भाषा रोजगार का वाहक है। मात्र राष्ट्रीय गर्व या सम्प्रेषण की दक्षता के आधार पर भाषा की बात करना गौण है। अन्तत जो नौकरी देगी, वही भाषा प्राथमिकता पायेगी।
मैं अपने आसपास के “अपवर्ड मोबाइल” लोगों के बच्चों को देखता हूं। घर में हिन्दी बोली जाती है, पर पढ़ाई में जोर अंग्रेजी पर है। पहाड़े अंग्रेजी में रटे जा रहे हैं। अध्यापक से “वैरी गुड” की अपेक्षा करते हैं बच्चे, “अति सुन्दर” की नहीं। वैश्वीकरण के युग में अंग्रेजी अच्छे रोजगार या अच्छे व्यवसाय का वाहक है। इन "अपवर्ड मोबाइल" में कई हिन्दी के नाम पर रोटी खाने वाले माता-पिता भी हैं!
मातृभाषा के बजाय अंग्रेजी की प्राथमिकता एक डेढ़ दशक में न केवल भारत में बढ़ी है – चीन में भी युवा अंग्रेजी के दम पर आगे बढ़ने की सोचने लगा है। भारत को लाभ यह है कि उसके पास सबसे ज्यादा अंग्रेजी जानने वाले तकनीकी या व्यवसायिक जवान कामकाजी लोगों का समूह है। हमारे यहां से इन्जीनियर, डाक्टर, प्रबन्धक और अध्यापक आदि अनेक देशों में नौकरी पा रहे हैं – इसलिये कि वे अंग्रेजी जानते हैं।
जब मैं हिन्दी में लिखने और उसे नेट पर बढ़ाने की सोचता हूं, तो यह व्यवसायगत भाषा की सीमा (लिमिटेशन) साफ नजर आती है हिन्दी की। मैं सुनिश्चित नहीं हूं, पर सोचता जरूर हूं - हिन्दी हार्टलेण्ड (अभी के बीमारू प्रान्त) अन्तत: सम्पन्न होंगे और उनकी सम्पन्नता हिन्दी को व्यवसायिक श्रेष्ठता प्रदान करेगी। अभी एक-डेढ़ दशक का समय लगेगा।
लोग हिंगलिश की बात करते हैं। हिंगलिश की पक्षधरता में यह भावना है कि आदमी एक ही भाषा में प्रवीण हो सकता है। पर मेरी तरह नयी पीढ़ी में भी आगे बढ़ने वाले शायद कम से कम दो भाषाओं पर कमाण्ड रखने वाले होंगे। वे दोनो भाषाओं का प्रयोग करेंगे। अंग्रेजी के साथ साथ अपनी हिन्दी (या इसकी जगह पढ़ें मातृभाषा, जो तमिळ, कन्नड़ या चीनी भी हो सकती है) पर अधिकार अवश्य होगा उन्हें। भाषा के रूप में अंग्रेजी को दरकिनार नहीं किया जा सकेगा पर उत्तरोत्तर हिन्दी में मिलता व्यवसायिक माइलेज हिन्दी को पुष्ट करेगा। अन्य भाषी (विदेशी समेत) हिन्दी सीखेंगे और प्रयोग करेंगे अपनी व्यवसायिक उन्नति के लिये।
लिखित हिन्दी देखता हूं, तो उसमें हिंगलिशिया दुर्गति नजर नहीं आती। और बोलचाल में यह दुर्गति शायद बहुत लम्बी न चले। हिन्दी की ऊर्जा शायद अपने को रूपान्तरित कर अपनी सुन्दरता और अस्तित्व बनाये रखे। हिन्दी और अंग्रेजी रहेगी। हिंगलिश जायेगी चूल्हे में। या ज्यादा हिन्गलिशिया कहें तो जायेगी ओवन में!
आप सहमत हैं, या इसे मात्र इच्छा-कल्पित सोच मानते हैं?!
