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Wednesday, December 26, 2007
रक्त की शुद्धता के लिये ग्वार पाठा (एलो वेरा)
यह श्री पंकज अवधिया की बुधवासरीय अतिथि पोस्ट है। श्री अवधिया वनस्पति जगत के औषधीय गुणों से सम्बंधित एक पोस्ट मेरे ब्लॉग के लिये लिख कर मेरे ब्लॉग को एक महत्वपूर्ण आयाम दे रहे हैं। आप यह एलो वेरा (ग्वार-पाठा) के गुणों से सम्बंधित पोस्ट पढ़ें:
प्रश्न: आप तो जानते ही है कि रक्त की अशुद्धि को ज्यादातर रोगो की जड़ माना जाता है। इसके लिये रोग होने पर विशेष दवा लेने की बजाय यदि ऐसा कुछ उपाय मिल जाये जिसे अपनाने से साल-दर-साल शुद्धता बनी रहे और रोगों से बचाव होता रहे।
उत्तर: यह तो आप सही कह रहे हैं कि रक्त की अशुद्धता ज्यादातर रोगो के लिये उत्तरदायी है। आज का हमारा रहन-सहन और खान-पान कई तरह के दोषों को उत्पन्न कर रहा है और हम चाह कर भी इससे नहीं बच पा रहे हैं। मै एक सरल पर प्रभावी उपाय बता रहा हूँ। यदि बन पडे़ तो इसे अपनायें और लाभांवित हों।
आप लोकप्रिय वनस्पति ग्वार पाठा को तो जानते ही होंगे। इसे घीक्वाँर भी कहा जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम एलो वेरा है। वही एलो वेरा जिसका नाम प्रसाधन सामग्रियों के विज्ञापन मे आप रोज सुनते हैं। सम्भव हो तो अपने बगीचे मे आठ-दस पौधे लगा लें। प्रयोग के लिये पत्तियों के ताजे गूदे की आवश्यकता है।
ताजा गूदा लेकर उसे जमीन पर रख दें फिर उसे नंगे पाँव कुचलें। कुचलना तब तक जारी रखें जब तक कि आपका मुँह कड़वाहट से न भर जाये। पैरो से कुचलने पर भला मुँह कड़वाहट से कैसे भरेगा? प्रश्न जायज है पर जब यह करेंगे तो आपको यकीन हो जायेगा। शुरू के दिनो में 15-20 मिनट लगेंगे फिर 2-3 मिनट मे ही कड़वाहट का अहसास होने लगेगा। जैसे ही यह अहसास हो आप एक ग्लास कुनकुना पानी पी लीजिये। पाँच मिनट बाद एक चम्मच हल्दी कुनकुने पानी के साथ फाँक लीजिये। ऐसा आपको सप्ताह मे एक बार करना है। ऐसा आप लम्बे समय तक कर सकते हैं। आप नयी स्फूर्ति का अनुभव तो उसी समय से करेंगे पर दो-तीन बार इसे करने से आपको गहरा असर दिखने लगेगा।
एलो की तरह ही 600 से अधिक वनौषधीयों का प्रयोग इस अनोखे ढंग से होता है। एलो के पौधे आसानी से मिल जाते है। वैसे देश के बहुत से भागों में यह माना जाता है कि इसे घर मे लगाने से पारिवारिक क्लेश बढ़ जाता है। यदि इस विश्वास का वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाय तो कंटीले होने के कारण सम्भवत: बच्चों को हानि पहुँचने के भय से इसे न लगाने की सलाह दी गयी होगी। यह भी देखा गया है कि गर्मी के दिनो मे ठंडक की तलाश मे साँप जैसे जीव इनके पास आ जाते हैं। इसलिये भी शायद इसे घर मे न लगाने की बात कही गयी होगी। मैं तो यही सलाह देता हूँ कि इसे पड़ोसी की दीवार के पास लगाये ताकि झगड़ा हो भी तो उधर ही हो।
एलो की बहुत अधिक देखभाल न करें। पानी तो कम ही डालें। जंगल मे वनस्पतियाँ बिना देखभाल के उगती हैं, और फिर भी दिव्य गुणों से युक्त होती है। जब मनुष्य खूब देखभाल कर इसे खेतों या बागीचो मे लगाता है तो वैसे गुण नही मिल पाते हैं। आधुनिक अनुसन्धानो से भी यह पता चल चुका है कि ‘स्ट्रेस’ दिव्य औषधीय गुणो के लिये जरूरी है। यही कारण है कि बहुत सी औषधीय फसलो की खेती मे कुछ समय तक सिंचाई रोक दी जाती है।
एलो वेरा पर मेरा ईकोपोर्ट पर लेख यहां देखें।
पंकज अवधिया
पंकज जी की अतिथि पोस्ट के चित्र के लिये पड़ोस से ग्वार पाठा का गमला १० मिनट के लिये मंगवाया गया। भरतलाल भूत की पोस्ट से जोश में हैं। लाते समय पूरी गली को एनाउंस करते आये कि इस गमले का फोटो कम्प्यूटर में लगेगा और दुनियां में दिखेगा।
मेरे पर-बाबा पं. आदित्यप्रसाद पाण्डेय आयुर्वेदाचार्य थे और अपनी औषधियां सामान्यत: स्वयम बनाते थे। वे घीक्वांर(ग्वारपाठा) से औषधि बनाया करते थे।
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पंकज अवधिया
ब्लॉग लेखन -
Gyan Dutt Pandey
समय (भारत)
5:28 AM
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मैं ने पिता जी को ग्वार पाठा से औषधियां बनाते देखा है और सहयोग भी किया है। मैं इस से बनी होमियोपैथिक औषध एलो वेरा की ३० या २०० शक्ति का उपयोग करता हूँ। पेट के रोगों के लिए जबर्दस्त दवा है, खास कर कब्ज के लिए रामबाण।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
DeleteDinesh Rai ji
DeletePlease describe the aforesaid homeopathic medicine name...so that i can have it from market.
Thanks and Regards
Kripal SIngh
अगर स्ट्रेस और दिव्यता के सम्बन्ध का यह नियम मनुष्यों पर भी लागू हो तो क्या निष्कर्ष निकालें जा सकते हैं? क्या लागू हो सकता है मनुष्यों पर? आप का क्या विचार है?
ReplyDeleteभई वाह वाह, वैरायटी तो आपके ब्लाग की है।
ReplyDeleteकल भूत प्रेत चैनल था
आज हैल्थ चैनल हो लिया।
बहुत दिनों से पर्सनाल्टी डेवलपमेंट चैनल ना हुआ, पर वो भी हो लेगा।
होर जी, उस दिन टेकनीकल चैनल था, जुगाड़ तकनीक वाले दिन।
क्या कहने क्या कहने।
चैनल चीफ बनाये जा सकते हैं आप किसी समझदार चैनल के।
pankaj ji bahut dhanyavaad ,alovera ka is tarah upyog to socha bhi nahi jaa sakta, aur aap yakeen maney jab se RAMDEV ji ka shivir hamarey shahar me laga hai ..yahan ghar ghar me alovera apney gunno ke vajah se tulsi ke paudhey ki tarah hi summan paa raha hai.
ReplyDeleteएलोवीरा राजस्थान में बहुतायत में है । इतना गुणी व औषधीय पौधा है पता नहीं था।
ReplyDeleteआलोक जी की बात से पूरी तरह सहमत है। :)
ReplyDeleteपंकज जी स्वयं किसी चमत्कार से कम नहीं क्या क्या औषधियाँ ढूँढ ढूँढ के बताते हैं. वाह. वाह. हींग लगे न फिटकरी वाली बात ऐसे ही लोगों से मिल कर समझ में आती है. बाबा रामदेव की कुर्सी हिलती नज़र आ रही है मुझे.
ReplyDeleteनीरज
लो जी हमने बहुत सी औषधियों में एलोवेरा लिखा हुआ देखा था पर यह नही जानते थे कि वह यही ग्वार पाठा ही है।
ReplyDeleteशुक्रिया।
मेरी छत पर भी शायद एक गमले में लगा है चलिए अब उसका कुछ तो उपयोग हो सकेगा
ReplyDelete....
मेरे घर में भी यह पौधा लगाया हुआ है, पता नहीं था कलेश भी करवाता है यह पौधा :)
ReplyDeleteयह एक गुणकारी पौधा है. इसके रस को बेच कर कई कम्पनी वाले मालामाल हो रहे है. और हमारे लिए घर की मूर्गी दाल बराबर वाली बात हुई.
