मेरी पत्नी जी की सरकारी नौकरी विषयक पोस्ट पर डा. मनोज मिश्र जी ने महाकवि चच्चा जी की अस्सी साल पुरानी पंक्तियां प्रस्तुत कीं टिप्पणी में - देश बरे की बुताय पिया - हरषाय हिया तुम होहु दरोगा। (नायिका कहती है; देश जल कर राख हो जाये या बुझे; मेरा हृदय तो प्रियतम तब हर्षित होगा, जब तुम दरोगा बनोगे!) हाय! क्या मारक पंक्तियां हैं! ए रब; यह जनम तो कण्डम होग्या। अगले जनम मैनू जरूर-जरूर दरोगा बनाना तुसी!
मैने मनोज जी से चिरौरी की है कि महाकवि चच्चा से विस्तृत परिचय करायें। वह अगले जन्म के लिये हमारे दरोगाई-संकल्प को पुष्ट करेगा।
|| MERI MAANSIK HALCHAL ||
|| मेरी (ज्ञानदत्त पाण्डेय की) मानसिक हलचल ||
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Sunday, April 5, 2009
अगले जनम मोहे कीजौ दरोगा
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सच है, हर जगह इस महाबली से सामना हो जाता है.
ReplyDeleteचलिए, आप और मिसिरजी कहते-सुनते रहें, हमें भी ज्ञान-प्रसाद प्राप्त होगा।
ReplyDeleteएक दरोगा के क्या जलवे क्या होते हैं यह हरिशंकर परसाईजी ने लिखा है इंस्पेक्स्टर मातादीन चांद पर में। देखिये: http://www.bijhar.org.sg/index.php?option=com_content&view=article&catid=30%3A2008-07-27-18-02-34&id=58%3A%E0%A4%87%E0%A4%82%E0%A4%B8&Itemid=59
ReplyDeleteबहुत बढिया ... इंतजार रहेगा मनोज जी की पोस्ट का।
ReplyDeleteYe bhee bata dijiye Gyan bhai sahab,
ReplyDeleteagle janam "Daroga " ban gaye tub kin logon ko jail bhijvane ka irada hai ?
मोह में कौनो कमी दिख रही है क्या जो इन पंक्तियों से आकर्षित हो डोल गये आप.
ReplyDeleteखैर, विस्तृत परिचय तो प्राप्त होना ही चाहिये.
शायद इसीलिए कहा गया है सैय्या भय कोतवाल तो अब डर काहे का
ReplyDeleteआपकी यह इच्छा देखकर तो दरोगाई से चिढ़ होने लगी है । चिढ़ तो पहले भी थी पर कारण दूसरा था, अब कारण दूसरा है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteअंग्रेजी में The Rogue से शायद दारोगा बना होगा ! पर आप बनें तो प्रेमचंद के नमक के दारोगा मुंशी वंशीधर(नाम पक्का याद नहीं) की तरह बनना !
ReplyDeleteआज आपने एक ऐसे जल्वेदार विषय पर लेखनी चलाई है कि मज़ा आ गया .सरकारें चाहें जिसकी हों -रहें लेकिन दरोगाओं के जलवे सदा कायम रहेंगे .आप के आदेशानुसार महाकवि चच्चा के बारे में पूरी तहकीकात शुरू कर दियां हूँ जैसे ही विस्तृत बिवरण मिला तुंरत बताऊंगा . दरोगा -पुलिस पर चलते -चलतें पूरी रचना नहीं केवल दो लाइन ''राजेंद्र स्मृतिग्रन्थ ''से -
ReplyDeleteनगर बधू मद उद्यमी ,तस्कर पाकेटमार ,
सब में प्रभु तू रम रहे ,तुम सम कौन उदार |
मैं तो यही सोच सोच के भय को प्राप्त हो रहा हूँ कि तब आदरणीय रीता पाण्डेय जी दरोगायिन हो कर न जाने कैसे जोर जुल्म ढ़ायेंगीं ! हमें भी अपने कुनबे में रखियेगा ज्ञान जी !
ReplyDeleteकहीं का भी दरोगा हो जाईयेगा मगर छत्तीसगढ का नही।यंहा थोड़ा नही बहुत तक़्लिफ़ है,कंही बस्तर भेज दिये तो………………………………………………………॥
ReplyDeleteदरोगा तो दरोगा, उस से ज्यादा रोब दरोगाइन का।
ReplyDeleteवह दरोग की दरोगन जो है।
दरोगा बनने का मोह छोडें. और कितना प्रताडित होना है!
ReplyDeleteदरोगा होने के खतरे भी है.. बाकि .पल्लवी बेहतर टॉर्च डालेगी ....
ReplyDeleteअगले जन्म का तो राम मालिक....इस जन्म की रेलगाडी़ तो पहले ठेलते रहिए :)
ReplyDeleteआपने तो इन पंक्तियो की याद दिला दी।
ReplyDelete"दरोगा जी
रोगा जी!
देश के
शक्ल मे हाथी
बन्दूक के साथी
तोन्दिल दरोगा जी
तुम भर दुबले नही हुये
गुलामी के हुकुमबरदार
अन्धे कानून के तरफदार
अफसर के सिपहसलार
तुम भर आदमी नही हुए
(उजास भरा मन का आँगन- बबन प्रसाद मिश्र, वैभव प्रकाशन, छत्तीसगढ)"
बहुत बढ़िया। दरोगा भी तमाम होते हैं। प्रेमचंद ने भी लिखा था नमक का दरोगा। कहीं वैसा दरोगा हुए तो सब कुछ गंवाना पड़ेगा।
ReplyDeleteअजी दरोगा लोगो को बेचारो को कितना लज्जित होना पडता है इन घटोले बाजो के सामाने , ओर फ़िर आप तो चेहरे से ही मासुम, भोले भाले लगते हो, ओर दरोगा बनाने के लिये तो रावाण जेसा थोवडा कहां से लाओगे? जिसे देख के गली का कुता भी दुबक जाये, आंखे ऎसी जेसे दो चिंगारियां... अजी आप तो हमारे ग्याण जी स्टेशन वाले ही बने रहे.. कभी कभी मुफ़्त मै रेलबे का पास तो मिल जायेगा, दरोगा बन गये तो वो कहावत तो सुनी होगी.. कि पुलेस से ना दोस्ती अच्छी ओर ना ही दुशमनी, लेकिन जनाब दुशमनी तो तब होगी जब कोई दोस्ती करेगां, तो भईया बीबी को समझाओ कि अगले क्या सात जन्मो मे भी कोई नेता, ओर दरोगा ना बने..
ReplyDeleteराम राम जी की, वेसे आप की इच्छा, हमे तो लाभ ही होगा, रिशवत नही देनी पडेगी, बस आप का नाम लिया ओर निकल जायेगे पतली गली से, जो भी बनो पहले बता जरुर देना...ताकि हम भी जन्म उसी हिसाब से लेगे..
ए रब; यह जनम तो कण्डम होग्या। अगले जनम मैनू जरूर-जरूर दरोगा बनाना तुसी! LOL !
ReplyDeleteLovely to read your punjabi, a small amendment if I may, 'Thanedar' is appropriate word for punjabi culture :)
अरे इ का भवा, सबै हमरे इच्छा करने लगै तो हमार का होइहे दद्दा ;)
ReplyDeleteशायद दूसरों की थाली मे घी ज्यादा दिख रहा है, साहब जी अपने तो इन्जिन ही ज्यादा अच्छा लगता है. आगे आपकी मर्जी.
ReplyDeleteदरोगाई मे सै्लून नही बल्की पैदल भी घूमना पडता है, और आज शायद इछ्छापुर्ति दिवस भी है, जरा सोच समझकर इच्छा किजियेगा:)
रामराम.
अच्छा है.. अगले जन्म में करियर को लेकर मैं पसोपेश में था. ज़ाहिर है ब्लॉगर तो बनना नहीं है.. :) .. अच्छा है आपने राह दिखा दी.. अभी से पंजीकरण करा लेते हैं..
ReplyDeleteभाई ज्ञान जी,
ReplyDeleteजब इच्छा हो ही गई है तो अगले जनम में ही क्यों, इसे जन्म में ही..........
पत्नी कहना मन कर , अर्जी देओ लगाय
दरोगाइन फिर गर्व से, इतराती मिल जाए
हो सकता है फिर तो रोज़ ही मॉल-पुआ खाने को मिले.....................
चन्द्र मोहन गुप्त
समरथ को नहीं दोस गोसांई....
ReplyDeleteकमाई वाले इलाके में पोस्टींग नहीं चाहिये? दोनों साथ ही मांग लेते..:)
ReplyDeleteरेलवे वालो को यह कहना चाहिए-
ReplyDeleteअगले जन्म में मुझे टीटीई करियो
पुलिस में दारोगा से बड़ा कोई पद ना है
और रेलवे में टीटीई से बड़ी कोई पोस्ट ना है।
कवि गच्चा की एक कविता सुनिये
भैया मोरे मैं नहीं रिश्वत खायो
अगल बगल पैसेंजर खड़े हैं, बरबस जेब घुसायो
मैं टीटीई, सीटों का टोटा
केहि विधि सबको सिलटायो
मालगाड़ी वारे सब बैर पड़े हैं,
ऊपर शिकायत लगायो
भैया मोरे मैं नहीं रिश्वत खायो
प्रेमचंद के 'नमक का दरोगा' की तर्ज पर मासिक आय तो पूर्णमासी का चाँद होता है... और उपरी आय बहती गंगा की तरह है ! और दरोगा का रॉब ऊपर से और !
ReplyDeleteओह हम दरोगा ना हुए :(
अजी दरोगा लोगो को बेचारो को कितना लज्जित होना पडता है इन घटोले बाजो के सामाने , ओर फ़िर आप तो चेहरे से ही मासुम, भोले भाले लगते हो, ओर दरोगा बनाने के लिये तो रावाण जेसा थोवडा कहां से लाओगे? जिसे देख के गली का कुता भी दुबक जाये, आंखे ऎसी जेसे दो चिंगारियां... अजी आप तो हमारे ग्याण जी स्टेशन वाले ही बने रहे.. कभी कभी मुफ़्त मै रेलबे का पास तो मिल जायेगा, दरोगा बन गये तो वो कहावत तो सुनी होगी.. कि पुलेस से ना दोस्ती अच्छी ओर ना ही दुशमनी, लेकिन जनाब दुशमनी तो तब होगी जब कोई दोस्ती करेगां, तो भईया बीबी को समझाओ कि अगले क्या सात जन्मो मे भी कोई नेता, ओर दरोगा ना बने..
ReplyDeleteराम राम जी की, वेसे आप की इच्छा, हमे तो लाभ ही होगा, रिशवत नही देनी पडेगी, बस आप का नाम लिया ओर निकल जायेगे पतली गली से, जो भी बनो पहले बता जरुर देना...ताकि हम भी जन्म उसी हिसाब से लेगे..
आपने तो इन पंक्तियो की याद दिला दी।
ReplyDelete"दरोगा जी
रोगा जी!
देश के
शक्ल मे हाथी
बन्दूक के साथी
तोन्दिल दरोगा जी
तुम भर दुबले नही हुये
गुलामी के हुकुमबरदार
अन्धे कानून के तरफदार
अफसर के सिपहसलार
तुम भर आदमी नही हुए
(उजास भरा मन का आँगन- बबन प्रसाद मिश्र, वैभव प्रकाशन, छत्तीसगढ)"
आज आपने एक ऐसे जल्वेदार विषय पर लेखनी चलाई है कि मज़ा आ गया .सरकारें चाहें जिसकी हों -रहें लेकिन दरोगाओं के जलवे सदा कायम रहेंगे .आप के आदेशानुसार महाकवि चच्चा के बारे में पूरी तहकीकात शुरू कर दियां हूँ जैसे ही विस्तृत बिवरण मिला तुंरत बताऊंगा . दरोगा -पुलिस पर चलते -चलतें पूरी रचना नहीं केवल दो लाइन ''राजेंद्र स्मृतिग्रन्थ ''से -
ReplyDeleteनगर बधू मद उद्यमी ,तस्कर पाकेटमार ,
सब में प्रभु तू रम रहे ,तुम सम कौन उदार |