हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात हो रही है। यह एक नोबल कॉज (noble cause) है। लोग टपकाये जा रहे हैं पोस्ट। वे सोचते हैं कि अगर वे न टपकायें पोस्ट तो दंगा हो जाये। देश भरभरा कर गिर जाये। लोग बाग भी पूरे/ठोस/मौन/मुखर समर्थन में टिपेरे जा रहे हैं – गंगा-जमुनी संस्कृति (क्या है?) लहलहायमान है। इसी में शिवकुमार मिश्र भी फसल काट ले रहे हैं।
उधर सुरेश चिपलूणकर की उदग्र हिन्दुत्व वादी पोस्टों पर भी लोग समर्थन में बिछ रहे हैं। केसरिया रंग चटक है। शुद्ध हरे रंग वाली पोस्टें पढ़ी नहीं; सो उनके बारे में कॉण्ट से!
मैं यह सोच कर कि शायद रिटायरमेण्ट के बाद भाजपा में जगह मिल जाये, सांसद जी से पूछता हूं – क्या हमारे जैसे के लिये पार्टी में जगह बन सकती है। अगर वैसा हो तो भाजपाई विचारधारा सटल (subtle) तरीके से अभी से ठेलने लगें। वे कहते हैं – क्यों नहीं, आप जैसे जागरूक के समर्थन से ही तो पार्टी सत्ता में आयेगी। मायने यह कि आप बतौर वोटर ही रह सकते हैं।
हमें अपने ब्लॉग के लिये कोई दमदार कॉज ही नहीं मिल रहा।
Where is The Cause for my Blogging!
क्या करें, हिन्दी सेवा का कॉज लपक लें? पर समस्या यह है कि अबतक की आठ सौ से ज्यादा पोस्टों में अपनी लंगड़ी-लूली हिन्दी से काम चलाया है। तब अचानक हिन्दी सेवा कैसे कॉर्नर की जा सकती है? हिन्दी सेवा तो मेच्योर और समर्थ ब्लॉगरी में ही सम्भव है। नो चांस जीडी!
खैर, कई ब्लॉगों पर देखता हूं कि मेच्यौरियत दस बीस पोस्टों में ही लोग ले आ रहे हैं। जबरदस्त कॉज बेस्ड ब्लॉगिंग का नमूना पेश कर रहे हैं। इत्ती मैच्यौरियत है कि ज्यादा टाइम नहीं लग रहा बुढ़ाने में। पर हमारी कोंहड़ा-ककड़ी ब्राण्ड पोस्टों में कोई मेच्यौरियत सम्भव है?!
ज्यादा लायक न हो तो किसी कॉज बेस्ड ग्रुप को ही ज्वाइन कर लो जीडी। साम्यवादी-समाजवादी-छत्तीसगढ़ी-इलाहाबादी-जबलपुरी-ब्राह्मणवादी-ठाकुरवादी-नारीवादी-श्रृंगारवादी-कवितावादी-गज़लवादी कुछ भी। पर किसी खांचे में फिट होने की कोशिश नहीं की अब तक। बड़ी कसमसाहट है।
कभी कभी लगता है कि “मानसिक हलचल” का टीन टप्पर दरकिनार कर दें और अलग से कॉजबेस्ड ब्लॉग बनायें – “शिवकुटी का सामाजिक विकास”। पर मेरे आस पास भैंसों के तबेले भर हैं। कम्प्यूटर नहीं हैं। इण्टरनेट की बात दूर रही।
खैर, अपनी जिन्दगी के लिये भी कॉज ढूंढ़ रहा हूं और ब्लॉगरी के लिये भी। और उस प्रॉसेस में जबरदस्त मूड स्विंग हो रहे हैं!
कॉज की तलाश में आप तो मंचासीन हो लिये....
ReplyDeleteकौन जरुरत है? जो जी में आये लिखते चलिये. शाउअद कभी राह पकड़ लें तो उस तरफ निकल लिजियेगा. जल्दी क्या है, अभी तो आप खासे जवान हैं.
सर जी !
ReplyDeleteकिसी खेमें में न होना
पूर्वाग्रही न होना
यही सर्वोत्कृष्टता का दर्जा दिलाता है..!
आभार !
ब्लॉगरी अपने आप में क्या कम है ...
ReplyDeleteकॉज बेस्ड हो या स्वान्तः सुखाय ...
ज्ञान जी मन बहलाव के लिए आप बलागवूड और बालीवुड में कतिपय सामी और ढेरों विषमताओं पर एक शोध लेखन करें -अपने स्विन्गमय मूड को वहां थोड़ी देर टीकाएँ -गहन मंथन से नवनीत अवश्य उपजेगा !गरल निकलेगा तो शिव जी तो अपने घर में ही हैं !
ReplyDelete@हमें अपने ब्लॉग के लिये कोई दमदार कॉज ही नहीं मिल रहा।
ReplyDeleteकॉज के लिए तो आप को मार्क्सवाद पढ़्ना होगा, कुछ दिन तक होना होगा लेकिन अभी तक आप नहीं हुए होंगे - नहीं लगता। ऐसा कीजिए 'कॉज' न सही 'काज' पर फोकस कीजिए। चाची का गृहकार्य में हाथ बँटाइए। थोड़ा घरेलू व्यवस्था पर ध्यान दीजिए - देखिएगा कि ये कॉज की खोज ही गायब हो जाएगी।
पर उपदेश कुशल बहुतेरे। मैं भी कल खीझ में अपनी कविताओं वाले ब्लॉग पर टीन टप्पर फेंकने जैसी ही बात लिख कर सो गया। सुबह देखा तो 8 समझाइसे हैं जिनमें 4 तो सॉलिड हैं।
कॉज तलाशना भी एक कॉज हो सकता है, और हर नई पोस्ट का नया कॉज हो सकता है।
ReplyDeleteकोंहड़ा-ककड़ी ब्राण्ड पोस्टों में कोई मेच्यौरियत सम्भव है?!...
ReplyDeleteअसीम संभावनाएं हैं सर जी ?
चलिये हम भी रिटायरमेंट की ओर अग्रसर हैं और अगर कुछ काज मिल जाये तो हमें भी सहायता होगी।
ReplyDeleteसाम्यवादी-समाजवादी-छत्तीसगढ़ी-इलाहाबादी-जबलपुरी-ब्राह्मणवादी-ठाकुरवादी-नारीवादी-श्रृंगारवादी-कवितावादी-गज़लवादी कुछ भी। ....मैं भी सोच रही हूँ...कहाँ फिट होती है,मेरी ब्लॉग्गिंग इसमें :)
ReplyDeleteपर कोई एक कारण चाहिए भी क्यूँ...मन में हज़ार सवाल,भावनाएं सर उठाती हैं...अगर उन्हें शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त कर सकें..फिर किसी कॉज की तलाश ही क्यूँ..
...और उस प्रॉसेस में जबरदस्त मूड स्विंग हो रहे हैं!
ReplyDeleteकिसी सरल लोलक (simple pendulem) के इधर-उधर होने की आवृत्ति (स्विंगिंग) लोलक की डोरी की लम्बाई के वर्गमूल के व्युत्क्रमानुपाती होती है। :)
कभी कभी उद्देश्य दिखाई पड़ जाने से राह के ऊपर से पूरा ध्यान हट जाता है । राह में राह की फिकर ।
ReplyDeleteकोई भी लक्ष्य की एकाग्रता में जीवन नहीं खपाता होगा और यदि होगा तो तीक्ष्णता असहनीय होगी । 24 घंटे मन में एक ही विचार ।
आपकी मानसिक हलचल व्यक्त है, सुदृढ़ रूप से । वही स्वाभाविक भी है और ग्राह्य भी । कॉज़ का पत्थर बीच में ठोंक देने से बहाव बाधित होगा ।
अनूप जी की टिप्पणी को मेरी भी टिप्पणी माना जाय।
ReplyDeleteवैसे लोलक की लंबाई अक्सर गर्मियों में बढ जाती है और घडियाँ सुस्त होने लगती हैं, कहीं यह 'ब्लॉगिंग का लोलकत्व' तो नहीं है :)
ज्ञान भाई !
ReplyDeleteआपकी ईमानदारी और मौलिकता को सलाम,
प्रवीण पाण्डेय को इंट्रोडयूस करने के लिए शुक्रिया
और आपके भोलेपन के लिए शुभकामनायें गुरु !
@ अनूप और सतीश पंचम - मूड कोई डोरी से सस्पेण्डेड बण्टा नहीं है। वह होता तो डोरी निकाल बण्टा जेब में धर लेते!
ReplyDeleteचंचल हि मन: कृष्ण: - असल में मन पर Cause based Blogging सम्भव है। पर उसके लिये ग्रन्थ पढ़ने को टाइम बहुत खोटा करना पड़ेगा! :-(
काज की तलाश तो चलती ही रहेगी।
ReplyDeleteमेरे सुझाव:
ReplyDelete०१. इलाहबाद ब्लागर्स एसोसियेशन बनाइये. प्रमेन्द्र जी जो कि इलाहबाद के सबसे वरिष्ठ चिट्ठाकार हैं उन्हें अध्यक्ष और सिद्धार्थ जी को उपाध्यक्ष बनवाइए. एसोसियेशन का मुख्य उद्देश्य इलाहाबाद की 'सेवा' रखिये. साथ में यह इलाहबाद के खिलाफ हो रहे दुष्प्रचार के खिलाफ भी लड़ेगा. यूपी का कोई भी चिट्ठाकार इसका सदस्य बन सकता है. अगर कोई लखनऊ ब्लॉगर एसोसियेशन या सहारनपुर ब्लागर्स एसोसियेशन का सदस्य हो तो भी कोई फरक न पड़े.
०२. अखिल भारतीय रेलवे चिट्ठाकार संघ भी बनाइये.
०३. कविता लिखने वाले चिट्ठाकारों और गद्य लिखने वाले चिट्ठाकारों के बीच जो 'दिनों-दिन मतभेद बढ़ते जा रहे हैं' उसके बारे में रोज एक पोस्ट लिखिए. सभी चिट्ठाकारों का आह्वान कीजिये कि वे दिनों-दिन बढ़ती जा रही इस खाई को पाटने के काम में आपकी मदद करें. आज चिट्ठा-संसार की ज़रुरत है कि इसपर तुरंत काम किया जाय.
०४. सप्ताह में कम से कम एक पोस्ट लिखकर किसी को महान बताइए. चूंकि आप गद्य लिखते हैं तो कविता लिखने वालों को महान बताइए और गद्य लिखने वालों को समझाईस दीजिये कि कविता लिखने वाले भी इसी चिट्ठा-संसार के नागरिक हैं.
०५. जल्दी से कोई चिट्ठाकार सम्मलेन करवाइए.
काज-बेस्ड ब्लागिंग के लिए ये शुरुआत सही रहेगी?
हाईपरटेंशन से बचने का सेफ्टी वॉल्व है ब्लॉगिंग.
ReplyDeleteमिल गया कोज? :)
नेट के सम्बन्ध!
ReplyDeleteएक क्लिक में शुरू
एक केलिक में बन्द!
I wonder what's the cause behind the oscillations of a simple pendulum ?
ReplyDeleteAbove all what could be the cause behind commenting on everyone's BLOG?
I'm sure about the noble cause behind my unwelcome comments.
After all 'Ishwar' ko jawaab dena hai...."bachpan mein royee nahi, Jawani mein soyee nahi......I was busy writing comments .
Millions are witness and zillions have cursed me for my comments.
< Smiles >
डा. महेश सिन्हा -
ReplyDeleteहार्मोन चेक करा लीजिये :)
----------------
ज्ञानदत्त -
(हां, मुझे हाइपोथॉयराइडिज्म जरूर है!)
@ Zeal > After all 'Ishwar' ko jawaab dena hai...."bachpan mein royee nahi, Jawani mein soyee nahi......I was busy writing comments .
ReplyDelete-------------
Oh dear, are you Sameer Lal is disguise?! :-)
पहले सोचा छोटी सी टिप्पणी करूँ
ReplyDeleteशो मस्ट गो ऑन
फिर ध्यान आया कि शीर्षक में कॉज़ है
ऐसा लगा कि कहीं मामला शो-कॉज़ का तो नहीं :-D
सबकुछ तो ठीक चल रहा है !!!
ReplyDeleteबेकॉज ब्लॉगिंग बेहतर है। मिसलेनियस माल मिलता है आपके यहाँ। फुटकर, कोहड़ा, ककड़ी, गंगा, बकरी, हल्का, भारी सब मौजूद है। आखिरी ब्लॉगिंग खुदई एक काज है।
ReplyDeleteमैं तो कुछ सोच ही नहीं पा रहा हूँ की क्या प्रतिक्रिया करूँ,
ReplyDeleteप्रतिक्रिया करूँ भी की नहीं करू,
करूँ भी तो भला क्यूँ करूँ,
प्रतिक्रिया दर्ज करनें से -
आखिरे मुझे क्या हासिल होगा...
तो चलो प्रतिक्रिया ही नहीं करते है...
~~~~~~~~~~~~
जिन ढूँढा तिन पाइयॉं,
गहरे पानी पैठ।
मैं बपुरा बूडन डरा,
रहा किनारे बैठ।।
आपका मतलब है बाकी सब ब्लॉगर कॉज बेस्ड ब्लॉगिंग कर रहे हैं? सबकी 'कॉजलेसनेस' उजागर करने का यह जीडीपीयन स्टाइल है?
ReplyDelete@ अनूप और सतीश पंचम - मूड कोई डोरी से सस्पेण्डेड बण्टा नहीं है। वह होता तो डोरी निकाल बण्टा जेब में धर लेते!
ReplyDeleteज्ञानजी आप शायद यह विश्वास न करें लेकिन आपको सच्ची बतायें कि आपकी इस बात पर एक बहुत मजाकिया टिप्पणी करने का मन हुआ लेकिन फ़िर अपना वायदा याद आ गया कि ब्लॉगजगत के बड़े-बुजुर्गों से मौज नहीं लेनी चाहिये। यह याद आते ही मैं फ़ट से विनम्रता च श्रद्धा के मोड में आ गया और फ़ुल आदर के साथ निवेदित करना चाहता हूं कि:
१. आपकी पोस्ट बांचते ही मुझे तड़ से हाईस्कूल के पहले का विज्ञान याद गया। सरल लोलक की परिभाषा भी। मुझे लगा कि आपने साक्षात किसी लोलक का मानवीकरण करते अपनी पोस्ट में सटा दिया और सटासट स्विंग को मूर्तिमान करके दिखा दिया। आप माने या न माने लेकिन आपके ब्लॉग पर यह स्विंग लीला मैं घणे दिनों से देख रहा हूं। इसमें लोलक की लम्बाई आपकी आठ-दस पोस्टों की संख्या के बराबर हैं, लोलक (बोले तो बंटा) आपकी नो चांस जीडी है। आठ-दस पोस्टों की लम्बाई के बाद यह नो चांस जीडी या फ़िर ट्यूब खाली हुई जीडी का लोलक अपनी मूल स्थिति के आपपास टहलने लगता है।
२.शिवकुमार मिश्र के सुझावों पर अपने विचार बताइयेगा न! आखिर वे आपके साथ एक ब्लॉग साझा रखते हैं। कई बार आपके लिये ब्लॉगपोस्ट/टिप्पणी लाठी भांजकर अकेले चोट खा चुके हैं? इतना तो अधिकार उनका बनता ही है उनका।
३. प्रवीण पाण्डेयजी आपके ब्लॉग पर काफ़ी दिन से लिखते हैं। लेकिन ये बतायें कि इनको आपने इंट्रोड्यूस कब किया? बताया तक नहीं!
उपरोक्त बातें केवल निवेदित करना चाहता हूं! यह सोच नहीं पा रहा हूं कि जो चाहता हूं वह करूं कि मटिया दूं! बताइये!
आज मेरी दृष्टि में बहुत ही इर्रिटेटिंग ब्लॉगर हैं. मुझे बहुत ही इर्रिटेट करते हैं.
ReplyDeleteआज शायद तीसरी बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ और हर बार बहुत ही नकारात्मक टिप्पणी की है,
कारण आप की भाषा में जबदस्ती ठूंस कर भरे जाने वाले अंग्रेजी के शब्द.
आज एक प्रश्न करना चाहता हूँ कि आप ऐसे क्यों हैं !!
मैं तो बच्चा हूँ और सहिष्णु भी.
बच्चा हूँ अतः मेरी इस टिप्पणी की बदतमीजी को क्षमा करिए.
सहिष्णु हूँ पर मेरी सहिष्णुता यहाँ पर क्यों जवाब दे जाती है !!
मैं आपको पसंद करूँ, इसके लिए क्या करना चाहिए !!
पसंद न भी कर पाऊं तो एक कारण तो दीजिये कि मैं आपके साथ सहानुभूति भरा व्यवहार कर पाऊं.
यह प्रश्न इसलिए पूछा है क्योंकि मैं सभी से प्रेम करता हूँ, चाहे वह कितना ही पतित क्यों न हो पर आप से नहीं जुड़ पाया, यह बात मुझे पीड़ा देती है.
इसका उत्तर मुझे मनुष्यता की और प्रेरित करेगा, अतः अवश्य दें.
धन्यवाद.
कोंहड़ा-ककड़ी में जो मेच्यौरियत ढूंढ़ ले वो ऋषि-महर्षि होता है ! ढूंढ़ते रहिये जरूर मिलेगा. :)
ReplyDeleteji, apan to pahle shiv ji ke 5 salaah pe aapki raay jan na chahenge...;)
ReplyDeletevaise praveen pandey jee ne ekdam sahi bat kahi hai..
mujhe lagta hai ye Zeal namak mumbai niwasi sajjan ko mai janta hu, dekhte hain unse baat kar ke aur bhi, unki raay
क्या करें, हिन्दी सेवा का कॉज लपक लें? पर समस्या यह है कि अबतक की आठ सौ से ज्यादा पोस्टों में अपनी लंगड़ी-लूली हिन्दी से काम चलाया है। तब अचानक हिन्दी सेवा कैसे कॉर्नर की जा सकती है? हिन्दी सेवा तो मेच्योर और समर्थ ब्लॉगरी में ही सम्भव है। नो चांस जीडी!
ReplyDeleteतब क्या 800 पोस्टें काका बिना काज़ के ही लिख दी आपने ?
why are you not answering sir !
ReplyDelete:)
आपने कोई उत्तर नहीं दिया, खैर कोई बात नहीं.
चलिए लिखते रहिये........ हर व्यक्ति की अपनी शैली होती है.....आपकी शैली यह है...पर मुझे हिंगलिश से चिढ है.
सैकड़ों ब्लॉग अंग्रेजी के भी पढता हूँ पर वे तो हिंदी का एक शब्द भी नहीं प्रयोग करते हैं, वे मुझे प्रिय लगते हैं.
खैर आपको आपकी ब्लॉग्गिंग मुबारक हो.
आप चलते रहिये अपनी चाल.
शुभकामनाएं.
इसी चाल पर तो ब्लॉग जगत के कई बड़े लोग फ़िदा भी हैं. :)
@ Gyandutt ji-
ReplyDeleteNo Sir, I'm not Sameer in disguise. I'm a 'susheel' Kanya...lol
&Sanjeet Tripathi ji-
I am not from Mumbai.I'm from Lucknow
@ Gyandutt ji-
ReplyDeleteNo Sir, I'm not Sameer in disguise. Kindly don't change my gender.
@ Sanjeet Tripathi ji-
Btw... I'm not from Mumbai.I'm from Lucknow.
Divya
@ ई-गुरु राजीव > why are you not answering sir !
ReplyDeleteRajiv, I think, I made a personal reply to you. Well, if you want on Blog, it might come some day! :-)
@ Zeal > No Sir, I'm not Sameer in disguise. I'm a 'susheel' Kanya...lol
ReplyDeleteग्रेट! कन्या भी मेरे ब्लॉग की नियमित पढ़ती है (हैं), यह तो बहुत प्रसन्नता की बात है दिव्या जी!
धन्यवाद। और संजीत को सिर खुजाने दिया जाये! :-)
yahi to locha hai na Gyan dadda ki kanyayein bhi aapka blog niymit padhti hai to fir ham jaisan balak ka karein, mudi na khujayein to fir.....
ReplyDelete;)
हम चुप ही रहेगे..
ReplyDeleteकाज बेस्ड ब्लागिग .. ख्याल अच्छा है..
दिल के खुश रखने को गालिब ये खयाल अच्छा है...
ReplyDeleteपोस्ट पढ़ते हुए मैं यह समझने का प्रयत्न कर रहा था कि आप कंटेमप्लेशन में हैं या सो कॉल्ड कॉज़ वाले ब्लॉगों को धो रहे हैं! ;)
ReplyDelete@ Amit > ... या सो कॉल्ड कॉज़ वाले ब्लॉगों को धो रहे हैं!
ReplyDeleteआप सही समझे। कॉज वालों का महिमा-मण्डन का छुद्र प्रयास है यह।
मैं तो कुछ सोच ही नहीं पा रहा हूँ की क्या प्रतिक्रिया करूँ,
ReplyDeleteप्रतिक्रिया करूँ भी की नहीं करू,
करूँ भी तो भला क्यूँ करूँ,
प्रतिक्रिया दर्ज करनें से -
आखिरे मुझे क्या हासिल होगा...
तो चलो प्रतिक्रिया ही नहीं करते है...
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जिन ढूँढा तिन पाइयॉं,
गहरे पानी पैठ।
मैं बपुरा बूडन डरा,
रहा किनारे बैठ।।
बेकॉज ब्लॉगिंग बेहतर है। मिसलेनियस माल मिलता है आपके यहाँ। फुटकर, कोहड़ा, ककड़ी, गंगा, बकरी, हल्का, भारी सब मौजूद है। आखिरी ब्लॉगिंग खुदई एक काज है।
ReplyDeleteमेरे सुझाव:
ReplyDelete०१. इलाहबाद ब्लागर्स एसोसियेशन बनाइये. प्रमेन्द्र जी जो कि इलाहबाद के सबसे वरिष्ठ चिट्ठाकार हैं उन्हें अध्यक्ष और सिद्धार्थ जी को उपाध्यक्ष बनवाइए. एसोसियेशन का मुख्य उद्देश्य इलाहाबाद की 'सेवा' रखिये. साथ में यह इलाहबाद के खिलाफ हो रहे दुष्प्रचार के खिलाफ भी लड़ेगा. यूपी का कोई भी चिट्ठाकार इसका सदस्य बन सकता है. अगर कोई लखनऊ ब्लॉगर एसोसियेशन या सहारनपुर ब्लागर्स एसोसियेशन का सदस्य हो तो भी कोई फरक न पड़े.
०२. अखिल भारतीय रेलवे चिट्ठाकार संघ भी बनाइये.
०३. कविता लिखने वाले चिट्ठाकारों और गद्य लिखने वाले चिट्ठाकारों के बीच जो 'दिनों-दिन मतभेद बढ़ते जा रहे हैं' उसके बारे में रोज एक पोस्ट लिखिए. सभी चिट्ठाकारों का आह्वान कीजिये कि वे दिनों-दिन बढ़ती जा रही इस खाई को पाटने के काम में आपकी मदद करें. आज चिट्ठा-संसार की ज़रुरत है कि इसपर तुरंत काम किया जाय.
०४. सप्ताह में कम से कम एक पोस्ट लिखकर किसी को महान बताइए. चूंकि आप गद्य लिखते हैं तो कविता लिखने वालों को महान बताइए और गद्य लिखने वालों को समझाईस दीजिये कि कविता लिखने वाले भी इसी चिट्ठा-संसार के नागरिक हैं.
०५. जल्दी से कोई चिट्ठाकार सम्मलेन करवाइए.
काज-बेस्ड ब्लागिंग के लिए ये शुरुआत सही रहेगी?
कभी कभी उद्देश्य दिखाई पड़ जाने से राह के ऊपर से पूरा ध्यान हट जाता है । राह में राह की फिकर ।
ReplyDeleteकोई भी लक्ष्य की एकाग्रता में जीवन नहीं खपाता होगा और यदि होगा तो तीक्ष्णता असहनीय होगी । 24 घंटे मन में एक ही विचार ।
आपकी मानसिक हलचल व्यक्त है, सुदृढ़ रूप से । वही स्वाभाविक भी है और ग्राह्य भी । कॉज़ का पत्थर बीच में ठोंक देने से बहाव बाधित होगा ।
साम्यवादी-समाजवादी-छत्तीसगढ़ी-इलाहाबादी-जबलपुरी-ब्राह्मणवादी-ठाकुरवादी-नारीवादी-श्रृंगारवादी-कवितावादी-गज़लवादी कुछ भी। ....मैं भी सोच रही हूँ...कहाँ फिट होती है,मेरी ब्लॉग्गिंग इसमें :)
ReplyDeleteपर कोई एक कारण चाहिए भी क्यूँ...मन में हज़ार सवाल,भावनाएं सर उठाती हैं...अगर उन्हें शब्दों के माध्यम से अभिव्यक्त कर सकें..फिर किसी कॉज की तलाश ही क्यूँ..