एक विचारधारा (Ideology) में बन्द होना आपको एक वर्ग में शामिल करा कर सिक्यूरिटी फीलिंग देता है। आप वामपंथी गोल वाली विचारधारा का वरण करें तो फोकट फण्ड में क्रान्तिकारी छाप हो जाते हैं। आप दक्षिणपंथी विचारधारा के हों तो आर.एस.एस. की शाखाओं में बौद्धिक ठेल सकते हैं। ज्यादा रिफाइण्ड ठेलते हों तो आप साहित्यकार भी मान लिये जाते हैं। बहुत सी जनता उदय प्रकाश को सिर माथे लेने लगती है।
पर उत्तरोत्तर उदय प्रकाश विचारधारा के मजूर होते जाते हैं।
मेरा, श्री उदय प्रकाश को लिंक करने से, उनके बारे में चल रही बहस में अपने हाथ धोने का इरादा कतई नहीं है। न मुझे उनकी विचारधारा से लेना देना है, न पुरस्कार से और न ही उनके साहित्यकार के रूप में किसी मूल्यांकन से। उन्हें मैने पढ़ा नहीं है। लिहाजा उनके लेखन पर कोई कोई कथन नहीं। मैं उनका केवल प्रतीकात्मक संदर्भ दे रहा हूं।
अनेक मठ-सम्प्रदाय-दल-संगठन बड़े बड़े लोगों को इसी तरह ट्रैप करते हैं और मजूरी कराते हैं। वे उन्हें बौद्धिक आभामण्डल पहनाते हैं और धीरे धीरे उसी आभामण्डल से उनकी व्यक्तिगत आजादी का गला टीपने लगते हैं! आप साम्यवादी/समाजवादी/रामकृष्ण मठ/ब्रह्मकुमारी/आशाराम/सांई बाबा/आर.एस.एस./मानवतावाद/हेन/तेन के साथ जुड़ जाइये। काफी समय तक काफी मजा आयेगा। पर फिर एक दिन ऐसा आयेगा कि आपको लगेगा आप गुलिवर हैं और लिलीपुट में बौनों ने आपको ट्रैप कर रखा है। हम भी ट्रैप हुये हैं मित्र और भविष्य में ट्रैप नहीं होंगे इसकी कोई गारण्टी नहीं!
इस देश में (मैं भारत की बात कर रहा हूं) विचारधारा (Ideology) की कमी नहीं है। नये नये विचारधारक भी पॉपकॉर्न की तरह फूटते रहते हैं। कमी है, और बहुत घनघोर कमी है, तो आदर्श (Ideal) की। आदर्श आपको कम्पास उपलब्ध कराते हैं - दिशा बताने को। विचारधारा आपको सड़क उपलब्ध कराती है - आगे बढ़ने को। आप सड़क बदल सकते हैं; बदलनी ही चाहिये। पर आप कम्पास नहीं बदलते।
मजे की बात है कि उदय प्रकाश जब विचारधारा वालों का आक्रमण झेलते हैं तो आदर्श (चरित्र और नैतिकता समाहित) की ही बात करने लगते हैं। तब शुरू से ही आदर्श की बात क्यों न करी जाये? और बात ही क्यों आदर्श पर ही क्यों न टिका जाये!
क्या है यह (इस पोस्ट में नीचे टिप्पणी) और किसपर कटाक्ष है यह श्री शिवकुमार मिश्र का:
आदर्श आदर्श है. विचारधारा विचारधारा है. ऐसे में एक आदर्श विचारधारा खोजी जा सकती है. विचारपूर्वक आदर्शधारा भी खोज सकते हैं. आदर्शपूर्वक विचारधारा खोजने का औचित्य वैसे भी नहीं है. आदर्श को विचारधारा के तराजू पर रखकर तौला जा सकता है लेकिन विचारधारा को आदर्श के तराजू पर नहीं रखा जा सकता. तराजू टूटने का भय रहता है. विचार विकसित होते हैं, आदर्श का विकास संभव नहीं. विकासशील या विकसित विचार कभी भी विकसित आदर्श की गारंटी नहीं दे सकते. विचार को आदर्श की कसौटी पर तौलें या आदर्श को विचारों की कसौटी पर, लक्ष्य हमेशा पता रहना चाहिए. लक्ष्य ही महत्वपूर्ण है. विचारधारा तभी तक महत्वपूर्ण है, जबतक हम उसपर चलते हैं.
ऐसे में कहा जा सकता है कि आदर्श पर ही चलना चाहिए.
जब कभी आप जैसे पहुँचे हुए लोग ऐसा सोचें जैसा हम भी कभी कभी सोचते हैं, तो अपनी सोच पर गर्व सा होता है !
ReplyDeleteआईडियल और आईडियोलोजी पर बहुत माकोइओल विचार हैं आपके ज्ञान जी ! बाकी के तो नहीं , हाँ मैं /हेन/तेन का मेंबर बनना चाहता हूँ जरा दफ्तर का पता बताईयेगा तो !
ReplyDeleteआप की बात समझ में तो आती है, लेकिन आदर्श जीवन के नाम पर लिओ तोल्स्तोय की कहानी फादर सर्जिअस याद आ गयी, आप ने भी पढ़ी ही होगी.
ReplyDeleteअच्छी राय है. पर स्वतंत्र उम्मीदवारों का क्या हाल कर रखा है देश की राजनीति ने यह भी समझ लेना चाहिए.
ReplyDeleteमजूरी तो मजूरी ही होती है, चाहे विचारधारा की ही क्यों न हो। वैसे कुछ लोगों को शायद इसलिए यह मजूरी अच्छी लगती है, क्योंकि उन्हें इसका मोटा मेहनताना मिलता है। वैसे मजूर यूनियन की नेतागिरी भी बड़ी फायदे की चीज है :)
ReplyDeleteहम समझ गये कि उदय प्रकाश जी का केवल प्रतिकात्मक संदर्भ है..मगर हमारे जैसे समझदार कितने होंगे जो यह समेझेंगे.छिद्रान्वेषण तो होकर रहेगा और आप नापे जायेंगे गर ब्लॉग जगत जागरुक है तो..यह ललकार है लाल जी की ब्लॉगजगत को ... :)
ReplyDelete" फिर एक दिन ऐसा आयेगा कि आपको लगेगा आप गुलिवर हैं और लिलीपुट में बौनों ने आपको ट्रैप कर रखा है "...पढ़कर बहुत आनंद आया. एसे विचार को बांटने के लिए आभार.
ReplyDeleteकिसी एक विचारधारा में बंधना ?? पता नहीं अभी तक मेरे साथ ऐसा है या नहीं.. आगे चल कर हो भी सकता है.. पर आपकी इस पोस्ट ने एक ऐसा विषय दिया है जिस पर पहले कभी सोचा नहीं..उम्मीद है उदय प्रकाश जी का नाम सभी प्रतीकात्मक हीसमझे..
ReplyDeleteआदर्श और विचारधारा में आपस में तुलना करना बहुत विचित्र है। वैसे ही जैसे पहनने की आदतों की तुलना खाने की आदतों से करने लगें। आदर्श पूरी तरह वैयक्तिक होते हैं, जब कि विचारधारा नहीं। आदर्श को किसी विचारधारा पर तरजीह देना भी एक विचारधारा है, उस से छुटकारा संभव नहीं। आदर्श से आप आजीवन बंधे रह सकते हैं, लेकिन विचारधारा से नहीं। विचार लगातार विकसित होते रहते हैं, यदि ऐसा नहीं तो उन की धारा कैसी? मुख्य बात यह है कि आप का लक्ष्य क्या है? यदि वह सही है तो फिर विचारधारा और आदर्श दोनों ही गौण गौण हैं। आदर्श और विचारधारा दोनों को ही लक्ष्य का स्थान नहीं दे सकते।
ReplyDeleteराग दरबारी इश्टाइल में कहें तो सिरीमान जी ने बड़ी गहरी बात कह दी...
ReplyDeleteअपने अनुभव से देखा है कि किसी भी विचारधारा से जुड़ने पर बेडियाँ पड़ती ही हैं| डैविलस् एडवोकेट बनके भी थोड़े समय तक प्रश्न उठा सकते हैं उसके बाद लोग सोचने लगते हैं कि कहीं दूसरे गिरोह का आदमी तो नहीं है, ;-)
इसी के चलते हम अपने को किसी एक विचारधारा का नहीं मानते,
कम्यूनिष्ट एमंग नेशनलिस्ट एंड नेशनलिस्ट एमंग कम्यूनिस्ट!!!
हाँ, धावक क्लब बिना सोचे समझे ज्वाइन कर लेते हैं, वहां कोई नहीं पूछता आपकी पालिटिक्स क्या है पार्टनर| बस दौडो और फिर साथ बैठकर बीयर के जाम छलकाओ, ;-)
आप सड़क बदल सकते हैं; बदलनी ही चाहिये। पर आप कम्पास नहीं बदलते। सही है !!
ReplyDelete@ दिनेशराय द्विवेदी > मुख्य बात यह है कि आप का लक्ष्य क्या है? यदि वह सही है तो फिर विचारधारा और आदर्श दोनों ही गौण गौण हैं। आदर्श और विचारधारा दोनों को ही लक्ष्य का स्थान नहीं दे सकते।
ReplyDeleteदेश भक्ति एक दमदार आदर्श है। पर भारत में दो वर्ग अपने (तथाकथित सही) लक्ष्यों के लिये इस आदर्श को दरकिनार करते रहे हैं। लाल झण्डे का प्रभुत्व बढ़ाने के लक्ष्य के लिये साम्यवादी इस आदर्श को गौंण मानते रहे हैं। इसी तरह अपने धर्म को वरीयता हासिल कराने के लक्ष्य के लिये कई भारतीयों ने पिछले मुम्बई आतंक हमले में कसाब एण्ड कम्पनी की सहायता की थी, और उनपर मुकदमा भी चल रहा है।
मैं भगत सिंह नहीं बनूंगा, पर इस प्रकार के (तथाकथित सही) लक्ष्य की बजाय देश भक्ति का वन्दन करूंगा!
कमाल है, आप और मैं इस विषय पर एक सा सोचते हैं!
ReplyDeleteखूब लिखा!!
आदर्श आदर्श है. विचारधारा विचारधारा है. ऐसे में एक आदर्श विचारधारा खोजी जा सकती है. विचारपूर्वक आदर्शधारा भी खोज सकते हैं. आदर्शपूर्वक विचारधारा खोजने का औचित्य वैसे भी नहीं है. आदर्श को विचारधारा के तराजू पर रखकर तौला जा सकता है लेकिन विचारधारा को आदर्श के तराजू पर नहीं रखा जा सकता. तराजू टूटने का भय रहता है. विचार विकसित होते हैं, आदर्श का विकास संभव नहीं. विकासशील या विकसित विचार कभी भी विकसित आदर्श की गारंटी नहीं दे सकते. विचार को आदर्श की कसौटी पर तौलें या आदर्श को विचारों की कसौटी पर, लक्ष्य हमेशा पता रहना चाहिए. लक्ष्य ही महत्वपूर्ण है. विचारधारा तभी तक महत्वपूर्ण है, जबतक हम उसपर चलते हैं.
ReplyDeleteऐसे में कहा जा सकता है कि आदर्श पर ही चलना चाहिए.
आदर्श आपको कम्पास उपलब्ध कराते हैं - दिशा बताने को। विचारधारा आपको सड़क उपलब्ध कराती है - आगे बढ़ने को। आप सड़क बदल सकते हैं; बदलनी ही चाहिये। पर आप कम्पास नहीं बदलते..
ReplyDeleteब्रह्म वाक्य है..
आदर्श आपको कम्पास उपलब्ध कराते हैं - दिशा बताने को। विचारधारा आपको सड़क उपलब्ध कराती है - आगे बढ़ने को। आप सड़क बदल सकते हैं; बदलनी ही चाहिये। पर आप कम्पास नहीं बदलते|
ReplyDeleteबहुत सुन्दर बात कही है , हम तो जहां जहां जा सकते थे गए, ब्रह्माकुमारी का भी ज्ञान अर्जित किया | जिसमे अपने आप को आत्मा समझ कर हर कर्म करने की शिक्षा दी जाती है |
मैं हैरान हूँ कि तकनीकी ट्रेनिंग लिए लोग एक जैसी ही परेशानी से कैसे रूबरू होटल हैं! मेरे साथ पढ़े कम से कम दो तो ऐसे हैं ही जो इस तरह की सोच रखते हैं।
ReplyDeleteबहुत पहले आचार्य रजनीश को पढ़ा था। कुछ कुछ याद आ रहा है।
- सिद्धांत, शास्त्र और वाद से मुक्ति
- भीड़ से, समाज से, दूसरों से मुक्ति
- पंथ और आडम्बर से मुक्ति
- बस, विधेयात्मक चिन्तन
प्रभु! यदि हो तो मुक्त करो मन को.
बहुत सुन्दर तय था | पर जो तय होता है वही तो नहीं होता ! लाजवाब रचना हैं !
ReplyDeleteसब माया है. आभार.
ReplyDeleteहैप्पी बड्डे भैय्या. मस्त रहो और देश को आगे बढाओ.
ReplyDelete" तब शुरू से ही आदर्श की बात क्यों न करी जाये? और बात ही क्यों आदर्श पर ही क्यों न टिका जाए।"
ReplyDeleteदरअसल विचारधारा को ही आदर्श मान कर चला जाता है और जब तक दिग्भ्रमित हो जाते है तब इतनी देर हो चुकी होती है वापिस लौटना कठिन हो जाता है-ठप्पा जो पड जाता है:)
आदर्श आपको कम्पास उपलब्ध कराते हैं - दिशा बताने को। विचारधारा आपको सड़क उपलब्ध कराती है - आगे बढ़ने को। आप सड़क बदल सकते हैं; बदलनी ही चाहिये। पर आप कम्पास नहीं बदलते।
ReplyDeletehuzoor ab to log compass bhi badal rahe hain...
...north pole aur south pole wala disha bhram ho gaya hai hum logon ko !!
satire....
propaganda....
issues....
controversies....
sab ganda hai par dhanda hai ye....
लगता है हमने पहचान लिया पर कन्फ़र्मेशन के लिये पंगेबाज जी से सम्पर्क हो पाता तो बेहतर रहता.
ReplyDeleteजब कोई किसी विचारधारा से बंध रहा होता है तो उसे आदर्श मान कर ही चलता है.विवेकशील वही है जो एक विचारधारा पर चल कर उसे बदलने की जरूरत नहीं समझता. उदय प्रकाश प्रकरण में विचारधारा से भटकने की वजह न हो कर दूसरी विचारधारा से घृणा होना है. यदि लाल ब्रिगेड का कोई सदस्य भूल से भी भगवा रंग छू लेगा तो अस्पृश्य हो जाएगा.
ReplyDeleteजीवन के कई दशक निकल जाने के बाद भी कई लोगों को विश्वास नहीं होता कि वो अनूठे हैं । प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में विशेष है पर वास्तविक जीवन में यह एकाकीपन हमसे हज़म नहीं होता है । जिन आधारों पर हमने कभी कल्पना नहीं की थी लोग अपने आप को उन आधारों पर बाँट लेते हैं ।
ReplyDeleteकुछ दिन पहले मेरे सुपुत्र बोले कि हम तीन (माता, पिता व वह स्वयं) एक गुट में हैं और बिटिया (जो छोटी है) अलग गुट में है । कारण बताया कि हम तीनों अपने अपने भाई बहनों में सबसे बड़े हैं । यह विचारधारा अभी तक पल्लवित व प्रसारित नहीं हुयी है अन्यथा घर के अन्दर ही नये गुट तैयार हो जायेंगे ।
गुटीय मानसिकता से वैश्विक चेतना की राह समग्र चिन्तन और उच्चतम आदर्शों से आती है और प्रायः कष्टप्रद रहती है । यदि लगता है कि आपने ठीक किया तो शोक कैसा और यदि किसी कार्य से शोक होता हो तो वह ठीक कहाँ से । अर्जुन के विचार भी प्रथम अध्याय में इसी प्रकार थे तब कृष्ण बोले ’क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ’ ।
मेरे समझ में आपका "लक्ष्य" सबसे महत्वपूर्ण और अपरिवर्तनशील होना चाहिए. जिसमे आप "आदर्श" को "विचारधारा" के कसोटी पर या "विचारधारा" को "आदर्श" के कसोटी पर तौल सकते है. कभी- कभी सामायिक परिवर्तन आदर्श और विचारधारा में जरूरी होता हैं, जब आप लक्ष्य को निश्चित कर लेते है और यदि आप आदर्श और विचारधारा में अडिग रहते हैं तो आप कभी-कभी आप लक्ष्य से दूर हो जाते हैं.
ReplyDeleteकम सव्दो में कहे तो "एक निर्दिष्ट लक्ष्य सही आदर्श और सही विचारधारा के द्वारा आसानी से प्राप्त किया जा सकता हैं.
मै दिनेशराय द्विवेदी जी की टीप सा सहमत हूँ . आदर्श वैयक्तिक होते है ये व्यक्ति के गुणों पर निर्भर करते है . आभार.
ReplyDeleteइसी द्वंद में तो जीवन बीता जा रहा है.
ReplyDeleteसिरीमान जी ने बड़ी गहरी बात कह दी! :)
ReplyDeleteitni gahri ki apan to doob hi gaye the
ReplyDeleteदूसरी धाराओ में बहने से अच्छा है एक नयी राह बनायीं जाए . सब धाराए प्रदूषित हो चुकी है . और इन पर वह लोग काबिज़ हो गए जो अपने को उस विचारधारा का सर्वेसर्वा समझते है .
ReplyDeleteविचारोत्तेजक। अच्छी चर्चा चली।
ReplyDeleteसीरीमान जी, ये तो इतनी तेज मानसिक हलचलात्मक पोस्ट है कि ससुरा कम्पास भी डिफ्लेक्ट होने में हडबडा जा रहा है।
ReplyDeleteविचार की ओर डिफ्लेक्शन जाने पर व्यक्तित्व वाली दिशा 180 डिग्री पर मिलती है और तो और व्यक्तित्व के बगल में ही दिशा भ्रम और मति भ्रम वाली स्थिति है अब कम्पास कहां-कहां रूके ?
विचारोत्तेजक पोस्ट।
आदर्शोन्मुख विचार देतें रहें,साभार।
ReplyDeleteतभी तो कहा गया है
ReplyDelete" बहुत कठिन है डगर पनघट की " :)
आपने इस गंभीर विषय पर लिखा,
अच्छा किया !
- लावण्या
आदर्श आपको कम्पास उपलब्ध कराते हैं - दिशा बताने को। विचारधारा आपको सड़क उपलब्ध कराती है - आगे बढ़ने को। आप सड़क बदल सकते हैं; बदलनी ही चाहिये। पर आप कम्पास नहीं बदलते।
ReplyDeleteविचारोत्तेजक लेख और शिवप्रकाश मिश्र जी की टिप्पणी का ता जवाब नहीं ।
जो भी हो ! चर्चा बहुत अच्छी व ज्ञान वर्धक चली है |
ReplyDeleteआभार/ मगल भावनाऐ
ReplyDeleteमुम्बई-टाईगर
SELECTION & COLLECTION