|| MERI MAANSIK HALCHAL ||
|| मेरी (ज्ञानदत्त पाण्डेय की) मानसिक हलचल ||
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|| मेरे होने का दस्तावेजी प्रमाण बन रहा है यह ब्लॉग ||
Monday, January 5, 2009
कुहासा
मौसम कुहासे का है। शाम होते कुहरा पसर जाता है। गलन बढ़ जाती है। ट्रेनों के चालक एक एक सिगनल देखने को धीमे होने लगते हैं। उनकी गति आधी या चौथाई रह जाती है।
हम लोग जो आकलन लगाये रहते हैं कि इतनी ट्रेनें पार होंगी या इतने एसेट्स (इंजन, डिब्बे, चालक आदि) से हम काम चला लेंगे, अचानक पाते हैं कि आवश्यकता से पच्चीस तीस प्रतिशत अधिक संसाधन से भी वह परिणाम नहीं ला पा रहे हैं। सारा आकलन – सारी प्लानिंग ठस हो जाती है।
सारी ब्लॉगिंग बन्द। सारा पठन – सारी टिप्पणियां बन्द। फायर फाइटिंग (या सही कहें तो कुहासा फाइटिंग) चालू। जब तक मौसम नहीं सुधरता, तब तक यह खिंचाव बना रहेगा।
मेरा कमरा, मेरे फोन, मेरा इण्ट्रानेट (जो मालगाड़ी परिचालन बताता है ऑनलाइन) और मेरे कागज – यही साथी हैं। खुद तो बाहर निकल कुहासा देख भी नहीं पा रहा।
चार घण्टे हो गये पहले के दिये निर्देशों को। चलें, देखें, कितनी बढ़ी गाड़ियां। कितना सुधरा या खराब हुआ ट्रेन परिचालन। (कल शाम को लिखा गया| यह रुटीन पिछले कई दिनों से चल रहा है। और शायद कई दिनों तक चलेगा।)
यह बड़ा ही अच्छा लगा कि डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम देश के अन्दर और बाहर के आतंकवादियों के ठिकानों को अटैक करने और उन्हें ध्वस्त करने की सलाह दे रहे हैं। इस्लामी और नक्सली/अन्य क्षेत्रीय आतंक के अड्डे देश में मौजूद हैं। उन्हें ध्वस्त करने की बात माननीय कलाम साहब कर रहे हैं।
इसके अतिरिक्त पड़ोस के देशों में भी यह अड्डे हैं जिनका सीधा सम्बन्ध भारत में आतंक फैलाना है। उन्हें ध्वत करने की संकल्प शक्ति देश में चाहिये। जनता का अगला मेण्डेट शायद इस फैक्टर को ध्यान दे। पर इसके लिये जनमत का व्यापक मोबलाइजेशन युवाशक्ति को करना होगा! पर युवा कौन है? डा. कलाम युवा हैं!
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ब्लॉग लेखन -
Gyan Dutt Pandey
समय (भारत)
4:30 AM
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जी हाँ आप लोगों के इस परिश्रम से ही ट्रेनों का सही एवं सुरक्षित परिचालन हो पता है |
ReplyDeleteऔर हाँ भारत को डॉ कलाम जैसे वैचारिक युवाओं की आवश्यकता है |
लगे रहिये कुहासा फाइटिंग में-यह तो आप लोगों के लिए पार्ट ऑफ द गेम है. मैं कभी नहीं सोचता था कि यह कुहासा जनता के अलावा दीवार के उस पार परिचालकों को भी परेशान करता होगा. आपने इस भ्रम से कुहासा हटाया-आभार. आप भी युवा हैं.
ReplyDeleteपांडे सर कोहासे में रेलवे कैसे प्लान करता है इस पर लेख लिखिए | मुझे अभी तक समझ में नहीं आया कि घने कुहरे में रेलवे का गाडीवान इसे कैसे चलाता है |
ReplyDeleteठीक बात है, पहले अपने काम पर लगिए, बिलोगिंग-विलोगिंग सब ठलुआ लोगों का काम है. डॉक्टर कलाम की बात पर आचार्य विनोबा भावे के गीता प्रवचन का उदाहरण याद आया. बाबा कहते हैं की फल ज्यों-ज्यों बूढा होता जाता है ऊपर से गलता है मगर उसका जीवनदायी बीज कडा होता जाता है. हमीं भी वैसा ही बूढा होना चाहिए जहाँ शरीर भले ही घाट जाए मगर हमारी, आत्म शक्ति, ज्ञान, विद्या, स्मृति और तेज बढ़ना ही चाहिए.
ReplyDeleteसही कहा पाकिस्तान स्थित आतंकवादी अड्डे ध्वस्त करने से पहले अन्दर वाले किए जा सकते हैं . उसमें युद्ध का खतरा भी नहीं हैं . पर यहाँ इतना ही कहा जाय कि अन्दर भी अड्डे हैं तो वोट जाते हैं ध्वस्त करने की तो बात दूर है .
ReplyDeleteपरेशानी तो कोहरे से सभी को होती है . पर मुझे तो कोहरे में घूमना अच्छा भी लगता है .
ReplyDeleteतभी मैं कहूं की ज्ञान जी चुप क्यों है -आज ही ईमेल करता -अच्छा हुआ आपने तस्वीर दिखा दी -सचमुच बहुत ख़राब स्थिति है !
ReplyDeleteBBC hindi पर इलाहाबाद में कुहरे से डूबी ट्रेन की पटरिया देख कर और कानपुर में माल गाड़ी की दुर्घटना के बाद मुझे तो लगा था की आप कम से कम ५-७ दिन तो नयी पोस्ट नही ही लिख पाएंगे. कुहरे के कारण आप की बढ़ी हुई व्यस्तता के बावजूद नयी पोस्ट देख कर अच्छा लगा.
ReplyDeleteकोहरे के कारण रेलगाड़ियों ,हवाईजहाज की हालत देखकर लगता है कि आदमी प्रकृति के सामने कित्ता बौना है। सब ठहर जाता है। लिखना भी!
ReplyDeleteकुहासे के समय मेँ
ReplyDeleteध्यान रखना जरुरी है -
कलाम साहब पर भी शायद कोई फतवा जारी हो जायेगा ऐसे स्टेटमेन्ट से
क्या पता !
- लावण्या
हमारे यहां कल दोपहर बाद कुछ धूप निकली थी, आज फिर घना कुहासा है। हमें भी कुछ अंदाजा था कि मालगाडि़यों को पटरी और समय पर रखने के लिए आपको कुहासा से 'युद्ध' करना पड़ रहा होगा। डॉ. कलाम की उर्जा व ओजस्विता को नमन और आपको व आपके परिजनों को नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं।
ReplyDeleteज्ञानदत्तजी,
ReplyDeleteकाम में व्यस्त रहने का भी अपना ही मजा है । हम कल से इसका आनन्द उठायेंगे, थक गये पिछले कुछ दिनों में कुछ काम न करके ।
भारत में तार/बेतार के इलेक्ट्रोनिक यंत्रों की क्रान्ति के बावजूद अभी भी सिग्नल आंखो से साक्षात देखने की आवश्यकता क्यों है ? क्या रेलवे के इंजनों में ऐसे पैनल नहीं लगाये जा सकते जिससे पता चल सके कि आगे १ किमी पर सिग्नल अप है अथवा डाउन ? रेलवे की तकनीकि क्षमता पर तो संदेह नहीं है, फ़िर क्या कारण है अभी तक पुराने हिसाब से रेलवे यातायात संचालित करने का ?
Analogy के रूप में देखें तो ये वैसा ही लगता है जैसा पुराने जमाने में ट्रैफ़िक हवलदार अपने हाथों के इशारे से चौराहे पर यातायात संभालता था । अब तो हर बडे शहर में आटोमैटिक सिग्नल लग गये हैं, वैसा ही कुछ हो रेलवे में हो जाये तो राजस्व की हानि भी बचेगी और सब कुछ चकाचक दम मस्त हो जायेगा, :-)
पांडे जी नमस्कार,
ReplyDeleteकरिए आप ही करिए कुछ. जाडों में तो ये कह देते हैं कि कोहरे की वजह से गाडियां देर से चल रही हैं. अजी, ये तो गर्मियों में भी टाइम से नहीं चलती.
अंदर के आतंकवादी??? जो हमारे अंदर रहते है वो या जो देश के अंदर??
ReplyDeleteदेश के अंदर रहने वाले आतंकवादियो को बचाने के लिए देश के अंदर रहने वाले ही दूसरे लोग आ जाते है..
उनके अंदर के आतंकवादी मार जाए तो फिर कुछ भी ख़त्म करने को बाकी नही रहेगा..
सिर्फ़ अपने अंदर का आतंकवादी मारा जाना चाहिए... बस
रही बात "व्यापक मोबलाइजेशन" की, तो वो तो एक देश भक्त को करना होगा.. फिर चाहे वो युवा हो, किशोर हो, या वृद्ध हो.. संकल्प आयु देखकर नही लिया जाता.. मन की भावना देखकर लिया जाता है
अच्छा हुआ आपने बता दिया. हम तो सोच रहे थे कि आप नये साल की छुट्टियां बिताने कहीं बाहर गये हुये हैं. पर आप के लिये तो ये सबसे बिजी समय है. ठीक है जी आप रेल को चलाईवाईये राजी खुशी, टिपणी और ब्लागिंग थोडे दिन बाद सही. आपकी स्थिति समझी जा सकती है, आखिर आप ये सब हमारी सुविधा के लिये ही तो कर रहे हैं पर बीच बीच मे एक आधी पोस्ट जरुर ठेलते रहियेगा.
ReplyDeleteरामराम.
धूँध में देखने के साधन हो तो स्थिति में सुधार हो सकता है.
ReplyDeleteदेश को विचारों से जवान लोगो की जरूरत है.
सरजी टेकनीकली बताइये कि पटरी तो सैट होती है उस पर रेलें धड़धडाती दौड़ती हैं। नार्मल टाइम में तो ड्राइवर कभी आगे देख कर नहीं चलाता, वो तो बैठकर धुआंधार दौड़ाता रहता है ट्रेन। फिर कोहरे में मामला ठप क्यों हो जाता है।
ReplyDeleteकोहरे की तो क्या कहें, सर्दियों में उत्तरी भारत के मैदानी इलाकों में जहाँ बर्फ़ नहीं गिरती वहाँ इसकी बहुत समस्या हो जाती है। अभी कल-परसों ही समाचार में सुना कि अत्यधिक कोहरे के कारण दिल्ली आने वाली और यहाँ से जाने वाली रेलगाड़ियाँ 15-20 घंटे विलंबित हैं!! ज़ाहिर सी बात है कि हवाई जहाज़ों की उड़ानों में भी बहुत फर्क पड़ा है, अंधेरा होते ही सड़कों पर ऐसा कोहरा छा जाता है कि गाड़ी के 5 मीटर आगे का हाल नज़र आना कठिन हो जाता है!! :(
ReplyDeleteमालवा में कुहासे का प्रकोप अपवादस्वरूप ही होता है। कुछ चालक और सहायक चालक मेरे पालिसीधारक हैं। उनसे बात करने पर ही अनुभव हो पाता है कि ऐसे मौसम में उनका काम कितना कठिन हो जाता है। वे लोग सचमुच मे अपनी जान हथेली पर रखकर हम सबको गन्तव्य पर सुरक्षित पहुंचाते हैं।
ReplyDeleteजिस प्रकार दिनेशजी द्विवेदी, न्यायालयीन और विधिक विषयों पर 'लोक शिक्षण' कर रहे हैं, उसी प्रकार आप भी रेल संचालन पर लेख श्रृंखला शुरु करें-यह अनुरोध भी है और अपेक्षा भी।
कुछ ऐसा कीजिए कि कोहरे का असर ही न हो। कुछ ऐसा कीजिए कि देश भर में फोर लेन रेल पटरियां बिछ जाएं और अलग अलग लाइनों पर रेल चलने लगे। कुछ ऐसा कीजिए कि डीजल से रेल चले ही नहीं, सब बिजली से चलें। देश को पेट्रोलियम पदार्थ कम आयात करना पड़े। कुछ ऐसा कीजिए कि यात्रा के लिए बसों और निजी वाहनों की कम जरूरत पड़े या नहीं के बराबर पड़े। कुछ ऐसा कीजिए कि सड़कों पर ट्रकें न दौड़ें, सब कुछ रेल ही ढो डाले। कुछ ऐसा कीजिए कि बिजली भी अपनी जरूरत भर को रेल विभाग ही बना ले। कुछ ऐसा कीजिए कि किसी को भी प्रतीक्षा सूची का टिकट न मिले। कुछ ऐसा कीजिए...... लेकिन यह सब तो सपना ही है न???
ReplyDeleteटिप्पणियों पर भी कोहरे का असर दिख रहा है. संख्या कुछ कम है आज. डॉ. कलाम के विचार हमेशा ही सारगर्भित होते हैं. लिन्क के लिये धन्यवाद.
ReplyDeleteठिठुराती शीत से तो रेल व्यवस्था ही कुहासों मे घिरी है,कलाम सा’ब की बात पर अमल न किया गया तो आनें वाली पीढ़ियों की ज़िन्दगी ही कुहासे में घिर जाएगी।कलाम सा’ब अस्वस्थ हैं उनके लिए जीवेम शरदः शतं।
ReplyDeleteपहाडों पर बर्फ गिर रही है -कोहरा अब कम हो गया होगा..
ReplyDelete--
भारत को डॉ. कलाम जैसे युवाओं 'नेताओं'की आवश्यकता है.
जब तक ख़ुद प्रभावित न हो कहाँ पता चलता है. सुबह से ट्रेनइंक्वायरी.कॉम खोल कर देख रहा हूँ २ घंटे देर से अभी ६ घंटे लेट हो गई है... खैर...
ReplyDeleteजनता का अगला मेण्डेट? मुझे तो नहीं लगता जनता आतंकवाद से लड़ने वाले के लिए वोट देगी, जाति से ऊपर उठ पाना हमले के तुरत बाद शायद हो पाता अब तो नहीं लगता.
ये कुहासा तो कुछ दिनों में छंट जाएगा लेकिन लोगों के मन मसतिक्ष पर जो कुहासा बरसों से है वो कैसे छंटेगा कैसे और कब नए विचारों की गाडियां चलेंगी? ....
ReplyDeleteनीरज
चलिये आप के लेख से पता तो चला कि गाडियां लेट क्यो होती है,गर्मियो मओ भी तो लेट होती है,हां अगर कोई गाडी समय पर आ जाये तो जरुर हेरानगी होगी,कि कही जम्मु तवी की जगह कालका मेल तो नही आ गई...:)
ReplyDeleteधन्यवाद सुंदर लेख के लिये
आप गाड़ियाँ हाँकते रहिए जी। हम तो यहाँ प्रतीक्षा करने को तैयार हैं। ब्लॉगरी में थोड़ा ब्रेक लेने से कोई हर्ज नहीं है। अच्छे परिचालन से ही तो देश को पैसा मिलेगा।
ReplyDeleteठंड जहॉं कई तरह के फायदे ले कर आती है, वहीं इस तरह की दिक्कतें बुरी तरह से रूला जाती हैं।
ReplyDeleteमुझे भी विज्ञान कथा लेखन कार्यशाला में भाग लेने 14 जनवरी को बुलंदशहर जाना है, सोच रहा हूं, क्या पहुंप सकूंगा।
हम कुहासे की प्रतीक्षा में हैं। अभी तक एक भी दिन मुहँ से भाप नहीं निकली। कितनी बेकार सर्दियाँ हैं। आप ज्यादा न घबराएँ। रेलें कितनी भी कम चलें बस दुर्घटना न होने पाए।
ReplyDeleteआतंकी अड्डे तो खुद ही खत्म करने होंगे। उन की सामरिक तैयारी के साथ देश में ही नहीं दुनिया में भी वातावरण बनाना होगा। गुंड़ों की भी अपनी इज्जत होती है। जब तक वह पूरी तरह बदनाम नहीं होता उस पर हमला नहीं किया जाता। कंस को कृष्ण ने बुलाए जाने पर मारा। रावण से तो अंतिम समय तक सीता को लौटाने का अनुरोध किया जाता रहा।
लगता है हम सब भूल गए हैं।
मुझे लगता है एक मानसिकता है हमारी कि कोई अवरोध होगा सड़क, राह या पगडण्डी पर इसलिए हम कहीं भी निश्चिंत होकर नही चल सकते. रेल के बारे में यह अनुमान ग़लत भी हो सकता है. आप ही सही बता सकते हैं.
ReplyDeleteपूर्व राष्ट्रपति ने तो नेक सलाह दे दी, लेकिन सत्तासीनों के दिमाग में जो कोहरा छाया है उससे गाड़ी को पटरी में ठीक से चलने में दिक्कत आ रही है.
ReplyDeleteसही कहते हैं आप सर आखिर आतंकवादी भी तो मुल्क की पटरियों पर कुहासों के मानिन्द ही तो हैं.
ReplyDeleteहम कुहासे की प्रतीक्षा में हैं। अभी तक एक भी दिन मुहँ से भाप नहीं निकली। कितनी बेकार सर्दियाँ हैं। आप ज्यादा न घबराएँ। रेलें कितनी भी कम चलें बस दुर्घटना न होने पाए।
ReplyDeleteआतंकी अड्डे तो खुद ही खत्म करने होंगे। उन की सामरिक तैयारी के साथ देश में ही नहीं दुनिया में भी वातावरण बनाना होगा। गुंड़ों की भी अपनी इज्जत होती है। जब तक वह पूरी तरह बदनाम नहीं होता उस पर हमला नहीं किया जाता। कंस को कृष्ण ने बुलाए जाने पर मारा। रावण से तो अंतिम समय तक सीता को लौटाने का अनुरोध किया जाता रहा।
लगता है हम सब भूल गए हैं।
जब तक ख़ुद प्रभावित न हो कहाँ पता चलता है. सुबह से ट्रेनइंक्वायरी.कॉम खोल कर देख रहा हूँ २ घंटे देर से अभी ६ घंटे लेट हो गई है... खैर...
ReplyDeleteजनता का अगला मेण्डेट? मुझे तो नहीं लगता जनता आतंकवाद से लड़ने वाले के लिए वोट देगी, जाति से ऊपर उठ पाना हमले के तुरत बाद शायद हो पाता अब तो नहीं लगता.
कुछ ऐसा कीजिए कि कोहरे का असर ही न हो। कुछ ऐसा कीजिए कि देश भर में फोर लेन रेल पटरियां बिछ जाएं और अलग अलग लाइनों पर रेल चलने लगे। कुछ ऐसा कीजिए कि डीजल से रेल चले ही नहीं, सब बिजली से चलें। देश को पेट्रोलियम पदार्थ कम आयात करना पड़े। कुछ ऐसा कीजिए कि यात्रा के लिए बसों और निजी वाहनों की कम जरूरत पड़े या नहीं के बराबर पड़े। कुछ ऐसा कीजिए कि सड़कों पर ट्रकें न दौड़ें, सब कुछ रेल ही ढो डाले। कुछ ऐसा कीजिए कि बिजली भी अपनी जरूरत भर को रेल विभाग ही बना ले। कुछ ऐसा कीजिए कि किसी को भी प्रतीक्षा सूची का टिकट न मिले। कुछ ऐसा कीजिए...... लेकिन यह सब तो सपना ही है न???
ReplyDeleteकोहरे की तो क्या कहें, सर्दियों में उत्तरी भारत के मैदानी इलाकों में जहाँ बर्फ़ नहीं गिरती वहाँ इसकी बहुत समस्या हो जाती है। अभी कल-परसों ही समाचार में सुना कि अत्यधिक कोहरे के कारण दिल्ली आने वाली और यहाँ से जाने वाली रेलगाड़ियाँ 15-20 घंटे विलंबित हैं!! ज़ाहिर सी बात है कि हवाई जहाज़ों की उड़ानों में भी बहुत फर्क पड़ा है, अंधेरा होते ही सड़कों पर ऐसा कोहरा छा जाता है कि गाड़ी के 5 मीटर आगे का हाल नज़र आना कठिन हो जाता है!! :(
ReplyDeleteअच्छा हुआ आपने बता दिया. हम तो सोच रहे थे कि आप नये साल की छुट्टियां बिताने कहीं बाहर गये हुये हैं. पर आप के लिये तो ये सबसे बिजी समय है. ठीक है जी आप रेल को चलाईवाईये राजी खुशी, टिपणी और ब्लागिंग थोडे दिन बाद सही. आपकी स्थिति समझी जा सकती है, आखिर आप ये सब हमारी सुविधा के लिये ही तो कर रहे हैं पर बीच बीच मे एक आधी पोस्ट जरुर ठेलते रहियेगा.
ReplyDeleteरामराम.
हमारे यहां कल दोपहर बाद कुछ धूप निकली थी, आज फिर घना कुहासा है। हमें भी कुछ अंदाजा था कि मालगाडि़यों को पटरी और समय पर रखने के लिए आपको कुहासा से 'युद्ध' करना पड़ रहा होगा। डॉ. कलाम की उर्जा व ओजस्विता को नमन और आपको व आपके परिजनों को नए साल की हार्दिक शुभकामनाएं।
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