ये 6 विशेषतायें न केवल आपको आकर्षित करती हैं वरन देश, समाज, सभ्यतायें और आधुनिक कम्पनियाँ भी इनके घेरे में हैं। यही घेरा मेरी चिन्तन प्रक्रिया को एक सप्ताह से लपेटे हुये हैं।सम्पत्ति, शक्ति, यश, सौन्दर्य, ज्ञान और त्याग।
सम्प्रति शान्तिकाल है, धन की महत्ता है। आज सारी नदियाँ धन के सागर में समाहित होती हैं। एक गुण से आप दूसरा भी प्राप्त कर सकते हैं। मार्केट अर्थ व्यवस्था में सब आपस में इतना घुलमिल गये हैं कि पता ही नहीं लगता कि कब शक्तिशाली सांसद करोड़पति हो गये, कब यश पाये अभिनेता ज्ञानी हो गये, कब धन समेटने वाले यशस्वी हो गये, कब ज्ञानी अपनी योग्यता से कुबेर हो गये और कब त्यागी महात्मा वैभवशाली मठाधीश बन गये?
कृष्ण को पूर्णता का अर्पण दे, हम तो अपना परलोक सुधारते हुये कट लिये थे पर ये 6 देव घुमड़ घुमड़ चिन्तन गीला किये रहे।ये कितनी मात्रा में हों, जिससे महान बन जायें? एक हों या अनेक? और क्या चाहिये महान बनने के लिये?
इतिहास खंगाल लिया पर कोई ऐसा महान न मिला जो इनमे से कोई भी विशेषता न रखता हो। ऐसे बहुत मिले जिनमे ये विशेषतायें प्रचुरता में थीं पर वे मृत्यु के बाद भुला दिये गये।
महानता की क्या कोई आयु होती है? क्या कुछ की महानता समय के साथ क्षीण नहीं होती है? ऐसा क्या था महान व्यक्तियों में जो उनके आकर्षण को स्थायी रख पाया?
अब इतने प्रश्न सरसरा के कपाल में घुस जायें, तो क्या आप ठीक से सो पाइयेगा? जब सपने में टाइगर वुड्स सिकन्दर को बंगलोर का गोल्फ क्लब घुमाते दिखायी पड़ गये तब निश्चय कर लिया कि इन दोनों को लॉजिकली कॉन्क्ल्यूड करना (निपटाना) पड़ेगा।
प्राचीन समय में महानता के क्षेत्र में शक्ति का बोलबाला रहा। एकत्र की सेना और निकल पड़े जगत जीतने और बन गये महान। उनके हाथों में इतिहास को प्रभावित करने की क्षमता थी, भूगोल को भी। धर्मों के उदय के संदर्भ में त्याग और ज्ञान ने महापुरुषों की उत्पत्ति की। विज्ञान के विकास में ज्ञान ने महान व्यक्तित्वों को प्रस्तुत किया। इस बीच कई चरणों में शान्ति के विराम आये जिसमें यश, सौन्दर्य और सम्पत्ति को भी महानता में अपना भाग मिला।
यह पोस्ट श्री प्रवीण पाण्डेय की "महानता के मानक" पर दूसरी अतिथि पोस्ट है। प्रवीण बेंगळुरू रेल मण्डल के वरिष्ठ मण्डल वाणिज्य प्रबन्धक हैं।
सम्प्रति शान्तिकाल है, धन की महत्ता है। आज सारी नदियाँ धन के सागर में समाहित होती हैं। एक गुण से आप दूसरा भी प्राप्त कर सकते हैं। मार्केट अर्थ व्यवस्था में सब आपस में इतना घुलमिल गये हैं कि पता ही नहीं लगता कि कब शक्तिशाली सांसद करोड़पति हो गये, कब यश पाये अभिनेता ज्ञानी हो गये, कब धन समेटने वाले यशस्वी हो गये, कब ज्ञानी अपनी योग्यता से कुबेर हो गये और कब त्यागी महात्मा वैभवशाली मठाधीश बन गये? दुनिया के प्रथम 100 प्रभावशाली व्यक्तित्वों में 90 धनाड्य हैं। बड़ी बड़ी कम्पनियाँ कई राष्ट्रों की राजनैतिक दिशा बदलने की क्षमता रखती हैं। लोकतन्त्र के सारे रास्तों पर लोग केवल धन बटोरते दिखायी पड़ते हैं।यदि धन की यह महत्ता है तो क्या महानता का रास्ता नोटों की माला से ही होकर जायेगा? क्या यही महानता के मानक हैं?
अवसर मिलने पर जिन्होने अपनी विशेषताओं का उपयोग समाज को एक निश्चित दिशा देने में किया वे महान हो गये। महान होने के बाद भी जो उसी दिशा में चलते रहे, उनकी महानता भी स्थायी हो गयी।
आज अवसर का कोई अभाव नहीं है। इन 6 विशेषताओं को धारण करने वाले कहाँ सो रहे हैं?
यह पोस्ट मेरी हलचल नामक ब्लॉग पर भी उपलब्ध है।
अवसर मिलने पर जिन्होने अपनी विशेषताओं का उपयोग समाज को एक निश्चित दिशा देने में किया वे महान हो गये।'
ReplyDeleteछद्म महानता धारक जो अवसर के आवंटक बन बैठे है....
यदि धन की यह महत्ता है तो क्या महानता का रास्ता नोटों की माला से ही होकर जायेगा? क्या यही महानता के मानक हैं?...
ReplyDeleteअसली सवाल यही है और अफ़सोस यह कि यह अनुत्तरित हो जाया करता है.
@ M VERMA
ReplyDeleteसच कहा आपने । स्तर सहसा नहीं गिरता है । हमनें दशकों अपने आप को झुठलाया है । धन को हम अब भी व्यक्तिगत व सामाजिक परिवेश में सर पर चढ़ाये बैठे हैं । गुण अपने आरोहण की प्रतीक्षा में हैं । हमें उन्हें स्वीकार करना होगा, संभवतः वही महानता के मानकों का पुनर्जीवन हो ।
@ डॉ. मनोज मिश्र
पहले भ्रष्ट अपने धन की चर्चा करने से कतराते थे, आज उस धन की माला पहना कर फूले नहीं समाते हैं । जले पर नमक छिड़का जा रहा है ।
आज सारी नदियाँ धन के सागर में समाहित होती हैं। एक गुण से आप दूसरा भी प्राप्त कर सकते हैं।
ReplyDeleteसचमुच आज के समय में धन होने पर बाकि सभी गुण स्वत: आ जाते हैं।
"समरथ को नहिं दोष गुसांई"
प्रणाम
महानता की व्याख्या पश्चिम और पूर्वे में अलग अलग है . पश्चिम में जहाँ यह शक्ति से ज्यादा प्रभावित रही वहीं पूर्वे में मानवता के भाव को ज्यादा सम्मान दिया गया .
ReplyDeleteकलियुग के लिया कहा गया है " रामचंद्र कह गए सिया से ऐसा कलजुग आएगा हंस चुगेगा दाना घुन का कौवा मोती खाएगा . यह भी कहा जाता है की कलियुग ने अपना प्रवेश स्वर्ण के द्वारा किया था .
महानता के मानक आज कल समझ मै नही आते, क्या अपनी मुर्तिया बनबा कर मिलती है नोटो के हार से.... या फ़िर गुरु नानक जी जेसे लोगो के अनुसार जो तेरा तेरा कहते ही उस महानता तो पा गये जिसका उन्हे भी ज्ञान नही था, लालच नही था....
ReplyDeleteसम्पत्ति, शक्ति, यश, सौन्दर्य, ज्ञान और त्याग इन रत्न व आभूषणों से सज कर यदि कोई महान बन सकता है तो ये शे’र अर्ज़ है
ReplyDeleteछोड़ो भी अब क़फ़स में ये अपने परों की बात
करता है मुफ़लिसी में कोई ज़ेवरों की बात ?
अपने लिए तो महानता का मानक है
जे गरीब पर हित करे, ते रहीम बड़ लोग ।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग ।।
क्योंकि
बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥
यह धन तो सब समय में ही सत्य था और है ।
ReplyDeleteसर्वेगुणाः कांचनमाश्रयन्तु ।
सिर्फ धन वाली महानता चिरकाल नही रहती ।
@ आ० आशा जी
ReplyDeleteजब तक धन है तब तक तो महानता रहेगी ही ।
वर्तमान मे महानता का पैमाना पद और पैसा ही है .
@ अन्तर सोहिल
ReplyDeleteसच है पर गुण अकेले भी जिये हैं, इतिहास में उदाहरण हैं ।
@ डॉ महेश सिन्हा
पश्चिम का कलियुग पूर्व के कलियुग से अधिक सक्षम है ।
@ राज भाटिय़ा
सबके कर्मों का समय निर्णय करेगा ।
@ मनोज कुमार
गाँधीजी की महानता भी सरल थी । सत्य व अहिंसा ।
@ Mrs. Asha Joglekar
धन एकत्र कर लेने की महानता कुपूत के धन उड़ा देने से समाप्त हो जाती है ।
@ dhiru singh {धीरू सिंह}
धन एकत्र कर लेने की महानता कुपूत के धन उड़ा देने से समाप्त हो जाती है ।
बहुत ही अच्छा विचार है / अच्छी विवेचना के साथ प्रस्तुती के लिए धन्यवाद /आपको मैं जनता के प्रश्न काल के लिए संसद में दो महीने आरक्षित होना चाहिए इस विषय पर बहुमूल्य विचार रखने के लिए आमंत्रित करता हूँ /आशा है देश हित के इस विषय पर आप अपना विचार जरूर रखेंगे / अपने विचारों को लिखने के लिए निचे लिखे हमारे लिंक पर जाये /उम्दा विचारों को सम्मानित करने की भी व्यवस्था है /
ReplyDeletehttp://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html
यही तो कल भी पढ़े थे..वो कहाँ है पोस्ट...ये तो आप कन्फ्यूज कर दिये.
ReplyDeleteकह सकते है कि धन और महानता एक-दूसरे के पूरक जैसे है। क्यूंकि जिसके पास है धन है वो अपनेआप ही महान हो जाता है और आजकल तो इसका उदाहरण हर तरफ दिखाई दे रहा है।
ReplyDeleteहम तो धन को साधन मानते है. साध्य आपको अपनी मति के अनुसार तय करना होता है. महानता या निचता वह साध्य तय करता है.
ReplyDeleteयही तो कल भी पढ़ा था और टिपियाये भी थे
ReplyDeleteवर्तमान की महानता धन से आती है...भूतकाल की महानता कर्म से आती है...भविष्य काल की महानता गुणो से आती है...
ReplyDeleteमैं कई बार बच्चों से कहता हूँ कि धन के साथ आदमी का व्यक्तित्व भी बदल जाता है बदसूरत भी खूबसूरत लगता है और मूर्ख से लोग राय मांगते हैं ! आज तो आपने मानसिक हलचल ही मचा दी !
ReplyDeleteदाऊद इब्राहीम के पास बहुत सारा पैसा और ताकत है, बिन लादेन उससे भी बड़ी ताकत रखता है. लेकिन शायद ये लोग महान नहीं हैं
ReplyDeleteअमिताभ बच्चन और सचिन तेन्दुलकर अपने अपने क्षेत्र की माहन हस्तियाँ हैं. मेरी एक परिचित दया दीदी महान हैं जिन्होंने अपनी पिता की मृत्यु के बाद(जब वह १९-२० साल की युवा थीं) .अपनी पागल माँ को और छोटे भाई बहिनों को सम्भाला. स्वयं कुंवारी रह कर उनकी पढाई- लिखाई और शादियाँ कीं और अंत में भाई द्वारा प्रताड़ित और निष्काषित होने के बाद भी उनके माथे पर शिकन नहीं आयी.
@ Udan Tashtari
ReplyDeleteआप पोस्ट दुबारा पढ़ गये । अहो भाग्य ! आज रात को नींद नहीं आयेगी ।
@ mamta
धन हर जगह पहुँच गया है, हमारे दिमाग में भी ।
@ संजय बेंगाणी
धन साधन है, साध्य नहीं ।
@ Arvind Mishra
आपकी टिप्पणी वार्ता को नया विचार दे गयी ।
@ परमजीत बाली
बहुत ही विचारशील वक्तव्य ।
@ सतीश सक्सेना
व्यक्तित्व महत्वपूर्ण है, धन से दूषित न होने पाये । कनक कनक से सौ गुनी मादकता अधिकाय
@ hem pandey
ReplyDeleteदया दीदी निःसंदेह महान हैं, त्याग की प्रतिमूर्ति । मैं श्रद्धावनत हूँ ।
नमस्कार ज्ञान जी. सारथी पर कल की आप की टिप्पणी के कारण आज से हिन्दीलेखन चालू हो गया है, अत: आप के प्रति आभार व्यक्त कर दूँ.
ReplyDeleteप्रवीण जी के इस आलेख के लिये आभार!
सस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.IndianCoins.Org
ये सारी विशेषताऍं शास्त्रों में ही कैद हैं। जन सामान्य तो खुद ही तय कर लेता है कि कौन महान है और 'जन' का चयन गलत नहीं होता।
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