देश में प्रजातंत्र है। हिन्दी ब्लॉगिंग में टिपेरतंत्र!
वोट की कीमत है। टिप्पणी की कीमत है। टिप्पणी भिक्षुक टिप्पणी नहीं पाता - दाता की जै करता है, पर उपेक्षित रहता है।
प्रजातंत्र में महत्वपूर्ण हैं चाटुकार और चारण। वन्दीजन। नेता के आजू और बाजू रहते हैं चारण और वन्दीजन। नेता स्वयं भी किसी नेता के आजू-बाजू चारणगिरी करता है। टिपेरतंत्र में चारण का काम करते हैं नित्य टिपेरे। डेढ़ गज की तारतम्य रहित पोस्ट हो या टुन्नी सी छटंकी कविता। एक लाइन में १० स्पैलिंग मिस्टेकयुक्त गद्य हो या आत्मविज्ञापनीय चित्र। टिपेरतंत्र के चारण सम भाव से वन्दन करते जाते हैं। प्रशस्तिगायन के शब्द सामवेद से कबाड़ने का उद्यम करने की जरूरत नहीं। हिन्दी-ब्लॉगवेद के अंतिम भाग(टिप्पणियों) में यत्र-तत्र-सर्वत्र छितरे पड़े हैं ये श्लोक। श्रुतियों की तरह रटन की भी आवश्यकता नहीं। कट-पेस्टीय तकनीक का यंत्र सुविधा के लिये उपलब्ध है।
पोस्ट-लेखन में कबाड़योग पर आपत्तियां हैं (किसी की पोस्ट फुल या पार्ट में कबाड़ो तो वह जोर से नरियाता/चोंकरता/चिल्लाता है)। उसके हठयोगीय आसन कठिन भी हैं और हानिकारक भी। साख के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। पर टिपेरपन्थी कबाड़योग, तंत्र मार्ग की तरह चमत्कारी है। बहुधा आपको पोस्ट पढ़ने की जरूरत नहीं। बस टिप्पणी करने में धैर्य रखें। चार-पांच टिप्पणियां हो जाने दें। फिर ऊपर की टिप्पणियां स्वत: आपको उपयुक्त टिप्पणी सुझा देंगी। टिपेरतंत्रीय चारण को टिपेरपंथी कबाड़योग में भी हाथ अजमाना चाहिये! |
मित्र; हिन्दी ब्लॉगजगत के टिपेरतन्त्र ने हमें टिपेरतंत्रीय चारण बना कर रख दिया है। कब जायेगा यह टिपेरतंत्र?!। कब आयेगी राजशाही!
ये पोस्ट कुछ कुछ अजदकीय लगी :-)
ReplyDeleteसही है आप राजशाही को बुला रहे हैं, सुनकर थोडा अजीब लगा :-)
आपने कभी लिखा था कि आपने संगीत पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया । आज एक पोस्ट पर तीन गीत चढाये हैं, मुझे लगता है कि दूसरा गीत आपको अधिक पसन्द आयेगा :-)
ReplyDeletehttp://antardhwani.blogspot.com/2008/09/blog-post_12.html
टिपेरपन्थी ज्ञान के लिये धन्यवाद
ReplyDeleteमाकूल विषय उठाया है आपने ज्ञान जी ,पर ज़रा ज्यादा श्लेष और व्यंजना युक्त है -सर के ऊपर से जा रहा है .टिप्पणियाँ कर देना ही सह्रदय भाव है -यहाँ सबके अपने अपने तत्त्वबोध हैं -सभी बुद्धत्व को तो प्राप्त नहीं हैं .इसलिए भक्तिभाव को ही प्रेय बनाईये -भगवान् भी यही करते हैं तो फिर ज्ञान क्यों नहीं !
ReplyDeleteआप काफी शानदार लिखते हैं|
ReplyDeleteज्ञानजी आप निस्वार्थ भाव से टिप्पणी करने वालों को बड़े हलके में ले रहे हैं और मौज लेने का प्रयास कर रहे हैं। मासूम टिप्पणी कारों का मनोबल गिराना चाहते हैं। ये अच्छी बात नहीं है। आपकी बातें हम कुछ समझे और बकिया नहीं समझे। लेकिन टिपिया रहे हैं। अगला ब्लाग भी देखना है। बहुत काम है पाण्डेयजी!
ReplyDeleteहिन्दी ब्लॉग के टिपेरीकरण का महाभियान? ;7)
ReplyDeleteसही विषय पर लिखा है आपने
ReplyDeleteहमारे एक मास्टर साहब थे. थे इंजिनीयर मगर समाज सेवा का भाव, सुन्दर भारत देखने का सपना, बच्चों का भविष्य सुधारने का जज्बा-बस, अध्यापन में आ गये. सबके प्रति समभाव. स्कूल के चपरासी से लेकर, सभी साथी शिक्षकों, छात्रों एवं स्कूल के बाहर खोमचा लगाने वाले-सभी उनके लिए समान. सबको नमस्ते करते. सबके नमस्ते का जबाब देते बिना इस बात की चिन्ता किये कि अमीर है, कौन गरीब. कौन सुन्दर है, कौन कुरुप. कौन अक्लमंद है, कौन मूर्ख. बहुत जनप्रिय व्यक्तित्व रहा उनका, रिटायर हुए, पूरा स्कूल रोया. खूब याद किया जाता रहा बाद में भी. उनका अनुकरण करने वालों की लाइन लग गई. जब गुजरे, स्कूल के सामने की रोड उनके नाम पर की गई. कुछ उस वक्त भी लोग थे जो उनका माखौल भी उड़ाते थे कि इनका जीवन तो नमस्ते करते ही बीता जा रहे है.
ReplyDeleteउन्हीं मास्साब के सहपाठी सरकारी विभाग में अधिकारी. अधिकारीजन्य राजशाही के घोर समर्थक. लोग और मातहत नमस्ते करें तो उसका जबाब देना वो अपनी प्रतिष्ठा के खिलाफ मानते थे. अपनी तरफ से करना तो सपने में भी नहीं सोच सकते थे. बस, अपने से बड़े अधिकारियों को नमस्ते करना, नेताओं की चाटूकारिता भी उन्हें भाती थी. पावरफुल लोग जो होते थे.
बाकी सबको वो सामन्यतः बेवकूफ ही समझते थे. रिटायर हुए, पूरे विभाग ने चैन की सांस ली. कब मरे, पता ही नहीं चला. बहुत दिनों बाद एक रोज लोगों की ठर्रासी ( झूठी राजशाही का जबलपुरिया वर्जन) की बात में उनका जिक्र आया, तब उनके एक रिश्तेदार से मालूम हुआ कि वो गुजर चुके हैं.
बस, यूँ ही कथा याद आ गई न जाने क्यूँ. सोचा, सुनाता चलूँ. शायद राजशाही शब्द पढ़कर यह कथा याद आई हो या क्या पता, क्यूँ!!!!
सब टिपोरे चारण नहीं होते उन में कोई बिहारी भी हो सकता है,
ReplyDeleteजो कहे ...
...अली कली ही सों बिंध्यो आगे कौन हवाल
सर जी .. राम राम ! लगता है आज ताऊ का दिमाग सोकर
ReplyDeleteउठा नही है ! पोस्ट मौजूद है और १० टिपणी मौजूद है पर
अपना मन मयूर कुछ बोल नही रहा है ! आप ही सुझाइए
कुछ !
ब्लॉग जगत भारतीय समाज का सच्चा प्रतिनिधित्व करता है. हम भारतीयों से ज्यादा ढोंगी और ढकोसलेबाज पूरी दुनिया में कहीं हैं क्या? कथनी और करनी का अन्तर हमारी पहली विशेषता है. यही सब चीजें ब्लॉग में भी देखने को मिलती हैं. आप कैसे आशा कर सकते हैं कि समाज की बुराइयाँ यहाँ ध्वनित नहीं होंगी?
ReplyDeleteहजार साल की गुलामी ने हमारी रीढ़ की हड्डियों को कई पीढियों के लिए तोड़ दिया है. बची हुई कसर अंग्रेजों की शिक्षा नीति ने निकाल दी है. स्वतंत्र सोच विकसित करने और उसे साहस के साथ प्रकट करने की उम्मीद धिम्मियों से नहीं की जा सकती. यहाँ सिर्फ़ चाटुकारिता का ही बोलबाला रहेगा, क्योंकि उसमें सुविधा है. ब्लॉग जगत की अधिकांश टिप्पणियां भी इसी मानसिकता को ही प्रदर्शित करती हैं. टिपेरतंत्र तो पनपना ही है.
आपने काफी संवेदनशील विषय को छू लिया है . जो लोग आपकी तरह नहीं सोचने या आपकी तरह नहीं करते उनको चारण या वन्दीजन कह देना और जो लोग आपकी तरह लम्बे लम्बे उबाऊ लेख न लिख कर छोटी चार लाइना कविताएं ही लिखना जानते हैं उनके ब्लॉगिंग के अधिकार को ही छीन लेना यह तो आपकी जैसी राजशाही मानसिकता वाले लोग ही कर सकते हैं . हमने मान लिया आप ब्लॉगिंग के राजा हैं . आप ग्रेट हैं . पर हम भी कहे देते हैं, हम भी अपनी चार लाइना और दो लाइना कविता या फिर आपके शब्दों में कहे तो छटंकी कविता तब तक लिखते रहेंगे जब तक हमें रोक नहीं दिया जाता . और जो हमें अच्छा लगेगा उसको जमकर टिपियाएंगे भी . हाँ आज आपका यह लेख अच्छा नहीं लगने के बावजूद टिपिया रहा हूँ , इसके लिए माफी चाहता हूँ .
ReplyDeleteजय टिप्पणी, जय हिन्दी, जय भारत .
टिप्पणियां ज़रूरी हैं. टिपेरतंत्र शायद ज़रूरी नहीं. ये अलग बात है कि शैशवकाल में ढेर सारे तंत्र आस-पास विकसित हो ही जाते हैं. लेकिन शैशवकाल समाप्ति के दौर में जैसे ही प्रवेश करेगा, कुछ तंत्र-मंत्र अपने आप ही लुप्त हो जायेंगे.
ReplyDeleteटिप्पणियों का मिलना अंधे के लिए आँखें मिलना समान है. शुरुआत में हम भगवान से रुपया-पैसा, वैभव, ऐश्वर्य, शान्ति और न जाने क्या-क्या मांगते हैं. लेकिन जैसे-जैसे बात आगे बढ़ती है और हमें लगने लगता है कि इनमें से कुछ मिल गया है या फिर कुछ नहीं मिलने वाला तो हम अपनी मांग कम करते जाते हैं. स्थिति यहाँ तक पहुँच जाती है कि बाद में शायद केवल शान्ति मांगते पाये जाएँ. यही बात आगे चलकर ब्लागिंग में भी दिखनी चाहिए. स्थिति शायद आए कि हमें बिना मांगे ही कुछ मिले. और जो बिना मांगे मिलेगा, शायद वही हम डिजर्व करते हैं.
ब्लागिंग में सामाजिकता का भी महत्व है।
ReplyDeleteभीषण भीषण से चिरकुट को भी मुंह पर चिरकुट नहीं कहा जाता।
ब्लागिंग को सीरियसली नहीं लीजिये, मजे लीजिये।
सच बात तो यह है कि सच किसी को सुनना पसंद नहीं है, उन्हे भी नहीं जो कहते हैं कि वह सच के पुरोधा पुजारी टाइप हैं।
सब मनभाती सुनना चाहते हैं
बेहतर रणनीति यही है कि जहां आपको बात नहीं जमती हो, वहां टिप्पणी ना करें।
फिर टिप्पणी से चलने वाले राइटर बहुत दिनों तक नहीं चलते।
असली लेखक मजबूत कलेजे वाला बेशर्म होता है। किसी की सकारात्मक टिप्पणी को सौजन्य समझना चाहिए, नकारात्मक टिप्पणी को दिल पर नहीं लेना चाहिए।
लेखक किसी की तारीफ के सहारे लेखक नहीं बनता, वह अपनी बेशऱ्मी और मजबूत इरादे के बूते ही लेखक बनता है। वरना टिप्पणीभंगुर लेखक तो बहुत जल्दी मुरझा जाते हैं।
इशारों ही इशारों में एक दुसरे की खिंचाई कर गए....
ReplyDeleteहमने तो सबको पढ़ कर आनन्द लिया, बस. :)
महोदय लगता है आपने चारणों के बारे मैं अधिक जानकारी नहीं कि...चारण चमचे नहीं होते थे बल्कि जिनकी कविताएं सदियों तक सोये हुए समाज को जगाने का कार्य करती रही..जिनकी लिखी एक एक पंक्ति सैंकङों यौध्दाओं को मातृभूमि के लिए सर कटाने को प्रेरित करती रहीं
ReplyDeleteआलोक पुराणिक की इस बात से सहमत हूं कि जहां बात न जमे वहां टिप्पणी न करें लेकिन उनकी ये बात नहीं जमी कि ब्लॉगिंग को सीरियसली मत लीजिए
ReplyDeleteअच्छा है आत्मालोचना होती रहनी चाहिए। इसी से पूरी हिंदी ब्लॉगिंग परिपक्व होगी और इसका चेहरा खिलेगा।
ReplyDeleteवैसे लगता है कि आपकी बातों को कुछ भाई लोगों ने दिल पर ले लिया है। जबकि टिपेरतंत्र तो एक सच है जिसे सभी को स्वीकार करना ही चाहिए।
लेकिन एक बात तो है कि टिप्पणी न मिले तो लिखने का उत्साह ठंडा पड़ जाता है। इसलिए मैं तो जमकर टिप्पणियां करने वालों को साधुवाद देना चाहूंगा कि वो बुझती हुई लौ को जलाए रखने में मददगार बनते हैं।
सई है जी,
ReplyDeleteदेखो मैं आया, टिपेरा धर्म निभाया और ये निकल लिया ;)
इस तरह के विषयो पर आपका लिखना आपके पाठक कम कर सकता है.. हालाँकि हम तो आपको टिप्पणी देते ही रहेंगे.. चाहे आप घटिया लिखे या अच्छा..
ReplyDeleteबाकी समीर जी की कथा बहुत पसंद आई..
सबसे पहले तो एक चिट्ठाकार के रुप मे हमे अपने आप से सवाल पूछना होगा कि "क्या हमे टिप्पणियों की उतनी आवश्यकता है? क्या हम ब्लॉग सिर्फ़ टिप्पणियां पाने के लिए लिख रहे है?"
ReplyDeleteमेरे विचार मे टिप्पणियां उत्साह जरुर बढाती है, लेकिन टिप्पणियां ना पाने से निराश होने वाला ब्लॉगर सच्चा ब्लॉगर नही है। तो अपने आप से छल कर रहा है। निस्वार्थ भाव से मन की बात लिखना ही ब्लॉगिंग है। यदि आज किसी ने नही पढा तो कल पढेगा, दो साल बाद पढेगा। मेरी ढेर सारी पोस्ट बिना किसी टिप्पणी के निकली, लेकिन लिखना बदस्तूर चालू है। पाठक आते रहे, टिप्पणी करे ना करे, उनकी मर्जी।
चलते चलते : यदि मंदिर मे बैठे हनुमान जी इस बात से चिंतित होने लगे कि भक्तो ने प्रसाद चढाया या नही, तो भक्तो की भक्ति को डांवाडोल होने मे समय नही लगेगा।
मेरी ब्लॉगिंग बेटिप्पणी या सुधीजनों की एकाध टिप्पणियों वाले लेखों के साथ ही आगे बढ़ी है. मेरी मुख्य दिलचस्पी रहती है कि सौ-पचास लोग मेरे लिखे को पढ़ सकें, ख़ास कर उन लेखों को जिनको लिखने और तैयार करने में तीन-चार घंटे लगे हों.
ReplyDeleteमैं स्वयं जितनी बड़ी संख्या में ब्लाग पढ़ता हूँ, उस हिसाब से टिप्पणियाँ कभी नहीं कर सका (,आलस्यवश). मैं टिप्पणीकारी को यों ही बेफ़ालतू का नहीं मानता. जैसे ही कोई विचारणीय या अपनी रुचि का या फिर सुधीजनों का कोई पोस्ट दिखा, मैं लेख के साथ-साथ टिप्पणियों को पाबंदी से पढ़ता हूँ. (समीर जी की उपरोक्त टिप्पणी मे 'ठर्रासी' शब्द पसंद आया.)
"ये अलग बात है कि शैशवकाल में ढेर सारे तंत्र आस-पास विकसित हो ही जाते हैं. लेकिन शैशवकाल समाप्ति के दौर में जैसे ही प्रवेश करेगा, कुछ तंत्र-मंत्र अपने आप ही लुप्त हो जायेंगे."
ReplyDelete(..शिवकुमारजी मिश्रा की टिपणी से)
हम सुबह भी आए थे अभी फ़िर घर वापसी में इधर से निकल रहे थे ! बाद की सब टिप्णियाँ पढी और हर टिपणी में अपना २ मतलब है ! पर हमको सबसे सही बात श्री शिव जी मिश्रा की लगी ! फसल में भी खरपतवार शैशव काल में ही ज्यादा होती है ! जैसे २ फसल पकती है तो मुख्य फसल सक्षम हो जाती है ! तो यहाँ भी परिपक्वता आते आते सब ठीक हो जायेगा ! और मैं यहाँ व्यक्तिगत रूप से अपने आपको श्री मिश्राजी के कथन के नजदीक पाता हूँ !
tippaniyon aur farzadaygi me zaraa farq to hona hi cahiye varna ek samay ke baad lekhak ke liye beimaani aur pathak ke liye ubaau saabit hoti hain!!!
ReplyDeletesaadar
तो आप शाही टिपोरी बन जाए बहुत खूब कामचलाऊ टिपोरी की आज के ज़माने में हैसियत ही क्या है.
ReplyDeleteकृपया जरुर देखे टिपण्णी की भारी भरकम दुकान .
http://nirantar1.blogspot.com/2008/09/blog-post_13.html
काफी सारा सिर के उपर से गुजर गया, कुछ समझा कुछ नहीं, लेकिन टिपटिपा रहा हूँ :)
ReplyDeleteअजी कोन किसे खीच रहा हे पता ही नही चल रहा, हम तो अपना बोरी बिस्तर ले कर भाग रहे हे, भईया दुभाषिये टिपण्णओ की बरसात हो रही हे,राम राम जी आप सब को
ReplyDeleteब्लॉग लेखन अभिव्यक्ति का महज़ एक साधन है ,जाहिर है यहाँ ग़ालिब को पसंद करने वाले लोग भी है ,beatles को सुनने वाले भी ...कोई अपनी पसंद का गीत बांटना चाहता है ....कोई असहज है कोसी पर .....कोई इस देश में फैली भाष्वाद की राजनीती से कुंठित है........................कुल मिलाकर सबके भीतर अलग अलग की तरह बैचैनिया है....यही ब्लॉग जगत है....जाहिर है एक दूसरे को खारिज नही कर सकता ...इस समूह के कुछ शिष्टाचार है....टिप्पणी उसका एक अंग है ..
ReplyDeleteहर व्यक्ति लेखक नही होता ..(ओर ब्लॉग लेखन के लिए ऐसा होना जरूरी नही है ).मुझे अगर कविता से ऐतराज है तो सिर्फ़ मेरे कहने से कविता खारिज नही हो जाती ....ग़ालिब की एक अलग दुनिया है.......संगीत की एक अलग दुनिया है ....
आपने अक्सर आपको लम्बी टिप्पणी करने वालो पर अलग से दो लेख लिखे है ,कई बार उनका नाम लिया है ...क्यों ? जाहिर है एक सामान्य व्यक्ति की तरह टिप्पणी आपको भी प्रोत्साहित करती है वरना व्यक्ति अपने ब्लॉग को सार्वजनिक क्यों करता है ,निजी रखकर क्यों नही लिखता ..... सब बिना पढ़े टिपिया रहे है मुआफ कीजिये मै इससे कतई सहमत नही हूँ... ऐसा कहकर आप अपने पाठको को भी ग़लत साबित कर रहे है ?
माफ करें, राजतंत्र वाली बात से मैं सहमत नहीं हूँ। यह मुखियागिरी और गिरोहबंदी को बढ़ावा दे सकता है, जो ब्लॉग दुनिया से इतर हमारे समाज के भ्रष्टतंत्र की ही पहचान रही है।
ReplyDeleteआपके इस ब्लाग पर इस पाठ से बहुत कुछ समझने का अवसर मिला। इस पर दीपक बापू कहिन पर अवसर पाते ही लिखूंगा। वैसे इस पर सीधे कभी नहीं लिखा पर अप्रत्यक्ष रूप से बहुत लिखा है। आलोक पुराणिक और जीतू चैधरी ने जो कहा है वह सही है पर टिपेर तंत्र के पीछे जो है उसकी जानकारी हमें जरूरी है और वह आपके ब्लाग से ही मिली। आपने मेरे से पहले लिखना शुरू किया पर लगता है कि इस तंत्र के बारे में कुछ अनुमान नहीं किया इसके बावजूद यह एक वास्वविकता है कि यह हमेशा रहेगा। धन्यवाद।
ReplyDeleteदीपक भारतदीप
डा अनुराग से सहमत
ReplyDeleteबगल में आपकी फोटो ने आप के आत्म विज्ञापनीय चित्र की बात को बिल्कुल सही साबित किया है :)
ReplyDeleteमेरी यह टिपण्णी संख्या ३१ है, जो आपके इस कथन की भी पुष्टि करती है (((( टिपेरतंत्र के चारण सम भाव से वन्दन करते जाते हैं.))) , कमाल है कि बहुतों ने यह नहीं सोचा कि इसमें उनको ही गरियाया जा रहा है. :)
(((आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद)))ओह ये तो अद्भुत वाक्य है, अपने आस-पास चारण जुटाने का.
.
ReplyDeleteअभी अभी एक दुःस्वप्न देख कर नींद खुल गयी, खुल गयी.. समझो उचट गयी !
उचट गयी, तो ब्लागर टटोलने निकला.. ऎंवेंई टाइम पास !
एज़ यूज़ुअल सर्वप्रथम ज्ञानदत्त पांड़ें के दर्शन को आया हुआ हूँ, पर आज लगता है, कि
सर जी के ट्यूब में ब्लैक होल इफ़ेक्ट आ गया है । हल के प्रोटान जैसे चल के न्यूट्रान को
बुरी तरह प्रभावित कर रहे हों ... ऎसा हो जाता है, कभी कभी !
( भाई लोगों.. कुछ लंबा तो नहीं खिंच रहा है ? ) खैर.. चलिये ऎसा भी कभी कभी हो जाता
है, अस्तु .. बाँचिये कि,
कुल मिला कर लग रहा है.. कि शायद किसी भीषण समस्या को पैर से शुरु कर सिर की तरफ़ ले जा रहें हैं, बल्कि अपने अशरफ़ ड्राइवर को याद कर एक्सीलेटर कुछ ज़्यादा दबा दिया है.. क्योंकि फ़ैक्ट आफ़ द मैटर या मैटर आफ़ द फ़ैक्ट तो सिर के ऊपर से निकल कर भग गया । यहाँ पर टिपियाना एक जिम्मेदारी का काम है, सो आदतन मुक्त हृदय का बगटूट लेखन यहाँ करना आज तो बेगार लग रहा है ...
आख़िर इतने कमेन्ट कांशस विवेक हों तो ठीक लग सकता है, पर यह प्रलापीय पोस्ट ...पोस्ट ( ? ) काहे हम ग़रीब लोगन पर ठेली गयी है, जो लिखते कम और पढ़ते ज़्यादा है..
अलबत्ता यदा कदा यह टिपेरा पोस्ट लिखने जैसा जंग लगा हल चला लिया करता है ।
डा्यग्नोसिस तो यही बन रही है, कि यह पोस्ट .. टिप्पणियों से अघाये भये किसी पंडे का डकार है, गैस बन गयी है किसी गरिष्ठ टिप्पणी से.. जो भी हो ?
टिप्पणी के टिपेर तंत्र से उपजी यह ठर्रासी टपोरी पोस्ट पर कोई टिप्पणी न कर , अपना चारणत्व बचा कर रखने में ही समझदारी लग रही है, आज तो !
वैसे भी, इतने देर से मना रहा हूँ, पर ’ गुरुवर ’ आज इस टिप्पणी बक्से में प्रगट होने से स्वयं ही मुकर रहें हैं, उनके आये बिना आज टिप्पणी भी न निकरेगी..उनको मना लूँ... फिर आता हूँ ! जय चारणत्व ! चाटुकार अमर रहें अमर रहें !
दुमश्चः - किसी टेस्ट पोस्ट या कविता पर 17 -18 टिप्पणियों का बटुर जाना.. सहज़ स्नेह भी हो सकता है, यह तो मैंने सोचा भी न था । किसी टिपेर तांत्रिक को साधना पड़ेगा, अब तो ! निंदवा तो उड़िये गयी..
आप भी कहां कहां खुजा देते हैं? देखिये लोग कितने बेचैन हो गए हैं मगर अपन अभी भी मस्त हैं क्योंकि मैनें एक भी टिप्पणी नहीं पढ़ी।
ReplyDeleteनित्य टिप्पणी करना इतना आसान काम भी नहीं जितना आप समझ रहे हैं। उससे कहीं आसान है एक दस लाईनों का लेख लिख देना।
ReplyDelete:)
क्या करूं, टिप्पणी दूं कि नहीं? डर लगता है अब तो
:)
और हाँ आप भी सबसे उपर टिप्पणियों का स्वागत करने का हैडर भी लगा रक्खे हैं।
ReplyDeletehmm mere hisab se tippni sirf formality nahi honi chahiye
ReplyDeleteagar kisi ki koi baat pasand aaye to zarur kare
nahi aaye to unki galti bataye
sirf protsahan hi nahi apitu unhe sachhe mayane mein aage le jana hai
vicharon mein pordhta lani hai
naye blogger tak log jane hi chahiye
kyuki bina kisi ko chance diye unhe reject kar dena sahi mane mein groupism ho jayega
अब साहब ऐसा है की कमेंट्स तो देना ही चाहिए बरना लेखक आपके ब्लॉग तक पहुचेगा कैसे उसे भी तो आपको आमंत्रित करना है मैं कवि गोष्ठियों में जता हूँ सब की रचनाओं पर वाह वाह करता हों कभी आह नही करता क्योंकि आखिर मुझे भी तो कुछ तुक्वंदी सुनना ही है- हमारे इधर एक कहाबत है "" दे पपडिया ले पपडिया " बैसे एक बात कहूं आजकल लेखक बहुत हैं पाठक मिलते नहीं उन्हें आयटम सोंग से ही फुर्सत नहीं / कवि बहुत हैं श्रोता कम है तो कवि आपस में ही एक दूसरे से निवट लेते है /जैसे दो ज्योतिषी आमने सामने रहते हों और सुबह व्यापार को निकलने के पहले दोनों एक दूसरे की हस्त रेखाएं देखले और दोनों एक दूसरे को पाँच पाँच रुपया दे दें -दोनों की वोय्नी हो जाती है
ReplyDeleteबिना पढ़े लोग टिपियाते तो हैं... पर शायद सब लोग नहीं, और शायद सारे ब्लोग्स पर नहीं. कुछ ब्लॉग और कुछ पोस्ट सच में पढ़े जाते हैं.
ReplyDeleteआप कहां सरकारी नौकरी में आ गए । आप पूर्णकालिक कलमकार हैं । अनूठे विचारों और विषयों के साथ ही साथ आपकी शब्दावली भी अनूठी है ।
ReplyDeleteरविजी रतलामी के ब्लाग पर प्रकाशित व्यंग्य निबन्धों का संग्रह किसी प्रकाशक ने पुस्तकाकार प्रस्तुत किया है । भगवान करे कि उन प्रकाशकजी की नजर आपके ब्लाग पर पडे और हमें आपका संग्रह पुस्तकाकार में मिल जाए ।
& now what next ? :)
ReplyDelete