बराकोबामा बन गये राष्ट्रपति। क्या इनीशियल डिसएडवाण्टेज नाम की कोई चीज नहीं होती, जी! |
हिंग्लिश कहीं ओवन में जाने वाली नहीं है . बल्कि और सशक्त होगी .
ReplyDeleteइंग्लिश को तो खैर अब रोकना मुश्किल है .
जैसे हम राष्ट्र भाषा और क्षेत्रीय भाषा की बात करते हैं . उसी तरह हमें अंतरराष्ट्रीय भाषा को भी स्वीकार करना होगा . बोले तो ग्लोबल बनेंगें हम भी !
"हिन्दी हार्टलेण्ड (अभी के बीमारू प्रान्त) अन्तत: सम्पन्न होंगे और उनकी सम्पन्नता हिन्दी को व्यवसायिक श्रेष्ठता प्रदान करेगी। अभी एक-डेढ़ दशक का समय लगेगा"
ReplyDeleteयह बात ज्यादा गौर करने की है. और यह पक्का है कि " हिंगलिश जायेगी चूल्हे में।" भाषा के साथ व्यभिचार कितने दिन चलेगा.
"हिन्दी हार्टलेण्ड (अभी के बीमारू प्रान्त) अन्तत: सम्पन्न होंगे और उनकी सम्पन्नता हिन्दी को व्यवसायिक श्रेष्ठता प्रदान करेगी। अभी एक-डेढ़ दशक का समय लगेगा"
ReplyDeleteमतलब दस-पन्द्रह साल तक मौज करें। अच्छा अगर हम इस समय से मतभेद ठेल दें? कहें कि नहीं जी एक-डेढ़ दशक नहीं दस-पन्द्रह साल में यह सब हो जायेगा तब आप इसे किस रूप में लेंगे?
कुछ तो है अंग्रेजी के पास जो उसे दुनिया में आज सब से अधिक उपयोगी बनाए हुए है। हिन्दी के लिए आप कि आशा अच्छी है।
ReplyDeleteअंग्रेजी की अनिवार्यता अभी तो उन्नति के लिए आवश्यक बनी हुई है, और अभी वर्षों बनी रहेगी।
और इनिशियल डिसएडवांटेज नाम की चीज होती है वह कैरियर को प्रभावित भी करती है। लेकिन उस का अफसोस करने से जीवन और मुश्किल में आता है। इस लिए वह अफसोस की बात बिलकुल नहीं है। विचार करने की है कि हमारी अगली पीढ़ी को इन का कम से कम सामना करना पड़े।
वैसे यह लम्बी चर्चा का विषय है. मगर आपने अच्छा चिन्तन किया है. इन्तजार का फल मीठा होता है, यही सोचे इन्तजार किए जा रहे हैं.
ReplyDeleteये तो वक्त ही बतायेगा चूल्हे में कौन जायेगा और कौन रहेगा, पर आसार कुछ ठीक नही लग रहे। वैसे बालीवुड के रहते हिंदी कहीं नही जाने वाली
ReplyDeleteहम लोगों ने सैकडों सालों में हजारों भाषाओं के साथ प्रयोग किए हैं और समय के साथ भाषायें भी बदलती रही हैं हमारे देश में. हिंगलिश चूल्हे में जाती नहीं दिखती मगर हिन्दी भी कहीं नहीं जाएगी.. और अंग्रेजी का तो जाना अब मुश्किल ही है.. नारा भी तो बदल गया ना... "अंग्रेजी हटाओ" बदलकर अब "हिन्दी लाओ" हो गया है.
ReplyDeleteजो भी प्यार से मिला हम उसी के हो लिए. हिन्दी तो हर उस शख्स को गले लगाती है तो प्यार और सहजता से मिलता है. चंद उर्दू-फारसी अल्फाज, कुछ अंगरेजी के शब्द और शामिल करने के बाद भी हिन्दी, हिन्दी ही रहेगी. इसके लिए आज की हिन्दी को हिंग्लिश या अंगरेजी को हिंगरेजी कहना ठीक नहीं लगता. खंाटी हिन्दी का पूरा सम्मान करते हुए बस यही कहना है कि भाषा को जीवंतता उसके बदलते रहने में ही है. जब पप्पू कैन डांस तो रॉकी नृत्य क्यों नहीं कर सकता? हिन्दी पर हल्ला मचाने वाले राजभाषा के हलवाइयों ने ही हिन्दी का सबसे ज्यादा नुकसान किया है.
ReplyDeleteइंगलिश को भारतीय भाषा मान लिया जाना चाहिए। हिंदी भी रोजगार दे रही है, पर सिर्फ हिंदी नहीं, हिंदी में अच्छा लिखने बोलने के लिए भी अंगरेजी का धांसू ज्ञान जरुरी है। बाकी हिंदी सेवियों की दुकानें चलती रहीं, इसलिए हिंदी हिंदी का कुछ हल्ला चलता रहे, तो भी बुरा नहीं है।
ReplyDeleteआपकी बात से ज़्यादातर सहमत हूँ मगर फ़िर भी यह विषय ऐसा है की एक त्वरित टिप्पणी से काम नहीं चलने वाला - खासकर लेख के साथ टिप्पणियाँ भी पढने के बाद. आराम से बैठकर एक पोस्ट लिखनी पड़ेगी.
ReplyDeleteपहले की तुलना मे आज हिंदी अच्छी जगह दिखाई दे रही है. उतरोतर सुधार आता जायेगा, ऐसी उम्मीद है, पर अण्ग्रेजी को सारी दुनियां (कामनवैल्थ) की राजभाषा का इनिशियल ऎदवांटेज मिला हुआ है तो लगता नही कि उस हद तक जल्दी पहुंचे. वैसे इमानदार प्रयत्न होने चाहिये.
ReplyDeleteरामराम.
उपर की टिप्पणियाँ पढ़कर समझ आता है कि सदियों तक पिटे समाज का आत्मविश्वास कितना गिराया जा सकता है। क्या बन्धुओं को पता नहीं है कि किसी समय ऐसे ही ग्रीक का भी झण्डा लहराता था, लैटिन का भी और फ़्रेंच का भी । शायद संस्कृत का भी ध्वज कभी विश्व में लहराया था। लेकिन आज ये सब भाषाएँ कहाँ हैँ?
ReplyDeleteजब गांधीजी अंग्रेजों से आजादी लेने की योजना पर काम कर रहे थे तब भी ऐसी ही निराशाजनक बातें की जाती थीं। (जिस साम्राज्य में सूरज नहीं डूबता उसका ये लंगोटधारी क्या बिगाड़ लेगा?) योजना से तो चींटियाँ हाथी को भी मार देती हैं। (पंचतन्त्र की प्रसिद्ध कथा) आखिर समय ने पलटा खाया और अंग्रेज अपनी बिल में पहुंच चुके हैं। यही हाल अंग्रेजी का भी होगा।
क्षमा करें मुझे अंग्रेजी की कोई आवश्यकता नहीं. मैं हर काम हिन्दी में करने में सक्षम हूँ. अतः हिन्दी को लेकर मुझे न शंकाएं है न कुशंकाएं. एक दिन भारत में हिन्दी अंग्रेजी का स्थान ले लेगी. वे मूर्ख है जो सपने भी डरते डरते देखते है.
ReplyDeleteहिन्दी की ऊर्जा शायद अपने को रूपान्तरित कर अपनी सुन्दरता और अस्तित्व बनाये रखे।... बहुत संजीदा और सही विषय पर आपने अपनी चिंता और विचार व्यक्त किए है .....कोशिश से क्या नही होता.....तो यही नारा है की " हम होंगे कामयाब एक दिन....मन में है विश्वास पुरा है विश्वास....हिन्दी हमारी मात्रभाषा है..ये कहीं नही जायेगी दिन बा दिन और सशक्त होगी.."
ReplyDeleteRegards
हमारे यहां से इन्जीनियर, डाक्टर, प्रबन्धक और अध्यापक आदि अनेक देशों में नौकरी पा रहे हैं – इसलिये कि वे अंग्रेजी जानते हैं।
ReplyDeleteyah baaat sau pratishat sahi hai---Agar chinese ko english aati hoti to aaj har jagah SIRF wohi nazar aatey--Chinese log tulantamak ruup se bahut hi hard-warking hain.
-canada-USA mein bhi chinese teacher hain aur china mein indian bacchey medicine padhne jaatey hain.
-English janana koi burayee nahin lekin apni matrbhasha ko bhi bhulna sahi nahi.
-sab se pahle hinglish failane ka shrey--filmon aur TV.channels ko jata hai.Jis mein samacharon mein tak hindi ka prayog kam dusri bhashaon ka prayog adhik hota hai.
-abhaar sahit
समय के साथ सारी चीजें बदलती हैं, चाहे वह पहनावा हो अथवा भाषा। यही बाता हिन्दी पर भी लागू होती है।
ReplyDeleteजो भी हो चाह कर भी हम हिन्दी को वह darja नही दिलवा पा रहे और हमें भी इंग्लिश में प्रवीण होने के आलावा कोई उपाय नही रह गया हैं ,लेकिन यह भी सच हैं की हिन्दी के लिए जितना हो सकेगा हम प्रचार करेंगे ,कम से कम घर में बाहर कार्य स्थल पर लेखन में हिन्दी और अन्य देशी भाषाओ का प्रयोग कर इन्हे प्रबल करने की कोशिश कर ही सकते हैं ,बाकि वही बात हैं न १०० वर्षो की गुलामी ने वर्षो की मानसिक गुलामी दी हैं हमें,जिसके चलते सारा देश इंग्लिशमय ,न जी सारा विश्व इंग्लिशमय हो रहा हैं ,एक अकेले सीधा सीधा विरोध करेंगे तो नही चलेगा ,योजनात्मक रूप से ही इस समस्या का सामना किया जा सकता हैं इसमे समय भी बहुत लगने वाला हैं क्योकि हमारा उद्देश्य अपनी भाषा का प्रचार करना हैं ,किसी की भाषा को हम दरकिनार नही कर सकते न .
ReplyDeleteहिन्दी की स्थिति इससे भी बदतर हो सकती है क्या ?
ReplyDeleteआजकल तो हिंगलिश का ही ज़माना है । आजकल की युवा पीढी तो हिन्दी बोलना शान के ख़िलाफ़ समझती है ।
ReplyDeleteज्ञान जी,
ReplyDeleteसामान्य बोलचाल में जैसी भी भाषा बोली जाये, मै तो उसे ही सही मानता हूँ. बोलते समय हमारे मुहं से जो भी शब्द निकल जाएँ, वे ही अच्छे हैं. किसी को मजबूरी में कोई अलग भाषा बोलनी पड़े, तो वो ना तो अपनी बात बोल पायेगा और ना ही अच्छे से समझ पायेगा.
रही बात हिंगलिश की, अगर आम लोग इसे बोलते हैं तो क्या बुराई है?
hindi bhi rahegi ,english to rahegi hi ,hinglish bhi rahegi.
ReplyDeleteचिंता न करे अंग्रेजी भी दूषित हो रही है....
ReplyDeleteमुझे तो इच्छा-कल्पित सोच ही लगता है.
