सवेरे सवेरे मेरे गाड़ी-नियन्त्रण कक्ष ने सूचना दी कि गाजियाबाद-कानपुर-झांसी रेल खण्ड में घना कुहासा है। आगरा-बांदीकुई और मथुरा-पलवल खण्ड में भी यही हालत है। कुहासा होने की दशा में ट्रेनें धीमी (सुरक्षित) गति से चलती हैं। स्टेशन के पहले पटरी पर पटाखे लगाये जाते हैं, जिससे उसकी ध्वनि से ट्रेन चालक सतर्क हो जाये कि स्टेशन आ रहा है और वह सिगनल की दशा देखने का विशेष यत्न करे और सुरक्षित चले।
कुहासे के मौसम को देखते हुये कुछ गाड़ियां हमने ८ दिसम्बर से निरस्त की हैं। पर लगता है कि समय से पहले कोहरा पड़ने लगा। मेरे सिस्टम पर १७ ट्रेनों की समयपालनता आज सही नहीं रह पायी और उनमें से ८ गाड़ियां कुहासे के कारण लेट हो गयी हैं। यह संख्या बढ़ने ही जाने वाली है। सोच कर कष्ट हो रहा है!
सवेरे की सैर में भी कुहासे का असर दिखा। आप यह दो चित्र देखें।
यह दशा इलाहाबाद की है, गंगा नदी से आधा किलोमीटर दूर, जहां कोहरा कम है।
फ़िर भी प्रात भ्रमण करने वाले भी कम हो गये हैं।
यह तो लेट ट्रेनों पर लेट पोस्ट है। आजकी राइट टाइम पोस्ट है - सुनहिं राम जद्यपि सब जानहिं।
ध्यान दे आज माडरेशन लेट हो रहा है ..इसमे कोहरे का असर पर सफ़ाई दे...:)
ReplyDeleteपटाखों वाली नई बात पता चली.
ReplyDeleteकुहासे में ड्राइवर देख सके वैसी कोई प्रणाली विश्व में कहीं है?
संजय बेंगानी > कुहासे में ड्राइवर देख सके वैसी कोई प्रणाली विश्व में कहीं है?
ReplyDeleteहां जब मैं मुख्य सेफ्टी ऑफीसर था पूर्वोत्तर रेलवे में तो सेना द्वारा प्रयोग किये जाने वाले इन्फ्रा-रेड चश्मों के बारे में हम सोच रहे थे। पर बात बहुत आगे नहीं बढ़ी। उससे कुहासे में देखा जा सकता है।
पटाखों के बारे में मैने भी कई बार सुना था।
ReplyDeleteबचपन मे खिलौना ट्रेन जब चक्कर लगाती थी तो सुमधुर ध्वनि पटरी पर लगी रंगीन प्लेटो से टकराने से पैदा होती थी। क्या यह सम्भव है कि स्टेशन के पास ऐसी प्लेटे लगायी जाये जो विशेष आवाज करे ताकि चालक समेत सभी को बताये कि गाडी आ रही है। यह आप्शनल हो ताकि बाकी मौसम मे यह अनावश्यक शोर न करे।
ReplyDeleteशुक्रिया पटाखों वाली जानकारी के लिए!!
ReplyDelete>>>> प्रभो, बाह्य कुहरा तो देर सबेर छंट ही जाता है पर मानव मन पर छाए कुहरे का क्या, वह तो "ज्ञान" रुपी प्रकाश पाने के बाद भी छंट जाने से इनकार करता ही रहता है।
कोहरे की बात समझ में आ गयी , सही है सुंदर है !आपकी लेट ट्रेनों पर भी पोस्ट बढिया है और राइट टाइम पर भी , अछा लगा !
ReplyDeleteकल कि आराम वाली बात शायद आपने अबतक दिल से नही निकली लगता है. तभी तो दो दो पोस्ट ठेली है आज. खैर आपकी पोस्ट पढ़कर सुबह सुबह कि ताजगी महसूस हो रही है. रही बात जानकारी कि तो पटाखे वाली जानकारी वाकई नई और अनोखी है.
ReplyDeleteज्ञानदत्त जी, अब तो इलेक्ट्रानिक तकनीक इतना विकास कर चुका है कि कुहरे में भी "देखा" जा सकता है. ऐसे उपकरण काफी महंगे है, लेकिन उनकी जरूरत भारत में सिफ कुछ जगह है. इन स्थानों पर इनके उपयोग से दक्षता में जो सुधार होगा, उसके द्वारा यह कीमत एक साल में ही वसूल हो जायगी. क्यों ना यह सुझाव आप आगे बढा दें
ReplyDeleteशास्त्री जी का सुझाव गौरतलब है.
ReplyDeleteकुहासा दस दिन पहले आ गया। उसको भी चस्का लग गया है आपका ब्लाग पढ़ने का!
ReplyDeleteज्ञान जी नमस्कार्…
ReplyDeleteएक लंबे अंतराल के बाद हम लौट आये हैं, आ कर देख रहे हैं तो आप की पोस्ट के तो रंग रूप ही बदल गये हैं अच्छा लगा ये बदलाव्। कोहरा आ गया, वाह, हम तो अब ऐसी सर्दियां सिर्फ़ फ़िल्मों में देख पाते हैं, पर मिस जरुर करते हैं आज भी।