Sunday, April 5, 2009

अगले जनम मोहे कीजौ दरोगा


policemanमेरी पत्नी जी की सरकारी नौकरी विषयक पोस्ट पर डा. मनोज मिश्र जी ने महाकवि चच्चा जी की अस्सी साल पुरानी पंक्तियां प्रस्तुत कीं टिप्पणी में -

देश बरे की बुताय पिया - हरषाय हिया तुम होहु दरोगा। (नायिका कहती है; देश जल कर राख हो जाये या बुझे; मेरा हृदय तो प्रियतम तब हर्षित होगा, जब तुम दरोगा बनोगे!)

हाय! क्या मारक पंक्तियां हैं! ए रब; यह जनम तो कण्डम होग्या। अगले जनम मैनू जरूर-जरूर दरोगा बनाना तुसी!


मैने मनोज जी से चिरौरी की है कि महाकवि चच्चा से विस्तृत परिचय करायें। वह अगले जन्म के लिये हमारे दरोगाई-संकल्प को पुष्ट करेगा।  

31 comments:

  1. सच है, हर जगह इस महाबली से सामना हो जाता है.

    ReplyDelete
  2. चलिए, आप और मिसिरजी कहते-सुनते रहें, हमें भी ज्ञान-प्रसाद प्राप्‍त होगा।

    ReplyDelete
  3. एक दरोगा के क्या जलवे क्या होते हैं यह हरिशंकर परसाईजी ने लिखा है इंस्पेक्स्टर मातादीन चांद पर में। देखिये: http://www.bijhar.org.sg/index.php?option=com_content&view=article&catid=30%3A2008-07-27-18-02-34&id=58%3A%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%B8&Itemid=59

    ReplyDelete
  4. बहुत बढिया ... इंतजार रहेगा मनोज जी की पोस्‍ट का।

    ReplyDelete
  5. Ye bhee bata dijiye Gyan bhai sahab,
    agle janam "Daroga " ban gaye tub kin logon ko jail bhijvane ka irada hai ?

    ReplyDelete
  6. मोह में कौनो कमी दिख रही है क्या जो इन पंक्तियों से आकर्षित हो डोल गये आप.

    खैर, विस्तृत परिचय तो प्राप्त होना ही चाहिये.

    ReplyDelete
  7. शायद इसीलिए कहा गया है सैय्या भय कोतवाल तो अब डर काहे का

    ReplyDelete
  8. आपकी यह इच्छा देखकर तो दरोगाई से चिढ़ होने लगी है । चिढ़ तो पहले भी थी पर कारण दूसरा था, अब कारण दूसरा है । धन्यवाद ।

    ReplyDelete
  9. अंग्रेजी में The Rogue से शायद दारोगा बना होगा ! पर आप बनें तो प्रेमचंद के नमक के दारोगा मुंशी वंशीधर(नाम पक्का याद नहीं) की तरह बनना !

    ReplyDelete
  10. आज आपने एक ऐसे जल्वेदार विषय पर लेखनी चलाई है कि मज़ा आ गया .सरकारें चाहें जिसकी हों -रहें लेकिन दरोगाओं के जलवे सदा कायम रहेंगे .आप के आदेशानुसार महाकवि चच्चा के बारे में पूरी तहकीकात शुरू कर दियां हूँ जैसे ही विस्तृत बिवरण मिला तुंरत बताऊंगा . दरोगा -पुलिस पर चलते -चलतें पूरी रचना नहीं केवल दो लाइन ''राजेंद्र स्मृतिग्रन्थ ''से -
    नगर बधू मद उद्यमी ,तस्कर पाकेटमार ,
    सब में प्रभु तू रम रहे ,तुम सम कौन उदार |

    ReplyDelete
  11. मैं तो यही सोच सोच के भय को प्राप्त हो रहा हूँ कि तब आदरणीय रीता पाण्डेय जी दरोगायिन हो कर न जाने कैसे जोर जुल्म ढ़ायेंगीं ! हमें भी अपने कुनबे में रखियेगा ज्ञान जी !

    ReplyDelete
  12. कहीं का भी दरोगा हो जाईयेगा मगर छत्तीसगढ का नही।यंहा थोड़ा नही बहुत तक़्लिफ़ है,कंही बस्तर भेज दिये तो………………………………………………………॥

    ReplyDelete
  13. दरोगा तो दरोगा, उस से ज्यादा रोब दरोगाइन का।

    वह दरोग की दरोगन जो है।

    ReplyDelete
  14. दरोगा बनने का मोह छोडें. और कितना प्रताडित होना है!

    ReplyDelete
  15. दरोगा होने के खतरे भी है.. बाकि .पल्लवी बेहतर टॉर्च डालेगी ....

    ReplyDelete
  16. अगले जन्म का तो राम मालिक....इस जन्म की रेलगाडी़ तो पहले ठेलते रहिए :)

    ReplyDelete
  17. आपने तो इन पंक्तियो की याद दिला दी।


    "दरोगा जी
    रोगा जी!
    देश के
    शक्ल मे हाथी
    बन्दूक के साथी
    तोन्दिल दरोगा जी
    तुम भर दुबले नही हुये

    गुलामी के हुकुमबरदार
    अन्धे कानून के तरफदार
    अफसर के सिपहसलार
    तुम भर आदमी नही हुए

    (उजास भरा मन का आँगन- बबन प्रसाद मिश्र, वैभव प्रकाशन, छत्तीसगढ)"

    ReplyDelete
  18. बहुत बढ़िया। दरोगा भी तमाम होते हैं। प्रेमचंद ने भी लिखा था नमक का दरोगा। कहीं वैसा दरोगा हुए तो सब कुछ गंवाना पड़ेगा।

    ReplyDelete
  19. अजी दरोगा लोगो को बेचारो को कितना लज्जित होना पडता है इन घटोले बाजो के सामाने , ओर फ़िर आप तो चेहरे से ही मासुम, भोले भाले लगते हो, ओर दरोगा बनाने के लिये तो रावाण जेसा थोवडा कहां से लाओगे? जिसे देख के गली का कुता भी दुबक जाये, आंखे ऎसी जेसे दो चिंगारियां... अजी आप तो हमारे ग्याण जी स्टेशन वाले ही बने रहे.. कभी कभी मुफ़्त मै रेलबे का पास तो मिल जायेगा, दरोगा बन गये तो वो कहावत तो सुनी होगी.. कि पुलेस से ना दोस्ती अच्छी ओर ना ही दुशमनी, लेकिन जनाब दुशमनी तो तब होगी जब कोई दोस्ती करेगां, तो भईया बीबी को समझाओ कि अगले क्या सात जन्मो मे भी कोई नेता, ओर दरोगा ना बने..
    राम राम जी की, वेसे आप की इच्छा, हमे तो लाभ ही होगा, रिशवत नही देनी पडेगी, बस आप का नाम लिया ओर निकल जायेगे पतली गली से, जो भी बनो पहले बता जरुर देना...ताकि हम भी जन्म उसी हिसाब से लेगे..

    ReplyDelete
  20. ए रब; यह जनम तो कण्डम होग्या। अगले जनम मैनू जरूर-जरूर दरोगा बनाना तुसी! LOL !

    Lovely to read your punjabi, a small amendment if I may, 'Thanedar' is appropriate word for punjabi culture :)

    ReplyDelete
  21. अरे इ का भवा, सबै हमरे इच्छा करने लगै तो हमार का होइहे दद्दा ;)

    ReplyDelete
  22. शायद दूसरों की थाली मे घी ज्यादा दिख रहा है, साहब जी अपने तो इन्जिन ही ज्यादा अच्छा लगता है. आगे आपकी मर्जी.

    दरोगाई मे सै्लून नही बल्की पैदल भी घूमना पडता है, और आज शायद इछ्छापुर्ति दिवस भी है, जरा सोच समझकर इच्छा किजियेगा:)

    रामराम.

    ReplyDelete
  23. अच्छा है.. अगले जन्म में करियर को लेकर मैं पसोपेश में था. ज़ाहिर है ब्लॉगर तो बनना नहीं है.. :) .. अच्छा है आपने राह दिखा दी.. अभी से पंजीकरण करा लेते हैं..

    ReplyDelete
  24. भाई ज्ञान जी,

    जब इच्छा हो ही गई है तो अगले जनम में ही क्यों, इसे जन्म में ही..........

    पत्नी कहना मन कर , अर्जी देओ लगाय
    दरोगाइन फिर गर्व से, इतराती मिल जाए

    हो सकता है फिर तो रोज़ ही मॉल-पुआ खाने को मिले.....................

    चन्द्र मोहन गुप्त

    ReplyDelete
  25. समरथ को नहीं दोस गोसांई....

    ReplyDelete
  26. कमाई वाले इलाके में पोस्टींग नहीं चाहिये? दोनों साथ ही मांग लेते..:)

    ReplyDelete
  27. रेलवे वालो को यह कहना चाहिए-
    अगले जन्म में मुझे टीटीई करियो
    पुलिस में दारोगा से बड़ा कोई पद ना है
    और रेलवे में टीटीई से बड़ी कोई पोस्ट ना है।
    कवि गच्चा की एक कविता सुनिये

    भैया मोरे मैं नहीं रिश्वत खायो
    अगल बगल पैसेंजर खड़े हैं, बरबस जेब घुसायो
    मैं टीटीई, सीटों का टोटा
    केहि विधि सबको सिलटायो
    मालगाड़ी वारे सब बैर पड़े हैं,
    ऊपर शिकायत लगायो
    भैया मोरे मैं नहीं रिश्वत खायो

    ReplyDelete
  28. प्रेमचंद के 'नमक का दरोगा' की तर्ज पर मासिक आय तो पूर्णमासी का चाँद होता है... और उपरी आय बहती गंगा की तरह है ! और दरोगा का रॉब ऊपर से और !

    ओह हम दरोगा ना हुए :(

    ReplyDelete
  29. अजी दरोगा लोगो को बेचारो को कितना लज्जित होना पडता है इन घटोले बाजो के सामाने , ओर फ़िर आप तो चेहरे से ही मासुम, भोले भाले लगते हो, ओर दरोगा बनाने के लिये तो रावाण जेसा थोवडा कहां से लाओगे? जिसे देख के गली का कुता भी दुबक जाये, आंखे ऎसी जेसे दो चिंगारियां... अजी आप तो हमारे ग्याण जी स्टेशन वाले ही बने रहे.. कभी कभी मुफ़्त मै रेलबे का पास तो मिल जायेगा, दरोगा बन गये तो वो कहावत तो सुनी होगी.. कि पुलेस से ना दोस्ती अच्छी ओर ना ही दुशमनी, लेकिन जनाब दुशमनी तो तब होगी जब कोई दोस्ती करेगां, तो भईया बीबी को समझाओ कि अगले क्या सात जन्मो मे भी कोई नेता, ओर दरोगा ना बने..
    राम राम जी की, वेसे आप की इच्छा, हमे तो लाभ ही होगा, रिशवत नही देनी पडेगी, बस आप का नाम लिया ओर निकल जायेगे पतली गली से, जो भी बनो पहले बता जरुर देना...ताकि हम भी जन्म उसी हिसाब से लेगे..

    ReplyDelete
  30. आपने तो इन पंक्तियो की याद दिला दी।


    "दरोगा जी
    रोगा जी!
    देश के
    शक्ल मे हाथी
    बन्दूक के साथी
    तोन्दिल दरोगा जी
    तुम भर दुबले नही हुये

    गुलामी के हुकुमबरदार
    अन्धे कानून के तरफदार
    अफसर के सिपहसलार
    तुम भर आदमी नही हुए

    (उजास भरा मन का आँगन- बबन प्रसाद मिश्र, वैभव प्रकाशन, छत्तीसगढ)"

    ReplyDelete
  31. आज आपने एक ऐसे जल्वेदार विषय पर लेखनी चलाई है कि मज़ा आ गया .सरकारें चाहें जिसकी हों -रहें लेकिन दरोगाओं के जलवे सदा कायम रहेंगे .आप के आदेशानुसार महाकवि चच्चा के बारे में पूरी तहकीकात शुरू कर दियां हूँ जैसे ही विस्तृत बिवरण मिला तुंरत बताऊंगा . दरोगा -पुलिस पर चलते -चलतें पूरी रचना नहीं केवल दो लाइन ''राजेंद्र स्मृतिग्रन्थ ''से -
    नगर बधू मद उद्यमी ,तस्कर पाकेटमार ,
    सब में प्रभु तू रम रहे ,तुम सम कौन उदार |

    ReplyDelete

आपको टिप्पणी करने के लिये अग्रिम धन्यवाद|

हिन्दी या अंग्रेजी में टिप्पणियों का स्वागत है|
--- सादर, ज्ञानदत्त पाण्डेय