भैरो प्रसाद का सैलून कार्ड-बोर्ड फेक्टरी (अब बन्द) की दीवार के सहारे फुटपाठ पर है। शाम के समय मैने देखा तो वह फुटपाथ पर झाड़ू से कटे बाल बटोर रहे थे। एक कुर्सी, शीशा, बाल बनाने के औजार, एक बेंच और एक स्टूल है उनकी दुकान में। छत के नाम पर बल्लियों के सहारे तानी गई एक चादर।
बताया कि एक हेयर कटिंग का १० रुपया [१] लेते हैं। मैने पूछा कि कितनी आमदनी हो जाती है, तो हां हूं में कुछ नॉन कमिटल कहा भैरो प्रसाद ने। पर बॉडी लेंग्वेज कह रही थी कि असंतुष्ट या निराश नहीं हैं वे।
मेरे मोबाइल से दो फोटो लेने का बुरा नहीं माना उन्होने। यह भी बताया कि ठीक ठाक आमदनी बुध, शुक्र और रविवार को होती है। उन दिनों लोग ज्यादा आते हैं।
धूप और गर्मी नहीं होती? इसके जवाब में भैरो प्रसाद ने कहा - दीवार ऐसी है कि दिन में इग्यारह बजे बाद छाया रहती है। बाकी चादर लगा रखी है सो अलग।
ठीक लगे भैरो प्रसाद। यहीं शिवजी की कचहरी के पास रहते हैं। उनसे कोई सवाल हों तो बताइयेगा। पूछने का प्रयास करूंगा उनसे।
[१] भैरो प्रसाद के दस रुपये की तुलना में अमरीका के एक इटालियन सैलून की रेट लिस्ट यह रही -
Hair Cuts...$40.00 । Shampoos/Condition Blow Dry...$30.00 । Shampoo/Condition/Flat Iron...$40.00 । Deep Condition/Scalp Treatment...$45.00 | Hair Color Full Color...$65.00 & up | Touch up...$55.00 & up | Full Hi-Lites...$85.00 & up | Partial Hi-Lites...$65.00 & up | Corrective Color (per Hr)...$70.00 | Permanents...$65.00 | Spiral or Root Perm...$95.00 | Relaxers..$65.00 | Style/updo...$45 & up | Ear Percing...$20 | Hair Extensions starting at $187
मेरे वरिष्ठ यातायात प्रबन्धक श्रीयुत श्रीमोहन पाण्डेय ने बताया कि उनके गांव (जिला बलिया) के हैं लक्ष्मन। नाऊ हैं।
ऐसे ही चलती है जिन्दगी!
सन १९६२ में चकबन्दी हुई थी गांव में। उनकी जमीन इधर की उधर कर दी गई उस चकबन्दी में। उन्होने मुकदमा कर दिया।
मुकदमा चकबन्दी अधिकारी, सीनियर चकबन्दी अधिकारी, जिला कोर्ट और फिर हाई कोर्ट तक लड़ा लक्ष्मन ने। तारीख के दिन के पहले गांव से अपना नाऊ का बस्ता ले कर निकल लेते थे। कचहरी के पास ईंटा पर अपना तामझाम जमाते। लोगों की हजामत बनाते। आमदनी से अपना खर्चा भी चलाते और वकील की फीस भी देते।
इसी तरह से नाऊ के काम के बल पर हर स्तर पर हारने के बावजूद डटे रहे। अंतत: सन २००७ में – पैंतालीस साल बाद (!) इलाहाबाद हाई कोर्ट से अपनी जमीन का मुकदमा जीते!
कौन कहता है आदमी जीत नहीं सकता; लक्ष्मन की स्पिरिट तो अपने में उगाओ यारों!
क्या गज़ब टिप्पणी है संजय कुमार की इस पोस्ट पर! संजय अपना ब्लॉग चलाने लगें तो अच्छे अच्छों को पानी पिला दें!
कचहरी के बाहर लक्श्मन नाउ जनता की हजामत बना रहे है और कचहरी के अन्दर भाइ लोग व्यवस्था की हजामत बना रहे है. सभी गन्दगी साफ करने मे ही लगे है. रेट जरूर अलग अलग है.
नाउ को आप ज्यादा ग्लोरिफाई कर देंगे तो अगले बजट मे सेर्विस टैक्स के दायरे मे आ जायेगा बेचारा.
कौन कहता है आदमी जीत नहीं सकता; लक्ष्मन की स्पिरिट तो अपने में उगाओ यारों!
ReplyDeleteअरे ई पढ़ के तो हम पूरा जोसिया गए हैं ...सच बात है मन में अगर जे ठान लेवल जावे तो कौनो बात असंभव नहीं है...
