Wednesday, May 13, 2009

हिन्दी तो मती सिखाओ जी!


हिन्दी ब्लॉगिंग जमावड़े में एक सज्जन लठ्ठ ले के पिल पड़े कि अरविन्द मिश्र जी का पावर प्वाइण्ट अंग्रेजी में बना था। मिश्रजी ने चेस्ट (chaste – संयत) हिन्दी में सुन्दर/स्तरीय/सामयिक बोला था। ऐसे में जब हिन्दी वाले यह चिरकुटई करते हैं तो मन में इमली घुल जाती है।
Arvind Mishra जुगाल-तत्व: मुझे नहीं लगता कि हिन्दी के नाम पर इस तरह बवाल करने वाले वस्तुत हिन्दी के प्रति समर्पित हैं। हंगामा खड़ा करना या बहती में बवाल काटना इनका प्रिय कर्म है। और ये लोग एक इंच भी हिन्दी को आगे बढ़ाने वाले नहीं हैं!

हिन्दी/देवनागरी में एक शब्द/वाक्य में दस हिज्जे की गलती करते ठेलिये। उच्चारण और सम्प्रेषण में भाषा से बदसलूकी करिये – सब जायज। पर द मोमेण्ट आपने रोमनागरी में कुछ लिखा तो आप रॉबर्ट क्लाइव के उत्तराधिकारी हो गये – भारत की गौरवशाली विरासत के प्लण्डरर!

साहेब, हिन्दी प्रेम वाले इसी चिरकुटई के कारण हिन्दी की हिन्दी कराये हुये हैं। काहे इतना इन्फीरियॉरिटी कॉम्प्लेक्स में मरे जाते हैं? काहे यह अपेक्षा करते हैं कि ब्लॉगर; जो सम्प्रेषण माध्यम की सभी सीमाओं को रबर की तरह तान कर प्रयोग करना चाहता है (आखिर पब्लिश बटन उसके पास है, किसी सम्पादक नामक जीव के पास नहीं); वह भाषा की शब्दावली-मात्रा-छन्द-हिज्जे-व्याकरण की नियमावली रूल-बुक की तरह पालन करेगा?

मैं भाषा प्रयोग में ओरीजिनल एक्स्पेरिमेण्टर कबीरदास को मानता हूं। भाषा ने जहां तक उनका साथ दिया, वे उसके साथ चले। नहीं दिया तो ठेल कर अपने शब्द या अपने रास्ते से भाषा को अनघड़ ही सही, एक नया आयाम दिया। और कोई ब्लॉगर अगर इस अर्थ में कबीरपन्थी नहीं है तो कर ले वह हिन्दी की सेवा। बाकी अपने को ब्लॉगरी का महन्त न कहे।

सो हिन्दी तो मती सिखाओ जी। हमारे पास तीन सौ शब्द नियमित ठेलने की आजादी हिन्दी के महन्तों की किरपा से नहीं है। और वह आजादी स्वत मरेगी, जब मात्र ठेलोअर (theloer – pusher) रह जायेंगे, कम्यूनिकेटर (communicator – सम्प्रेषक)  नहीं बचेंगे।

समीर लाल कह रहे थे कि जुगाली चलने वाली है। सही कह रहे थे!   

45 comments:

  1. हाँ हाँ हिन्दी तो मती सिखाओ जी!बिल्खुल खुल कर सच्ची बात कही !!
    100% सहमत ( आखिर प्रोबबिलिटी में 100% से ऊपर क्या?)

    बहुत करीने से धोया आपने!!
    पर पता नहीं चल पाया थे कौन साहब??





    बकिया सुबह के चार बजे इतना वैचारिक क्रोध ठीक नहीं!!

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  2. बिलकुल सही कहा आपने . हम लोगो को क्या हिंदी सिखानी पड़ेगी

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  3. अरविन्द जी की हिन्दी स्तरीय है, उनका ब्लॉग इसकी गवाही देता है ।

    निश्चय ही कबीर की तरह भाषा की सामर्थ्य दुर्लभ है । सहमत हूँ इस बात से पूर्णतः - "हमारे पास तीन सौ शब्द नियमित ठेलने की आजादी हिन्दी के महन्तों की किरपा से नहीं है। वह आजादी स्वत मरेगी, जब मात्र ठेलोअर (theloer – pusher) रह जायेंगे, कम्यूनिकेटर (communicator – सम्प्रेषक) नहीं बचेंगे।"
    धन्यवाद ।

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  4. वाह वाह! यह ‘मन में इमली घुल जानें’ वाल तो original मुहावरा लगता है।

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  5. वहाँ सबने तत्काल यही समझा कि ये सज्जन सठियाये हुए हैं। दर‍असल वार्ता इतनी स्पष्ट और बोधगम्य थी कि बार-बार आग्रह करने पर पर भी श्रोताओं की ओर से कोई प्रश्न नहीं आ पा रहे थे। इन बुजुर्ग ने सोचा होगा कि कहीं श्रोता समुदाय को निष्क्रिय न मान लिया जाय इसलिए कुछ न कुछ तो पूछना ही चाहिए। सो उन्होंने यह हिन्दी-अंग्रेजी का शग़ूफा छोड़ दिया होगा।

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  6. माइक के उधर वाले को कुछ भी पूछने का अधिकार होता है! उन्होंने पूछा था कि यह पावर प्वाइंट अंग्रेजी में काहे बनाया? अब उन्होंने सवाल पूछा और आप इसे चिरकुटई बता रहे हैं! ये अच्छी बात नहीं है। भाषण-वाषण में इस तरह के सवाल जिनका कोई मतलब नहीं होता उछलते हैं। तदनुरूप बेमतलब के जबाब भी तुरन्त उछाल देने चाहिये। हिसाब बराबर। बकिया इमली घुल जाने वाली बात की तारीफ़ एक कनपुरिया ,सुमन्तजी, कर ही चुके तो अब उसे क्या दोहरायें लेकिन पर द मोमेण्ट आपने रोमनागरी में कुछ लिखा तो आप रॉबर्ट क्लाइव के उत्तराधिकारी हो गये – भारत की गौरवशाली विरासत के प्लण्डरर! आईनेस्ट वालों को आपके ऊपर कापी राइट का मुकदमा ठोंक देना चाहिये कि आपने उनकी भाषा और शैली दोनों चुराईं।

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  7. सेम पिंच भाई जी. कबीरदास इसीलिए मुझे भी पसंद हैं. :)

    हॉल में प्रश्नों का ओपन सेशन हो, और एक भी चिरकुट न मिले जो मन में इमली घोल जाये, तब तो कार्यालय में ही मातहतों की मीटिंग ठीक रहेगी.

    आप भी कहाँ दिल से लगा कर बैठ गये.

    जुगाली के भी तो कुछ नियम और कायदे होंगे, ऐसा मैने सोचा. क्या कहते हैं आप?? :)

    अरे हाँ, नाती का ब्लॉग नहीं खुला अभी तक...क्या कर रहे हैं..हफ्ता होने जा रहा है. आप भी हर जगह रेल्वे ही मान लेते हैं जी. :)

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  8. इसमें कोई खास बात नहीं है इलाहाबाद विश्वविद्यालय परिसर में कोई समारोह हो परम्परागत रूप में हिन्दी -अंगरेजी की चर्चा हो ही जाती है ,कुछ असर ही ऐसा है इलाहाबादी पानी का .मुझे याद है की १९८६ में सीनेट हाल में हो रहे एक भव्य समारोह को जब भारत के तत्कालीन सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश महोदय अपना व्याख्यान देने को प्रस्तुत हुए तब भी यही सवाल उठा था ,इसके बाद भी वहां होनें वाले अक्सर कार्यक्रमों में इस तरह की आवाजें आती रहीं है लेकिन इसी में ही ज्ञान का भी प्रसारण होता रहा है .

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  9. हिन्दी वालों में हिन्दी कराने वालों की कमी नहीं।

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  10. हिन्दी प्रेम वाले इसी चिरकुटई के कारण हिन्दी की हिन्दी कराये हुये हैं .. बिल्‍कुल सही।

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  11. आप तो जानते हैं कि हम तो खुद ही इस *मटोली के बादशाह हैं. तो अपने मुंह क्या कहें?

    हां आज इंमली घोलने वाला नया मुहावरा लेके जारहे हैं. आपने कुल कितने शब्द अभी तक नये रचे? कुछ हिसाब हो तो बताईये..हमको एक ठो पोस्ट का जोगाड जमाना है.

    रामराम.

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  12. हमारे मित्र अंकुर वर्मा ह्यूस्टन में हमारे पास ११ दिन बिताकर कल ही कानपुर रवाना हुए हैं | उनसे भी चर्चा हो रही थी कि हिंदी ब्लॉग जगत में कभी कभी बहुत कोफ्त होती है| हमारे जैसे लोग जो दो कश्तियों में पैर रख सफ़र करते हैं उनको तो अधिक समस्या है| कभी कभी हिन्दी ब्लॉग पढने पर लगता है कि मथुरा से बरेली की ट्रेन में बैठ गए हों, बस सब सुनाने को बैठे हैं सुनने को कोई तैयार नहीं|

    खैर हमें तो आपकी ३०० शब्दों वाली पोस्ट ही पसंद है तो आते रहेंगे आप हिन्दी में लिखें कि अंगरेजी में, :-)

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  13. सही कहा.. "सो हिन्दी तो मती सिखाओ जी.."

    जो है जैसा है... ये है...

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  14. सो हिन्दी तो मती सिखाओ जी। हमारे पास तीन सौ शब्द नियमित ठेलने की आजादी हिन्दी के महन्तों की किरपा से नहीं है। और वह आजादी स्वत मरेगी, जब मात्र ठेलोअर (theloer – pusher) रह जायेंगे, कम्यूनिकेटर (communicator – सम्प्रेषक) नहीं बचेंगे।


    I appreciating yur this post because you atended the function and then came up with this

    many a times I am told that hindi bloging means writing good hindi

    and in all such seminars where is the " blogger "

    just because some people know good hindi and can do public speaking { ie because they have time and its their profession } does not make them a blogger

    many of them dont update blogs even once a week !!!!!!!! let alone comment on issues
    and for many such seminars are to become known in hindi world thru bloging because not many have any "rocoqnition" in hindi world

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  15. कतिपय संशोधन करना चाहूंगा। ळेखकीय आक्रामकता और हिंदी प्रेमियों के प्रति पूर्वाग्रह को छलकाती आपकी अभिव्यक्ति वस्तुत: हिन्दी की नहीं राजभाषा हिंदी की बात कर रही है।
    एक्चुअली राजभाषा में अपनी सुविधा से वर्ड्स जोड़ते रहिए क्योंकि राजभाषा का उद्देश्य सही ढंग से कम्यूनिकेट करना है। हिंदी तो अपनी मस्ती में चली जा रही है तथा उसके स्वरूप में अस्वाभिक छेड़छाड़ संभव नहीं है किन्तु राजभाषा में खिचड़ी शब्दावली सहज भी है और स्वीकार्य भी।

    धीरेन्द्र सिंह.

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  16. ज्ञानदत्त जी,
    उपर की लीक से हटकर बोलने का मन बनाया है और वह यह है कि आपके लेख में मुझे विरोधाभासों का जमवाड़ा दिख रहा है।

    पहली बात तो ये कि एक तरफ सुनने में आ रहा है कि श्रोता लोग मुंह ही नहीं खोल रहे थे और दूसरे तरफ किसी ने एक वाजिब प्रश्न पूछ दिया तो उसको 'सठियाना', 'चिरकुटई' और क्या-क्या रूपक झेलने पड़ रहे हैं।

    आप हिन्दी ब्लागिंग की बात कर रहे हैं और कैसे कोई संवेदनशील आदमी इतने बड़े विरोधाभास को स्वीकार कर ले कि आपकी स्लाइडें अंग्रेजी में हैं? (हो सकता है कि आपके पास इसका वाजिब कारण रहा हो।)

    लेख में कबीर का उदाहरण भी बिल्कुल उल्टा है। कबीर दास जनता की बोली को प्राथमिकता दिये; आप जनता की बोली का तिरस्कार करते पाये गये और फिर भी अपनी रक्षा में कबीर को ही 'कोट' कर दिया!

    वर्तनी और ग्रामर की गलतियाँ क्या अंग्रेजी में कम होती हैं? (और वह भी ठेठ-हिन्दी-क्षेत्र के लोगों द्वारा?) क्या यही तर्क है?

    आपके लेख से यह भी जाहिर नहीं होता कि इस तरह का प्रश्न उठाने से हिन्दी का अहित कैसे हो जाता है? क्या मैकाले और क्लाइव कोई 'मिथकीय चरित्र' हैं कोई वास्तविक नहीं?

    और अन्तिम - क्या इनफेरिआरिटी कम्प्लेक्स केवल हिन्दी वालों के लिये रिजर्व है? कहीं ऐसा तो नहीं कि स्थिति उल्टी हो? मुझे तो यही जान पड़ता है कि हम बीच-बीच में अक्सर अपनी अंग्रेजी इसलिये बघारते फिरते हैं कि कोई हमे 'कम पढ़-लिखा' न समझ बैठे।

    किसी विद्वान ने सही ही कहा है कि "भाषा का सबसे बड़ा उपयोग अपने वास्तविक भावों को छिपाने के लिये होता है।"

    (कृपया ध्यान रहे कि अरविन्द जी के हिन्दी-प्रेम या हिन्दी-क्षमता पर मुझे कोई संदेह नहीं है। मुझे यह भी विश्वास है कि उस बुजुर्ग को उन्होने सम्यक उत्तर देकर संतुष्ट किया होगा|)

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  17. बवाल गलत हिन्दी पर था कि अंग्रेजी पर? गलत हिन्दी पर था तो आपके साथ हूँ. अंग्रेजी पर था तो सामने वाले को पूछने का हक है कि हिन्दी की गाते हो तो अंग्रेजी का काहे बजाते हो? क्या हिन्दी में प्रजनटेशन नहीं बन सकता? वैसे मर्जी बनाने वाले कि चाहे उसमें बनाए. विध्नसंतोषी व आलोजक में फर्क होता है. एक की परवाह नहीं करनी चाहिए तो दुसरे पर कान देना चाहिए.

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  18. हिन्दी तो उदार भाषा और हर किसी भाषा के शब्दो को आत्मसात कर लेती है।इसिलिये हर साल उसमे अनेक नवीन शब्दो को जुड़ते देखा जा सकता है।हाल के वर्षों मे जितने नवीन शब्द हिन्दी भाषा मे आये है उतने विश्व कि किसी अन्य भाषा मे नही।जाने दिजिये कुछ लोगो का काम ही होता है बहती मे बवाल काटना।इम्ली नही आम का स्वाद लिजिये,मन खट्टा मत किजिये।

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  19. हिन्दी की हिन्दी कराये हुये हैं.....

    जी! .....

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  20. @ श्री अनुनाद सिंह>...उपर की लीक से हटकर बोलने का मन बनाया है और वह यह है कि आपके लेख में मुझे विरोधाभासों का जमवाड़ा दिख रहा है।
    अच्छा लगा यह विरोध! जितना आपको मेरे इन्फीरियारिटी कॉम्प्लेक्स पर विश्वास है, उससे अधिक मेरे मन में आपके हिन्दी भाषा की सेवा रत होने और मौलिक योगदान पर विश्वास है।
    आप निश्चिन्त रहें हम तो बरसाती दादुर हैं। कुछ समय बाद चुकने वाले हैं। काल-सर्पयोग है हमारे साथ!

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  21. समीर जी से कुछ ,अनुनाद जी ओर संजय जी से पूरी तरह सहमत हूँ.....उनकी आपत्ति स्वाभाविक है ....सोचिये आप तमिलनाडू में हिंदी पर गोष्टी करे ओर तमिल में स्लाइड दिखाये .

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  22. हिंदी को हिंदी के महंत नहीं गढ़ रहे हैं, ये तो सिर्फ हल्ला काट रहे हैं। उनकी चिंता ना कीजिये, जमाये रहिये। नाती को खिलाइये, कुछ दिन उसमें मगन रहिये। काहे चिरकुटों में टाइम वेस्ट करते हैं जी।

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  23. ये राजभाषा वाली हिंदी, हिंदी के राजाओं की भाषा है ...राजा लोग कितना ही जोर लगा लें, चलेगी वही हिंदी जो आम अज्ञानी बोलेगा. हे भगवान...हिंदी पर फिर इतना बवाल क्यों !

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  24. श्रोता/ दर्शक सेमिनारों में ..जो भी माईक के उस पार बैठे हैं उन्हें सवाल करने की पूरी आज़ादी होती है..

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  25. सुन्दर पोस्ट और उतना ही उत्तरदायित्व भरा टिप्पणी विवेचन भी !
    उन सज्जन का तत्क्षण जो मंतव्य मैं समझ सका वह यही था कि हिन्दी के कार्यक्रम में पावर पाइंट प्रेजेंटेशन ( अब इसकी हिन्दी क्या है ?) अंगेरेजी में क्यों? सच कहूं मुझे इस सवाल पर अकस्मात आक्रोश सा हो आया -मैंने यही कहा कि मेरे मन में किसी भी भाषा के प्रति कोई दुराव नहीं ! मैंने उन सज्जन को यही कहा कि भाई मेरे, भले ही पावर पाइंट प्रेजेंटेशन अंगरेजी में है बोल तो मैं विशुद्ध हिन्दी में ही रहा हूँ और उन्हें मैंने यह भी कहा कि अंगरेजी और हिन्दी दोनों ही खूबसूरत भाषा है -मेरे मन में दोनों के प्रति सम्मान है ! मैंने यह भी कहा कि मैं उस बिंदु पर और कोई बात नही करना चाहता ! एक दूसरे श्रोता ने माहौल सहज करते हुए कहा कि दरअसल वे सज्जन यह जानना चाहते थे कि क्या हिन्दी में पी पी पी हो सकता है या नहीं ! और मैंने ज्ञान जी की अगली बेहतरीन पावर पाइंट प्रस्तुति जों हिन्दी में ही थी का जिक्र कर जान छुडाई ! डायस छोड़ते समय मुझे उन्ही प्रश्नकर्ता सज्जन के ठीक बगल में बैठीं हुई आदरणीय रीता पाण्डेय जी का प्रोत्साहित करने वाला कमेन्ट भी सुनाई पडा -लोग कैसा मीन मेख निकालते रहते हैं ! मैंने एक वक्ता के रूप में इस विशिष्ट श्रोता को भी मन ही मन धन्यवाद कहा और माईक संचालक को सौप दिया !

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  26. हम तो भाषा को अपने विचारों को अभिवयक्त करने का माध्यम मानते है.. मुझे नहीं पता शुद्ध हिंदी और अशुद्ध हिंदी क्या होती है..
    रही हिंदी के कार्यक्रम में इंग्लिश प्रस्तुति की बात. तो इसमें कुछ गलत नहीं है.. जहा तक मुझे लगता है पॉवर पॉइंट में हिंदी का इस्तेमाल संभव नहीं और यदि ऐसा है भी तो सबको इस विषय में पता भी नहीं होगा.. फिर अपनी बात कैसे कही जाए ?
    फिर आप लोग घर जाकर क्या कहते है ?
    हिंदी के सेमीनार में जाकर आया हूँ ? क्या सेमीनार हिंदी शब्द है?

    वैसे यदि अंग्रेजी के कार्यक्रम में कोई हिंदी में स्लाईड बनता तो हम खुश हो जाते और पोस्ट छाप देते.. फिर भी संजय बेंगानी जी की बात मानता हूँ

    वैसे हमने तो कल ही अपना अंग्रेजी ब्लॉग बनाया है.. हो सकता है कोई हमसे भी नाराज़ हो जाये..

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  27. वि‍रोधी स्थि‍ति‍याँ तो बनी ही रहेंगी।

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  28. कुछ तो लोग कहेगें लोगों का काम है कहना , आप तो अपने नाती की बातें बताइए…।:)

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  29. हिंदी ब्लॉग्गिंग के पहले क्या हिंदी में डिग्री लेनी पड़ेगी? जो भी हो... मुझे तो याद आया २ साल पहले अपनी गणित की थीसिस का प्रेसेंटेशन लेटेक (Latex) में बनाया था और आखिर पेज पर लिखा था. 'दिस प्रेजेंटेशन वाज मेड इन लेटेक. ट्राई टू राइट Bucureşti इन पॉवर पॉइंट.' वेल तब यह नहीं लिखा जा सकता था अब शायद पॉवर पॉइंट में ये क्षमता है.
    मैं पॉवर पॉइंट का विरोधी नहीं लेकिन लेटेक में जो खूबसूरती आती है उसका मैं फैन हूँ. लेकिन उसकी कम्प्लिकेसी थोडी परेशान कर देती है. लेटेक की जगह पॉवर पॉइंट में रात भर का काम १० मिनट से कम में हो जाता है. घुमा फिरा के वही बात है... जिसको जो पसंद क्या अच्छा, क्या बुरा ! लेकिन किसी पर कुछ थोपना सही नहीं है.

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  30. ज्ञान जी,
    इन "हिंदी" में बोलने वालो को जब तक बोलने के पैसे मिलते रहेंगे, ऐसा ही होता रहेगा.

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  31. सीधी.....सच्ची....अच्छी.... बात. हमारा वोट आपको...
    नीरज

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  32. आपने अपने ब्लॉग की सेटिंग में चेंज करके बहुत अच्छा कार्य किया, वर्ना हर बार दूसरी तीसरी विंडो खोलनी पडती थी।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  33. कम्प्यूटर के क्षेत्र में हिन्दी का प्रवेश नया है । बात ब्लागिंग की है न के हिन्दी के पुरातन स्वर्णिम उत्थान की । बात अपनी मातृभाषा में विचारों के सम्प्रेष्ण की है न कि छ्न्दों में लिपटी क्लिष्ट भाषा में अपनी विद्वता धौकने की ।
    प्रश्न बहुत पहले उठना था किन्तु इस बैठक में उठकर बैठक को सार्थक कर गया ।
    कम्प्यूटर, मोबाईल और गजेट्स के साथ साथ मुझे हिन्दी से भी अप्रतिम लगाव है । आई आई टी में पढ़ने के कारण इन्टरनेट से सानिध्य पुराना है । प्रारम्भ में तो हिन्दी और कम्प्यूटर के बीच कोई सम्बन्ध ही नहीं था । फोण्टों पर एकरूपता न होने के कारण इन्टरनेट पर हिन्दी भी रोमन जैसी प्रतीत होती थी । यह तो यूनीकोड को धन्यवाद दें कि हम सब इतनी आसानी से एक दूसरे के विचार पढ़ पा रहे हैं ।
    गूगल ने न केवल ब्लाग को चर्चित किया वरन हिन्दी में लिखने की सुविधा और हिन्दी में साइटें लाकर एक अविस्मरणीय मंच दिया है हिन्दी के प्रचार प्रसार को । इसी प्रकार आईरोन (एक इज़राइली कम्पनी) ने मुझे विन्डो मोबाइल में हिन्दी के ग्रन्थ, पुस्तकें एवं ब्लाग पढ़ने की सुविधा दी ।
    एसएमएस व ईमेल में हम हिन्दीप्रेमी कई वर्षों तक हिन्दी रोमन वर्तनी में लिखकर अपना प्रेम दिखाते रहे । अभी सारे मोबाइल हिन्दी को सपोर्ट नहीं करते हैं अतः देवनागरी में संदेश भेजने से उसका ब्लाक्स के रूप में दिखने का खतरा बढ़ जाता है ।
    अभी तक के लेख में अंग्रेजी के कई शब्द ऎसे थे जिनका चाह कर भी हिन्दी अनुवाद नहीं कर पाया । यही संकट शायद हमारे अन्दर का भी है । अति टेक्निकल क्षेत्र में यदि अंग्रेजी के शब्दों को यथावत देवनागरी में लिखूँ तो वह कईयों को अपराध लगेगा पर विचारों को लिखना तो पड़ेगा ही ।
    शायद यही कारण रहा होगा अंग्रेजी में पावर प्वाइण्ट देने का । उसमें भी यदि किसी को मीन मेख निकालने का उत्साह हो तो उसे और भी उत्साह दिखाना होगा उन ब्लागरों को नमन करने के लिये जो इण्टरनेट को अपनी मेहनत के हल से जोत कर हिन्दी उत्थान में एक नया अध्याय लिख रहे हैं ।
    जनता इण्टरनेट और ब्लाग की है और जिस भाषा का प्रयोग विचारों के सम्प्रेषण के लिये आवश्यक हो, समुचित उपयोग करें और उससे सबको लाभान्वित होने दें । जैसे भारतीय संस्कृति ने कईयों को अपने हृदय में धारण कर लिया है उसी प्रकार हिन्दी भी इतनी अक्षम नहीं है कि कुछ अंग्रेजी के शब्दों से अपना अस्तित्व खो देगी । मेरा यह विश्वास है कि इन्टरनेट में हिन्दी के स्वरूप में संवर्धन ही होगा ।
    (तुलसीदास को बहुत गरियाया गया था संस्कृत छोड़कर अवधी में लिखने के लिये । जनता की भाषा क्या है, हर घर में रखी रामचरितमानस इसका उत्तर है ।)

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  34. भारत की गौरवशाली विरासत के प्लण्डरर!
    iska arth main nahin samajh pa rahaa hoon.
    Atah aapko hindi seekhne ki zaroorat hai.
    :)

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  35. :)
    सभी की टीप्पणियोँ से
    हिन्दी अँग्रेज़ी दोनोँ के प्रयोग
    तथा अँतर्जाल के विविध आयाम व उपकरणोँ का अँतर्सँबध स्पष्ट हुआ है -
    " इस बहती धारा मेँ जग की
    जो बह गये
    सो बह गये ,
    कुछ छूट गये,
    कुछ रुढ गये
    ..उनसे पूछो,
    उत्तर क्या है ?
    जीवन जीने की
    इस आपाधापी का
    मतलब क्या है ? "
    (क़विता: लावण्या की :)है ....
    - लावण्या

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  36. हिन्दी की इसी अतिवादिता से ही हिन्दी की छीछालेदर हो रही है। ‘हिन्दी वालों को हिन्दी सीखने की क्या जरूरत है’ ने ही हमें हिन्दी से दूर कर दिया है। ब्लागिंग ने हिन्दी के विकास का रास्ता खोला है पर बड़ी ही चिन्ताजनक रूप में।
    चलिए हिन्दी न सिखाई जाये, कृपया आप ही हमारी ओर से हिन्दी के इन योजक शब्दों का अर्थ स्पष्ट करवा लीजिए-
    और, तथा, एवं, व
    ये कब, कहाँ, क्यों और किस प्रकार से प्रयोग में लाये जाते हैं। शेष अब हम अपनी पोस्ट से पूछेंगे।
    अन्यथा न लीजिएगा।

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  37. एक सवाल पूछने भर से वह सज्जन चिरकुट कैसे हो गए? आप कुछ बोलें तो अभिव्यक्ति की आजादी और उन्होंने कुछ पूछा तो चिरकुटई। वाह...।

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  38. आपकी पोस्ट व उस पर आई तमाम टिप्पडी पढी मुझे बस एक बात सूझी थी उस समय की जो प्रश्न उन महोदय ने पुछा था (मैं उनका चेहरा नहीं देख पाया था) उस में कोई खराबी नहीं थी
    उन्होंने मात्र एक सीधा सच्चा सवाल किया की अगर बात हिन्दी ब्लॉग की हो रही है न की केवल ब्लॉग की तो आप ने प्रेजेंटेशन इंग्लिश में क्यों दिखाई
    मगर दुःख तब हुआ जब उनकी बात का समुचित उत्तर नहीं दिया गया और सभी उन पर टूट पड़े ये जतलाने के लिए की तुम तो गोबर गणेश हो चुप बैठो
    मुझे समझ नहीं आया की ऐसा क्यों हुआ
    अरविन्द जी भी कन्नी काट गए यह कहते हुए की इस विषय पर मैं कुछ नहीं कहना चाहता

    आपसे बस ये ही कहना चाहता हूँ की अगर कोई कमेन्ट इंग्लिश में करे तो सभी को लगता है यार ये हिन्दी में कमेन्ट क्यों नहीं करता आखिर हम हिन्दी ब्लोगिंग कर रहे है
    बस यही विचार उनके मन में भी रहा होगा
    अगर भाषा की बात नहीं है तो क्यों आपने हिन्दी में स्लाइड बनाई
    क्या आपको इंग्लिश नहीं आती,,,,,
    ऐसा होना तो नहीं चाहिए ........

    आपका वीनस केसरी

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  39. आपका ब्लॉग उन चन्द ब्लॉगों में है, जिन्हे मैं पसन्द करता हूँ, नियमीत पढ़ता हूँ.

    टिप्पणी का विकल्प इसलिए नहीं है कि हाँ में हाँ, ना में ना कहा जाय. ऐसा टिप्पणी इच्छूक लोग ही कर सकते है. आपने अपनी बात कही. हमने पढ़ी और इमानदारी से अपना मत व्यक्त किया. यही सच्ची ब्लॉगरी है. यहाँ मन दुःख की कोई बात नहीं है.

    जब आप (यानी कोई भी) हिन्दी में क्या क्या हो सकता है, बताना चाहते है तब आपको भी पता होना चाहिए कि हिन्दी में क्या क्या हो सकता है. और जो हो सकता है उसका उपयोग करके दिखलाना चाहिए. इस तरह अंग्रेजी स्लाइड-शो एक गलती थी.

    आपका ब्लॉग एक उपलब्धी है, यह ब्लॉग वास्तव में ब्लॉग जैसा लगता है. अतः सर्प योग वगेरे जैसी बात न करें.

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  40. एकदम सही कहा। हिन्दी की हत्या करने वाले और कोई नही, हिन्दी का सम्मान का ठीकरा सर पर उठाए ऐसे ही महानुभाव है। हिन्दी ब्लॉगिंग मे हमने या दूसरे ब्लॉगर्स ने हमेशा बोलचाल वाली भाषा को ही महत्व दिया है। बोलचाल की आम भाषा मे अंग्रेजी के भी शब्द आते है, उर्दू, फारसी और कुछ अन्य भाषाओं के भी। ऐसे शब्दों का प्रयोग करके हम हिन्दी को और लोकप्रिय ही बना सकते है। हिन्दी का भला हिन्दी की सर्वमान्य स्वीकार्यता से होगा, जबरदस्ती किसी के ऊपर लादने या क्लिष्ठ शब्दों का घालमेल करने से नही।

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  41. सही कहा आपने। जब मैने नयी नयी हिन्दी ब्लागिग शुरु की थी, मुझे भी काफ़ी असहजता थी। मै एक बहाव मे लिखता था, किन्ही anonymous बन्धु को पसन्द नही आया और उन्होने बस एक लाईना advice दी:

    https://www.blogger.com/comment.g?blogID=5611884776630699552&postID=6251008404592276424

    वैसे आपकी बात मे कुछ जोड्ना चाहूगा, आप प्रसून जोशी को देखिये, उनके लिखे हुए गीतो को सुनिये। वो आज के युग के जावेद और गुलज़ार है और उन्होने हिन्दी गीतो को पुनरजीवित किया है॥

    धन्यवाद बारहा के लिये भी, आजकल उसका ही प्रयोग करता हू :)

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  42. हिन्दी तो मती सिखाओ जी
    बिलकुल ठीक!

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  43. उस व्यक्ति ने ठीक ही सवाल किया, पावर पोइंट प्रस्तुति अंग्रेजी में क्यों थी?

    बहुत लोग पुरानी आदत के चलते अंग्रेजी का प्रोयग करते चलते हैं, जबकि अब हिंदी में काम करना निहायत आसान हो गया है। उदाहरण के लिए अब पावर पोइंट की भी प्रस्तुति हिंदी में बनाना उतना ही आसान है जितना उसे अंग्रेजी में बनाना। यदि हमें उसे हिंदी बनाने से कुछ रोकता है, तो वही पुरानी आदत।

    पुरानी आदत से छुटकारा पाना मुश्किल होता है, पर कोशिश तो करनी ही चाहिए सबको, विशेषकर जब वह अहितकारी हो।

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  44. ज्ञानजी

    @साहेब, हिन्दी प्रेम वाले इसी चिरकुटई के कारण हिन्दी की हिन्दी कराये हुये हैं। काहे इतना इन्फीरियॉरिटी कॉम्प्लेक्स में मरे जाते हैं?

    काहे यह अपेक्षा करते हैं कि ब्लॉगर; जो सम्प्रेषण माध्यम की सभी सीमाओं को रबर की तरह तान कर प्रयोग करना चाहता है ।"

    यह बात सही है। आदमी को लकीर का फकिर नही होना चाहिऐ । पर सर, माफ करना । यहॉ मै आपके मत से ऐसे हिन्दी इवेन्ट के लिऐ सहमत नही बन पा रहा हू । जो स्पेशली हिन्दी बनाम अग्रेजी के लिऐ बना हुआ है। भाषाई कार्यो मे लोग स्वाभिमान लिऐ हुऐ जुडे होते है। उदारहण के लिऐ हमारे उत्तरभारत के हिन्दी ब्लोगकरताओ को साउथ के किसी हिन्दी ब्लोग मेले मे पहुचा दो, वहॉ आपसी बात से लेकर सभी अग्रेजी मे होता है। जो वैसे मे हमारा देशी ब्लोगर जो वहॉ है, वो उब जाऐगा। क्यो कि उसे वहॉ अपने घर का माहोल नही लगेगा। इस तरह के इवेन्ट मे बडी ही सर्तकता बर्तनी पडेगी, क्यो कि हमे हिन्दी चिठठाजगत के विकास एवम चिठाकारो कि हिचक दुर करनी है। अन्तिम व्यक्ति को भी स्न्तुष्ट करना ही लक्ष्य बने तो ही ऐसे आयोजनो कि सार्थकता है वर्ना फोटु खिचाई वाले मेले बन कर रह जाते है ऐसे आयोजन। आप हिन्दी चिठा जगत मे आदि पुरुष माने जाते है, और वो ही अगर हमारा ध्यान नही रखेगा तो फिर नऐ नवलो से क्या उम्मीद। इन्फीरियॉरिटी कॉम्प्लेक्स वाली बात नही है जी यह भाषाई प्यार और स्वाभिमान से झुडी बात है। चुकी आयोजको ने "हिन्दी ब्लोगिग कि दुनिया" वाला बोर्ड लगाया तो विषय के हिसाब से हिन्दी भाषी कार्यशाला थी तो कोई भी ऐसे सवाल उठाने के लिऐ स्वतन्त्र है।

    आप मेरी कोई बात को व्यक्तिगत ना ले अन्यथा भी ना ले, क्यो कि जहॉ प्यार, आदर एवम सम्मान के भाव हो वही नाराज हुआ जा सकता है, शिकायत कि जा सकती है। और आप मेरे आदरणीय।

    मेरे विचार विषय को लेकर है व्यक्ती विशेष को लेकर नही।

    (नोट-:यह मेरा कमेन्ट इस पोस्ट के लिऐ लेट है पर विषय मेरे अनुकुल था ईसलिऐ मत भेजना अच्छा लगा।)

    मुम्बई टाईगर एवम हे प्रभु यह तेरापन्थ का प्रणाम जी

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  45. ज्ञानजी

    @साहेब, हिन्दी प्रेम वाले इसी चिरकुटई के कारण हिन्दी की हिन्दी कराये हुये हैं। काहे इतना इन्फीरियॉरिटी कॉम्प्लेक्स में मरे जाते हैं?

    काहे यह अपेक्षा करते हैं कि ब्लॉगर; जो सम्प्रेषण माध्यम की सभी सीमाओं को रबर की तरह तान कर प्रयोग करना चाहता है ।"

    यह बात सही है। आदमी को लकीर का फकिर नही होना चाहिऐ । पर सर, माफ करना । यहॉ मै आपके मत से ऐसे हिन्दी इवेन्ट के लिऐ सहमत नही बन पा रहा हू । जो स्पेशली हिन्दी बनाम अग्रेजी के लिऐ बना हुआ है। भाषाई कार्यो मे लोग स्वाभिमान लिऐ हुऐ जुडे होते है। उदारहण के लिऐ हमारे उत्तरभारत के हिन्दी ब्लोगकरताओ को साउथ के किसी हिन्दी ब्लोग मेले मे पहुचा दो, वहॉ आपसी बात से लेकर सभी अग्रेजी मे होता है। जो वैसे मे हमारा देशी ब्लोगर जो वहॉ है, वो उब जाऐगा। क्यो कि उसे वहॉ अपने घर का माहोल नही लगेगा। इस तरह के इवेन्ट मे बडी ही सर्तकता बर्तनी पडेगी, क्यो कि हमे हिन्दी चिठठाजगत के विकास एवम चिठाकारो कि हिचक दुर करनी है। अन्तिम व्यक्ति को भी स्न्तुष्ट करना ही लक्ष्य बने तो ही ऐसे आयोजनो कि सार्थकता है वर्ना फोटु खिचाई वाले मेले बन कर रह जाते है ऐसे आयोजन। आप हिन्दी चिठा जगत मे आदि पुरुष माने जाते है, और वो ही अगर हमारा ध्यान नही रखेगा तो फिर नऐ नवलो से क्या उम्मीद। इन्फीरियॉरिटी कॉम्प्लेक्स वाली बात नही है जी यह भाषाई प्यार और स्वाभिमान से झुडी बात है। चुकी आयोजको ने "हिन्दी ब्लोगिग कि दुनिया" वाला बोर्ड लगाया तो विषय के हिसाब से हिन्दी भाषी कार्यशाला थी तो कोई भी ऐसे सवाल उठाने के लिऐ स्वतन्त्र है।

    आप मेरी कोई बात को व्यक्तिगत ना ले अन्यथा भी ना ले, क्यो कि जहॉ प्यार, आदर एवम सम्मान के भाव हो वही नाराज हुआ जा सकता है, शिकायत कि जा सकती है। और आप मेरे आदरणीय।

    मेरे विचार विषय को लेकर है व्यक्ती विशेष को लेकर नही।

    (नोट-:यह मेरा कमेन्ट इस पोस्ट के लिऐ लेट है पर विषय मेरे अनुकुल था ईसलिऐ मत भेजना अच्छा लगा।)

    मुम्बई टाईगर एवम हे प्रभु यह तेरापन्थ का प्रणाम जी

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय