एस जी अब्बास काज़मी का इण्टरव्यू जो शीला भट्ट ने लिया है, काफी विस्तृत है। फॉण्ट साइज ८ में भी यह मेरे चार पन्ने का प्रिण्ट-आउट खा गया। पर पूरा पढ़ने पर मेरा ओपीनियन नहीं खा पाया! आप यह इण्टरव्यू रिडिफ पर पढ़ सकते हैं।
ये सज्जन कहते हैं कि ये काफी बोल्ड और एडवेंचरस टाइप के हैं। एक वकील को होना ही चाहिये। ये यह भी कहते हैं कि ये देशभक्त भारतवासी हैं। देश भक्त भारतवासी के नाम से मुझे महात्मा गांधी की याद हो आती है। गांधीजी, अगर किसी मुकदमे को गलत पाते थे - या उनकी अंतरात्मा कहती थी कि वह सही नहीं है, तो वे वह केस हाथ में नहीं लेते थे। अब्बास काजमी शायद अपने केस को पुख्ता और सही मानते होंगे। अन्यथा, वे (शायद कई अन्य की तरह) अंतरात्मा विहीन हों। पता नहीं।
उनका कहना है कि उन्होने कसाब को पांच फुट दो इंच का पाया और (कसाब के निर्देश पर) कोर्ट से दरख्वास्त कर डाली कि वह नाबालिग है। उनके इण्टरव्यू से यह भी लगता है कि (कसाब के निर्देश पर) वे यह भी कोर्ट को कहने जा रहे हैं कि वह पाकिस्तान का नहीं भारत के पंजाब प्रान्त का रहने वाला है। उसके पास एके-४७ नहीं, आदित्य का खिलौना था। उसकी गोलियीं वह नहीं थीं जिससे लोग मरे। पोस्ट मार्टम रिपोर्ट डॉक्टर्ड हैं --- इत्यादि। और यह सब देशभक्त भारतीय होने के नाते करेंगे वे।
यह सारा इण्टर्व्यू हम वार्म-ब्लडेड जीवों में वितृष्णा जगाता है। इस मामले की डेली प्रोसीडिंग भी वही भाव जगाती है। पर, ऑफ लेट, होमो सेपियन्स शायद कोल्ड-ब्लडेड होने लगे हैं। आप में कैसा ब्लड है जी?
कल प्रवीण मेरे चेम्बर में आये। एक व्यक्ति जो आपकी पोस्ट पर पूरी सीरियसनेस से टिप्पणी करता हो, और जिसके ब्लॉग पर रिटर्न टिप्पणी की बाध्यता न हो, उससे अधिक प्रिय कौन होगा!
वैसे मैने देखा है कि अन्य कई ब्लॉग्स पर प्रवीण की टिप्पणियां हैं। मसलन आलोक पुराणिक के ब्लॉग पर उनकी यह टिप्पणी बहुत कल्पनाशील है। बिजली की किल्लत कैसे सरकारी कर्मचारी को दफ्तर के बारे में पंक्चुअल कर देती है, यह देखें:
पनकी (कानपुर के पास का थर्मल पावर हाउस) की ग्रिड फेल हो गयी है और चँहु ओर अंधकार व्याप्त है । इन्वर्टर के सहारे जीने वाले जीवों में मितव्ययता का बोध जाग उठा है । केवल एक पंखे के सहारे पूरा परिवार रात की नींद लेता रहा । सुबह ऊठने पर एक सुखद अनुभूति हुयी कि इन्वर्टर ने रात भर साथ नहीं छोड़ा । कृतज्ञता की भावना मनस पटल पर बहुत दिनों बाद अवतरित हुयी है । सुबह जल्दी जल्दी तैयार होकर समय से कार्यालय पहुँचने पर पता लगा कि सारा स्टाफ पहले से ही उपस्थित है, शायद सभी को पता था कि कार्यालय में जेनरेटर की व्यवस्था है।
देखिये न, बिजली के न रहने से सबके अन्दर समय पालन, अनुशासन, मितव्ययता, कृतज्ञता आदि दुर्लभ भाव जागृत हो रहे हैं । तो क्या बिजली अकर्यमणता की द्योतक है?
पाँच फ़ुट दो इंच वाले सभी नाबालिग माने जाएं तो चीन तो बच्चों का देश कहलाएगा :)
ReplyDeleteभारत में भांति-भांति के आस्तीन के साँप भर्ती हैं। रीड़िफ के इण्टरव्यू को पढ़नें के बाद वकालत के व्यवसाय के प्रति रही सही सिम्पेथी भी जाती रही। युद्ध अपराधी के तौर पर कसाब के केस को चलाये जानें के प्रश्न पर यह कहना कि कसाब का कृत्य ( मासकिलिंग) सिविलियन एक्शन है, और सिविल कोर्ट की प्रक्रिया बिल्कुल उचित है, कानून और न्यायालय की यह व्याख्या पढ़कर तो माथा चकरा गया है। सच बात तो यह है कि कसाब से पहले इस वकील को गिरफ्तार करके इसकी खुद की गहन जाँच-पड़्ताल होनी चाहिये। जैसा कि इन मोहतरम का प्रोफाइल है उससे तो यह लगता है कि मुकदमें की ब्रीफ लेकर यह फंटमैन जरूर है लेकिन असली शातिर आपराधिक दिमाग के वकील पर्दे के पीछे से खेल, खेल रहे हैं।
ReplyDeleteलोग खाम-खां बेचारे ऐसे उच्च कोटि के देश भक्त वकील अब्बास काजमी के पीछे पड़े हुए है !
ReplyDeleteदेश भक्ति हो सकता है ये जनाब पाकिस्तान की कर रहें हों |
कसाब अब राजनीति का प्यादा बन चुका है। न उसे मारा जा सकता है न छोड़ा जा सकता है। कसाब की तोड़ में पाकिस्तानी जेल में बेचारा सरबजीत सड़ रहा है।
ReplyDeleteइन दोनों देशों को गलत अलग किया गया है। ये फिर से एक हो जाएं, तभी इस तरह की नौटंकियां समाप्त हो सकेंगी।
यदि दोनों देशों के सयाने लोग इस दिशा में सोचने लग जाएं, तो यह संभव भी हो सकता है।
साठ साल के बाद भी अंग्रेजों की कूटनीति कैसे रंग खिला रही है, आश्चर्य की बात है।
गर्मी में भी ऐसा ही होता है, जब घर पर गर्मी लगती है तो ओफ़िस जल्दी भागते हैं कि एसी चल रहा होगा। भले ही वहां जाकर गपियायें।
ReplyDeleteदेशभक्ति की जांच के लिये आयोग गठित होने का समय आ गया। बिजली के झटके लगाकर ही अनुशासन की मात्रा बढाई जा सकती है!
ReplyDeleteप्रवीण जी जैसे टिप्पणिकार का पलक पावड़े बिछाये इन्तजार लगा है.
ReplyDeleteऔर वकील साहब के आधार पर कितने ही नाबालिक बुजुर्गों के मरने की गाथा है मेरे पास.. हाईट के आधार पर.
@ श्री बालसुब्रमण्यम - यह पोस्ट कसाब के बारे में नहीं है। यह काजमी की "देश भक्ति" पर है। आप कसाब पर टिप्पणी ठेल मुद्दे को स्कटल कर रहे हैं - पूरी दक्षता से! :)
ReplyDeleteये बात केवल सरकारी ऑफिसों पर ही नहीं, बल्कि प्राईवेट कॉरपोरेट ऑफिसों में भी लागू होती है। वहां भी लोग एसी का लुत्फ उठाने और नेट पर चहक बढाने के लिये जल्द ऑफिस आते हैं और देर तक टिके रहते हैं।
ReplyDeleteधन्य है भारत देश जहाँ पर ऐसे देश भक्त पाए जाते है.. कसाब पर मुकदमा चलाना कानून सही हो पर इस देश के किसी बच्चे से भी पूछेंगे तो वो इसे हास्यापद ही बताएगा.. खुद काजमी ने कहा है की लाखो लोगो ने उसे टी वी पर देखा है.. शायद हाथ में होली वाली पिचकारी ही होगी..
ReplyDeleteवैसे इस पोस्ट पर ज्यादा कुछ कहने से मुझ पर एक प्रकार का ठप्पा लग सकता है..
काजमी नहीं जानता उसने कितने लोगो की बद्दुआ ली है..
मुझे पंगेबाज अरुण अरोरा की वह पोस्ट याद आ रही है जो बाद में उन्होंने हटा दी थी। एक इसी टाइप के वकील के हमले के डर से। उन्हें इस डर के बारे में एक अत्यन्त सज्जन और प्रतिष्ठित वकील साहब ने ही सदाशयतावश बता दिया था। बाद में उस मुद्दे ने बड़े ही अप्रिय विवाद का रूप ले लिया।
ReplyDeleteअब ऊपर एक टिप्पणी आयी है कि ‘रीड़िफ के इण्टरव्यू को पढ़नें के बाद वकालत के व्यवसाय के प्रति रही सही सिम्पेथी भी जाती रही।’
इस दृष्टिकोण से मैं असहमत हूँ। घटिया व्यक्ति किसी पेशे में हो सकता है। अध्यापक, डॉक्टर, इन्जीनियर, पाइलट, व्यापारी, अफसर, से लेकर मजदूर और खोमचेवाले तक हर स्तर पर अच्छे और बुरे लोग मिल जाते हैं। लेकिन इससे पूरे समुदाय के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण रखना उचित नहीं है।
यह साक्षात्कार दो दिन हुए पहले पढ़ चुका हूँ। कोई खुद के कहने से देशभक्त नहीं हो जाता। देशभक्त या देशद्रोही होने के लिए किसी के प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं होती। यह तो किसी व्यक्ति के उस की दी गई भूमिका को सही तरीके से निभाने पर निर्भर करेगा कि वह भविष्य में क्या कहलाएगा? जो व्यक्ति चीख चीख कर खुद को देशभक्त कहे उस की निष्ठा पर संदेह स्वाभाविक है। यह भक्ति शब्द बहुत भ्रामक है। इस में मस्के की गंध आने लगती है।
ReplyDeleteकाका हाथरसी ने शायद इसी "काजमी" शख्स के बारे में कहा था:
ReplyDeleteकानूनों के कान में, थोक जिरह की कील
हत्या कर दे सत्य की, वह है सफल वकील
काजमी साहेब के बारे में कुछ नहीं कहना पर हमारी न्याय व्यवस्था के अनुसार कसाब को सजा दिलाने के लिये एक वकिल की आवश्यकता है.. बिना वकिल के मुकदमा चल नहीं सकता और बिना मुकदमे सजा हो नहीं सकती.. तो क्या करे... इससे पहने किसी महिला (नाम भूल रहा हूँ, माफी) वकि्ल ने ये केस लडना चाहा पर कुछ देश भक्तों ने उनके घर पर धावा बोल दिया.. उनसे माफी लिखवा ली.. और उन्हे केस से हटना पड़ा... उन्हे वकिल की हैसियत से सारे दाव पेंच ्लगा लेने दो.. ये टेस्ट हमारी व्यवस्था का है कि हम रंगे हाथो पकडे़ मुजरिम का केस कैसे हैडल करते है.. कानुन में क्या बदलाव जरुरी है..
ReplyDeleteप्रवीन की मुस्कान प्यारी है.. टिप्पणी तो है ही!!
ReplyDeleteधन्य हैं ऐसे काज़मी सरीखे लोग जो आँखे होते हुए भी अंधे बने रहते हैं।ऐसे देश भगतों ने ही तो देश का बंटाधार किया हुआ है और धन्य हैं वे लोग जो इस पर अपनी राजनैतिक रोटीयां सेंकते हैं।
ReplyDeleteपता नही इन कसाबों के ताऊओं से कब ्हमारे देश को मुक्ति मिलेगी देश को।
खुद ही खुद को महान कहे तो कोई महान नहीं हो जाता, यहाँ भी ऐसा ही मामला है. इतिहास तय करेगा वकिल सा'ब क्या थे. हमारा खून तो ठंडा पड़ चुका. भारतीय जो है.
ReplyDeleteवकील साब देशभक़्त हैं पक्की बात है लेकिन वे भक़्त किस देश के है ये तो समय ही बतायेगा।वैसे प्रवीण वाकई मुद्दे की बात ही करते हैं।उनका बिजली जाने पर की गई टिपण्णी सोचने पर मज़बूर कर देती है।
ReplyDeleteकमाल है आज देश भक्ति की भी अपनी -अपनी परिभाषा है .
ReplyDeleteरंजन की टिप्पणी बिलकुल ठीक है कि; "परीक्षा देश की न्याय प्रणाली की है." लेकिन यहाँ एक बात और है. बीस साल तक मुकदमा चलने के बाद अगर कसाब को सज़ा होती है तो क्या वह भी न्याय होगा? यह बात इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि ज्यादातर हम इस बात पर खुश हो लेते हैं कि; "चलो अंत भला तो सब भला."
ReplyDeleteबीस साल तक मुकदमा चलने के बाद अगर कसाब को सज़ा होती है तो भी कहीं ऐसा ही कुछ कहकर नहीं निकल लें हमलोग.
याद करने की कोशिश कर रहा हूँ की सउदी अरब ,इरान ,इंडोनेशिया ,बाली या किसी ओर देश में इतनी सहूलियत मिली वहां के देश पे हमला करने वालो को ?मेरा जनरल नोलेज कमजोर है .कोई बताये ???????
ReplyDeleteहमेशा की तरह ज्ञान वर्धक पोस्ट...
ReplyDeleteनीरज
इस पोस्ट पर विक्रम से बात कर रहा था. अब्बास साहब की देशभक्ति की बात चली तो विक्रम का कहना है कि;
ReplyDelete"आपलोग अब्बास काज़मी जी की बात का असली मतलब समझ नहीं पा रहे. वे देशभक्त हैं, इससे उनका मतलब है कि उन्होंने कसाब का केस इसलिए लिया है ताकि अपने दांव-पेंच से कसाब की स्थिति कमज़ोर कर दें और वो केस हार जाए. देशभक्त होने से उनका असली मतलब यह है. आखिर अब्बास काज़मी अगर देशभक्त हैं तो फिर मेरी समझ में ऐसा ही होना चाहिए."
वाह वाह क्या बात है.....बस इस से आगे दिल मै आग है , ओर वो उगलना नही चाहता
ReplyDeleteह्म्म्म.... हमने तो सुना की कसाब को एक 'अच्छा' वकील मिल गया है. अब देशभक्त कहलवाया जा रहा है तो वकील साहब का इसमें क्या दोष? जबरदस्ती अगर लोग सवाल उठाएंगे तो कहना ही पड़ेगा वरना वो कौन सा चिल्लाते फिर रहे थे. गांधीजी की देशभक्ति पेशे जैसी चीजों से बढ़कर थी... सबके लिए देशभक्त का मतलब भी तो एक नहीं !
ReplyDeleteऔर ऑफिस में एसी के लिए आना तो आम बात है. छुट्टी के दिन घर में परेशान होने की जगह आईटी कंपनी के कुछ कर्मचारी ऑफिस के चार सितारा सदृश डोरमेट्री में सोना पसंद करते हैं :) ऐसे लोगों से मैं मिल चूका हूँ !
यह देशभक्ति वाकई सोचने को मज़बूर करती है.. कानून की पढ़ाई के दौरान किताबों में पढ़ा था कि हर इंसान को विधिक उपचार पाने की स्वंत्रतता हमारा कानून देता है.. लेकिन क्या आतंककारी इंसान होते हैं????
ReplyDeleteभाइ साहब, ये तो पेशा कर रहे है, जो पेशे पर बैठ जाय उससे क्या उम्मीद!
ReplyDeleteधूर्त, बेईमान और रंगे सियार हर पेशे में होते हैं। निरर्थक बौद्धिक और जटिल बहस में न पड़ कर मैं यही कहूँगा कि कसाब का वकील इन्हीं श्रेणियों में से किसी एक का है।
ReplyDeleteअंतर्राष्ट्रीय इस्लामी आतंकवाद का नेटवर्क बहुत व्यापक है।
विषय से अलग है लेकिन प्रासंगिक है इसलिए कहूँगा कि
एक क़ानून ऐसा बनाया जाना चाहिए जिसके तहत ऐसे अपराधियों को 100 वर्षों तक कठिन सश्रम कारावास की सजा दी जाय। चूँकि रंगे हाथ मीडिया की तेज नजरों के नीचे पकड़ा गया है, इसलिए वकील की कोई आवश्यकता नहीं है।
केस विशेष कोर्ट के तहत आता है कि नहीं, इसका निर्णय गृह मंत्री स्वयं करें।
तेज ट्रायल के लिए अलग कोर्ट हों जहाँ सुप्रीम कोर्ट के जज बैठें। जूरी का गठन हो जिसके सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामित हों और क़ानूनी विशेषज्ञ भी उसमें हों।
जिसने इतना बड़ा दुस्साहस किया है, वह अपने को स्वयं defend करे। महीने दो महीने में औपचारिकता खत्म कर दोषी को सजा दे दी जाय
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कभी कभी विशेषज्ञों के बजाय आम जन की समझ को ही माना जाना चाहिए। क़ानून को इंसान के साथ साथ प्रगतिशील होना चाहिए। इस तरह के स्वयंसिद्ध cases के लिए कुछ तो नया करना ही पड़ेगा।
"तो क्या बिजली अकर्यमणता की द्योतक है".. अब हम समझे मुलायम सिंह क्यूँ यू.पी. को वापिस बैलगाड़ी युग में ले जाना चाहते थे!
ReplyDeleteशायद हम भी मुद्दे को स्कटल ही करें लेकिन कुछ छुटपुट विचार इस प्रकार हैं, मुद्दा न श्री कसाब का है और न काजमी साहब का, मुद्दा/मुद्दे इससे अलग है|
ReplyDelete१) क्यों हम आतंकवाद के आगे इतने कमजोर हैं? हमने डाक्टर अमर के ब्लॉग पर हमले के २-४ दिन बाद ही लिख दिया था कि भारत की तरह पाकिस्तान भी ईन्डिपेन्देन्ट ज्युडिशियरी की बात करेगा और यहाँ मुकदमा १५ साल चलेगा तो वहां २५ बरस|
२) अगर लोकतांत्रिक/न्याय व्यवस्था में विशवास है तो उसके आक्युपेशनल हैजार्ड्स भी उठाने पड़ेंगे| मेरे लिए ये सफ़ेद और काले की बात है| एक बलात्कारी को मिलकर भीड़ मार डाले तो ठीक और चने चुराने पर किसी की आंखें फोड़ दी जाएँ तो गलत, ये कैसी बात? कौन फैसला करेगा कि माब जस्टिस कब ठीक है और कब गलत? इसी वजह से सभ्य समाज Abstract जस्टिस पर यकीन रखता है फेयर प्ले पर नहीं|
३) देशभक्ति की बात करना बेमानी है, जब हम साल में दो बार देशभक्ति के तराने गाकर देशभक्त हो सकते हैं तो काजमी साहब की देशभक्ति पर कोई शक नहीं है| Holier than thou की बात तर्क के गले नहीं उतरती | असल बात है कि हमारा समाज ही देशभक्त नहीं है, वरना इस देश की इतनी बुरी गत न बनाते हम| कहीं भी नजर उठा के देख लीजिये, नदी, पर्वत, सड़क, फुटपाथ, अपना घर, पडौस की नाली, चाट खाने के बाद पत्ते का हाल, मंदिर, प्रसाद...कहीं भी हमारे कर्मों से लगता है कि हम देशभक्त हैं? देशभक्ति की बाते प्रतीकों कि बात हैं जिसकी बातें करने में हम बड़े शातिर हैं|
४) असली बात है कि बहुत सी चीजे हमें गलत दिखती हैं, लेकिन क्या करें? या तो व्यवस्था को सुधारें अथवा जब तक व्यवस्था सुधर न जाए उसको सहन करते रहें| पढ़े लिखे लोगों में इसी Perspective की कमी देखी जाती है, उनकी ये जिद कि जहाँ हम खड़े हैं वो ही सही है क्योंकि हम पढ़े लिखे समझदार हैं| हम जो सोचते हैं और चाहते है वो हमें मिलना चाहिए क्योंकि हम ही इसके लिए सबसे उपयुक्त हैं| पिछले ५ सालों में भाजपा का भी यही घमंड था कि हम चुनाव भले ही हार गए हों अनपढ़ लोगों के वोट के कारण लेकिन उसके लिए उपयुक्त हम ही हैं, यु नो व्हाट, गेट ओवर इट...
खैर बातें तो और भी बहुत, लेकिन फिर कोई और दिन और,
सद्दाम हुसैन का मुकद्दमा और उसको मिली सजा से हमारे न्यायविदो को कुछ सीखना चाहिये। कसाब का केस भी इसी श्रेणी मे आता है (मेरे विचार से)।
ReplyDeleteआपका सवाल सौ फ़ीसदी सही है.
ReplyDeleteलेकिन ज़्यादा गम्भीर सवाल यह है कि अब्बास काज़मी के देशभक्त होने से भी क्या होगा? अफ़ज़ल गुरु को तो फांसी की सज़ा सुनाई जा चुकी थी. आज तक दिल्ली सरकार अपना ओपिनियन ही नहीं दे सकी. गृह मंत्रालय उसका ओपिनियन अगोर रहा है, पीएमओ गृहमंत्रालय का और राष्ट्रपति कार्यालय पीएमओ का. दिल्ली सरकार क्या अगोर रही है? अगर वास्तव में व्यवस्था इसके प्रति गम्भीर है तो ये मामला क्यों नहीं उठाया जा रहा है? व्यवस्था ही नहीं चाहती तो वकील क्या करेगा? वह तो बस अपना व्यवसाय ही कर रहा है.
प्रसिद्धि पा लेना सभी गुणों का स्रोत है । ऐसे व्यक्ति को लगता है कि धीरे धीरे सारे गुण उसके अन्दर प्रस्फुटित होते जा रहे हैं । कभी कभी उसे यह भी लगता है कि उसके गुण लोगों तक पहुँच नहीं पा रहे हैं इसके लिये वह मीडिया का सहारा लेता है और मीडिया उसके ’प्रसिद्धि’ गुण के कारण और गुणों को प्रचारित प्रसारित करती है ।
ReplyDeleteऐसी स्थिति सभी नेताओं, अभिनेताओं से लेकर मोहल्ले के नायकों तक में पायी जाती है । सभी अपने गुण, ज्ञान और कल्पना के आयामों में औरों को लपेटने की कोई कसर नहीं छोड़ते । शायद कुछ ऐसे भ्रम की स्थिति में श्रीमान काज़मी साहब हैं । आप देखते रहिये जब तक मुकदमा चलेगा और कई गुण आपको जानने को मिलेंगे । अरे ! हनुमान जी भी तो अपने गुण भूल गये थे । ’प्रसिद्धि रूपी जामवन्त’ जब काज़मी साहब को कहेंगे कि का चुप साध रहा - - - ? तो पुनः ’मूढ़ बकर’ (सौजन्य अमित जी) चालू हो जायेगी ।
क्या पकिस्तान में किसी हिन्दुस्तानी के लिए सरकारी खर्चे पर वकील मिला ?
ReplyDeleteऐसे ही एक देशभक्त जिन्ना भी थे जिन्होंने अपने लिए एक दूसरा देश ही काट कर बना लिया था । भारत देश के दुश्मन बड़े भाग्यशाली हैं जिन्हें सदैव ही कोई न कोई मीर जाफर हमेशा मदद के लिए तैयार मिलता है । कसाब की इतनी दिल लगा कर पैरवी तो कोई पाकिस्तानी वकील भी न कर पाता जितनी यह कर रहे हैं । देशविभक्ति का जज़्बा दिल में जोर मार रहा होगा इनके । अफसोस इस देश में आज गद्दारी को ही सरंक्षण मिलता है । कभी मानवाधिकार के नाम पर कभी मूल अधिकार के नाम पर । न्याय के तराजू में देश सदैव आतंकवाद और अलगाववाद से हल्का ही साबित हुआ है । फिर भी हम कायम हैं, आश्चर्य है ।
ReplyDeleteअब्बास काज़्मी से यह दो सवाल पूछना चाहता हूँ:
ReplyDelete१)आपका फ़ीस कसाब दो नहीं दे पाएगा? तो फ़िर कौन दे रहा है? किस देश से? क्या रकम है?
२)क्या भविष्य में आप किसी गैर मुसलमान नक्सलवादी का भी केस इसी dedication और committment के साथ लडेंगे?
आप सभी का धन्यवाद
ReplyDeleteवाकई मन वितृष्णा से भर जाता है, मुँह कसैला हो जाता है ऐसे मौका परस्त लोगों को देख के जो अपने लाभ के लिए देश को भी बेच खाएँ। ये वकील साहब भी ऐसे ही जन्तु दिखते हैं, कसाब का केस मात्र पब्लिसिटी और माईलेज हासिल करने के लिए लड़ रहे हैं, अन्यथा इनको कौन जाता था, गिने चुने आस पास के लोग जानते होंगे और ऐसे ही अपना जीवन चुक जाने के बाद इन्होंने अल्लाह ताला के दरबार में हाज़िरी देने के लिए रूख्सत हो जाना था। लेकिन चूंकि ये अब एक हाई प्रोफाइल कैदी का दर्जा पा चुके कसाब के वकील हैं इसलिए अब इनका नाम बहुतों ने पढ़/सुन लिया है!
ReplyDeleteयश/रोकड़े का लोभ किसी से कुछ भी करा सकता है जी!!
वाकई मन वितृष्णा से भर जाता है, मुँह कसैला हो जाता है ऐसे मौका परस्त लोगों को देख के जो अपने लाभ के लिए देश को भी बेच खाएँ। ये वकील साहब भी ऐसे ही जन्तु दिखते हैं, कसाब का केस मात्र पब्लिसिटी और माईलेज हासिल करने के लिए लड़ रहे हैं, अन्यथा इनको कौन जाता था, गिने चुने आस पास के लोग जानते होंगे और ऐसे ही अपना जीवन चुक जाने के बाद इन्होंने अल्लाह ताला के दरबार में हाज़िरी देने के लिए रूख्सत हो जाना था। लेकिन चूंकि ये अब एक हाई प्रोफाइल कैदी का दर्जा पा चुके कसाब के वकील हैं इसलिए अब इनका नाम बहुतों ने पढ़/सुन लिया है!
ReplyDeleteयश/रोकड़े का लोभ किसी से कुछ भी करा सकता है जी!!
आपका सवाल सौ फ़ीसदी सही है.
ReplyDeleteलेकिन ज़्यादा गम्भीर सवाल यह है कि अब्बास काज़मी के देशभक्त होने से भी क्या होगा? अफ़ज़ल गुरु को तो फांसी की सज़ा सुनाई जा चुकी थी. आज तक दिल्ली सरकार अपना ओपिनियन ही नहीं दे सकी. गृह मंत्रालय उसका ओपिनियन अगोर रहा है, पीएमओ गृहमंत्रालय का और राष्ट्रपति कार्यालय पीएमओ का. दिल्ली सरकार क्या अगोर रही है? अगर वास्तव में व्यवस्था इसके प्रति गम्भीर है तो ये मामला क्यों नहीं उठाया जा रहा है? व्यवस्था ही नहीं चाहती तो वकील क्या करेगा? वह तो बस अपना व्यवसाय ही कर रहा है.
सद्दाम हुसैन का मुकद्दमा और उसको मिली सजा से हमारे न्यायविदो को कुछ सीखना चाहिये। कसाब का केस भी इसी श्रेणी मे आता है (मेरे विचार से)।
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