Tuesday, April 7, 2009

बाटी


अपनी प्रोबेशनरी ट्रेनिंग के दौरान अस्सी के दशक के प्रारम्भ में जब मैं धनबाद रेलवे स्टेशन से बाहर निकला था तो सुखद आश्चर्य हुआ था कि रेलवे स्टेशन के बाहर ठेलों पर बाटी चोखा मिल रहा था। यह बहुत पुरानी स्मृति है।

उसके बाद तो मैने नौकरी देश के पश्चिमी भाग में की। मालवा में बाटी-चोखा नहीं, दाल-बाफले मिलते थे सामुहिक भोजों में। साथ में लड्डू – जो आटे के खोल में मावा-चीनी आदि राख में गर्म कर बनाये जाते हैं।
Baatiमेरे दफ्तर में सामुहिक भोज के लिये राख से बाटी समेटता एक व्यक्ति।
इनकी विस्तृत विधि तो विष्णु बैरागी जी बतायेंगे।

जब मैं नौकरी के उत्तरार्ध में पूर्वांचल में पंहुचा तो छपरा स्टेशन के बाहर पुन: बाटी के दर्शन हुये। गोरखपुर में हमारे रेल नियंत्रण कक्ष के कर्मी तीन चार महीने में एक बार चोखा-दाल-बाटी का कार्यक्रम रख मुझे इस आनन्ददायक खाने में शरीक करते रहते थे।

मैने वाराणसी रेलवे स्टेशन के बाहर दो रुपये में एक बाटी और साथ में चोखा मिलते देखा। मेरे जैसा व्यक्ति जो दो-तीन बाटी में अघा जाये, उसके लिये चार-छ रुपये में एक जुआर (बार) का भोजन तो बहुत सस्ता है। कहना न होगा कि मैं इस गरीब के खाने का मुरीद हूं।

मैं यह आकलन करने का यत्न कर रहा था कि एक सामान्य व्यक्ति अपनी दैनिक २२००-२४०० कैलोरी की जरूरतें पूरी करने के लिये लगभग कितने पैसे में काम चला सकता है। यह लगा कि उसे भोजन पर लगभग ९००-१००० रुपये खर्च करने होंगे प्रति माह। उसके अनुसार हर महीने २००० रुपये कमाने वाले मजदूर लगभग हैण्ड-टू-माउथ नजर आते हैं। ये लोग राष्ट्र को ६-८% आर्थिक विकास का प्रोपल्शन दे रहे हैं और खुद पेन्यूरी (penury – घोर अभाव) में हैं।

हमारे घर में भरतलाल यदा-कदा तसले में कण्डे (गोबर के उपले) जला कर उसमें बाटी-चोखा बना लेता है (बाटी गैस तंदूर पर भी बनाई जा सकती है।)। साथ में होती है गाढ़ी अरहर की दाल। यह खाने के बाद जो महत्वपूर्ण काम करना होता है, वह है – तान कर सोना।

आपके भोजन में बाटी-चोखा यदा कदा बनने वाला व्यंजन है या नहीं? अगर नहीं तो आप महत्वपूर्ण भोज्य पदार्थ से वंचित हैं।   


44 comments:

  1. बाटी -चोखा क्या चावल से बनती है ? दाल -बाटी से फर्क है क्या ?
    हमने तो यहाँ २० + साल हुए ये बानगी खाई नहीँ :-(
    बुरे फँसे ना ,
    बर्गर और पिज़्ज़ा के देश मेँ ...?

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  2. ... प्रसंशनीय अभिव्यक्ति, बाटी-चोखा, दाल-बाटी खाने की इच्छा जागृत हो गई।

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  3. मैंने कभी बाटी नहीं चखी, या कभी चखी होगी लेकिन नाम नहीं पता चला होगा। आपके लेख से अधिक महत्त्वपूर्ण वह कैलोरी-संदेश लगा जो आपने डिब्बे में बंद करके चिपका रखा है!

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  4. लिटी को ही बाटी कहा जाता है क्‍या ? मजदूरों की दशा के बारे में आपकी चिंता सही है ... उनकी स्थिति के बारे में सबों को सोंचना चाहिए।

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  5. दाल बाटी के बारे मे सुना तो बहुत है लेकिन खाई राजस्थान मे है वहां तो बाटी को देसी घी मे डाल देते है बहुत ही गरिष्ट होती है वहां की दाल बाटी

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  6. मैं आज जल्दी में हूँ डॉ मनोज मिश्र से कहता हूँ वे पूर्वांचल के इस बार्बिक्यू व्यंजन के नुस्खे को आम करें !

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  7. दाल-बाटी मेरा पसंदीदा भोजन है लेकि क्या करें इस पि़त्ज़ा और बर्गर का देश के देश में उपले नहीं मिलते :)

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  8. जिस ने दाल-बाटी चखी नहीं, हमारे यहाँ पधारें। हमारे लिए यह साप्ताहिक कार्यक्रम है।

    चोखा क्या है? इसे ज्ञान जी स्पष्ट करें। दाल ही है तो बताएँ।

    एक मध्यवर्गीय ग्रेजुएट लड़की को विवाह के लिए लड़के की माँ देखने आई। उस ने पूछा सवाल-यदि अचानक तीस-चालीस मेहमान आ जाएँ, एक घंटे में भोजन बनाना हो और भोजन निर्माण के लिए तुम अकेली हो तो क्या करोगी?
    लड़की सोच में पड़ गई। कोई दो मिनट सोचने के बाद कहा- दाल, बाटी, चावल बनाऊँगी।
    महिला ने लड़की की पीठ थपथपाई और कहा- होशियार हो।

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  9. मालवा मे रहने वाला व्यक्ति अगर रविवार दाल-बाटी या दाल-बाफ़ला नही खाये तो उसके पेट मे दर्द होजाता है. और डाक्टर को फ़ीस देनी पड सकती है. सो छुट्टी के दिन का अघोषित मेनू ही दाल-बाटी/बाफ़ला रहता है.:)

    वैसे ये मालवा का बडा शाही खाना भी है. आजकल तो शादियों मे एक ही खाना रह गया है, पहले बारात को एक समय के ्खाने मे दाल-बाफ़ला दिया जाता था.

    एक जरा सा फ़र्क बाअटी और बाफ़ले का बता दूं कि बाफ़ले को पहले पानी मे उबाल कर आग पर सेंका जाता है और बाटी सीधे ही सेकी जाती है.

    अक्सर आजकल हमारे यहां के कई रेस्टोरेंट्स मे संडे का स्पेशल खाना होता है दाल बाटी/बाफ़ला.

    अभी आज भी छुट्टी है पर चूंकी परसों संडे को ही बनी थी तो आज नही बनेगी.:)

    रामराम

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  10. दाल बाटी अति ही उत्तम आइटम है। चोखा का तो क्या ही कहना। देसी आइटमों का बाजार अभी हाइप नहीं हुआ है, जब मैकडोनाल्ड दाल बाटी बेचेगा और करीना कपूरजी अपनी फिगर का क्रेडिट दाल बाटी को देंगी। उससे पहले तो यह गरीब का ही भोजन रहेगा। वैसे मैकडोनाल्ड दूर ही रहे इससे तो बेहतर, नहीं तो यह गरीब का नहीं भोजन नहीं रहेगा।

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  11. दाल बाटी तो राजस्थान में भी खाया जाता है.
    बाटी बनाने का चित्र में दिखाया तरीका थोडा अजीब लगा..राख बाटी में लगती नहीं होगी और खाते समय मुंह में नहीं आती है??
    आप ने एक गरीब मजदूर के खाने के हिसाब का और उस के आर्थिक विकास में योगदान का खूब अच्छा आंकलन किया है.इस सच्चाई को सभी अर्थशास्त्री भी जानते ही होंगे.

