Saturday, December 8, 2007

उदग्र हिंदुत्व और उदात्त हिंदुत्व


मैं सत्तर के दशक में पिलानी में कुछ महीने आर.एस.एस. की शाखा में गया था। शुरुआत इस बात से हुई कि वहां जाने से रैगिंग से कुछ निजात मिलेगी। पर मैने देखा कि वहां अपने तरह की रिजीडिटी है। मेरा हनीमून बहुत जल्दी समाप्त हो गया। उसका घाटा यह हुआ कि आर.एस.एस. से जुड़े अनेक विद्वानों का लेखन मैं अब तक न पढ़ पाया। शायद कभी मन बने पढ़ने का। 

उसी प्रकार नौकरी के दौरान मुझे एक अन्य प्रान्त के पूर्व विधायक मिले -  रतलाम में अपनी पार्टी का बेस बनाने आये थे। बेस बनाने की प्रक्रिया में उग्र हिंदुत्व का प्रदर्शन करना उनके और उनके लुंगाड़ों के लिये अनिवार्य सा था। मेरे पास अपनी शिव-बारात के गण ले कर ’रेल समस्याओं पर चर्चा’ को आये थे।  मुझे थोड़ी देर में ही वितृष्णा होने लगी। हिन्दुत्व के बेसिक टेनेट्स के बारे में न उनके पास जानकारी थी और न इच्छा। नाम बार-बार हिन्दुत्व का ले रहे थे।  

मेरे विचार से हिंदुत्व की कोर कॉम्पीटेंसी में उदग्रता नहीं है। अगर भविष्य में यूनीफाइड फील्ड थ्योरी की तर्ज पर यूनीइफाइड धर्म का  विकास हुआ तो वह बहुत कुछ हिन्दुत्व की परिभाषायें, विचार और सिद्धांत पर बैंक करेगा।

मैं हिन्दू हूं - जन्म से और विचारों से। मुझे जो बात सबसे ज्यादा पसन्द है वह है कि यह धर्म मुझे नियमों से बंधता नहीं है। यह मुझे नास्तिक की सीमा तक तर्क करने की आजादी देता है। ईश्वर के साथ दास्यभाव से लेकर एकात्मक होने की फ्रीडम है - द्वैत-विशिष्टाद्वैत-अद्वैत का वाइड स्पैक्ट्रम है। मैं हिंदू होते हुये भी क्राइस्ट या हजरत मुहम्मद के प्रति श्रद्धा रख-व्यक्त कर सकता हूं। खुंदक आये तो भगवान को बाइ-बाइ कर घोर नास्तिकता में जब तक मन चाहे विचरण कर सकता हूं। इस जन्म में सेंस ऑफ अचीवमेण्ट नहीं मिल रहा है तो अगले जन्म के बारे में भी योजना बना सकता हूं। क्या मस्त फक्कड़पना है हिन्दुत्व में।

पर मित्रों, रिजिडिटी कष्ट देती है। जब मुझे कर्मकाण्डों में बांधने का यत्न होता है - तब मन में छिपा नैसर्गिक रेबल (rebel - विद्रोही) फन उठा लेता है। हिन्दु धर्म बहुत उदात्त (व्यापक और गम्भीर) है पर उसकी उदग्रता (उत्तेजित भयानकता) कष्ट देती है। यह उदग्रता अगर तुष्टीकरण की प्रतिक्रिया है तो भी सह्य है। बहुत हुआ लुढ़काया या ठेला जाना एक सहस्त्राब्दी से। उसका प्रतिकार होना चाहिये। पर यह अगर निरपेक्ष भाव से असहिष्णुता की सीमा तक उदग्र होने की ओर चलता है, तब कुछ गड़बड़ है। मेरे विचार से हिंदुत्व की कोर कॉम्पीटेंसी में उदग्रता नहीं है। अगर भविष्य में यूनीफाइड फील्ड थ्योरी की तर्ज पर यूनीइफाइड धर्म का  विकास हुआ तो वह बहुत कुछ हिन्दुत्व की परिभाषायें, विचार और सिद्धांत पर बैंक करेगा।  

Prof VK « प्रोफेसर विश्वनाथ कृष्णमूर्ति

मेरे बिट्स पिलानी के गणित के प्रोफेसर थे - प्रो. विश्वनाथ कृष्णमूर्ति। हिंदुत्व पर उनकी एक पुस्तक थी -  ’The Ten Commandments of Hinduism’। जिसकी प्रति कहीं खो गयी है मुझसे। उन्होने दस आधार बताये थे हिन्दू धर्म के। पुस्तक में कहा था कि कोई किन्ही दो आधारों में भी किसी पर्म्यूटेशन-कॉम्बीनेशन से आस्था रखता है तो वह हिन्दू है। बड़ी उदात्त परिभाषा थी वह। मुझे तो वैसी सोच प्रिय है।

प्रोफेसर विश्वनाथ कृष्णमूर्ति की याद आने पर मैने उन्हें इण्टरनेट पर तीन दशक बाद अब खोज निकाला। उनका याहू जियोसिटीज का पन्ना आप यहां देख सकते हैं (ओह, अब यह पन्ना गायब हो गया है - सितम्बर’०९)। इसपर उनका लिखा बहुत कुछ है पर आपको अंग्रेजी में पढ़ना पड़ेगा। प्रोफेसर कृष्णमूर्ति का चित्र भी इण्टरनेट से लिया है। उनके चित्र पर क्लिक कर उस पन्ने पर आप जा सकते हैं, जहां से मैने यह चित्र लिया है।

प्रो. कृष्णमूर्ति को सादर प्रणाम।Red rose   


१. कल रविवार को राइट टाइम पोस्ट नहीं हो पायेगी। बाकी अगर कुछ ठेल दूं तो वह मौज का हिस्सा होगा।Happy

२. कल देख रहा था तो पाया कि चिठ्ठाजगत पर बोधिसत्व का विनय पत्रिका ’इलाकाई’ श्रेणी में रखा गया है। विनय पत्रिका तो बड़े कैनवास की चीज लगती है। यह तो कबीरदास को केवल लहरतारा में सीमित करने जैसा हो गया! शायद ब्लॉग का वर्ग चुनने का ऑप्शन ब्लॉगर को ही दे देना चाहिये। 


16 comments:

  1. आप का बताया पन्ना सरसरी तौर पर देखा है फ़ुरसत से फिर देखूँगा..
    विनय पत्रिका वाली बात मैंने भी गौर की थी.. इसके अलावा भी कई दिक्क़्ते हैं..लैंडिग पेज आप को सहज करने के बजाय कनफ़्यूज़ और डिसओरिएंट करता है.. श्रेणियाँ मनमानी और जड़ हैं.. समाज वाला कभी भी कला में प्रवेश नहीं पा सकता..चिट्ठाजगत का ये प्रयोग अपनी वर्तमान अवस्था में तो, मेरे विचार से, जल्दी से जल्दी छुटकारा पाने योग्य है..

    ReplyDelete
  2. विनय पत्रिका अगर इलाकाई है, तो फिर तो लगभग सारे ब्लाग एक मुहल्लाई भी न माने जाने चाहिए। विनय पत्रिका अखिल ब्रह्मांडीय है। जहां कबीर आ गये हों, जहां पागलदास आ लिये हों, वो ब्लाग तो एक देश, एक भाषा,एक महाद्वीप या कहो कि एक ब्रह्मांड तक सीमित करने योग्य नहीं ना है।
    हिंदुत्व का उदार चेहरा ही आखिर में बच पायेगा। कुछ भी कट्टर,उग्र,तात्कालिक तौर पर भी चल जाये,पर लंबे समय तक नहीं चल पाता। यह अलग बात है कि तात्कालिक तौर पर भी राजनीति, समाज में कुछ लंबा चल जाती है। हमेशा कोई मारो-काटो मोड में नहीं रह सकता,कुछेक पागलों को छोडकर।

    ReplyDelete
  3. हिन्दु धर्म का यही गुण मुझे अपने आपको हिन्दु मानने पर बाध्य करता है, सहर्ष.

    ReplyDelete
  4. हिंदुत्व के ऊपर आपके उच्च विचारों को जान समझ कर बहुत कुछ सिखने को मिला है.
    अपने चिट्ठे का वर्गीकरण कैसे देखा जा सकता है?
    प्रो. कृष्णमूर्ति को मेरा भी सादर प्रणाम।

    ReplyDelete
  5. ज्ञान भाई
    हमारे यहाँ तो एक कहावत है मानो तो देव नहीं तो पत्थर....
    जौ मन चंगा तो कठौती में गंगा....
    यह एक बड़ी और अलग तरह की मान्यता है...जो सनातन है।
    चिट्ठाजगत का विभाजन मुझे भी कुछ समझ नहीं आय़ा पर मैं उनका आभारी हूँ...कहीं तो रखा....न रखते तो ......

    ReplyDelete
  6. वाकई!!
    बहुत सही लिखा आपने!!

    ब्लॉग वर्गीकरण में इलाकाई में विनय पत्रिका को और अन्य एक दो ब्लॉग्स को देखकर आश्चर्य मुझे भी हुआ था और मैने चिट्ठाजगत को इस बारे में ई मेल भी किया था! वैसे किसी भी "ब्लॉग" को "इलाकाई" की श्रेणी में कैसे बांधा जा सकता है यह कम से कम मेरी समझदानी में नही आ पा रहा।

    ReplyDelete
  7. "मुझे जो बात सबसे ज्यादा पसन्द है वह है कि यह धर्म मुझे नियमों से बंधता नहीं है। यह मुझे नास्तिक की सीमा तक तर्क करने की आजादी देता है। "
    अति सुंदर विचार. इश्वर से मित्रवत व्यवहार की आज्ञा देता है हिंदू धर्म. दुःख इस बात का है की लोग सिर्फ़ लीक पीटते हैं समझते नहीं. धर्म का विभ्त्स्य रूप है हमारे समक्ष इन दिनों.
    काश लोग ओशो को समझ पाते.
    नीरज

    ReplyDelete
  8. हिंदुत्व पर आपके विचार वेहद सुंदर और सारगर्भित है , इस पोस्ट को पढ़कर वाकई मेरा सिर आपके प्रति श्रद्धा से झुक गया , आशा करता हूँ आप इसी प्रकार ज्ञानार्जन करते रहेंगे , वैसे विनय पत्रिका को " इलाकाई " की श्रेणी में रखना मेरे समझ से बाहर है , जहाँ तक मेरी मान्यता है कि यह चिट्ठाजगत बिभिन्न प्रकार के फूलों का सुंदर गुलदस्ता है जो दरीचे पे सजा हुआ है .

    ReplyDelete
  9. इश्वर उन्हें सद्बुद्धि दे जो हिंदुत्व को भगवा कपड़ा बनाकर काँधे पर डाले डाले घूम रहे हैं.

    ReplyDelete
  10. अच्छा है। हिन्दू होने के यही मजे हैं कि आप तू दयालु दीन हौं /तू दानि हौं भिखारी की दीन स्थिति से लेकर सब पी गये पूजा ,नमाज, बोल प्यार के/ क्या अजीब नखरे हैं परवरदिगार के जैसे उलाहने वाले भाव में अपने आराध्य से बतिया सकते हैं। चिट्ठाजगत का यह प्रयोग नया है। उसमें पहले के सारे फ़ीचर्स मौजूद हैं। विनय पत्रिका इलाकाई ब्लागमें शायद इसलिये आया होगा कि उन्होंने इसे अवधी का ब्लाग मान लिया होगा। उसमें तो सुधार हो सकता है। :)

    ReplyDelete
  11. मेरे विचार से हिंदुत्व की कोर कॉम्पीटेंसी में उदग्रता नहीं है। अगर भविष्य में यूनीफाइड फील्ड थ्योरी की तर्ज पर यूनीइफाइड धर्म का विकास हुआ तो वह बहुत कुछ हिन्दुत्व की परिभाषायें, विचार और सिद्धांत पर बैंक करेगा।

    आपकी इस बात से शत प्रतिशत सहमत हूँ । मैं अपने मन के भावों को आपकी पोस्ट से बेहतर तरीके से शब्दों में नहीं डाल सकता था । आपके तजुर्बे का ज्ञान इस पोस्ट के एक एक शब्द में निहित है ।

    ReplyDelete
  12. हिंदुत्व न कभी उग्र था न हो सकेगा. यह अभी जो थोडी उग्रता आ गई है वह वास्तव नें प्रतिक्रिया ही है और अधिकतर राजनीति. क्योंकि हिदुत्व कायरता भी नहीं है. बात उपेक्षा तक होती तो शायद बर्दाश्त की जा सकती थी, लेकिन दमन का कोई क्या करे? अगर सरकारें आज दमन छोड़ देन तो कल हिंदुत्व अपने मूल उदात्त रूप में सामने आ जाए.

    ReplyDelete
  13. लगभग 30 साल पहले हिन्दुधर्म के प्रकांड पंडित आचार्य यीशुदास की कक्षा में मुझे हिन्दु दर्शन का सही परिचय मिला. उन्होंने लगभग 15 दिन क्लास लिया था. इसके फलस्वरूप लगभग 10 साल पहले मैं ने अंग्रेजी व मलयालम भाषा में "हिन्दुधर्म परिचय" नामक पुस्तक लिखी जो ईसाई समाज में बहुत प्रसिद्द पाठ्यपुस्तक बन गया है.

    आज दुनियां में जितने धर्म हैं उनमें हिन्दू धर्म जितना व्यापक (सार्वलौकिक) नजरिया रखता है उतना कोई भी धर्म नहीं रखता. आपने सही कहा कि यहां घोर कर्मकाडी से लेकर घोर नास्तिक तक के लिये एक स्थान है. इतनी विविधता के बावजूद इनमें सो कोई भी व्यक्ति हिन्दू धर्म की परिधि के बाहर नहीं है. मजे की बात है कि अधिकतर गैर हिन्दू एवं बहुत से हिन्दू भी इस बात को नहीं जानते कि हिन्दू दर्शन कितना व्यापक है.

    मैं आचार्य यीशुदास का आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे इस विषय का गहन परिचय दिया.

    ReplyDelete
  14. १९९० के बाद हिन्दू पर एक प्रश्न चिन्ह लग गया . कुछ लोगो ने राम को साम्प्रदायिक कर के दम लिया . राम को गिरवी रख कर सत्ता का सुख प्राप्त करने वालो ने हिंदुत्व को भी संकट मे डाल दिया है .

    ReplyDelete
  15. हिंदूत्व का यही रूप मुझे भी पसंद है। कभी मैं भी राम मंदिर के दौर में आचार्य धर्मेंद्र के प्रवचन बहुत मन से सुनता था, जोश में आ दोनों हाथों को हवा में लहरा मंदिर वहीं बनाएंगे कहता था, लेकिन समय बीता.....परिचय हुआ और जब सांसारिक बोझ लदना शुरू हुआ तो धीरे धीरे हिंदूत्व का मतलब भी समझा।

    अब तो हंसी आती है उस दौर को याद करते हुए। ऐसा हिंदूत्व जिस पर हंसी आये, वह तो आदर्श नहीं हो सकता न।

    पुरानी पोस्टों को पढने का मजा ले रहा हूँ, खूब जम रहा है।

    ReplyDelete
  16. प्रोफेसर विश्वनाथ कृष्णमूर्ति ka page aap ko yahan mil sakata hai

    http://web.archive.org/web/*/http://www.geocities.com/profvk/

    ReplyDelete

आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद|

हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणियों का स्वागत है|
--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय