|| MERI MAANSIK HALCHAL ||
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Wednesday, September 24, 2008
μ - पोस्ट!
अमित माइक्रो ब्लॉगिंग की बात करते हैं।
यह रही मेरी माइक्रो ( μ) पोस्ट :
दिनकर जी की रश्मिरथी में कर्ण कृष्ण से पाला बदलने का अनुरोध नहीं मानता, पर अन्त में यह अनुरोध भी करता है कि उसके "जन्म का रहस्य युधिष्ठिर को न बता दिया जाये। अन्यथा युधिष्ठिर पाण्डवों का जीता राज्य मेरे कदमों में रख देंगे और मैं उसे दुर्योधन को दिये बिना न मानूंगा।"
कर्ण जटिल है, पर उसकी भावनायें किसकी तरफ हैं?
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लो जॊ कल्लो बात! हम सोचते ही रह गये माइक्रो ब्लागिंग शुरू करने की और माइक्रो हो भी लिये।
ReplyDeleteकर्ण की भावनायें किसकी तरफ है ये तो शायद कर्ण भी न बता पायें क्योंकि जिस दोराहे पर कर्ण खडे थे वहां उन्हे कई लोगो से रिश्ते निभाने थे....और मुसीबत यह थी कि हर रिश्ते एकसाथ औचक रूप में निभाने थे...भाई के भी,दुश्मन के भी ...यानि भावनाओं के घटाटोप मे विह्वल कर्ण।
ReplyDeleteअच्छा सवाल खडा किया आपने।
इतने बड़े दुराहे क्या चौराहे पर ला खड़ा कर दिया और चाहते हैं कि इसे माईक्रो ब्लागिंग कहें. यह मेगा ब्लॉगिंग कहलायेगी. अनेकों प्रश्नों को जन्म देती और अभी अपने गर्भ में पालती.
ReplyDeleteमन और कर्म के इस द्वंद को ही कर्ण कहते हैं, क्या यह प्रत्येक इंन्सान के भीतर किसी कोने में नहीं होता?
ReplyDeleteसचमुच माईंड ब्लॉग्गिंग !
ReplyDeleteभावनाएं और प्यार तो पांडवों के साथ ही था, ताउम्र परिवार को ढूँढता रहा, प्यार के लिए तरसता कर्ण एक बहुत बदकिस्मत इंसान रहा, मगर अहसान फरामोश नही था अतः अपनी मित्रता का साथ देना लाज़मी था. पसंद आया आपका यह अंदाज़ !
ReplyDeleteयाद रहे वह दानवीर कर्ण है.
ReplyDeleteyakshprashn ke saath achha drishtant.
ReplyDeleteSadhuwaad
हूं
ReplyDeleteवैसे माइक्रो का आइडिया मूलत कैबरे डांसर हेलेनजी का है।
उन्होने माइक्रोक्लाथिंग की शुरुआत की थी।
चलिये, हेलेनजी से प्रेरित होते रहिये
diye gaye links per audio files sunii. prabhaavi hain .aabhaar
ReplyDeleteमाइक्रो पोस्ट की आइडिया अच्छी है। कभी हम भी आजमाएंगे।
ReplyDeleteमेरा डेढ़ साल का बेटा सत्यार्थ जब भी मेरी गोद में कम्प्यूटर के सामने होता है, आपके पेज पर अनवरत चलते हुए इन्सान को देखकर खुश हो जाता है।
“देदी दा लिआ है... तला गिआ...टा टा... बाय बाय।”
कभी कभी तो दिखाने के लिए जिद भी करता है।
diye gaye links per audio files sunii. prabhaavi hain .aabhaar
ReplyDeleteसमीर जी की टिप्पणी, मेरी भी टिप्पणी मानी जाय।
ReplyDeletecong. लो माइक्रो बधाई
ReplyDeleteकर्ण एक तरफ़ मन से पांडवों को सही मानता है, उनका साथ भी चाहता था और दूसरी तरफ़ उसका कर्तव्य उसे दुर्योधन का साथ देने के लिए कहता है. मन को हटा कर कर्तव्यों का साथ देने के कारण ही तो महाभारत हुआ......
ReplyDeleteमाइक्रो ब्लॉगिंग में सफलता के लिए पहले मेगा ब्लॉगर बनना होता है, वरना कोई तवज्जो नहीं देगा. आप वो मुकाम हासिल कर चुके हैं, पर ये हर किसी के बस का नहीं.
ReplyDeleteमुझे लगता है यह पोस्ट माइक्रो के हिसाब से बड़ी है :)
ReplyDeleteसूतपुत्र को जिसने सम्मान दिया उसके प्रति अनुराग गलत कहाँ है, धर्मराज के गुणी भाई तो अछूत का अपमान करते थे...वास्तविकता से अनजान रहे हो भले.
@ संजय बेंगानी -
ReplyDeleteआप "यह रही मेरी माइक्रो ( μ) पोस्ट :" के नीचे की पोस्ट देखें; क्या वह भी माइक्रो पोस्ट नहीं है? असल में पहले की पंक्तियां तो माइक्रो-पोस्ट की प्रस्तावना में हैं! :-)
एकलव्य/सूत पुत्र और रामायण कालीन शम्भर का अपमान तो मुझे भी उचित नहीं लगता। पर वह पर्याप्त नहीं है कि पूरी प्राचीन विरासत ही नकारी जाये।
लगता है टिप्पणी पोस्ट से लम्बी हो गयी मेरी! :-)
कर्ण धर्म के साथ था। उसका जो मानव धर्म था, उसने निभाया।
ReplyDeleteजटिल कर्ण की भावनाएं किसकी तरफ़ हैं?
ReplyDeleteजटिल प्रश्न है. जटिल कर्ण निहायत ही जटिल प्रोफेशनल था. अपनी भावनाओं की रक्षा करना ही उसका प्रोफेशन था. उसकी भावनाएं शायद केवल उसकी तरफ़ थी. ऐसा न होता तो युधिष्ठिर से संभावित राज्य पाकर वो दुर्योधन को देने की बात न करता.
दुर्योधन को राज्य देने की उसकी बात से यह न माना जाय कि उसकी भावनाएं दुर्योधन की तरफ़ थीं. वैसे जहाँ तक मुझे याद है, दुर्योधन जी ने अपनी डायरी के पेज ३८९० पर कर्ण की इन भावनाओं की विस्तृत चर्चा की है. जल्दी ही वो पेज टाइप करके सबके सामने रखता हूँ.
ब्लॉगरगण कर्ण की भावनाओं की दिशा तय नहीं कर सके तो क्या हुआ? पढने के लिए दुर्योधन के विचार ज़रूर मिलेंगे.
एक माईक्रो पोस्ट पर मैक्रो टिपण्णी.
माइक्रो ब्लॉगिंग के बारे में पहली बार सुना, और देखा भी। फिर तो माइक्रो टिप्पणी हो होनी चाहिए।
ReplyDeleteइसका उत्तर तो बड़ा जटिल है.. इतनी आसानी से कैसे दू?
ReplyDeleteमैंने रश्मिरथी नहीं पढ़ा है किंतु जो टिप्पणी आई है उनसे कुछ कुछ समझ पारहा हूँ -मैं तो मात्र तुकबंदी वाला ब्लोगर हूँ आपलोगों के साथ जुड़ कर भाग्य शाली समझ रहा हूँ
ReplyDeleteहमारी "माइक्रो टिप्पणी" स्वीकारे
ReplyDeleteमाइक्रो ब्लागिंग के बारे मव घोस्ट बस्तर जी की राय मेरी राय है ! और कर्ण मेरी राय में दिल से पैदल
ReplyDeleteऔर कर्म से दृढ़ प्रतिज्ञ शूरवीर था !
देखन में छोटे (माइक्रो) लगे घाव करे गंभीर!
ReplyDeleteकर्ण'स dilemma or Paradox !
ReplyDeleteमहाभारत के कुछ किरदारों में तुलना करना बड़ा कठिन होता है... कौन श्रेष्ठ? भीष्म, विदुर, कर्ण, युद्धिष्ठिर, अर्जुन ... मेरे मन में तो उत्तरोत्तर घटते क्रम में ही है... पर कई बार dilemma की स्थिति होती है... कृष्ण को इनसे ऊपर ही रखता हूँ... ये तो मेरी मनःस्थिति है... बाकी आप बेहतर समझा सकते हैं.
@सतीश सक्सेना जी
ReplyDeleteप्यार के लिए तरसता कर्ण एक बहुत बदकिस्मत इंसान रहा
कर्ण ने कभॊ नहीं कहा कि वह प्यार को तरसा हुआ है, प्यार उसको अपने दत्तक माता-पिता से खूब मिला और वह उन्हीं को अपना माता-पिता मानता था क्योंकि उन्होंने ही उसको जीवन दिया(नदि में बहता रहता तो कैसे जीवित रहता) और पाल पोस के बड़ा किया।
कर्ण अपनी पहचान पाने के लिए तरसता था, क्योंकि जब उसे पता चला कि वह सूत पुत्र नहीं है तो उसे इस उत्कुंठा ने घेर लिया कि आखिर वह किस कुल का है, उसकी पहचान क्या है। इसी पहचान को पाने के लिए वह इस तरसता रहा।
@संजय भाई
सूतपुत्र को जिसने सम्मान दिया उसके प्रति अनुराग गलत कहाँ है, धर्मराज के गुणी भाई तो अछूत का अपमान करते थे...वास्तविकता से अनजान रहे हो भले.
रामायण और महाभारत उस काल के भारतीय के समाज और उसमें रहने वालों के आचार-व्यवहार और मानसिकता के प्रतिबिंब है। एक संपूर्ण फिल्म की ही भांति इनमें भी आम जीवन, राजसी ठाठबाट, एक्शन, ट्रैजिडी, रोमान्स, आदि सब का समावेश है। यदि सिर्फ़ अच्छा-२ ही लिख दिया जाता तो फिर तो ये कभी सत्यता के निकट नहीं लगते और कदाचित् इतनी लोकप्रिय भी नहीं होते। :)
और माइक्रोब्लॉगिंग की शुरुआत पर बधाई और शुभकामनाएँ :)
ReplyDeleteबुजुर्गो ने सही कहा हे किसी का एहसान नही लेना चाहिये,वरना एक छोटा सा एहसान कई बार पेरो की बेडियां बन जाता हे, जेसे कर्ण के साथ हुआ ( मै एहसान फ़रोसो की बात नही कर रहा)ओर यह सब काथाये हमे रास्ता दिखाने के लिये ही हे , यानि हमारा मार्ग दर्शन
ReplyDeleteधन्यवाद
मैं सतीश जी की बात से सहमत हूं।
ReplyDeleteअनीता कुमार जी की ई-मेल से प्राप्त टिप्पणी:
ReplyDelete"माइक्रो ब्लोगिंग की पहल के लिए बधाई, कर्ण की बात तो बाद में कर लेगें इस समय तो आप ये बताये कि ये माइक्रो का चिन्ह कैसे टाइप कर लिए"
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माइक्रो का चिन्ह MS Word की फाइल में प्रिण्ट कर उसे यहां कट - पेस्ट कर दिया है!
देर से टिप्पणी करने के लिए क्षमा चाह्ता हूँ।
ReplyDeleteदो दिन के लिए पत्नि के साथ वेल्लोर के पास श्रीपुरम का मन्दिर गया था।
अभी अभी लौटा हूँ।
महाभारत मेरा सबसे प्रिय ग्रन्थ है।
कई बार पढ़ चुका हूँ।
एक प्रश्न जो मन में बार बार आता है वह यह है कि क्या भारत के आज के कानून के अनुसार हस्तिनापुर पर पाण्डवों का अधिकार है या नहीं। उच्चतम न्यायालय का आज क्या निर्णय होता? मैं नैतिक अधिकार कि बात नहीं कर रहा हूँ। दिनेशरायजी क्या सोचते हैं?
सचमुच microbloging.....बधाई हो !! कर्ण के लिए "मृत्युंजय" में शिवाजी सावंत ने भी अतिरेक में लिखा है..वह भी गौरतलब है और यह भी. मैं अमित जी से सहमत हूँ, महाभारत में पात्रों को उनके समस्त मानव जनित गुणों ( गुन-अवगुण ) सहित प्रस्तुत किए जाने पर ही उसकी मान्यता और चर्चा चिरकाल तक हो रही है.
ReplyDeleteYah rahi Micro Tippani
ReplyDeleteek prakaar se karn ka jhukav pandavo ki or hai isiliye kahata hai ki yudhishtar se na batana .
thanks
नई शुरुआत ..
ReplyDeleteकर्ण सदा के लिये मानव मन के प्रश्न चिह्न बने रहेँगेँ
- लावण्या
वाह जी क्या बात है आपके माइक्रो की । लेख से लंबी चौडी टिप्पणियाँ । वैसे कर्ण तो दान वीर थे दान लेना कैसे स्वीकार करते । और जो उनहोने स्वयं पराक्रम से न जीता हो वह किसी और को देने में भी उन्हें संकोच ही होता ।
ReplyDeleteवैसे बिना कट-पेस्ट किये, कहीं भी µ लिखा जा सकता है।
ReplyDeleteAlt दबाये रखिये, न्यूमेरिक की-पैड में 230 टाईप कीजिये, Alt छोड़ दीजिये। आया न µ !
µ बोले तो हमारे लोगों के लिये कैमिकल पोटेन्शियल ।
ReplyDeletePressure difference results in Mechanical Movement. Temperature difference results in heat Transfer. Similarly Chemical potential difference results in Mass transfer.
Irony is that the Chemical Potential itself is not as intuitive as Pressure or Temperature.
हमने अपनी आंखो से कैमिकल इंजीनियर्स को कैमिकल पोटेंशियल के नाम पर पसीने आते देखे हैं :) बहुत से कैमिकल इंजीनियर्स की दुखती रग है ये :)
बाकी कर्ण की भावनायें मेरी समझ में तो पूरी तरह दुर्योधन के साथ थी ।