Sunday, April 4, 2010

परस्पर संवादात्मक ब्लॉगिंग

DisQusमेरे बारे में अनूप शुक्ल का पुराना कथन है कि मैं मात्र विषय प्रवर्तन करता हूं, लोग टिप्पणी से उसकी कीमत बढ़ाते हैं। यह कीमत बढ़ाना का खेला मैने बज़ पर देखा। एक सज्जन ने कहा कि यह सामुहिक चैटिंग सा लग रहा है। परस्पर संवाद। पोस्ट नेपथ्य में चली जाती है, लोगों का योगदान विषय उभारता है। ब्लॉग पर यह उभारने वाला टूल चाहिये।

@xyz लगा कर अपनी टिप्पणी दूसरे से लिंक करना कष्ट साध्य है। बहुधा लोग चाह कर भी नहीं कर पाते – टिप्पणियों का क्रॉस लिंकिग करना झंझटिया काम है। लिहाजा मैं डिस्कस (DisQus) के माध्यम से अगली कुछ पोस्टों पर टिप्पणी व्यवस्था बदलने का प्रयोग कर रहा हूं। अगर यह जमा नहीं तो दो-तीन पोस्टों के बाद वापस ब्लॉगर के सिस्टम पर लौटा जायेगा।

अभी इस प्रणाली में आप अपने ट्विटर, फेसबुक, ओपन आई डी, या फिर अपना आइडेण्टीफिकेशन भर कर टिप्पणी कर सकते हैं, दूसरे की टिप्पणी पर प्रतिटिप्पणी कर सकते हैं। बाकी क्या कर सकते हैं – वह आप ही देखें।

देखते हैं यह संवादात्मक ब्लॉगिंग सामान्य पोस्ट और कटपेस्टियात्मक टिप्पणियों का स्थान ले पाती है या नहीं।

छूटते ही Nice ठेल कर मत जाइयेगा!  


संवाद की एक मंचीय शैली है। माइक घारी के पास ताकत है। श्रोता मरमर कर सकते हैं। चेलाई में नारा लगा सकते हैं। पर सूत्र रहता है माइक धारी के पास। अगर वह भाषण दे रहा है तब भी और कविता सुना रहा है, तब भी।

हम जो कल्पना कर रहे हैं वह अड्डा या पनघट या चट्टी की दुकान की शैली है। हर व्यक्ति कहता है हर व्यक्ति श्रोता है। ब्लॉग मंचीय शैली के यंत्र हैं। उनका अड्डा शैलीय रूपान्तरण जरूरी हो गया है।

इसमें सिर्फ उनकी मरण है जो गठी हुई, गलती विहीन कालजयी लिखते-कहते हैं। पर मरता कौन नहीं? 


निशांत ने मेरी फीड अनसब्स्क्राइब कर दी है। मैं तिक्तता महसूस कर रहा हूं। यह टिप्पणी प्रयोग बन्द। मैं DisQus की टिप्पणियां पोस्ट में समाहित कर दूंगा कुछ समय में।

धन्यवाद।