लछमन जी बहुत जीवट मनुख निकले..उनको सलाम कहते हैं ...हमलोगन को उनसे सीख लेना ही मांगता है ....
हाँ नहीं तो..!!
नाऊ चर्चा अच्छी लगी। जब हमारे गांव में किसी का श्राद्ध होता है तो दसवां के दिन अभी भी श्राद्ध-स्थल पर जमीन पर बैठकर ही हमलोग नाई से बाल कटाते हैं। एक अंतर जरूर आया है कि अब सभी नाई ब्लेड वाला उस्तरा इस्तेमाल करने लगे हैं और हम भी एहतियात के तौर पर खुद भी श्राद्ध-स्थल पर ब्लेड लेकर ही जाते हैं।
ReplyDeleteआस-पास के नाइयों से मेरी काफी पटती है। चाहे वह फुटपाथ का नाई हो या सैलून का। मैं उनका हाल-चाल पूछता हूं और वे मुझे इलाके भर का हाल-चाल (खबरें) बता देते हैं।
वैसे आप मंहगा वाला सैलून ले आये अमरीका का...यहाँ १४ डालर में कटिंग बन जाती है ठीक ठाक.
ReplyDeleteभैरों के यहाँ दाढी का क्या रेट है? कुछ पूछना जरुरी था सो बरबस पूछ बैठा. :)
ध्यान से फोटो देखी तो कुर्सी में मुट्ठा भी है सर टिकाने का..काफी मार्डन है जी.
ल़क्ष्मण नाई बहुत जीवट वाला आदमी निकला . हमने तो अपने लक्ष्मण धोबी को ग्राम प्रधान बनाया था .
ReplyDeleteहमारे यहाँ भी फरीदाबाद में सड़क किनारे पेड़ के निचे कई नाऊ बैठे मिलेंगे | पेड़ के तने पर लटका शीशा और छाँव में एक कुर्सी | रेट यहाँ भी वही १० रूपये |
ReplyDeleteलक्ष्मण जैसे हजारों लोग हैं, जो अदालतों में भटकते हुए सारा जीवन जी जाते हैं। वे खुशकिस्मत हैं जो अपने जीवन में अंतिम जीत हासिल कर लेते हैं।
ReplyDeleteभैरो उस्तरे से हज़ामत बनाते हैं, इटैलियन जूते से बनाते होंगे.
ReplyDeleteकौन कहता है आदमी जीत नहीं सकता; लक्ष्मन की स्पिरिट तो अपने में उगाओ यारों!
ReplyDeleteWell said.
लक्ष्मण के धैर्य व जीवटता से कुछ सीखना बनता है । निराशा के कितने क्षणों ने उन्हें घेरा होगा इन पैतालिस वर्षों में पर हर तारीख पर बस्ता उठाये कचहरी-प्रयाण । जय हो ।
ReplyDeleteकौन कहता है आस्मान मे सुराख हो नही सकता एक पत्थर तो हवा मे तबियत से उछालो यारो. कचहरी के बाहर लक्श्मन नाउ जनता की हजामत बना रहे है और कचहरी के अन्दर भाइ लोग व्यवस्था की हजामत बना रहे है. सभी गन्दगी साफ करने मे ही लगे है. रेट जरूर अलग अलग है.
ReplyDeleteनाउ को आप ज्यादा ग्लोरिफाई कर देंगे तो अगले बजट मे सेर्विस टैक्स के दायरे मे आ जायेगा बेचारा.
जमाना अब बदल रहा है इसलिए ऐसे लोग अब" विलुप्त" हो होकर फोटो वास्ते बड़े धांसू मेटीरियल है ..इस बार की तेहलका जरूर पढियेगा...कुम्भ पर है ......
ReplyDeleteडा. अनुराग > इसलिए ऐसे लोग अब" विलुप्त" हो होकर फोटो वास्ते बड़े धांसू मेटीरियल है
ReplyDeleteअभी विलुप्त नहीं! घर से दफ्तर आते मैने ऐसे सात-आठ सैलून गिने फुट पाथ पर! और लगभग सभी पर ग्राहक थे!
इस चर्चा पर मुझे भी कुछ अनुभव शेयर करने का मन कर गया है
ReplyDelete१. मेरे गांव में भी जुगेसर हैं। पुश्तों से हमारे परिवार से जुड़े हैं। उनके पिता को हम चाचा कहते थे। फुलेसर चा (पा के तर्ज़ पर)।
२. वो हमें बउआ कहते हैं। अब भी, जब भी गांव जाता हूं, बिना मूड़े (दोनों प्रकार का) नहीं मानते। कहते हैं बउआ आंहां सब नई देबई त केना चलतई।
३. पहली पत्नी से संतान नहीं हुई तो दूसरी ब्याह लाए, संतान जनने के लिए (अगले जनम मोहे बिटिया ही ...) के तर्ज़ पर। अब पिता हैं।
४. मेरे मझले चाचा की मृत्यु हुई (१९९३) में तो श्राद्ध के समय जो खटिया डाल कर दान कर्म होता है, पंडित जी सारा उठा रहे थे, तो एक दम से सामने आये और उठाने नहीं दिया। बोले मृतक सिर्फ़ आपके ही जजमान नहीं थे, मेरे भी थे। आधा बंटवाया (लालू फ़ैक्टर .. लालू राज आ गया था ओ.बी.सी. जागारण का काल था)।
५. मेरे पिताजी की मृत्यु दो साल पहले हुई थी। उनकी श्राद्ध के समय, एक प्रथा है पिता की मृत्यु पर मूंछ कट्वानी होती है। मेरी मूंछ हटाने के पहले उतना ही दक्षिणा लिये जितना कंटाह ब्रह्मण ने मुखाग्नि देते वक़्त ली थी, तब जाकर मूंछ उतारे।
किसी के बाल काटते हुए नाऊ की बकबक को यदि कवर करके न्यूज चैनल पर फ्लैश किया जाय तो अच्छे अच्छे रियलिटी शो फेल हो जांय :)
ReplyDeleteसचित्र वर्णन वाह अब तो हजामत बनवाने का मन करने लगा
ReplyDeleteलक्ष्मण जी का प्रयास पढ़ तो मन हरा हो गया...लाजवाब...बस लाजवाब !!! बहुत बहुत प्रेरणादायी...आपने जिस सैलून का जिक्र किया है, उसके छोटे स्वरुप को हम इटालियन सैलून कहते हैं...इटालियन सैलून ,याने के ईंटा पर बैठा हाथ में शीशा पकड़ा , खुले में बाल काटने वाला चलता फिरता सैलून...यहाँ तो आपने बहुत ही विकसित सैलून का दिग्दर्शन करा दिया...
ReplyDeleteएक बार गलती से एक संगी संग हबीब के सैलून में चली गयी थी..बाल काटने भर के उसने साढ़े तीन सौ रुपये मूड लिए और बाल ऐसा काटा कि पिछले चार महीने से रोज बालों में तेल लगा लगा पोस पोस कर कई बार बाल कटवा चुकी हूँ ,पर आज तक बाल ऐसे नहीं बन पाए कि लोग हंस न दें..
मेरे कस्बे में आज भी नाई की रेट २० रूपया कटिंग की है | हां ये अलग बात की मुझे इसमें भी पांच रुपये का डिस्काउंट मिलता है वो भी केवल इस बात का की मैने उस नाई की बहुत प्रशंसा की है | और सच मानिए जो काम आप शहर में रहकर १०० रुपये में भी नहीं करवा सकते वो हम यहाँ मात्र १५ रुपये में आराम से करवा लेते है | शेखावाटी में शिक्षा के मामले में पिलानी के बाद मेरा कस्बा (बगड ) दुसरे नंबर पर है |
ReplyDeleteकौन कहता है आदमी जीत नहीं सकता; लक्ष्मन की स्पिरिट तो अपने में उगाओ यारों!
ReplyDeleteजग गयी स्पिरिट.
मैं हर बार रविवार को बाल कटवाने जाता था... कम से कम २ घंटे वेटिंग. इस बार शनिवार को गया फटाफट ! मैंने पूछा आज वेटिंग नहीं है? तो बोला आज तो एकाध लोग आते हैं.... कई तो ऐसे भी हैं जिन्हें कुर्सी पर बैठने के बाद याद याद आता है कि आज शनिवार है वो भी उठकर चले जाते हैं. मैंने तो सोचा है कि अब शनिवार ही जाऊँगा... समय तो बचेगा. बस शनि देव कुपित ना हों :)
ReplyDeleteवाह, क्या बात है! बाल भी बनवाया और एक अच्छी पोस्ट भी तैयार कर ली!
ReplyDeleteइसे कहते हैं.. आम के आम, गुठली के भी दाम!
वाकई, संजय जी की टिप्पणी लाजवाब है.. सोने में सुहागा।
कौन कहता है आदमी जीत नहीं सकता; लक्ष्मन की स्पिरिट तो अपने में उगाओ यारों!
ReplyDeleteshandar lline hai bosss, ab to Ugaana hi padega apne me,locha kya hai na ki mera jo nau tha 3 dukan badal chuka hai, pahle samanya thi aise hi kabja kiye hue jagah par , fir thodi better hui main road par kabja kar ke....aur ab bakayda main road me 4000 rs mahina me kiraye ki dukan leke chala raha hai apna dhandha.....
aapke ishtyle me idea nai aaya mujhe nai to dhansu post banti thi ye bhi....
