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Friday, September 12, 2008
दुर्योधन इस युग में आया तो विजयी होगा क्या?
शिवकुमार मिश्र की नयी दुर्योधन की डायरी वाली पोस्ट कल से परेशान कर रही है। और बहुत से टिप्पणी करने वालों ने वही प्रतिध्वनित भी किया है। दुर्योधन वर्तमान युग के हिसाब से घटनाओं का जो विश्लेषण कर रहा है और जो रिस्पॉन्स की सम्भावनायें प्रस्तुत कर रहा है - उसके अनुसार पाण्डव कूटनीति में कहीं पास ठहरते ही नहीं प्रतीत होते।
पर हम यह प्रिमाइस (premise - तर्क-आधार) मान कर चल रहे हैं कि पाण्डवों के और हृषीकेश के रिस्पॉन्स वही रहेंगे जो महाभारत कालीन थे। शायद आज कृष्ण आयें तो एक नये प्रकार का कूटनीति रोल-माडल प्रस्तुत करें। शायद पाण्डव धर्म के नारे के साथ बार बार टंकी पर न चढ़ें, और नये प्रकार से अपने पत्ते खेलें।
मेरे पास शिव की स्टायर-लेखन कला नहीं है। पर मैं कृष्ण-पाण्डव-द्रौपदी को आधुनिक युग में डायरी लिखते देखना चाहूंगा और यह नहीं चाहूंगा कि दुर्योधन इस युग की परिस्थितियों में हीरोत्व कॉर्नर कर ले जाये।
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"पाण्डव कूटनीति में कहीं पास ठहरते ही नहीं प्रतीत होते।"
ReplyDelete"पांडव तो कूटनीति में तब भी कौरवों के सामने कहीं नहीं ठहरते थे" - मगर कितना भी बड़ा अचम्भा क्यों न हो आख़िर में "सत्यमेव जयते" ही होना है. कौरवों के आगे तो पांडव हमेशा ही जीतेंगे:
यत्र योगेश्वरः कृष्णः यत्र पार्थो धनुर्धरः ।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नितिर्मतिर्ममः ।।
पाण्डव तो उस समय भी लद्दू थे। सारा फर्क कृष्ण के कारण पड़ा।
ReplyDeleteकृष्ण उस समय भी कूटनीति में सर्वोत्तम थे और आज भी आयेंगे तो सर्वोत्तम ही रहेंगे।
Smart Indian जी की बात से सहमति है .... कई बार लगता है कि जीत अंधेरे कि ही होगी, लेकिन अंततः ....
ReplyDeleteपाण्डव कोई कम कूटनीतिज्ञ नहीं रहे होंगे। ये अलग बात है कि वे अपने पत्ते ऐन मौके पर खोलते रहे होंगे। शिव बाबू धांसू लेखक हैं। आप उनके जैसा लिखने के लिये काहे परेशान हैं! अपने जैसा लिखें, लिखते रहें।
ReplyDeleteसर जी आप 'कृष्ण-पाण्डव-द्रौपदी' को भी डायरी लेखन करते देखना चाहते हैं यह पढकर मन प्रसन्न हुआ । मुझे दुस्सासन की डायरी हांथ लगी पर वह किस भाषा में लिखी गई है पुरातत्व वाले भी समझ नहीं पा रहे हैं, शिव भईया से डिकोड करवा कर मैं भी उसे ब्लाग जगत में लाना चाहूंगा, सुना है महाभारत कालीन डायरियों को पब्लिक में लाने बडे फायदे हैं । शिव भईया की इस डायरी को पुस्तकाकार छापने के लिये दिल्ली के बेस्ट सेलर पब्लिशर लोग शिव भईया के आगे पीछे घूम रहे हैं ।
ReplyDeleteमेरा दुर्भाग्य की शुरू से ही भाई शिवकुमार 'मिश्रा' जी को नही पढ़ पाया -अब नाम गिरांव उनका इतना सुन लिया है कि कुछ फुरसत के साथ उन तक जाना चाहता हूँ पर फुर्सतियै ससुरी नहीं मिल रही है -और फिर उनका अर्धांश आपमें मिल जाने के कारण भी यहीं मुंह मार कर शांत पड़ जाता हूँ .या यूँ कहें कि आप मुझे मिश्रा जी से मिलने ही नहीं देने दे रहे हैं !यह आपकी ज्यादती है -और शिव कुमार जी आतीत गमन में ऐसे मग्न हैं कि उन्हें दूसरे मिश्राओं की चिंता ही नही है -हाँ आपकी यह सोच जबर्दस्त है कि महाभारत के पात्रों को anachronistic स्टाइल में वर्तमान में आकर कुछ उपक्रम करने चाहिए .हम इस विधा का प्रयोग विज्ञान कथा में करते आए हैं .
ReplyDeleteदेखते है, कौन आप की चुनौती स्वीकार करता है।
ReplyDelete"और यह नहीं चाहूंगा कि दुर्योधन इस युग की परिस्थितियों में हीरोत्व कॉर्नर कर ले जाये।
ReplyDeleteसर जी आपकी चिंता अपनी जगह पर बिल्कुल सही है ! मैंने आपके प्रश्न पर काफी सोचा और मेरा ऐसा सोचना है की " सत्यमेव जयते" ही होगा ! और सत्यमेव जयते का अर्थ मेरे
अनुसार " सत्य उसी का होता है जिसकी जीत होती है " अब मेरी राय तो यही है ! रामराम !
" सत्यमेव जयते और
ReplyDelete" सत्यम्` शिवम्` सुँदरम्` " भी है !
कई बार अँधकार सघन होता प्रतीत होता है परँतु, प्रकाश भी वहीँ से उदित होता है
-लावण्या
pandav agar media ko manage kar len toabhi baat ban payegi warna media,yani shiv bhaiya to duryodhan ko badhia highlight kar rahen hain.waise aapka sawal jayaj hai ek n ek din pandavon ki or se kisi n kisi ko maidan me aana hoga.apan to naye navadiye hain,dekhte hain kaun sa paka hua aam tapakta hai
ReplyDeleteमहाभारत के पात्र अगर आज होते तो उनकी नीतियों में परिवर्तन तो समय के हिसाब से होता ही. ये तो वैसे ही है जैसे आज का तथाकथित जागरूक वोटदाता नेता की फोटो देखते हुए ये सोचता है; " अब हम जागरूक हो गए हैं. पहले जैसे मूर्ख नहीं रहे. आज हमारे पास सूचना है. तुम्हारे कर्मों, कुकर्मों की और सुकर्मों की. हमें बेवकूफ बनाना आसान काम नहीं."
ReplyDeleteवहीँ नेता भाषण देते हुए मंच पर खड़ा मन ही मन कहता है; "मुझे मालूम है कि तुम 'जागरूक' हो गए हो. तुम्हें हमारे कर्मों के बारे में पता है. माना कि तुम्हें बेवकूफ बनाना आसान नहीं लेकिन थोड़ी और मेहनत की जाए, तो असंभव भी नहीं है."
कृष्ण होते या विदुर, पितामह होते या द्रौपदी, सारे अपनी नीतियों में परिवर्तन कर लेते. लेकिन ये बात माननी ही पड़ेगी कि कमल और कीचड़ साथ-साथ रहते हैं. कमल जितना चाहे, कमल हो सकता है और कीचड़ कमल के कमलत्व में होती बढ़ोतरी को आंकते हुए अपना कीचडत्व भी उसी अनुपात में बढ़ाता जायेगा.
युग चाहे कोई भी हो, जितने वाला ही सचा कहलाता है. पाण्डवों ने कौन-सा धर्म पर चल कर युद्ध जीता था? हर यौद्धा को बेईमानी से मरा था.
ReplyDeleteकृष्ण, कृष्ण हैं. न भूतो न भविष्यति !
ReplyDeleteजिधर कृष्ण, उधर विजय.
प्रश्न) हाय दुर्योधन भइया. तुम इन्हें क्यों ना पटा सके?
उत्तर) क्योंकि कृष्ण उधर ही होंगे, जिधर सत्य होगा.
.
ReplyDeleteईल्लेयो, अब सुन लो, गुरुवर की बातें ?
अरे दुर-योद्धन लोगन का ही युग तो चलिये रहा है.. ..
सफल असफल आपै तय करो,इस पोस्ट पर देखो कि प्रति घंटा ट्रैफ़िक की रफ़्तार
क्या रही.. प्रतिमिनट टिप्पणियों की आवक में क्या उछाल भूचाल आया । आप ईहाँ
काहे पूछ रहे हो ? सीवकुँवार भईय्या, कुछ देखे होंगे.. तबहिन तो दुर्योधन में निवेश
कर रहे हैं ? वइसे ट्रैफ़िक आवक जावक के हिसाब से टपिकवा बड़ा सटीक है !
देश काल और परिस्थितियों के हिसाब से नीतियाँ बदलती रहती हैं....निश्चित रूप से आज अगर महाभारत हो तो कृष्ण की चालें भी बदल जायेंगी!आज विरोधी गुटों की खरीद फरोख्त सबसे बड़ा हथियार होगा!
ReplyDeleteलावण्या जी की बात से सहमत है ।
ReplyDeleteसाधारणतया दिखने में यह लगता है कि कुमार्गगामी ही विजयी हो रहा है.सदियों से देखने में आया है,रावण,शुम्भ निशुम्भ,महिसासुर हों या दुर्योधन,आरम्भ में जीतते ही प्रतीत होते हैं,पर होता यह है कि ईश्वर को जिसका नाश करना होता है उसे हर वो साधन उपलब्ध कराते हैं,जिसके बल पर वह अधर्म के मार्ग पर चल अपना पुण्य क्षय कर सके.लोगों के सम्मुख ईश्वर हमेशा से ही यह सत्य रखते आए हैं कि चाहे कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो,अधर्मी,अत्याचारी का नाश होता ही है और सत्य की विजय होती ही है,भले समय कुछ अधिक लग जाए..
ReplyDeleteदुर्योधन कितना भी चर्चित होगा ,सम्मानित और श्रद्धा का पत्र कभी नही हो पायेगा.सशरीर न सही पर जिसने भी उनके श्री चरणों में स्वयं को समर्पित कर दिया उनके विवेक रूप में कृष्ण अब भी इसी धरती पर विद्यमान हैं और सत्य के पथ पर चलने वालों के साथ हैं.. शायद न दिखे कि विजय सत्य की हुई है.पर सत्य पथ का अनुसरण कर जो संतोषधन प्राप्त होता है वह भी तो विजय ही है.
युग चाहे कोई भी हो, जितने वाला ही सचा कहलाता है. पाण्डवों ने कौन-सा धर्म पर चल कर युद्ध जीता था? हर यौद्धा को बेईमानी से मरा था.
ReplyDeleteयह बात सच है कि जीतने वाला ही इतिहास लिखता/लिखवाता है इसलिए वह हर बात को अपने नज़रिए से ही पेश करता है। परन्तु महाभारत के युद्ध की टाइमलाइन को यदि देखें तो युद्ध के नियम दोनों पक्षों ने तोड़े थे, किसी भी पक्ष ने स्वच्छ युद्ध नहीं किया था। :)
वैसे भी कहते हैं ना "शठे शाठ्यम समाचरेत्"। जिन कौरवों ने आरम्भ से ही पांडवों के साथ छल किया उनको पांडवों से किसी भलाई की आशा तो रखनी ही नहीं चाहिए थी। :)
क्या बात करते हैं ! युग कोई भी हो... जिधर कृष्ण उधर जीत !
ReplyDeleteरणनीति भी शायद वही चल जाय... शायद हम कृष्ण के तरीके से सोच ही नहीं पा रहे.
संजय बेगानीजी की बात से सहमत।
ReplyDeleteजीतने वाला सच्चा ही कहलाता है।
जीत सिर्फ ताकत की होती है, ताकत कभी सच के साथ हो सकती है कभी झूठ के साथ।
बाकी यह ख्याली पुलाव है सत्यमेव जयते।
पावरमेव जयते।
जीत तो जी दुर्य़ोधन ही रहा है, हां अभी उसके नाम नये नये हैं। काम तो पुराने जैसे ही हैं।
हां भी और नही भी
ReplyDeleteजो जीता वही सिकंदर
ReplyDeleteचाहे पांडव लडने मे कमजोर हो पर अंत भला तो सब भला