंभव ही लगता है!
ReplyDeleteबड़ी दूर की लाते हैं जी, सीधे इजरायल से। भजनलालजी की दरकार है वहां।
ReplyDeleteजब हम आत्मावलोकन में ही मुदित रहते हैं आप सहसा कोई वैश्विक परिदृश्य एयर उसके देशी निहितार्थ को संकेत कर चकित करते हैं -पहले भी हुआ है ऐसा !
ReplyDeleteअब जब आपने बात विचारणीय की है तो विचार कर रहे है..
ReplyDeleteमेरी विचारधारा जो भी हो, चुनाव के बाद छोटे दलो के नालायक नेताओं से मोलभाव करने के स्थान पर दोनो दल मिल कर सरकार चलाए यही उत्तम है. हमारा पूरा समर्थन.
ReplyDeleteबात विचारणीय है।यदि ऐसा हो जाए तो जनता को लाभ होगा.....
ReplyDeleteजात पात ओर धर्म में बँटे लोग ..यहाँ ऐसा होना असंभव है
ReplyDeleteदो दलीय राजनीति के धृविकरण की उम्मीद हो सकती है और तब भारत भी अमेरिका की तरह दो पार्टियों वाली राजनीति की ओर बढ सकता है। पार्टी चाहे जो भी हो, सरकारी नीतियां तो वही रहने वाली हैं ही।
ReplyDeleteअजी जिस देश मै जात पात, धर्म, ऊंच नीच को ले कर चुनाव लडे जाये, एक सरकार अरबो लगा कर कोई काम करना चाहती है तो दुसरी सरकार देश हित का ना सोच कर अपने ही हित मे सोच कर उस अरबो के काम को मिट्टी मै मिला देती है... इस लिये मुझे नही लगता...... भारत मै कभी बुद्धिजीवी ओर पढे लिखे भी बेचारे आगे आये, ओर किसी भी अच्छे गठ बंधन से सरकार बनाये, ओर यह गुण्डो की सरकार तो किसी से भी गठबंधन करे हालात यही रहेगे जो आज है...
ReplyDeleteधन्यवाद
इसराइल में ऐसा हमेशा से होता रहा है . बहुमत न मिलने की स्थिति में सरकार तो चलानी ही पड़ेगी न. ये नई बात नहीं है
ReplyDeleteअपने यहाँ नरसिंहा राव के शुरूआती समय में भाजपा का बड़ा सहयोग उन्हें मिलता रहा था.
अभी तक ज़रूरत नहीं पड़ी जिस दिन ज़रूरत आ ही गई यहाँ भी रास्ता निकल आएगा अभी तो पॉवर संतुलन क्षेत्रीय दलों ने बाँट रखा है
अपने देश में ऐसा होगा परंतु शायद अब से २०-३० वर्ष बाद, अभी तो कोई संभावना नज़र नही आती
ReplyDeleteक्या कहूँ भाईजी, कदीमा दिमाग से ऐसा चिपका की राजनीति की बात चिपकने की जगह ही नही बची....हमारे तरफ़ कदीमा,कोंहड़ा (जिसकी सब्जी बनती है)को कहते हैं......
ReplyDeleteआप कहेंगे.....औरत जात......दिमाग कद्दू कदीमा तक ही जा सकता है........सही कहा.
सच पूछिए तो यही लगता है,अपने देश में तो कोई पूछ ही नही रहा.....तो ये फ्रांस वाले राजनेता हमें क्या पूछेंगे.......हम तो पसीना निचोड़ निचोड़ कर कद्दू कदीमा खरीदते, पकाते रहेंगे और देशी विदेशी राजनेता अपनी राजनीति चमकाते रहेंगे......
मुझे तो लगता है अपने देश में कोई दल ही नही होना चाहिए....राजनीति में आने वाले प्रत्येक प्रत्यासी को राजनीति,समाज शास्त्र तथा जनसेवा का कोर्स किया हुआ तथा न्यूनतम पाँच वर्षों का कार्यानुभव होना चाहिए.....कार्य निष्पादन के आधार पर ही चुनाव लड़ने के लिए टिकट मिलना चाहिए और इसी आधार पर वोट मिलने चाहिए और विजयी उम्मीदवारों के निश्चित संख्या में से अधिक मत पाने वाले को पक्ष में बैठने का और आधे कम मत से विजयी को विपक्ष में बिठाया जाना चाहिए......राष्ट्रपति या ऐसे ही अनावश्यक पदों को जो करदाताओं पर बोझ हैं,पूर्णतया समाप्त कर देना चाहिए ......
अब अधिक क्या कहूँ......कुल मिला कर एक बहुत बड़े बदलाव की अपेक्षा करती हूँ........पर मेरे सोचने से क्या होगा......
मुझे नही लगता कि दोनो दल कभी साथ सरकार बना पाएँगे।कोई संभावना नज़र नही आती......खैर, विचार उत्तम है.
ReplyDeleteइज़्राइल सरकार बन जाये उसके बाद वहाँ के ईलाके मेँ शाँति, अमनो चैन बना रहता है या नहीँ उस पर भी बहुत निर्भर रहेगा ये नतीजा
ReplyDeleteभारत मेँ गठबँधन जरुरी रहेगा और पाकिस्तान के साथ क्या व्यवहार रहेगा उसका आधार भी -
Both those regions are "flash points" as far as world peace is concerned & hence makes these emerging Global powers important in the Peaceful co existance of the population of those regions ..
I'm concerned as Netanyahu is --
not a Peace loving politician & gets riled up pretty quickly.
Aah well ...will wait & see what unfolds !
- लावण्या
पर भारत में ऐसा हो, ऐसी संभावना तो नहीं नजर आती।
ReplyDeleteमहोदय !
ReplyDeleteकर कमल ,
कर मे कमल ,
कर ही कमल ,
कर कोमल ,
और
जब सत्ता हूई उड़नछू
तो
कर को मल !
बात विचारणीय है भारत में ऐसी संभावना तो नजर नहीं आती है....
ReplyDeleteइस्रायल में अमरसिंह- मुलायम सिंह नहीं है ना इसलिये यह नौबत आई है।
ReplyDeleteसही है।
ReplyDeleteभारत मे दो पार्टी का सिद्दांत होना चाहिए। तीसरी पार्टी, निर्दलीय नाम की कोई चीज ही नही होनी चाहिए। देश को तरक्की की दरकार है, रोड़े अटकाने वाले नही। यदि द्विपार्टी सिस्टम लागू होता है, हजारो और राजनीतिक समस्याएं अपने आप सुलझ जाएंगी।