यह कुछ पुरानी पोस्टें हैं। “मानसिक हलचल” में लेखन विविध प्रकार के हैं। ये तीनों पोस्ट विविध दिशाओं में बहती ठहरी हैं। आप देखने का कष्ट करें।
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इन्दारा कब उपेक्षित हो गया? बचपन में गांव का इँदारा (कुआँ) जीवन का केन्द्र होता था. खुरखुन्दे (असली नाम मातादीन) कँहार जब पानी निकालता था तब गडारी पर नीचे-ऊपर आती-जाती रस्सी (लजुरी) संगीत पैदा करती थी. धारी दार नेकर भर पहने उसका गबरू शरीर अब भी मुझे याद है. पता नहीं उसने इँदारे से पानी निकालना कब बंद किया. इँदारा अब इस्तेमाल नही होता. आगे पढ़ें। | किस्सा पांडे सीताराम सूबेदार और मधुकर उपाध्याय सीताराम पांडे वास्तव में थे और उन्होंने यह पुस्तक अवधी में लिखी थी, यह मधुकर जी की पुस्तक की प्रस्तावना से स्पष्ट हो जाता है। सन १९१५ में सर गिरिजाशंकर वाजपेयी ने अपने सिविल सेवा के इन्टरव्यू में यह कहा था कि सीताराम पांडे ने यह किताब उनके दादा को दी थी और उन्होने यह किताब पढी है। पर उसके बाद यह पाण्डुलिपि गायब हो गयी और मधुकर जी काफी यत्न कर के भी उसे ढूढ़ नहीं पाये। तब उन्होने इस पुस्तक को अवधी मे पुन: रचने का कार्य किया। | क्रोध पर नियंत्रण कैसे करें? क्रोध पर नियंत्रण व्यक्ति के विकास का महत्वपूर्ण चरण होना चाहिये. यह कहना सरल है; करना दुरुह. मैं क्रोध की समस्या से सतत जूझता रहता हूं. अभी कुछ दिन पहले क्रोध की एक विस्फोटक स्थिति ने मुझे दो दिन तक किंकर्तव्यविमूढ़ कर दिया था. तब मुझको स्वामी बुधानन्द के वेदांत केसरी में छ्पे लेख स्मरण हो आये जो कभी मैने पढ़े थे. जो लेखन ज्यादा अपील करता है, उसे मैं पावरप्वाइण्ट पर समेटने का यत्न करता हूं। |
कण्ट्रोल पैनल में टैग-क्लाउड दिखाने सम्बन्धी टेम्प्लेट परिवर्तन के बारे में तरुण जी की पोस्ट थी। मैं उसके अनुसार तो नहीं कर पाया – तेक्नोराती टैग साइडबार में सही तौर पर अंट नहीं रहे थे और टेम्प्लेट परिवर्तन भी ठीक से काम नहीं कर रहा था। अंतत: मैने इस पोस्ट का प्रयोग कर यह बनाया (साइडबार में उपयोग देखें): तरुण जी के ब्लॉग से यह विचार अच्छा मिला कि लेबल की लिस्ट लगाने की बजाय क्लाउड लगाना बेहतर लगता है और जगह भी कम लेता है!
अपने तकनीकी दखल को आपने फिर चरितार्थ किया है ! हम तो पहले से ही इम्प्रेस बैठे हैं -नए लोग भी जद में आ जायेंगें !
ReplyDeleteसब के सब बहुत अच्छे आलेख हैं ... पुराने सामग्रियों के लिंक देने के लिए धन्यवाद ।
ReplyDeleteआप तो Geek हुए जा रहे हैं :)
ReplyDeleteसूची के स्थान पर शब्दों का ढेर ठीक है। जिस को जो चाहे चुन ले।
ReplyDeleteबहुत कष्ट किया लेकिन पोस्टें कहीं बहती नहीं दिखीं। सब की सब स्थिर हैं। अलबत्ता टेबल चकाचक बना है।
ReplyDeleteइसे ही कहते हैँ "मानस के मोती "
ReplyDeleteहँसा जो चाहे चुन लेँ ...
- लावण्या
तीनों ही पोस्ट बहुत अछे लगे.
ReplyDeleteकभी कभी पीछे मूड कर देख लेना भी बूरा नहीं है...
ReplyDeleteतीन अलग रंगों में रंगी हुई पोस्ट[पुरानी] पसंद आईं.
ReplyDelete्पुरानी पोस्टो मे से एक पहले पढ़ चुका था।बाकी पोस्ट पढ़वाने के लिए आभार।
ReplyDeleteएक तीर से दो शिकार ... तो सुना था पर पांडेय जी ने तो एक ब्लाग पर तीन-चार का शिकार पढा़ दिया:) धन्यवाद जी॥
ReplyDeleteOld is gold.
ReplyDeleteआज प्रथम बार अचानक ही आपके ब्लाग पर आना हुआ.आपके दिए तीनों लिकं मे से सिर्फ अन्तिम क्रोध पर नियंत्रण वाली ही पोस्ट पढ पाया हूं,बहुत ही उम्दा तरीके से लिखी गई पोस्ट है.अगर समय मिला तो "इन्दारा कब उपेक्षित हो गया" पोस्ट भी पढने की इच्छा है.
ReplyDeleteअच्छी जानकारी मिली .
ReplyDeleteइस बहाने तीनों पोस्ट पढ़ लीं . अच्छा लगा.
ReplyDeleteblog jagat main naya hoon !! aur roz blogs main itna kuch naya hota hai ki poorana nahi padh pate!!
ReplyDeletein teen poorani (old is gold) post padhwane heut dhanyavaad inke bare main comment sam bandhit post main hain !!
waah !!
ReplyDeleteतरुण जी के ब्लॉग से यह विचार अच्छा मिला कि लेबल की लिस्ट लगाने की बजाय क्लाउड लगाना बेहतर लगता है और जगह भी कम लेता है!मैं तो कहता हूँ कि वर्डप्रैस पर आ जाईये, ये तकनीकी पंगा लेने की जरूरत के बिना ही बहुत से फोकटी प्लगिन और विजेट मिल जाएँगे ऐसे छोटे मोटे कामों के लिए! :)
ReplyDeleteडोमेन तो आपने ले ही लिया है, यानि कि आधा काम तो कर ही चुके हैं! :)
सर यह तो सुपरमार्केट से कम नही सभी एक जगह से प्राप्ती, बहुत खुब सरजी
ReplyDeleteअच्छा हुआ आपने फिर से पोस्ट कर दिया. मैं इन्हें पह्ले पढ़ने से वंचित रह गया था. पढ़ कर अच्छा लगा. अलबत्ता टेम्प्लेट परिवर्तन वाला मसला अभी पूरा समझ में नहीं आया. फिर से पढना पड़ेगा.
ReplyDeleteनई पोस्ट तो कल्पनाओं के समुद्र में थपेडे खाने से ही मोती बन कर निकलती है.
ReplyDeleteहर नई पोस्ट एक दिन बाद ही पुरानी हो जाती है
जो जितनी ज्यादा पुरानी उसको याद करने पड़ते हैं इसीलिये वो यादें बन जाती हैं.
उअदों को याद कर उसमें बह जाना ही उपलब्धियां साबित करवाना है.
हमने भी आपकी उपलब्धि को पढ़ कर आत्मसात की और आपकी खुशियों में भी हाथ बतायाँ.............
हूँ न बधाई का पात्र.
चन्द्र मोहन गुप्त.
जैसे मैंने लगा रखा है, अपने ब्लॉग पर, बांयीं ओर के कॉलम में -क्या आप जानते हैं के तहत, इन राहों से हम गुजर चुके- वैसा एक लिंक लगा लीजिए। हम भी आपकी सरप्राईज़ पोस्टों का आनंद उठा सकेंगे। इस पोस्ट जैसा!
ReplyDeleteकहें तो, कोड भेजूँ?
नई पोस्ट तो कल्पनाओं के समुद्र में थपेडे खाने से ही मोती बन कर निकलती है.
ReplyDeleteहर नई पोस्ट एक दिन बाद ही पुरानी हो जाती है
जो जितनी ज्यादा पुरानी उसको याद करने पड़ते हैं इसीलिये वो यादें बन जाती हैं.
उअदों को याद कर उसमें बह जाना ही उपलब्धियां साबित करवाना है.
हमने भी आपकी उपलब्धि को पढ़ कर आत्मसात की और आपकी खुशियों में भी हाथ बतायाँ.............
हूँ न बधाई का पात्र.
चन्द्र मोहन गुप्त.