मालवा के देहतों और कस्बों में ऐसे सैलून आसानी से पाए जाते हैं। गॉंव-गॉंव मे ऐसे लक्ष्मण हैं।
ReplyDeleteअच्छी आनन्ददायी रही यह चर्चा।
अपन यह कहेंगे कि आप अमेरिकी इटालियन सलून के भाव से लोकल नाऊ के रेट की तुलना न करें, चीज़ों और सेवाओं का मूल्य देशकाल पर काफ़ी निर्भर करता है। वहाँ की मुद्रा का भाव अधिक है, कमाई भी उसके अनुसार है और जिस मोहल्ले में जिस स्तर का नाऊ होगा उसी के अनुरूप वो फीस लेगा।
ReplyDeleteअब आपके भैरो प्रसाद सड़क पर गर्मी में बाल काटने के १० रूपए लेते हैं, हमारे मोहल्ले में जिस सलून में अपन बाल कटाते हैं वह वातानुकूलित है, आरामदायक है, बाल अच्छे से काटता है, कटिंग के बाद सिर की हल्की सी मसाज भी कर देता है। लोकैलिटी भी अच्छी खासी है, और वह बाल काटने के २० रूपए लेता है। क्या बुरा है! उचित दाम लगता है अपने को तो। वहीं नज़दीक में दूसरे मोहल्ले में एक सलून है, वह भी वातानुकूलित है लेकिन वह ६० रूपए लेता है। :)
@ amit > अमेरिकी इटालियन सलून के भाव से लोकल नाऊ के रेट की तुलना न करें
ReplyDeleteशायद इसी से अवचेतन में प्रेरित हो मैने अमेरिकी इटालियन सलून की फोटो भी लगा दी है कि आधी अधूरी तुलना न हो!
नाउ सीरीज बढ़िया चल रही है, आपसे प्रेरित होकर हम भी अपने भूतपूर्व नाई की सक्सैस स्टोरी लिखेंगे कभी।
ReplyDeleteये नाऊ लोग किसी की पर्सनेलिटी बनाने बिगाड़ने में बिल्कुल उस्ताद लोग होते हैं। हमारे बचपन में अपने पिताजी के अनुशासन या शासन के तहत हमारी सोल्जर कट कटिंग हो जाती थी, जबकि मेरी पूरी क्लास बल्कि पूरा जमाना अमिताभ के कनटोप के पीछे दीवाना था।
ReplyDeleteलक्ष्मन की स्पिरिट तो हम ले आएँ अपने में, इस न्यायपालिका की स्पिरिट में भी बदलाव की ज़रूरत है।
सिर के बाल इधर काफी बढ़ गये हैं । सोचता हंू की कटवा ही लू . हजामत का क्या रेट बताया आपने काका ?
ReplyDeleteज्ञान जी, अमेरिकी सलून की फोटो तो यहाँ दिख नहीं रही है, कदाचित् उन्होंने हॉटलिंकिंग डिसेबल कर रखी है (वैसे यह उचित भी नहीं है, यहाँ पढ़ें, मकसद असम्मान करने का नहीं है मात्र जानकारी देने का है)। जो लिंक किया है आपने वहाँ देखी फोटू, देखने में हाई क्लास पार्लर लगता है। :)
ReplyDelete@ Amit - चलिये, आगे इनकी फोटो लिंक कर्अ भी इस्तेमाल नहीं करूंगा। वैसे मेरे यहां तो खुल रही है फोटो भी और उसका लिंक भी।
ReplyDeleteज्ञान जी, अभी घर पर देखा तो फोटू यहाँ आपके ब्लॉग पर नज़र आ रही है। लगता है वो ऑफिस के नेटवर्क पर स्थापित वेबसेन्स का कमाल था जो फोटू वहाँ नज़र नहीं आ रही थी। ggpht.com डोमेन जिस पर ब्लॉगर के ब्लॉगों की फोटू अपलोड होती हैं वह ब्लॉक किया हुआ होगा आईटी वालों ने हमारे यहाँ, तभी न दिखी वहाँ यह फोटू।
ReplyDeleteज्ञान जी, अभी घर पर देखा तो फोटू यहाँ आपके ब्लॉग पर नज़र आ रही है। लगता है वो ऑफिस के नेटवर्क पर स्थापित वेबसेन्स का कमाल था जो फोटू वहाँ नज़र नहीं आ रही थी। ggpht.com डोमेन जिस पर ब्लॉगर के ब्लॉगों की फोटू अपलोड होती हैं वह ब्लॉक किया हुआ होगा आईटी वालों ने हमारे यहाँ, तभी न दिखी वहाँ यह फोटू।
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