ग्वारपाठा के बारे मे अपने अच्छी जानकारी प्रदान की है | ग्वारपाठा कई जन अपने बगीचों मी सुन्दरता के लिए लगते है यह जबलपुर के आसपास भी पाया जाता है परः खेतो की मेडो मे अधिकतर लगा देखा जाता है | ग्वारपाठा के लाभो से परिचित कराने के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteआप सभी की टिप्पणियो के लिये आभार।
ReplyDelete@अभय जी
मनुष्य मे स्ट्रेस कुछ हद तक ठीक है पर ज्यादा तनाव को तो एलो के पौधे भी नही झेल पायेंगे।
@ नीरज गोस्वामी
आपकी विशेष टिप्पणी के लिये धन्यवाद। अपने देश मे इतना वृहत ज्ञान है कि सभी अगर इसके प्रचार मे जुट जाये तो भी किसी की कुर्सी नही हिलेगी।
@ दिनेशराय जी
आप और ज्ञान जी सौभाग्यशाली है जो आपके बडे जडी-बूटियो से जुडे थे। आम तौर पर होम्योपैथी दुकानो मे जो एलो दवा के रूप मे मिलती है उसे भारतीय परिवेश मे उग रहे एलो से नही तैयार किया जाता। मैने पाया और आजमाया है कि देशी एलो से तैयार होम्योपैथी दवा ज्यादा कारगर है।
@ गणेश जी
आपने पूछा है कि कौन-सा ग्वारपाठा प्रयोग करे? साधारण विधि के लिये कोई सा भी ग्वारपाठा प्रयोग कर सकते है पर रोग विशेष मे विशेष तरह के प्रयोग की जरूरत है। ज्ञान जी ने जो मेरे लेखो की कडी दे है, उससे आपको इस बारे मे जानकारी मिल सकेगी।
हमेशा की तरह ज्ञान जी को एक बार फिर धन्यवाद।
सही जानकारी बतायी आपने, अपने घर वालों को फ़ोन करके बताना पडेगा । आजकल मैं अपनी ममेरी बहन के यहाँ आया हुआ हूँ, सुबह दोपहर और शाम तीनों समय मस्त घर का बना खाना मिल रहा है । जिन्दगी में इस समय आहा आनन्दम, आनन्दम हो रहा है :-)
ReplyDeleteमैने ये प्रयोग नही किया लेकिन ये जानना चाहूँगा कि पैरों से गूदा कुचलने पर मुख कड़वाहट से कैसे भर जायेगा। कर के केवल आभास होगा, ये होता कैसे है, इस पर पंकज जी कुछ प्रकाश डालें।
ReplyDeleteऔर साँप आने तथा क्लेश की बात एक दूसरे मरूद्भिद नागफ़नी (Opuntia)केलिये प्रचलित है।
एलो वेरा को पैरों तले कुचलने का तरीका नया है वैसे आधुनिक रूप मे इसका प्रयोग तो बहुत करते हैं. बहुत अच्छी जानकारी .... शाम को ही इसका प्रयोग करते हैं.
ReplyDeleteyaha to vakey kamal ki jankari ha.
ReplyDeleteiska or bhi prayog batayn taki logon ki jankari bhi baday or vanaspation ka prati prem bhi .
bahut hi acchi jaankaari hai.dhanyvaad!
ReplyDelete@ ज्ञान जी
ReplyDeleteज्ञान दर्पण पर भी गूगल खोज से आने वाले पाठकों में एलोवेरा खोज वाले सबसे अधिक होते है इससे जाहिर है आजकल एलोवेरा के बारे में जानकारी लेने को बहुत से लोग उत्सुक रहते है |
एलोवेरा सिर्फ शरीर को बिमारियों से ही निजात नहीं दिलाता बल्कि ब्लॉग पर भी ट्रेफिक बढ़ाकर ब्लॉग की सेहत भी ठीक कर देता है :)
अवधिया जी ने जिस तरह से एलोवेरा की प्रयोग विधि बताई है ठीक उसी तरह तुम्बे को यदि पैरों से कुचला जाय तो घटिया रोगी को बहुत फायदा पहुँचता है |
ReplyDeletekya kidney ke rogi ko fayda ho sakta hai.kya isse blood urea aur critneen kam ho sakta hai.
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