ReplyDeleteकुछ बातें है जो गौर करने की है:
'मैं अपने आसपास के “अपवर्ड मोबाइल” लोगों के बच्चों को देखता हूं। घर में हिन्दी बोली जाती है, पर पढ़ाई में जोर अंग्रेजी पर है।'
मैं अपने आसपास लोगों के बच्चों को देखता हूँ. घर में अंग्रेजी बोली जाती है. छोटे-छोटे बच्चे आज आए 'अंकल वी आर ओर्गानिजिंग अ स्माल फंक्शन ऑन रिपब्लिक डे इन आवर सोसाइटी.... .... ' हमारे कुछ हिन्दी मीडियम दोस्त अपने ऑफिस में मैरिड लोगों के बच्चों से बात करने में कतराते हैं क्योंकि वो बहुत अच्छी अंग्रेजी बोलते हैं ! और हिन्दी बस समझते ही है... वो भी बहुत कम.
मेरी ख़ुद की भतीजी के स्कूल में हिन्दी में बात करने पर फाइन लगता है वो स्कूल ठेठ हिन्दी/भोजपुरी क्षेत्र में है. पर वो भोजपुरी और हिन्दी भी अच्छी बोल लेती है. तथाकथित तेज कही जाने वाली है पर उसके हिन्दी के निबंध देखकर लगता है की हम अपने स्कूल में जिस पर फेल कर दिए जाते वैसा लिखने पर ८०+ अंक आ जाते हैं !
हमारे दोस्त के एक भाई हैं जो शिप कैप्टन है अक्सर विदेश में रहते हैं, उनका बच्चा बनारस के प्राइमरी स्कूल में जाता है. उन्हें लगता है वो किसी मामले में अंग्रेजी स्कूल वालों से कम नहीं जानते हैं, ज्यादा बहुत जानते हैं ! पर ऐसे कितने लोग हैं?
ऐसे लोग भी है जो हिन्दी में लिखते (केवल ब्लोगर नही लेखक भी) है लेकिन उनके बच्चे बस हिंगलिश भी किसी तरह ही जानते हैं.
हिन्दी भाषी क्षेत्रों में जिस तरह अंग्रेजी मीडियम स्कूल बरसाती मेढक की तरह बढ़ रहे हैं और हिन्दी (सरकारी) स्कूलों में जाता ही कौन है ? मुझे हिन्दी संकृत होती दिखाई दे रही है. हो सकता है हालत इससे कुछ अलग हो.
कहाँ से शुरु करें, किसी अखबार में एक खबर पढी थी बरसों पहले । एक सज्जन जो आंचलिक भाषा के कवि थे, अंग्रेजी में भी प्रवीण थे, बच्चों को अंग्रेजी से पढाकर विदेश भेजा हुआ था, अपने भाषण में कह रहे थे कि "मुझे अब आंचलिक गीत केवल गडरियों से ही सुनने को मिलते हैं, आंचलिक भाषा को बचाये रखने के लिये गडरियों की जितनी प्रशंसा की जाये कम है"
ReplyDeleteएक श्रोता बोले कि मेरे पिताजी एक गडरिया थे और अब मैं सरकारी नौकरी में हूँ अंग्रेजी के चलते । अगर आंचलिक भाषा की इतनी ही चिन्ता है तो अपने बच्चों को सिखाओ मैं तो अपने बच्चों को अंग्रेजी ही सिखाऊँगा ।
जब भी मैं मथुरा जाता हूँ तो मेरे मोहल्ले के आस पडौस के बचपन के साथी जिनके साथ गर्मियों की छुट्टी में क्रिकेट खेला था, कहते हैं कि अगर अंग्रेजी ठीक से बोलनी/लिखनी आती होती तो दिल्ली में जाकर नौकरी लग जाती। सब मध्यमवर्गीय परिवारों से हैं लेकिन अब दुकान खोलकर बैठे हुये हैं। दुकान भी एक जैसी कई खुल गयी हैं तो बस जैसे तैसे समय काट रहे हैं।