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  12. भुने चने का सत्तू ,अजवायन ,मंगरैल ,भुनी हींग ,कालानमक ,अदरक ,हरा मिर्च ,प्याज़ ,हरी धनिया और नीबू का रस -सब सत्तू में मिक्स कर जब गुथे आटे के बीचों-बीच डाल कर फिर उसे बंद कर ,उपली की धीमी आंच पर पकाते हैं तो फिर उस बाटी के स्वाद का क्या कहना .हम सब तो सप्ताह में एक दिन जरूर इस सह-भोज का आनंद लेतें हैं .आज ही गावं वालों के साथ मंदिर पर शाम को बाटी का कार्यक्रम है .बाटी का असली आनंद तभी है जब देशी घी की तड़का वाली अरहर की दाल हो तथा जानदार चोखा .

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  13. अगर बाटी का मतलब लिट्टी है तो हमने बहुत खाई है. हमारे पुरे अंचल में यह बहुत लोकप्रिय खाद्य पदार्थ है

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  14. राजस्थान की दाल-बाटी और हमारे तरफ की बाटी चोखा+दाल (जिसका जिक्र ज्ञान जी और मनोज मिश्र जी ने किया है ) बड़ा फर्क होता है . हमारी तरफ की बाटी बनाने के लिए जरूति चीजें मनोज मिश्र जी ने लिखी ही हैं. इसके साथ आग में भुने आलू और बैगन का चोखा खाया जाता है हाँ स्वाद बढाने के लिए अरहर की घी से सराबोर दाल ले ली जाती है तो आनंद कई गुना हो जाता है .
    वैसे ज्ञान जी हमें इलाहाबाद में ठेलों पर मिलने वाला बाटी-चोखा कभी पसंद नहीं आया है लखनऊ में शहर भर में कमाल का बाटी-चोखा मिल जाता है . बागी बलिया नाम से एक मिनी ट्रक भी बाटी-चोखा ले कर घूमती है. यहाँ ३ रूपये में एक बाटी मिलती है और तीन बाटी में हमारे जैसा पेटू भी अघा जाता है. घी वाली बाटी ५ रूपये में मिलती है

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  15. कल ही बनवाया था कंडॆ पर दाल बाटी और बैगन का भरता....फिर दबा कर ऐसा सोये कि सब टिप्पणी धरी रह गईं. :) आप तो समझते ही हैं.

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  16. एक मोटा सा विश्लेषण ये है की एक स्वस्थ व्यक्ति को अपने वजन के मुताबिक एक ग्राम प्रति किलो प्रोटीन ओर तकरीबन ३-४ ग्राम प्रति किलो कार्बोहाय्द्रेड खाना चाहिए .....वैसे हम आप जैसे लोग कम चलने ओर कम शारीरिक मेहनत करने वाले लोग है तो हमें थोडा मोडिफाई कर लेना चाहिए .

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  17. मुंह मे पानी आ गया।

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  18. हमने तो बाटी चोखा खाया नहीं....हां, तान कर सोते ज़रूर हैं:)

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  19. बाटी -चोखा और अरहर की दाल ( वो भी मिट्टी की हंडी में बनी हो )तो क्या कहना , सोचते ही खाने का मन होने लगता है . जब भी गाँव जाते हैं कम से कम एक दिन तो बाटी-चोखा जरुर बनवाते हैं .

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  20. हमारे लिए तो नयी जानकारी है।कभी खाई ही नही।कभी मौका लगा तो खा कर देखे गें:)

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  21. बाटी और लिट्टी में बहुत से लोग उलझ जाते हैं। मैं मालवा की पैदाइश हूँ, तो हमेशा से ही बाटी या बाफले (बाटी को सीधे कंडों पर सेंका जाता है और बाफलों को पहले उबाला जाता है, फिर सेंका) खाने की आदी हूँ। जब से मेरे दोस्तों की लिस्ट में कुछ बिहार राज्य के लोग शामिल हुए हैं तब ही लिट्टी के बारे मालूम हुआ। एक सी लगने वाली ये दोनों डिश एकदम अलग-अलग है। जहां लिट्टी के साथ चोखा खाया जाता है और वो सत्तू भरकर बनाई जाती है। वही बाटी या बाफले मोटे पिसे गेंहू और मक्के के आटे से बनती है और अरहर की दाल, लहसून लाल मिर्च की चटनी के साथ खाई जाती है।

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  22. Never heard never tasted. Never been to interior UP. Sounds tastey, may be one day will have it at yoour place sir ji.

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  23. जो गरीब का भोजन है वह लिट्टी है। इसमें भुने सत्तू और उम्दा स्वाद बनाने वाली सामग्री नहीं भरी जाती। केवल आँटे को गूँथकर गोल-गोल पिण्ड बना लिए जाते हैं। गोबर के बड़े-बड़े पिण्डों को धूप में सुखाकर बनाया हुआ कण्डा, उपला, चिपरी या गोहरा (ये नाम इसकी आकृति व आकार तथा क्षेत्रीयता के अनुसार अलग-अलग हैं) ईंधन के रूप में प्रयुक्त होता है। इससे खुले में आग तैयार करके बिना किसी बर्तन का सहारा लिए इन लिट्टियों को सीधे आग के ढेर पर रखकर जल्दी-जल्दी उलट-पलट कर सेंक लिया जाता है। ताजा पकी हुई गर्मागर्म लिट्टी को गरीब लोग चोखा-चटनी के साथ उदरस्थ करते हैं। चोखा बनाने के लिए उसी कण्डे की आग में पकाये हुए आलू या बैगन को मसलकर उसमें नमक, मिर्चा मिलाकार तीखा कर लिया जाता है। इसे खाने के लिए भी किसी बरतन में परोसने की जरूरत भी नहीं होती। पत्ते पर चोखा, हरा मिर्चा और कण्डे की राख पर से झाड़-पोछकर लिट्टी हाथों से मुँह के रास्ते होती हुई सीधे पेट में पहुँच जाती है। ‘फ़्रॉम हैण्द टु माउथ’ का सटीक दृश्य उत्पन्न करती हुई।

    इस पूरी प्रक्रिया में न्यूनतम संसाधनों की जरूरत पड़ती है। लेकिन जब यही खाद्य सामग्री शौकिया तौर पर समर्थ लोग तैयार करते हैं तो इसमें घाठी (वही जिसे डॉ.मनोज मिश्र ने बताया है) भरी जाती है, इसे पकाने के बाद घी से तर किया जाता है, अरहर की गाढ़ी दाल में घी का मसालेदार तड़का लगाया जाता है, और साथ में दूसरे व्यन्जनों के साथ इसे थाली में स्थान दिया जाता है। इस प्रक्रिया में लिट्टी का स्तरोन्नयन हो जाता है और वह बाटी बनकर एलीट वर्ग में जगह बना लेती है। ऐसी बाटी गरीब को कहाँ नसीब होने वाली?

    अब तो माइक्रोवेब ओवन में बाटी बड़ी शानदार ढंग से साफ-सुथरी सिंक जाती है। इसी काम के लिए यह महंगा गेजेट खरीदने का दबाव मेरे ऊपर साल भर से पड़ रहा है। कोई जुगाड़ करता हूँ... :)

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  24. बहुत खूब। आपने बाटी-चोखा-दाल के बारे में बताया। इसे ही लिट्टी चोखा भी कहा जाता है। आश्चर्य की बात है कि लोग इसके बारे में नहीं जानते। लालू प्रसाद के रेल मंत्री बनने के बाद भी, जिन्होंने इसे रेल स्टेशनों पर बेचने की योजना बनाई (कुछ स्टेशनों पर बिका भी)।
    आपने सही लिखा है। बनारस हो या गोरखपुर, हर बड़े स्टेशन के सामने यह ठेलों पर उपलब्ध रहता है। कुल मिलाकर हाइजेनिक भी होता है। कुल मिलाकर मौसम कैसा भी हो, इसे खाने से बीमार पड़ने की संभावना तो न के बराबर होती है। बिहार में तो हर स्टेशन, हर जिले पर मिलता है और स्वादिस्ट भी जबरदस्त होता है।
    आपने इसे संतुलित आहार से भी बहुत बेहतरीन ढंग से जोडा़ है। शायद यह न हो तो तमाम गरीबों को संतुलित आहार भी नसीब न हो।
    पहले जब मैं परीक्षाएं देने जाता था, तो ठेले पर ५-७ लिट्टी और चोखा खा लेना मेरे लिए बहुत सस्ता और बेहतर लगता था। अब तो स्थिति यह है कि पिज्जा-बर्गर से कोफ्त होती है, ठेलों पर भी इसका कोई विकल्प नहीं है। बनारस की बात करें तो वहां के ठेलों पर चावल और चने का भूजा भी प्रमुख हाइजेनिक आहार है।

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  25. हमारे शहर में आफिस के आस-पास अभी भी लिट्टी-चोखा मिलता है. कई बार हमलोग भी खाते हैं. बाकी यह बात तो ठीक है ही कि

    ये लोग राष्ट्र को ६-८% आर्थिक विकास का प्रोपल्शन दे रहे हैं और खुद पेन्यूरी (penury – घोर अभाव) में हैं।

    वैसे कांग्रेस की मानें तो आर्थिक विकास को वही प्रोपेल कर रही है.

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  26. मैं कुछ और ज्ञान बघार दूं -आत्म प्रक्षेपण का तमगा तो लग ही चुका है-बाटी या लिट्टी भारत के कुछ हिस्सों में घर के बाहर का लोकप्रिय व्यंजन है -घर के बाहर का व्यंजन बोले तो barbecue भोजन जो अमेरिका का एक ऐसा भोज्य अनुभव है जिसका प्रेसीडेंट लोग भी शौक फरमाते हैं ! इसलिए मैंने अपनी पहली टिप्पणी में इसे भारत का बार्बेक्यू भोज कहा ! और हाँ राजस्थान के सुधी ब्लागर बताएं चूरमा क्या होता है !

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  27. लगता है भरतलाल के हाथ की दाल बाटी खाने के लिए आपके यहाँ आने का कार्यक्रम बनाना ही पड़ॆगा... सत्तू शक्कर के साथ, बाजरे की रोटी और मिर्ची की चटनी...मिट्टी के कसोरे में मलाई वाला दूध भी लिस्ट में होनी चाहिए :)

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  28. इडली,डोसा,चाउमीन के साथ लिट्टी चोखा ने भी पूरे भारत में अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है...पहले यह गरीबों का भोजन मन जाता था,पर आज यह भोज समारोहों में विशिष्ठ स्थान बना चुका है.

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  29. यहाँ मुम्बई में न बाटी मिलती है न संत्तू . पर संत्तू का यह स्वादिष्ट भोजन जिसकी याद बारिष में आना स्वाभाविक है , हा मैने तैयारी कर ली है बस झमाझम पानी और मुँह में बाटी यही याद कर तब तक स्वाद ले लेती हूँ..शुक्रिया ।

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  30. जब सुल्तानपुर में MCA कर रहे थे तब वहां कई बार बाटी चोखा खाया है ....एक बार वहां के सज्जन ने हमें दावत पर बुलाया था वहां दावत ही इसकी थी

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  31. सिद्धार्थ जोशी जी के दो कमेण्ट जो ब्लॉगर के स्नेग के कारण पब्लिश नहीं हो रहे दीखते:
    १. दाल बाटी हो और चूरमा न हो तो वह खाना राजस्‍थानी नहीं हो सकता। दाल बाटी गरीबों का भोजन???

    यह तो शाही खाना है। घी में डूबी हुई बाटियों की सौंधी खुशबू और महंगे गर्म मसालों की बनी गाढ़ी दाल गरीब आदमी खा और बना क्‍या सूंघ भी नहीं सकता। उसे बदहजमी हो जाएगी।

    यहां बीकानेर में एक पूनरासर हनुमान मंदिर है। हनुमानजी का मंदिर पूनरासर गांव में। वहां या तो लौंडे जाते हैं या खुद को लौंडे समझने वाले अधेड़ पहुंचते हैं। आधा दिन दाल बाटी और चूरमा बनाने में गुजरता है, घण्‍टे दो घण्‍टे उसे खाने में और बाकी शाम तक तान के सोने में। मैंने भी कई बार यह पार्टी ज्‍वाइन की है। हालांकि मेरा ऐसा ग्रुप नहीं है लेकिन कुछ युवक प्रेमपूर्वक मुझे ले जाते। वहां उनके साथ काम करता और दोपहर तक कड़ाके की भूख लगती तो डटकर खाता। बेकळू यानि नर्म रेत पसरा रहता।

    कसम से बहुत अच्‍छे दिन याद दिला दिए...

    2. और हां चूरमा- बाटी जब गर्म होती है तभी उसे पहले हाथ से फिर चलनी में महीन कर लेते हैं। फिर चीनी मिलाई जाती है। कभी गुड़ भी मिलाते हैं। इस काम में घण्‍टों लगते हैं। ऐसी खुशबू आती है कि भुलाए नहीं भूलती। अभी भी मुंह में पानी आ रहा है।

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  32. jodhpur main hotel management ki 6 mahine ki IT ki thi (Ummed Bhavan main) dal bati churma, aur nai sadak ki mircha pakauda, aur wo rajasthani gaane(khaskar meri ghoomar hai nakhrari , ghoomar ramta aa main zayasa)

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  33. बाटी-चोखा के स्‍वाद में आपने सारे टिपियाओं को मानो 'खाऊ' ही साबित करके रख दिया।
    'चोखा' का एक और अर्थ आपके कारण आज मालूम हो पाया। मालवा में (और सम्‍भवत: राजस्‍थान के कुछ अंचलों में भी) 'चोखा-चांवल' शटद-युग्‍म प्रयुक्‍त होता है जिसमें 'चोखा' का कोई अलग अर्थ नहीं होता।
    बहरहाल मुझे याद कर सम्‍मानित करने के लिए आभार।
    आपकी मूल चिन्‍ता ने मुझे बाटी का स्‍वाद नहीं लेने दिया। इसकी कारुणिक व्‍यंजना मैं अनुभव कर पा रहा हूं-अपने बचपन में, दरवाजे-दरवाजे, आवाज लगा कर मुट्ठी-मुट्ठी आटा मांगने वाला ही केलारी की तलाश में आपके साथ हो सकता है।

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  34. Learned something new today.
    Never heard of this food item.
    Must remember to try this next time I visit North India
    Regards
    G Vishwanath

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  35. आदि के जन्मदिन पर दाल बाटी चुरमा बनवाले का सोच रहे थे पर दिल्ली में कहां से ढुढे राजस्थानी हलवाई... त्यागना पडा़ आईडिया..

    हमारे यहां पिकनिक/गोठ का फिक्स मिनु रहता है दाल बाटी चूरमा.. दाल क्या कहने.. मुंग दाल... थोडे़ से चने की दाल.. अदरक लहसुन का बघार... और कच्चे प्याज नींबु से साथ सर्व करना.. मुहँ में पानी आ जाये...

    बाटी में देशी घी इतना की सोच भी नहीं सकते.. ..

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  36. हमने भी बाटी को लेकर दो तीन पोस्‍ट पूर्व में छाप चुकें है, हमें नही पता था कि बाटी इतनी अनोखी चीज है। पोस्‍ट के साथ साथ सामूहिक निमंत्रण भी दिया था पर कोई आया ही नही। खैर अब जिसको बाटी खाने की इच्‍छा हो वह दिसम्‍बर में तैयार रहे।

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  37. मैंने तो बहुत पहले खाई थी बाटी....अगली बार जब भी मन होगा आदरणीय द्विवेदीजी के यहां पहुंच जायेंगे....उनका निमंत्रण स्‍वीकार है :)

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  38. दाल बाटी और भुरता तो गरीबो का सस्ता भोजन है जिसे जल्दी और बिना तामझाम के बनाया जा सकता है . .दाल बाटी और भुरता का सही आनंद नर्मदा तट पर पिकनिक के दौरान मिलता है . कंडे में सिकी बाटी तो अति स्वादिष्ट होती है . वाह क्या कहने . पोस्ट पढ़कर इन्हें खाने की इच्छा होने लगी है .

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  39. लिखने कुछ और ही आया था.. मगर यहां तो खाने को लेकर घमासान छिड़ा हुआ है और उसे पढ़ते हुये मैं क्या लिखना चाह रहा था वह भूल गया.. :(

    वैसे हम दाल बाटी चुरमा भी खाये हुये हैं और लिट्टी चोखा भी.. सत्तू तो यहां चेन्नई में मिलता नहीं है मगर हम उसे बिहार से एक्सपोर्ट कराते हैं, सिर्फ़ और सिर्फ़ लिट्टी बनाने के लिये.. :)

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  40. आप जो बता रहे हैं वह मैंने शायद नहीं खाया है, हाँ अजमेर से वापस आते समय एक बार एक ढाबे पर दाल बाटी चूरमा अवश्य खाया था जो कि काफ़ी स्वादिष्ट था (देसी घी में बना था इसलिए तोंद फुलाऊ भी था) और जमकर भूख लगे होने के बावजूद आधे से अधिक नहीं खाया गया था!! :)

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  41. मनोज जी ने बाटी बनाने की जो बिधि बताई उससे मैं पूरी तरह से सहमत तो हूँ पर उसमे सत्तू का जिक्र किया गया है, सत्तू किस अन्न का या अन्नों का इसका कोई जिक्र नहीं.

    आप सभी की जानकारी के लिए यह सत्तू चने का होता है.

    इसमें एक चीज जो प्रायः स्वाद और बढ़ने के लिए डाली जाती है वह है लाल मिर्च के आचार का भरुआ मसाला.

    अल्पना जी ने पूँछा कि ये तो राख़ में लिपटी होती है फिर खाई कैसे जाती है. आपकी जानकारी के लिए पकने के बाद बाटी को राख़ और आंच के बीच से निकल कर कपडे से रगर कर पोंछा जाता है फिर उसे शुद्ध देशी घी में डूबा कर निकाल कर ही सर्व किया जाता है.

    चोखे के बारे मैं भी ज्यादा वर्णन नहीं मिला, वस्तुतः यह बैगन का चोखा ही है जिसमें आग में भुनी आलू भी मिश्रित की जाती है तथा सरसों का तेल भी पड़ता है.

    बिहार का यह प्रसिद्द भोजन मुझे हिंडाल्को, रेनुकूट में सर्विस के दौरान चखने का अवसर मिला था, जब प्रथम बार सन् १९८३ में प्राप्त हुआ, तब से ही मैं तो इसका दीवान हो गया, तब से लेकर आज तक यह मेरा पसंदीदा भोजन है अंतर सिर्फ यह है कि अब बाटी और चोखा उपले की आग में नहीं, ओवेन और गैस की आग में ही बनता है.

    यह अति गरिष्ठ और स्वादिष्ट भोजन है, इसे खाने के बाद प्यास बहुत लगती है.


    चन्द्र मोहन गुप्त

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  42. ग़ज़ब! भाई हर भोजपुरिये की तरह यह मेरा भी बड़ा प्रिय पदार्थ है.

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  43. Hum jab ghar jate hain to sirf ye sonchkar ki hum bahar bati chokha nahi kha pate honge. Iske liye special preparation hoti hai. Kande wali bati mein jo maza hai wo gas wali mein nahin...

    Bahut hi gazab cheez hai..ek swadisht post :)

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  44. अभी घर से लौटा हूँ जाहिर है १५ दिन में २ बार बाटी खाई गयी !

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--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय