मैं घर से बाहर जा रहा था। मेरे दायें हाथ में ब्रीफ केस था। अचानक याद आया कि मैने पर्स नहीं लिया है। मैने हमेशा की तरह जोर से बोला – पर्स देना। मेरी ३४ साल की निष्ठा से बंधी पत्नी तेजी से बेडरूम की तरफ गयीं और पर्स ले आयीं।
श्री जी विश्वनाथ और उनकी पत्नी श्रीमती ज्योति। यह पोस्ट श्री विश्वनाथ की अतिथि पोस्ट है।
मेरा दायां हाथ ब्रीफ केस पकड़े फंसा था। सो मैने बायां हाथ बढ़ाया पर्स लेने के लिये। एक झटके में मेरी गृहलक्षी ने अपना हाथ पीछे खींच लिया। जैसे कोई स्प्रिंग लगी हो। खैर, मुझे तुरंत समझ में आ गया – मैं “लक्ष्मी” को गलत हाथ से ले रहा था। इस महान महिला से विवाहित जीवन के दशकों के अनुभव ने मुझे यह सिखा दिया था कि कोई तर्क करना बेकार है।
एक सांस खींच कर मैने अपना ब्रीफकेस नीचे रखा। दायें हाथ से अपने पुराने मुड़े-तुड़े पर्स को लिया, जेब में डाला और फिर ब्रीफकेस उठाया और रवाना हुआ।
मेरा बायां हाथ परम्परावादियों को क्यों गलत लगता है जी? क्यों मैं इसे कई प्रकार के कार्यों को करने से प्रतिबन्धित किया जाता हूं? यह बराबर के साइज और लम्बाई का है|
अगर मैने इस हाथ को दायें हाथ की तरह काम में लाने के लिये अपने को प्रशिक्षित कर लिया होता तो यह पूरा काम करता लिखने में भी। की-बोर्ड पर यह दायें हाथ की दक्षता को उंगली दर उंगली बराबरी करता है। (वैसे मैं लगभग ७० शब्द प्रतिमिनट की दर से टाइप कर लेता हूं।)
वायलिन वादक और वैनिक अपने बायें हाथ का प्रयोग सुर (नोट्स) निकालने में करते हैं। दायें हाथ से तो केवल ध्वनि निकालते हैं। उनकी दक्षता बायें हाथ में होती है, दायें में नहीं। बांसुरीवादक श्री हरिप्रसाद चौरसिया “उल्टे” तरीके से बांसुरी बजाते हैं। इसके बावजूद और बावजूद इसके कि हाथ धोते समय मैं अपने बायें हाथ को भी उतने ध्यान से धोता हूं, जितने से दांये को; मेरा बायां हाथ “अस्वच्छ” “प्रदूषित” “अभद्र” और “खुरदरा” क्यों माना जाता है?
अगर कोई सबके सामने बायें हाथ से खाता है तो आस-पास के लोग घूरती निगाह से देखते हैं। एक पेटू सूअर की तरह ठूंस-ठूंस कर खाये, वह स्वीकार्य है पर एक सभ्य आदमी का साफ बायें हाथ से खाना जायज नहीं! क्यों नहीं? आपने शिशुओं को देखा है। वे अपनी फीड बोतल दोनो हाथ से पकड़ते हैं। केवल दायें हाथ से नहीं। मां के बायें स्तन से भी उतना और वैसा ही दूध निकलता है, जैसा दायें स्तन से।
“लेफ्ट” को निम्न स्तर का क्यों माना गया है? हिन्दू ही नहीं, नॉन-हिन्दू भी बायें को उपेक्षित करते हैं। बायें हाथ से हाथ मिलाना अशिष्टता माना जाता है। हम “लेफ्ट हैण्डेड कॉम्प्लीमेण्ट” (left handed compliment - प्रशंसा की चाशनी में डूबी कटु-आलोचना) क्यों देते हैं? क्या हम साम्यवादियों को लेफ्टिस्ट इस लिये कहते हैं कि हम उनसे अरुचि रखते हैं? मैला उठाने का काम बायें हाथ को क्यों सौंपा जाता है? सवेरे शौच के बाद धोने के लिये बायां हाथ ही नामित है! एक बच्चा जो बायें हाथ का प्रयोग करता है, को हतोत्साहित कर दायें हाथ का प्रयोग करने पर जोर डाला जाता है।
क्या इसका बच्चे पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है? क्या खब्बू जीवन में अपने को सिद्ध नहीं कर पाते? कई महान क्रिकेटर बायें हाथ से खेलने वाले हुये हैं। बिल क्लिंटन, गैरी सोबर्स, सचिन तेंदुलकर आदि कई महान खब्बू हैं।
आरती करते समय दांया हाथ जलते कपूर वाले दीपक को लिये रहता है और बांया हाथ घण्टी बजाता है। कल्पना करें कि कोई इसका उलट करे। वह तो स्केण्डल हो जायेगा! पुजारी हमेशा दायां हाथ प्रसाद देने के लिये करता है। हम भी दायें हाथ से प्रसाद लेते हैं। बायें से कभी नहीं। हाथ दोनो बराबर बनाये हैं भगवान ने।
हम अपने दायें हाथ से बहुत काम कराते हैं और बायें को अण्डर यूटिलाइज करते हैं। शास्त्र क्या कहते हैं इस पर? मैने जाति-वर्ण-धर्म के आधार पर भेद-भाव सुना है। पर हम क्या शरीर के दिशात्मक भेदभाव के दोषी नहीं हैं?
मेरा जब विवाह हुआ, तब मेरी पत्नी मेरे दायें खड़ी थीं। क्या इसी कारण से वे “बैटर-हाफ” हैं? बस यूं ही सोच रहा हूं!
सादर,
जी विश्वनाथ
जे.पी. नगर, बेंगळूरु
प्रवीण पाण्डेय की टिप्पणियां काफी दमदार होती हैं। उनसे मैं कह भी चुका हूं कि अपना निजी ब्लॉग न प्रारम्भ कर रहे हों, तो भी विश्वनाथ जी की तरह अतिथि पोस्ट इस ब्लॉग पर ठेल सकते हैं। देखते हैं, क्या मंशा है।
Vishwnath ji, your wedding picture is absolutely gorgeous.
ReplyDelete& as for the Left & right hand - for us Desis, all these are ingrained .
Smt Jyoti ji is correct to react in her way .....as per her habitual response.
sorry to comment in english...it is 'cause
i am away from my pc @ this moment.
warm regards,
- Lavanya
आ.जी विश्वनाथ जी ने काफ़ी दमदारी के साथ खब्बूपन के बारे मे लिखा है. मुझे तो कोई तार्किक कारण समझ नही आया कि पूरा मानव समाज ही ऐसा क्यों करता है?
ReplyDeleteहो सकता है मानव मस्तिष्क में ही कोई केमिकल लोचा हो.:)
रामराम.
मेरे बाँये हाथ ने कभी दाँये हाथ से यह प्रश्न नहीं किया कि आप अधिक कार्य क्यों करते हो ? मुझे भी कुछ कार्य करने दिया करो । (संभवतः नैनो के सम्बन्ध में पश्चिम बंगाल गुजरात से भी यह प्रश्न न करे) । आजकल तो कार्यालयों में काम जानने वालों से ही काम लिया जाता है और जो काम नहीं जानते हैं वह केवल घंटी बजाकर सबको सूचित करते हैं कि काम हो रहा है । सबका हृदय बायीं तरफ है और जो हृदय के पास है उसे रगड़ा तो नहीं जा सकता ।
ReplyDeleteइस तरह की स्थिति का तो मुझे भी अपने घर में सामना करना पड़ता है। पारम्परिक सोच और आदत के अतिरिक्त कोई तार्किक कारण तो दिखता नहीं। बस "उनकी" बात मान लेता हूँ क्योंकि आजतक समझाने की सारी कोशिशें बेकार हुईं। आपकी प्रस्तुति बहुत रोचक है।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
अरे गुरुदेव...बायें हाथ से काम करने वाले को तभी घूरा जाता है जब आदतन वो दाएं हाथ से काम करने वाला है...मैंने तो सुना है की सारे बड़े बड़े लोग..मसलन अमिताभ बच्चन..बिल क्लिंटन..और मेरी श्रीमती जी भी बायें हाथ से ही काम करती हैं..हालांकि उन्हें कई बार ऐसी ही परिस्थितियों से रूबरू होना पड़ता है..जैसे प्रसाद लेते समय...
ReplyDeleteताऊ ही सही होगा..जरुर केमिकल लोचा है.
ReplyDeleteवैसे सातों दिन के लिए कोई न कोई खोज लिजिये और गंगा नहाईये..हमारे यहाँ गेस्ट राईटर बनेंगे क्या कोई एक दिन हफ्ते के..बस!!! :)
हरिद्वार जाने का मन हमारा भी है.
@ अजय झा जी
ReplyDeleteयूँ तो लबड़ हत्थे (बांये हाथ वाले) हम भी हैं मगर इतने बड़े नामों के साथ हमें काहे याद करोगे? :)
@ "सबका हृदय बायीं तरफ है और जो हृदय के पास है उसे रगड़ा तो नहीं जा सकता "
ReplyDeleteसहमत हूँ जी। ;)
वैसे अस्पृश्यता की धारणा भी इससे जुड़ी हुई है। मैंने एक महाराज को देखा था जो खाना बनाते समय चूने का एक वृत्त खींच बाएं हाथ को उससे बाहर रखते थे। एक सहायक रखते थे जिसे बस दाएँ हाथ के प्रयोग की अनुमति थी, वह भी वृत्त के बाहर से। मेरे नाना ने उन्हें टोका तो उन्हों ने बताया कि बायाँ हाथ अपवित्र है। नाना ने जवाब दिया कि आप का मलद्वार तो पवित्रता वृत्त के भीतर है, उसका क्या? बाँए हाथ से वह भी पवित्र है क्या?
महाराज ने दुबारा कभी दर्शन नहीं दिया । :)
दरअसल इसके पीछे क्या सटीक तर्क है इसे तो मैं भी आज तक नहीं जान पाया बस बाएं हाथ से सक्रिय लोंगों को मैं भी कुतूहल के ही निगाह से देखता हूँ ये और बात है कि मैं उन्हें तिरस्कृत नहीं मानता हूँ जैसे कि पूर्वांचल वाले लोग ऐसे लोंगो के प्रति बहुत उपेक्षित भाव रखते हुए यह कह देते हैं कि देखो वह"" लेबरहा "" ( बाएं हाथ से कम करने वाला )जा रहा है .
ReplyDeleteआप के दिमाग को छुआछूत के लिए प्रशिक्षित करने का आदिम तरीका है।
ReplyDeleteपिताजी का दाँएं हाथ में फ्रेक्चर हुआ। तीन-चार ऑपरेशन हुए। प्लास्टर बंधा रहता। बाएँ से काम न करते तो? उन्हों ने उसी से लिखना सीखा और बहुत से काम सीखे। वे दोनों हाथों से समान रूप से लिख सकते थे भोजन कर सकते थे। लगभग सभी काम कर सकते थे। आप कोशिश करें तो ये भेद मिटा सकते हैं।
सही वह होता है जो बहुमत में होता है. ज्यादातर लोग सीधे हाथ से काम करते है अतः वह सही है. यह दुनिया का दस्तुर है जी भले ही एक फितुर हो.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर आलेख. हमने जितने भी अमरीकी देखे उनमें अपवाद स्वरुप ही कोई दाहिने हाथ का प्रयोग करता हो.
ReplyDeleteबांये हाथ के उपयोग के बिना तो आटोमोबाईल क्रांति का सत्यानाश हो जायेगा।एक हाथ से आप न मोटर सायक्ल चला सकते हैं और न कार,बस,ट्र्क्।उसका महत्व तो बराबर का है।यंहा राईट हैण्ड ड्राईव मे लोग बिना बायें हाथ के गियर नही बदल सकते और मोटर सायकिल मे क्लच दबाये बिना यही स्थिति आ जाती है।यानी बिना बांये हाथ के आगे बढना या जाना संभव नही है और ग्यारह नंबर की बस यानी पैदल चलो तो भी बांया हाथ दांये हाथ की टक्कर मे उसके साथ-साथ आगे चलता है।बहुत शानदार लिखा आदरणीय विश्वनाथ जी ने,प्रणाम करता हूं उनको। और हां मेरी माताजी भी कभी बांये हाथ से नतो रूपया लेती है और ना देती हैं।
ReplyDeleteदोनों हाथ ज़रूरी हैं, झगडा काहे को.
ReplyDeleteऔर तो कुछ पता नहीं लेकिन बाएँ हाथ वाले होते विलक्षण हैं...दायें और बाएं का खेल इश्वर का बनाया हुआ है...इसमें दखलंदाजी हम क्यूँ करें...??
ReplyDeleteनीरज
मै वेसे तो इन सब बातो को नही मानता, ओर ना ही इस बारे कभी सोचा है, मेरी वीवी हमेशा उलटे हाथ से ही सब काम करती है, लेकिन आज तक मुझे या उसे कुछ नही हुआ, मजे से सब चल रहा है. यह सब वहम है जो हमे बिरासत मै मिले है ओर हम उन्हे बिना सोचे समझे आगे अपने बच्चो को देते है, मेरे बच्चे अकसर मां से ऎसी बातो पर सवाल पुछते है, जबाब नही होता उस के पास, बस यही कि हमे हमारे मां बाप ने बताया था, कुछ नही होता, अगर होता तो मै कभी का मर खप गया होता
ReplyDeleteSTD यानि सचिन तेंदुलकर खब्बू नहीं थे जी, बाकी सभी थे.
ReplyDeleteरोचक पोस्ट। कैंची बनाने वालों ने अब तक बाँये हाथ से उपयोग की जाने वाली कैंची भी बनाना शुरु नहीं किया है, ऐसा मैंने कहीं पढ़ा है।
ReplyDeleteबात तो गौर करने लायक है कुछ भी बायें हाथ से देना लोग अशुभ क्यों मानते हैं ? खैर अपनी कहें तो पिछले कुछ दिनों से बायें हाथ से खाने की आदत होती जा रही है. शायद फोर्क का ज्यादा उपयोग करने से !
ReplyDeleteसंजय बेंगाणी जी से सहमत.
ReplyDeleteरोचक रहा. वैसे ऐसा बढ़िया लिखना तो आदरणीय विश्वनाथ जी के बाएं हाथ का काम है. :-)
सभी मित्रों को मेरा धन्यवाद!
ReplyDeleteऔर ज्ञानजी को अपने ब्लॉग पर स्थान देने लिए लिए विशेष धन्यवाद।
अजीब बात है।
केवल बाँया हाथ पर परंपरावादियों का ध्यान है।
शरीर के अन्य अंग तो बच निकले।
बाँया पैर, बाँयी आँख, कान, वगैरह पर कोइ लगाम नहीं।
ऐसा क्यों?
शुभकामनाएं।
जी विश्वनाथ
बात सीधी सी है अमीबा से वाया बन्दर होते हुये वैज्ञानिक विकासवाद को भी दक्षिणपंथ( हस्त) ही उचित,व्यावहारिक और विज्ञान सम्मत लगा होगा। इवोल्युशनवाद को भी वाम स्वीकार नहीं। वैसे पृथ्वी भी सूर्य के द्क्षिंण में रह कर वर्षपदी करती है, अहिर्निश। इसीलिए शिव का एक नाम दक्षिणामुखी भी है।
ReplyDeleteSchmuch vicharneey....
ReplyDeleteshayad iske kuchh sharirik/vaigyanik karan hain..maine suna to hai iske bare me par wah is tarah yaad nahi ki vistaar me we tark prastut kar sakun...
धूमिल की भाषा में कहें तो : ’दरअसल आदमी अपने दाएं हाथ की नैतिकता से कुछ कदर मजबूर होता है, कि उम्र गुजर जाती है मगर ** सिर्फ़ बाएं हाथ से धोता है.’
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