जो हिन्दी की वकालत करते हैं और अंग्रेजी को गाली देते हैं, अगर उन लोगों से बात करने लग गये तो बिना पिटे वापिस नहीं लौटेंगे। जब तक हिन्दी नौकरी/रोजगार नहीं देगी तब तक इसको ढोया ही जायेगा, हिन्दी विमर्श भी केवल तब तक ही है । जिस दिन हिन्दी में रोजगार के साधन बन गये इन विमर्शियों को कोई पानी भी नहीं डालेगा। असली हिन्दी हंस नहीं है, वेद प्रकाश शर्मा का उपन्यास है जिसकी हजारो कापियाँ स्टेशन पर बिकती हैं। इस सच्चाई से मुंह छिपाने से कोई फ़ायदा नहीं ।
अंगेजी पढो, पढाओ लेकिन हिन्दी के प्रति हीन भावना न डालो। कितनी अजीब बात है कि जब में भारतीय विद्यान संस्थान में था तो सभी मित्रों से अंग्रेजी में वार्तालाप होता था और यहाँ राईस विश्वविद्यालय में जो भी हिन्दी जानते हैं उनसे ठेठ हिन्दी में बात होती है।
हिन्गलिश के बारे में चिन्ता न करें, उसका उद्गम उतना ही नैचुरल है जितना कम्प्यूटर पर LOL, ROTFL, BRB, FYI, IMHO, AFAIK आदि आदि।
जैसे यहाँ हम हिन्दी की चिन्ता करते हैं वैसे ही अमरीका में लोग टीनएजर्स की अंग्रेजी की चिन्ता करते हैं लेकिन नौकरी/कार्यक्षेत्र में आने पर उनकी अंग्रेजी वैसी नहीं दिखती जैसी वो बोलते हैं। अमेरिकी टीनएजर्स लडकियों की अंग्रेजी में Like शब्द हर ३-४ शब्द के बाद आता है, जरा पढें,
I was like totally confused like I wanted to do this but she was like, no I can't let you do this. You know like I was so bummed like I don't even exist. Like I told her like go to hell. Like why do I care.
ये कल्पना है लेकिन स्कूल की बस में बैठकर रोज ही ऐसे संवाद सुनता हूँ। क्या अंग्रेजी भी खतरे में है?
ज्ञान जी,मै अग्रेजी के खिलाफ़ नही, लेकिन एक देश जो गुलाम रहा हो, ओर अब फ़िर उसी मालिको की भाषा को सलाम करता हो... थोडा अजीब लगता है, मुझे मजबुरी मेव किसी अग्रेज गोरे से अग्रेजी बोलनी पडे तभी बोलता हूं, बाकी कई बार इग्लेण्ड के बार्डर पर मेरा इसी बात को ले कर झगडा भी हुया, मेने अग्रेजी बोलने से मना कर दिया, क्योकि मै जर्मन हूं, ओर वहां लिखा है आप इन भाषाओ मे बात करे , ओर मै जब जर्मन बोलता हूं, तो गोरा अग्रेज भडक जाता है, ओर बोलता है तुम भारत मै पेदा हुये हो, इस लिये मेरे साथ अग्रेजी मै बात करो , मै कहता हूं मुझे जर्मन मै ही बात करनी है, कर लो जो करना है.
ReplyDeleteमेरे कहने का मतलब यही है हमे कभी भी दुसरी भाषा का सहारा नही लेना चाहिये,मेरी दो भाषा है मात्र भाषा के रुप मे, ओर मै अपने लोगो से हिन्दी मै, ओर विदेशियो से जर्मन ओर हिन्दी मै ही बात करता हूं.
हम हिन्दी है, ओर हमे अपनी हिन्दी पर मान होना चाहिये, चाहे वो कोई डा० हो या कोई इन्जीनियर, यह सब डिग्रिया हम हिन्दी मे भी ले सकते है, दुनिया के कितने डेशो मे अग्रेजी बोली जाती है?? मै उंगलियो पर गिना सकता हुं, ओर जो अग्रेजी बोल कर अपने आप को पढा लिखा कहता है, मेरी नजर मै वो बिलकुल अनपढ है.
आप ने कभी किसी गोरे को हिन्दी मे गीत गाते देखा है,लेकिन मेने गुलामो को अग्रेजी मे गीत गाते देखा है.वेसे हमे इन गोरो की हर बुरी बात बहुत अच्छी लगती है, इन की गाली भी.
धन्यवाद
आप उत्तर प्रदेश के हिन्दी भाषी इलाके मेँ रहते हैँ और आपकी नज़र मेँ जो आ रहा है उस पर अच्छा चिँतन किया है आपने ....
ReplyDeleteयह ठीक है कि 'भावावेग' अथवा 'भावोन्माद' से ही अभियानों में प्राण फूंके जा सकते हैं और सफलता पाई जा सकती है किन्तु यह सब भी नियोजित तथा नियन्त्रित होता है और वह होता है 'विवेक' से।
ReplyDeleteहिन्दी और अंग्रेजी के मामले में हम 'विवेक' से काम लेते नहीं दिख रहे। अंग्रेजी तो क्या, किसी भी भाषा का विरोध नहीं किया जाना चाहिए। प्रत्येक भाषा सुन्दर होती है। आवश्यकता है कि हम 'अंग्रेजीयत' से मुक्ति पाएं। अंग्रेजी जानें, खूब जानें और ऐसी जानें कि अंग्रेज शर्मा जाएं। किन्तु हस्ताक्षर हिन्दी में ही करें। विदेशी भाषाओं पर अधिकार रखना निस्सन्देह गर्व की बात होती है किन्तु मातृ-भाषा पर अधिकार न होना निस्सन्देह शर्म का विषय है।
आपका सोच शुभेच्छापूर्ण भी है और आशापूर्ण भी। जैसा आप सोच रहे हैं, वह होगा ही। मनुष्य प्रकृति है कि जो उसके पास नहीं होता उसीकी तलाश करता है। जिस दिन हिन्दी गुम जाएगी उस दिन हिन्दी की तलाश होगी। आप इसे मार्क्स-अवधारणा भी कह सकते हैं-व्यवस्था को सड गल कर ध्वस्त हो जाने दो, उसके बाद ही नई व्यवस्था उपजेगी।
मैं आपसे, अपनी सम्पर्णता से सहमत हूं।
भाषा को लेकर अकड़ रखने से भाषा नही बढती भाषा बढती है उपयोगिता से
ReplyDelete10 साल पहले हम एस एस बी देने बंगलोर गए हुए थे वहां ३२ में ३-४ को छोड़ कर सभी गैर हिन्दी भाषी पदेशों से आए हुए थे. हम सब आपस में अंग्रेजी में बात कर रहे थे पर जब सबको मालूम हुआ कि सभी हिन्दी बोल सकते हैं तो फ़िर आपस में हिन्दी में ही बात करने लगे ये कोई भाषा प्रेम या देशभक्ति का मामला नही था ये शुद्ध रूप से ख़ुद को अभिव्यक्त कर पाने का मामला था. सभी गैर हिन्दी भाषी केन्द्रीय विद्यालयों के पढ़े थे और हिन्दी जानते थे.
और हिन्दी में ख़ुद को सहज महसूस कर रहे थे.
जो भाषा उपयोगी होगी वो जीवित रहेगी और हिन्दी उपयोगी है
हमें हिंगलिश से भी कोई बैर नही है न ही हमें किसी भाषा के भाड़ में जाने को लेकर कोई उत्सुकता है हम तो अधिक से अधिक भाषाएँ सीखना चाहते हैं ताकि अधिक से अधिक चीजें जान सकें
हिन्दी तो उत्तरोतर प्रगति कर ही रही है. बाज़ार भी हिन्दी को तवज्जो देने के लिए मजबूर है.लेकिन विलुप्त न तो हिन्दी होगी और न अंगरेजी. हाँ यह अफ़सोस की बात है कि आज अंगरेजी माध्यम से शिक्षा पाने वाले बच्चे हिन्दी की 'गिनती' नहीं बोल पाते और न उन्हें स्वर - व्यंजन क्रमानुसार याद हैं.
ReplyDeleteबात गंभीर और सौमन्स्यता पूर्वक गहन विचार-विमर्श माँगती है। भाषा,भोजन,भूषा और भ्रातृत्व, सभ्यता के आधार स्तम्भ हैं, जो पहले ही अत्यधिक तिरस्कृत और बलत्कृत हो चुके हैं। दुर्भावना,स्वार्थ,आलस्य, या अज्ञानवश टुकड़ों मे विचार करने वाले स्वनामधन्य विद्वानों नें भारतीय सभ्यता की संपूर्णता को नष्ट कर दिया है। लावण्याजी के कथन का निहितार्थ भी समझिये।
ReplyDelete@‘इंगलिश को भारतीय भाषा मान लिया जाना चाहिए। हिंदी भी रोजगार दे रही है, पर सिर्फ हिंदी नहीं, हिंदी में अच्छा लिखने बोलने के लिए भी अंगरेजी का धांसू ज्ञान जरुरी है। बाकी हिंदी सेवियों की दुकानें चलती रहीं, इसलिए हिंदी हिंदी का कुछ हल्ला चलता रहे, तो भी बुरा नहीं है।’ दुःखद । एक हिन्दी लेखक की क्या ऎसी भी प्रतिक्रिया हो सकती है?
@Neeraj Rohilla
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I was like totally confused like I wanted to do this but she was like, no I can't let you do this. You know like I was so bummed like I don't even exist. Like I told her like go to hell. Like why do I care.
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मज़ेदार!
वैसे हिन्दी बोलने वाले युवा वर्ग क्या कम हैं?
"Like" की तरह "वो क्या है कि" और "मतलब" बिना वजह ठूँस देते हैं
पुर्णतः सहमत आपके पोस्ट से भी और मेरे पोस्ट पर आपकी टिप्पणी से भी !!
ReplyDeleteहिंगलिश के बारे में आपके विचार पढ़े,
ReplyDeleteअच्छे लगे.
कृपया हमारे बक-बक पत्र पर हमारे विचारों की समीक्षा करें तो मेहेरबानी होगी
http://prateekshujanya.blogspot.com/2009/01/blog-post.html
जब से ब्लोगिंग में आई हूँ,हिन्दी से जुड़े और हिन्दी के प्रति समर्पित लोगों को देख बड़ा ही सुख मिलता है.परन्तु इससे बाहर चाहे भावी पीढी को या अपने आस पास तथाकथित शिक्षित सुसंस्कृत उन लोगों को जिनके लिए हिन्दी ही फोरेन लैंग्वेज या निकृष्ट(छोटे,अनपढ़ लोगों की भाषा) भाषा है,उन्हें देखकर बड़ी निराशा होती है.लगता है कहीं हमारी पीढी के साथ ही तो नही मुरझा जायेगी यह हिन्दी की बेल.
ReplyDeleteआप सबसे मेरा एक ही सवाल है। आपके बच्चे किस माध्यम के स्कूल में पढ़ते हैं, हिंदी या अंग्रेजी?
ReplyDeleteइस एक सवाल के उत्तर से आपको मालूम हो जाएगा कि हिंदी की यह स्थिति क्यों हैं।
@ श्री बालसुब्रह्मण्यम - मेरे बच्चों ने स्कूली शिक्षा हिन्दी माध्यम से की। और ऐसा करने में मुझे अलग तरह से सोचना पड़ा। यह सामान्य व्यवहार के विपरीत था।
ReplyDeleteमैं नहीं जानता कि मैने बेहतर किया या नहीं।
यह बिलकुल सत्य है कि हम लोग ‘हिंगलिश’ बोलते हैं । परंतु ‘हिंगलिश’ बोलना ठीक है लेकिन उसके अंदर हिंदी जो हम बोलते हैं उसको हमें बिलकुल उचित उच्चारण में बोलना चाहिये।
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